रिश्ते… दिल से दिल के - 29 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 29

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 29
[वाह, क्या खीर है!]

अगली सुबह सभी की ज़िन्दगी में खुशहाली लेकर आई थी। प्रदिति ने अपने कमरे के बारे में जब पूछा तो आकृति ने ज़बरदस्ती उसका सारा सामान अपने कमरे में ही शिफ्ट करवा लिया था और बोला कि अब वो दोनों एक ही कमरे में रहेंगी। प्रदिति को तो जल्दी उठने की आदत थी लेकिन आकृति देर से ही उठती थी। प्रदिति नहाकर भी आ चुकी थी लेकिन आकृति अब भी नहीं जागी थी। प्रदिति ने घड़ी की तरफ देखा तो उसमें आठ बज रहे थे। प्रदिति ने आकृति को जगाते हुए बोला, "अक्कू! आठ बज गए जाग जाओ। कॉलेज नहीं जाना क्या?"

प्रदिति ने जब उसे उठाने की कोशिश की तो वो पास में से एक तकिए को अपने कान पर रखकर फिर से सो गई। प्रदिति ने अपनी कमर पर हाथ रखा और आंखों को छोटी करते हुए कहा, "अच्छा! तो तुम नहीं जागोगी?"

फिर तो प्रदिति ने उसका कंबल खींचा, तकियों को हटाया और उसका भी हिलाया लेकिन वो तो उठने का नाम ही नहीं ले रही थी प्रदिति थककर वहीं पर बैठ गई।

"हे भगवान! ये कुंभकर्ण हमारे घर ने कैसे पैदा हो गया?", प्रदिति ने हांफते हुए कहा तो आकृति उनींदी सी आवाज़ ने उसके बगल में बैठकर कहा, "मॉम भी यही कहती हैं।"

प्रदिति ने उसकी आवाज़ सुनकर उसकी तरफ देखा तो वो प्रदिति के कंधे पर सिर रखकर फिर से सो गई। प्रदिति ने मुस्कुराकर उसके सिर को सहलाया। पर फिर ये ख्याल आते ही कि कॉलेज के लिए उसे देर हो जायेगी उसने फिर से उसे जगाना शुरू कर दिया।

अब आकृति को हार मानकर जागना हो पड़ा। वो मुंह बनाकर उसे बोली, "क्या, दी! मॉम तो वैसे भी नहीं सोने देती कम से कम आप तो सोने दो।"

"अक्कू! ये सोने का टाइम नहीं है। कॉलेज के लिए देर हो जायेगी।"

"अरे, दी! अगर एक दिन कॉलेज नहीं जाऊंगी तो क्या हो जायेगा?"

"क्यों नहीं जाना? इस नींद पर कंट्रोल करना सीखो थोड़ा। वरना किसी दिन ये तुम्हें कंट्रोल करने लगेगी।"

आकृति मुंह बनाए ही बोली, "हे भगवान! ये तो पूरी तरह से अपनी मां की ही बेटी हैं। बिलकुल उनकी ही तरह बातें करती हैं।"

"हां तो, कम से कम एक बेटी में तो मेरे जैसे गुण आने चाहिए।", पीछे से आते हुए गरिमा जी ने कहा तो उन्हें देखकर प्रदिति के चहरे पर मुस्कान आ गई।

गरिमा जी ने आकृति को घूरते हुए कहा, "और तुम, रोज़–रोज़ देर से उठना ज़रूरी है क्या? घर में सब जल्दी उठते हैं तो तुम क्यों नहीं उठती?"

"हां तो, रोज़–रोज़ इतना जल्दी उठाना ज़रूरी है क्या? और मैं अकेली नहीं हूं जो देर से उठती हूं, डैड भी तो देर से उठते हैं।", आकृति ने कहा तो गरिमा जी और प्रदिति दोनों ने चौंककर पहले उसे और फिर एक–दूसरे को देखा तो आकृति बोली, "हां, अगर डैड जल्दी उठ जाते तो क्या मॉम को यहां आने देते! इतने सालों बाद मिले हैं दोनों पति–पत्नी थोड़ा सा तो रोमेंस करेंगे ही।"

उसकी बात सुनकर प्रदिति मुंह खोले रह गई और गरिमा जी आंखें छोटी करके उसे मारने के लिए दौड़ीं तो वो भागकर बाथरूम की तरफ चली गई।

गरिमा जी ने मुड़कर प्रदिति की तरफ देखा तो दोनों ही हँस गई।

प्रदिति किचन में खीर बना रही थी जिसकी खुशबू बाहर तक जा रही थी। उसकी सुगंध जब दामिनी जी की नाक में गई तो वो किचन में आईं और जब वहां प्रदिति को देखा तो उनके चहरे पर मुस्कान आ गई।

"प्रदिति!", उन्होंने उसे आवाज़ लगाई तो प्रदिति ने भी मुस्कुराकर उन्हें देखा।

"खीर बना रही हो?", दामिनी जी ने खीर के पतीले में झांककर बोला तो प्रदिति ने उसे गैस स्टोव से नीचे उतारते हुए कहा, "हां, बस बन गई।"

फिर अपने पतीले को एक तरफ करके दामिनी जी की तरफ देखकर बोली, "वो, मैंने सोचा कि आज सभी को खीर खिलाकर सबका मुंह मीठा करा दूं आखिरकार हमारे घर में इतनी बड़ी खुशी जो आई है।"

दामिनी जी ने मुस्कुराकर उसके गाल पर हाथ रखा और बोलीं, "बहुत अच्छा किया लेकिन बेटा तुम्हें तो कॉलेज के लिए देर हो जायेगी।"

"नहीं, दादी! अभी तो टाइम है और वैसे भी आपकी वो लाडली छोटी पोती अभी बाथरूम में नहा ही रही है उसको भी तो तैयार होने में टाइम लगेगा।"

"अरे हां, इसको कैसे भूल गई मैं!", दामिनी जी ने कहा तो दोनों ही धीरे से हँस दीं।

"दादी! एक मिनट…" कहकर प्रदिति ने एक कटोरी में खीर निकाली और मंदिर में भोग चढ़ाकर वापस से किचन में आई फिर दूसरी कटोरी में दामिनी जी को खीर देकर उन्हें चखाते हुए बोली, "टेस्ट कीजिए, कैसी बनी है?"

दामिनी जी ने जैसे ही खीर को खाया उन्हें तो आनंद ही आ गया।

"वाह, बेटा! ये खीर तो बहुत ही अच्छी है बिलकुल लाजवाब। कहां से सीखा इतनी अच्छी खीर बनाना?"

"मम्मा ने सिखाया।"

"रश्मि ने?"

दामिनी जी के सवाल पर प्रदिति ने हां ने गर्दन हिला दी।

तभी रश्मि जी वहां आईं और बोलीं, "अरे, दादी–पोती में क्या बातें हो रही हैं?"

दामिनी जी ने उनकी तरफ देखकर कहा, "कुछ नहीं, बस प्रदिति तुम्हारी ही बुराई कर रही थी।"

उनकी बात पर रश्मि जी और दामिनी जी दोनों ही चौंक गईं। रश्मि जी ने इशारों से प्रदिति से पूछा कि क्या हुआ तो उसने अपने कंधे उसका दिए।

दामिनी जी उन्हें देखकर बोलीं, "अब ये इशारों ने क्या बातें कर रहे हो दोनों? हां, तुम्हारी ये बेटी तुम्हारी बुराई कर रही थी। तुम्हीं ने इसे खीर बनाना सिखाया है ना?"

रश्मि जी ने हां ने गर्दन हिला दी तो दामिनी जी बोलीं, "इतनी बकवास खीर बनाना कैसे सिखा सकती हो तुम इसको?"

रश्मि जी तो उनकी बात सुनकर डर गईं और प्रदिति समझ गई कि दामिनी जी रश्मि जी की टांग खींच रही हैं वो धीरे से मुंह को दबाकर हँस रही थी।

रश्मि जी ने डरते हुए ही कहा, "लेकिन, मैंने तो अच्छी खीर बनाना ही सिखाया था। प्रदिति! तुमने बेकार खीर बनाई क्या?"

"उससे क्या पूछ रही हो? तुम खुद हो चखकर देख लो।", कहकर दामिनी जी ने एक चम्मच में खीर भरकर उनके मुंह में रख दी। उसे खाकर रश्मि जी हैरानी से बोलीं, "पर खीर तो अच्छी बनी है तो आप…" वो अपना वाक्य पूरा कर पातीं उससे पहले ही उनकी नज़र प्रदिति और दामिनी जी पर पड़ी जोकि धीरे धीरे मुस्कुरा रहे थे और अब उनका चहरा देखकर जोर जोर से हँसने लगे थे।

अब रश्मि जी को समझ आया कि यहां तो उन्हें परेशान करने की तैयारियां चल रही थीं। वो मुंह बनाके बोलीं, "क्या, आंटी! आप भी बच्चों की तरह मज़ाक करती हैं!"

उनकी बात सुनकर दामिनी जी की हँसी गायब हो गई वो रश्मि जी से बोलीं, "बेटा! तुमसे एक चीज़ मांगूं तो तुम मना तो नहीं करोगी ना?"

रश्मि जी ने अपनी भौंहों को सिकोड़ते हुए कहा, "हां, आंटी! बताइए ना।"

"बेटा! अगर गरिमा और विनीत की तरह तुम भी मुझे मां कहोगी तो मुझे अच्छा लगेगा। यूं तो अगर तुम मुझे आंटी भी कहोगी तब भी मेरे दिल ने तुम्हारे लिए प्यार उतना ही रहेगा लेकिन अगर तुम मुझे मां कहकर पुकारोगी तो मुझे बहुत खुशी होगी।", दामिनी जी ने कहा तो रश्मि जी उनके गले लग गईं उनकी आंखें नम हो आईं।

"मैं जानती हूं बेटा कि तुम्हारे माता पिता बहुत पहले ही चल बसे इसलिए अगर तुम मुझे मां कहोगी तो शायद तुम कभी इस परिवार को पराया ना समझो और एक और रिश्ते के जुड़ने की वजह से तुम्हारा इस परिवार से रिश्ता और भी ज़्यादा गहरा हो जाए।", दामिनी जी ने कहा तो रश्मि जी ने नम आंखों से हां में गर्दन हिला दी।

फिर वो उनसे अलग होकर बोलीं, "आपको पता है, मां! मेरे मां–पापा के जाने के बाद मुझे कभी किसी के साथ ऐसा फील ही नहीं हुआ जैसे मेरा कोई अपना हो हमेशा ऐसा लगता था कि मैं अकेली हूं और हमेशा अकेली ही रहूंगी पर जब से इस परिवार से जुड़ी हूं तब से हर एक रिश्ता मुझे इतना प्यारा मिला है जिसके बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा था… प्रदिति जैसी बेटी, विनीत जी जैसे पक्के वाले दोस्त, गरिमा जैसी बहन, आकृति जैसी प्यारी सी भांजी और आपके जैसे क्यूट सी मां। सच में जिन रिश्तों को मैंने कभी इमेजिन भी नहीं किया था वो इतने प्यारे रूप में मुझे मिले। अब लगता है कि भगवान जो भी करते हैं वो हमारे भले के लिए ही करते हैं। भले ही उन्होंने मुझसे मेरे खून के रिश्ते छीन लिए पर मेरी किस्मत में जोड़ दिए, रिश्ते… दिल से दिल के।"

दामिनी जी ने मुस्कुराकर उनके सिर पर हाथ फेरा और बोलीं, "बेटा! सच में जितनी प्यारी तुम हो उतने ही प्यारे प्यारे गुण और संस्कार तुमने प्रदिति को दिए हैं तभी तो बिल्कुल अन्नपूर्णा के जैसी खीर बनाई है इसने।"

रश्मि जी ने भी मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं, मां! घर गृहस्थी के गुण तो मैंने दिए हैं प्रदिति को लेकिन प्रदिति के अंदर जो संस्कार हैं वो आपके ही हैं जो आपने अपने बेटे को दिए थे वही संस्कार उन्होंने प्रदिति को दिए हैं।"

उनकी बात सुनकर दामिनी जी खुश भी हुईं और उनका सीना गर्व से चौड़ा भी हुआ कि उनके बेटे ने उनके संस्कारों को ना सिर्फ खुद तक सीमित रखा बल्कि अपनी बेटी को भी दिया।

फिर दामिनी जी ने प्रदिति की तरफ देखा और कटोरी को थोड़ा सा ऊपर करके बोलीं, "देखो, मैं पहले ही बताए देती हूं कि इस खीर पर सबसे ज़्यादा हक तो मेरा होगा क्योंकि सबसे पहले मैंने ही उसे चखा है और मैंने ही तारीफ की है इसलिए इस पतीले का आधा, नहीं आधा तो ज़्यादा हो जायेगा… उम्म, एक तिहाई भाग मेरा। खबरदार जो उसे किसी ने खाया तो, बाकी दो तिहाई में से तुम बाकी सबको दे देना।"

उनकी बात पर प्रदिति और रश्मि जी दोनों ही हँस गईं। प्रदिति ने हँसते हुए ही कहा, "ठीक है, दादी! इसका एक तिहाई हिस्सा आपके लिए ही रिजर्व्ड है। किसी को नहीं दूंगी।"

"हां, वैरी गुड!", कहते हुए दामिनी जी वहां से बाहर निकल गईं। रश्मि जी उनके जाने की दिशा में देखा मुस्कुराती रहीं फिर उन्होंने पलटकर प्रदिति को तरफ देखा जोकि किसी सोच में डूबी हुई थी।

रश्मि जी ने जब उसे ऐसे देखा तो उनके चहरे पर भी परेशानी के भाव आ गए। उन्होंने उसे आवाज़ दी, "प्रदिति!"

"हां?", अपने ख्यालों से बाहर आकर उसने कहा तो रश्मि जी ने इशारों से पूछा कि क्या हुआ तो प्रादिति सामने की तरफ देखकर बोली, "मम्मा! पापा ने उस दिन मुझे सारी सच्चाई तो बता दी थी लेकिन शायद अब भी कुछ है जो वो मुझसे छिपा रहे हैं, मुझसे क्या हम सबसे छिपा रहे हैं।"

रश्मि जी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "हां, बेटा! कभी कभी मुझे भी ऐसा ही लगता है कि कुछ तो है जो अभी भी हम सबसे छिपा हुआ है या फिर वो इसलिए छिपा हुआ है क्योंकि विनीत जी उसे हमारे सामने नहीं आने दे रहे।"

अचानक से प्रदिति के दिमाग में कुछ खटका तो वो बोली, "मम्मा! वो… वो…" प्रदिति चाहकर भी आगे की बात नहीं बोल पा रही थी लेकिन रश्मि जी उसके भावों को देखकर समझ गई थीं कि वो किसके बारे में कहना चाह रही थी तो उन्होंने कहा, "रॉकी?"

प्रदिति ने आंखें बंद कीं और फिर धीरे से उन्हें खोलकर कहा, "हां, मम्मा! क्या हुआ उस दरिंदे के साथ? क्या उसे सज़ा नहीं मिली? क्या एक बार फिर उसने अपनी पैसे की धौंस जमाकर खुद को जेल से बाहर निकलवा लिया?"

"नहीं, बेटा! जो उसके साथ हुआ उस पर तो खुद मैं भी यकीन नहीं कर पा रही हूं।", रश्मि जी ने दूसरी ओर मुड़कर कहा तो प्रदिति हैरानी से बोली, "लेकिन ऐसा क्या हुआ, मम्मा?"

क्रमशः