रिश्ते… दिल से दिल के - 5 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 5

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 5
[प्रदिति ने की मदद]

ट्रेन आकर दिल्ली के स्टेशन पर रुकी। प्रदिति ने अपने सामान के साथ उतरकर चारों तरफ देखा और चहरे पर एक मुस्कान लेकर बोली, "मां! आ गई हूं आपके शहर। अब मैं अपनी पूरी जान लगा दूंगी आपको और पापा को मिलाने में। अब मैं अपने परिवार को फिर से जोड़कर रहूंगी।"

फिर ऊपर की तरफ देखकर बोली, "हे महादेव! मेरी मदद करना। बस आपसे ही उम्मीद है।" कहकर वो अपने सामान के साथ आगे की तरफ चली गई।


"ये है आपका बेडरूम।"

विनीत जी ने प्रदिति के ठहरने के लिए एक किराए के छोटे से घर की व्यवस्था करवाई थी जिसमें उसका एक बेडरूम, बाथरूम, छोटा सा किचन और एक बैठक वाला छोटा सा कमरा था। मकान मालिक उसे ही प्रदिति को दिखा रहा था।

पूरा घर दिखाने के बाद मकान मालिक ने प्रदिति से पूछा, "तो, मैम! कैसा लगा आपको ये घर?"

"बहुत ही प्यारा है।", प्रदिति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

फिर उसने सवाल किया, "इसका रेंट क्या है?"

"अरे, आप किराए की चिंता मत कीजिए। वो सब हम देख लेंगे।"

"अरे, लेकिन ऐसे कैसे? किराया तो देना ही पड़ेगा ना!", प्रदिति ने अपनी भौंहों को जोड़कर कहा तो वो शख्स बोला, "मैम! आपके पिता एक बहुत ही अच्छे इंसान हैं। जब वो यहां दिल्ली में थे तो मेरे पापा की बहुत हेल्प की थी उन्होंने। मेरे पापा के पास सिर ढकने के लिए छत भी नहीं थी तब उन्होंने पापा की हेल्प की और आज देखिए मैं उनकी ही बेटी को रहने के लिए अपना घर दे रहा हूं। उन्होंने जब हमारी मदद करने के बाद हमसे कुछ नहीं मांगा तो हम आपसे कैसे मांगें?"

प्रदिति मुस्कुराई और बोली, "पापा ने मुझे बताया था आपके पापा के बारे में लेकिन माफ कीजिए किराया तो आपको लेना पड़ेगा।"

"अरे, लेकिन…"

"नहीं, मैं कुछ नहीं सुनने वाली। अगर आप मेरी बात मानते हैं तो ही मैं यहां रुकूंगी नहीं तो फिर मुझे कोई और मकान देखना पड़ेगा।"

"अरे, नहीं नहीं… अच्छा, ठीक है! महीने के आखिर में मैं आपको बता दूंगा।", वो शख्स बोला तो प्रदिति ने एक मुस्कान दे दी।

अपना सारा समान घर में अच्छी तरह से रखकर प्रदिति बाहर आकर वहां का नज़ारा देख रही थी। तभी उसकी नज़र एक शख्स पर पड़ी जिसके कपड़े धूल–मिट्टी से गंदे हो रहे थे और बाल भी बुरी तरह से बिखरे हुए थे। वो अपने मुंह पर हाथ रखकर बुरी तरह रोए जा रहा था।

प्रदिति ने जब ये देखा तो खुद से ही बोली, "ये इतना रो क्यों रहे हैं? मुझे जाकर पूछना चाहिए।" कहकर वो उस शख्स के पास आई और बोली, "काका!"

प्रदिति की आवाज़ पर उस शख्स ने उसकी तरफ चहरा किया जिसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे। उन्हें देखकर प्रदिति ने पूछा, "क्या हुआ? आप रो क्यों रहे हैं?"

प्रदिति की बात अनसुनी करके उस शख्स ने अपना चहरा दूसरी तरफ कर लिया। प्रदिति को ये सब समझ नहीं आया तो वो फिर से उस शख्स के सामने आ गई और बोली, "काका! आप मुझे बताइए ना, आपको क्या परेशानी है? आप क्यों रो रहे हैं? वादा तो नहीं कर सकती पर अगर मुझसे बन पड़ेगा तो मैं ज़रूर आपको उस परेशानी से निकालूंगी।"

उस शख्स ने एक नज़र प्रदिति को देखा और फिर थोड़े गुस्से के साथ बोला, "अरे, जाओ ना यहां से… मुझे पता है तुम भी सब लोगों की तरह मेरा मज़ाक ही उड़ाओगी। अभी तो इतनी सहानुभूति दिखा रही हो लेकिन जब मैं अपनी परेशानी बताऊंगा तो सभी की तरह मुझे भिखारी बोलकर चली जाओगी।"

उस शख्स की बातों में गुस्सा तो था लेकिन प्रदिति साफ–साफ समझ पा रही थी कि वो उसकी तड़प ही थी जो गुस्से के रूप में बाहर आ रही थी।

वो उस शख्स के सामने आकर बैठी और बोली, "काका! आपकी कोई बेटी है?"

उस शख्स ने ना में गर्दन हिला दी तो प्रदिति बोली, "तो आप ये समझ लीजिए कि मैं ही आपकी बेटी हूं और एक पिता अपनी बेटी को तो अपनी परेशानी बता ही सकता है ना!"

प्रदिति के मुंह से ये शब्द सुनकर उस शख्स की आंखों से आंसू छलक गए। प्रदिति ने उन्हें साफ किया तो खुद वो शख्स और बाकी लोग चौंक गए कि वो एक भिखारी के आंसू साफ कर रही थी।

उस शख्स ने प्रदिति को हैरानी के साथ देखा तो प्रदिति बोली, "हां, मुझे आप अपनी बेटी समझिए और अपनी तकलीफ बताइए।",

प्रदिति की बात पर पहले उसने प्रदिति की तरफ देखा और फिर बाकी सबको जोकि उसके साथ–साथ प्रदिति पर भी हँस रहे थे। उन्हें देखकर वो शख्स बोला, "बेटा! सब हँस रहे हैं तुम पर।"

"हँसने दीजिए, काका! उनका काम हम पर हँसना है और हमारा काम उनको अनदेखा करके अपने जीवन में खुशियों को लाना है। इसीलिए उनको मत देखिए और मुझे बताइए कि क्या हुआ है?"

उस शख्स ने एक गहरी सांस ली और बोला, "मेरा नाम सत्येंद्र है। मैं जगह–जगह घूमकर अपने संगीत को सबको सुनता हूं और उसके बदले में लोग मुझे पैसे दे जाते हैं इसी तरह मैं अपना और अपने परिवार का पेट पालता हूं पर आज मेरा गला बहुत खराब हो गया, कोई भी गाना नहीं गाया जा रहा। ये आवाज़ भी मुश्किल से निकल रही है। अगर आज मुझे पैसे नहीं मिले तो मेरे घरवालों को भूखे पेट ही सोना पड़ेगा। इसलिए मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?" कहते–कहते उनकी आंखों से आंसू फिर से बहना शुरू हो गए।

प्रदिति ने उन्हें शांत कराया और अपने पर्स में से कुछ पैसे निकालकर उन्हें दिए और कहा, "ये लीजिए, आप इन्हें रख लीजिए। इससे आपका दो–तीन दिन का राशन तो आ ही जायेगा। इससे ज़्यादा मेरे पास अभी नहीं हैं।"

सत्येंद्र जी ने प्रदिति को मना करते हुए कहा, "नहीं, नहीं, बेटा! मैं ये पैसे नहीं ले सकता। मैं भिखारी नहीं हूं। मैं बस अपने परिवार का पेट पालने के लिए ये कर रहा हूं।"

उनकी बात पर प्रदिति मुस्कुराई और बोली, "आपको देखकर मुझे लगा ही था कि आप यही कहेंगे… तो आप चाहते हैं कि आप सिर्फ अपने काम के पैसे लें, है ना?"

सत्येंद्र जी ने हां में गर्दन हिला दी तो प्रदिति ने कहा, "एक मिनट, मैं बस अभी आई।" कहकर वो दूसरी तरफ मुड़कर चली गई। सत्येंद्र जी उसके जाने की दिशा में देखते रहे।

कुछ देर बाद प्रदिति अपने गिटार के साथ वहां आई जिसे देखकर सत्येंद्र जी चौंक गए और बोले, "ये…"

"माफ कीजिए, मैंने आपको बताया नहीं… मैं यहां पर एक कॉलेज में एक म्यूजिक टीचर के तौर पर आई हूं। मुझे वहां बच्चों को संगीत सिखाना है पर मुझे ऐसा लगता है कि उससे पहले मेरे संगीत की यहां ज़रूरत है। अब आपकी ये बेटी गाएगी और आप… आप मेरे लिए ये हारमोनियम बजाएंगे। अब तो ठीक है ना, अब जनता जो भी पैसे देगी वो आपके संगीत के लिए ही देगी।"

"लेकिन, बेटा! गाओगी तो तुम।"

"हां, आपकी बेटी गाएगी। आप अपनी बेटी के पैसे नहीं ले सकते लेकिन जो पैसे आपकी बेटी आपके साथ गाकर कमाएगी उसे तो आपको लेना ही पड़ेगा।"

"लेकिन, बेटा…"

"काका! प्लीज़", प्रदिति ने कहा तो फिर सत्येंद्र जी ने कुछ नहीं कहा और मुस्कुराकर अपने हारमोनियम के पास आकर बैठ गए। प्रदिति भी अपने गिटार के साथ उनके पास बैठ गई।

प्रदिति ने अपनी गिटार बजानी शुरू की और सत्येंद्र जी ने हारमोनियम और फिर प्रदिति ने गाना शुरू किया…

दिल चरखे की इक तू डोरी
दिल चरखे की इक तू डोरी
सूफी इसका रंग, हाय
इसमें जो तेरा ख्वाब पिरोया
इसमें जो तेरा ख्वाब पिरोया
नींदें बनी पतंग

दिल भरता नहीं आँखें रजती नहीं
दिल भरता नहीं आँखें रजती नहीं
चाहे कितना भी देखती जाऊं
वक़्त जाए मैं रोक ना पाऊं
तू थोड़ी देर ठहर जा सोणेया
तू थोड़ी देर और ठहर जा
तू थोड़ी देर और ठहर जा ज़ालिमा
तू थोड़ी देर और ठहर जा…

प्रदिति के संगीत को सुनकर धीरे–धीरे वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी। जिसे देखकर प्रदिति और सत्येंद्र जी दोनों के चहरे पर मुस्कान आ गई।

उसी वक्त गरिमा जी की गाड़ी भी उस तरफ से गुज़र रही थी पर जब प्रदिति के शब्द गरिमा जी के कानों में गए तो उन्हें एक अजीब सा एहसास महसूस हुआ। उन्होंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा।

ड्राइवर ने गाड़ी रोककर पूछा, "क्या हुआ, मैम?"

"एक मिनट, रुको।", कहकर उन्होंने ड्राइवर को शांत रहने का इशारा किया और खुद गाने को सुनने लगीं।

तू थोड़ी देर और ठहर जा, सोणेया
तू थोड़ी देर और ठहर जा।

इसे सुनकर गरिमा जी एक अलग ही एहसास में खो गईं…

विनीत जी स्टेज पर खड़े गरिमा जी को देखकर यही गाना गा रहे थे।

हाय दिन तेरे बिन अब जी ना पाए
दिन तेरे बिन अब जी ना पाए
सांस ना लेती रात
इश्क करे तेरे होंठों से
इश्क करे मेरे होंठों से
बस इक तेरी बात

तेरी दूरी ना सहूँ दूर खुद से रहूँ
तेरी दूर ना सहूँ दूर खुद से रहूँ
तेरे पहलू में ही रह जाऊं
तू ही समझ ले जो मैं चाहूँ

तू थोड़ी देर ठहर जा सोणेया
तू थोड़ी देर और ठहर जा
तू थोड़ी देर और ठहर जा जालिमा
तू थोड़ी देर और ठहर जा..

"मैम!" ड्राइवर की आवाज़ पर गरिमा जी का ध्यान टूटा।

ड्राइवर आगे बोला, "मैम! चलें? मीटिंग के लिए देर हो रही है।"

गरिमा जी ने खुद को सामान्य करते हुए कहा, "हां, चलेंगे। लेकिन पहले तुम ये देखकर आओ कि यहां हो क्या रहा है?"

"लेकिन, मैम! मीटिंग छूट जायेगी।", ड्राइवर ने कहा तो गरिमा जी ने गुस्से से उसे डांटते हुए कहा, "कंपनी की ऑनर मैं हूं या तुम?"

"आप", ड्राइवर ने गर्दन झुकाकर कहा तो गरिमा जी बोलीं, "तो जितना कहा गया है उतना करो। मीटिंग को मैं देख लूंगी।"

गरिमा जी ने कहा तो ड्राइवर गाड़ी से बाहर निकलकर सारी बातें पूछने चला गया।

गरिमा जी फिर से आंखें बंद करके प्रदिति की आवाज़ को सुनने लगीं…

तू थोड़ी देर ठहर जा सोणेया
तू थोड़ी देर और ठहर जा, ठहर जा
तू थोड़ी देर और ठहर जा जालिमा
तू थोड़ी देर और ठहर जा

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क्रमशः