हॉंटेल होन्टेड - भाग - 38 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 38

मेरे दिमाग़ में सवालों की उथल-पुथल मची हुई थी, एक पल के लिए बिल्कुल शांति छा गई तभी मेने क्लास रूम में आंशिका के अंदर आने की आहट सुनी,वो धीरे धीरे चलते हुए अंदर आई और मेरे से थोड़ी दूरी पर खड़ी हो गई, मेने अपनी नजरें उस पर से हटाई और अपने सामान को उठाने लगा।हर पल यहीं लग रहा था कि आंशिका मेरे बारे मैं क्या सोच रही होगी, इसी सोच में डूबा हुआ अपना और ट्रिश का सामान उठा रहा था कि मेरे हाथ से उसका चार्ट छूट गया और वो ज़मीन पे फिसालता हुआ मुझसे थोड़ी दूर चला गया, मैंने उसे उठाने के लिए जैसे ही घुमा तो देखा, आंशिका उसे उठाया और मेरी तरफ बढ़ने लगी, जैसे जैसे वो मेरे करीब आ रही थी वैसे - वैसे मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।


"ये....लो" उसने चार्ट को मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा।
"Th..a.... Thanks" मेने उसके हाथ से चार्ट लिया और बिना उसकी ओर देखे मैं जल्दी से चलते हुए क्लासरूम से बाहर जाने लगा “मुझे नहीं पता था कि चश्मे की पिछली छुपी आँखों में अपने दोस्तों के लिए इतनी चिंता,फ़िकर और इतना प्यार होगा "वे की ये बात जैसी मैंने सुनी, मैं फ़ौरन रुक गया और उसकी तरफ देखने लगा, जो मुझे देखते हुए मुस्कुरा रही थी, उसकी इस मुस्कान को देख धक - धक करते हुए चल रहा मेरा दिल अचानक तेज़ी से धड़कने लगा जैसे बहोत भारी हो गया हो।
"दोस्त सिर्फ अपने कहने से नहीं पर उनको अपनाने से होते है और तुम भी शायद इस बात को अच्छे से समझती हो' मैने आंशिका ने बस इतना ही कहा और वो मेरी आँखों में देखने लगी "बहुत लकी है ट्रिश"
"लकी ट्रिश नहीं मैंने हुं, जिसने मुझे अपना दोस्त बनाया, मेरी कमीयो को नजरअंदाज करके मुझमें एक विश्वास जगाया और हर वक्त मुझे support किया "मेने आंशिका की बात को बीच में रोकते हुए कहा, मेरी बात सुन के वो मुस्कुराती हुई हा में गर्दन हिलानी लगी।


"वो सॉरी आंशिका मैं तुम्हारे साथ कैंटीन में नहीं आ सकता।"
"नहीं मैं समझती हूं.....तुम्हें ट्रिश का प्रोजेक्ट जो पूरा करना है।" आंशिका के कहते ही मैं चौंक गया और यहीं सोचने लगा कि अगर आंशिका को ये बात पता है तो उसने जरूर मुझे ट्रिश के साथ उस वक्त भी देख लिया होगा।
"तुम्हे कैसे पता?" मैने अटकते हुए अपनी बात कही तो मेरी बात सुन के वो मुस्कुराने लगी।
"मैंने सुना अभी" आंशिका ने जैसा ही कहा तो मुझे समझ आ गया की आंशिका ने सब कुछ देख लिया है और ये भी लगने लगा अगर में थोड़ी देर और यहां खड़ा रहा तो ना जाने क्या-क्या कहना पढ़ जाएगा और उस वक्त में आंशिका को Face भी नहीं कर पाऊंगा।
"हां..वो उसे आंटी का फोन आया था तो जाना पड़ा, अच्छा आंशिका में चलता हूं मुझे ये प्रोजेक्ट पूरा करना है, तुमसे बाद में मिलता हूं और तुम्हारे साथ कैंटीन नहीं आ पाया उसके लिए सॉरी "मेने इतनी जल्दी जल्दी में अपनी बात कहते हुए क्लासरूम से निकल गया।


कई बार जिंदगी में मिली कुछ चीजों पर यकीन नहीं होता कि क्या सच में वो चीज़ हमारे साथ है या फिर हमारा बनाया हुआ सिर्फ एक सपना , हमेशा डर भी यही लगा रहता है की ये सपना कही झूठ ना हो क्योंकी जिंदगी में ऐसे लम्हे हमे बार - बार नहीं मिलते, शायद कई जन्मों तक भी नहीं।
"क्या आंशिका ने सच में मुझे ट्रिश के साथ देख लिया होगा, हां देख ही लिया होगा तभी उसको सब पता है पर अगर देख लिया तो उसने इसने बारे में कुछ कहा क्यों नहीं?क्या पता सोच रही हो कि कैसा लड़का है? नहीं आंशिका ऐसा नहीं सोच सकती, अगर उसने ऐसा कुछ सोचा होता तो उसी वक्त क्लासरूम से बहार चली जाती....Uhhh ये ट्रिश को कितनी बार समझाया की ऐसी हरकतें ना करे पर वो समझती ही नही।" पेंसिल को अपनी चीन से लगायी में खुद से ही बाते कर रहा था।मैं सामने पड़े Designs की ओर देख और पेंसिल को चार्ट पे रखकर draw करने लगा।कुछ देर तक design बनाने के बाद मैं chair पे पीछे की तरफ सिर करके बैठ गया,दिमाग आंशिका के साथ बिताए इन लम्हों मैं खोया हुआ था जिसकी वजह से मेरे चेहरे पर एक मुस्कान छाई हुई थी।


तभी किसी ने मेरे कंधे को धीरे से सहलाया जिसकी वजह से मैंने आंखे खोलकर देखा तो सामने आंशिका ही खड़ी थी जिसको देखकर मैं चौक गया और मेरा बैलेंस बिगड़ गया,मैं पीछे की तरफ गिरने ही वाला था की तभी आंशिका ने मेरी chair को पकड़ कर मुझे ठीक से बैठा दिया।अचानक इतना कुछ होने की वजह से मेरी सांसे तेज़ चल रही थी।
"श्रेयस क्या हुआ अचानक से मुझे देखकर इतना डर क्यूं गए?" आंशिका को श्रेयस की हालत देखकर हंसी आ रही थी।
"वो...वो.. ऐसा कुछ नही है"मैने अभी अपनी बात खतम नही की थी की आंशिका ने मुझे बीच मे ही पूछते हुए कहा।
"क्या मैं यहां बैठ सकती हूँ?"मैं अपनी ही उलझन इतना फंसा हुआ था कि मैने ध्यान ही नहीं दिया।
" हाँ....ज़रूर " मैंने इतना कहा कि वो मेरे सामने आके बैठ गयी।
"वैसे मैं तुम्हें कितनी देर से बुला रही थी, लेकिन तुम ना जाने आँखें बंद करके मुस्कुराते हुए कौनसी दुनिया मैं खोए हुए थे? "आंशिका ने अपने बालों को एक तरफ करते हुए कहा।

"नहीं.. नहीं....वो कुछ नहीं...मैं तो बस....ऐसे ही.. ऐसा कुछ खास नहीं था" कहते हुए मेने अपनी नजरें आंशिका से हटा ली और design पूरा करने लगा।
"Hmmm....secret...हा... वैसे जब मैं यहां आई थी तब मैंने देखा कि तुम बड़े ही मुस्कुरा रहे थे,जरा मुझे भी तो बताओ कि क्या सोच रहे थे तो थोड़ा हम भी मुस्कुरा ले" आंशिका श्रेयस की हालत को अच्छी तरह समझ रही थी, उसकी आँखों में मस्ती के साथ ही साथ श्रेयस की इस मासूमियत के लिए एक प्यारा एहसास था लेकिन अभी आंशिका थोड़ी मस्ती के मूड में थी।
"नही तो ऐसा तो कुछ भी नही था,पता नही तुम किसकी बात कर रही हो?" इतना कहते हुए श्रेयस ने पानी की बॉटल निकली और पानी पीने लगा।
"अच्छा अब समझी की तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे थे....लगता है ट्रिश की किस कुछ ज्यादा ही अच्छी थी जो तुम अभी तक उसके ख्यालों मैं खोए हुए हो " उसकी बात सुनकर ऐसा लगा मानो किसी ने मुझे बड़ा सा झटका दे दिया हो,उसी चक्कर मैं पानी नाक मैं चला गया जिसकी वजह से मैं बुरी तरह खांसने लगा।मेरी हालत देखकर आंशिका जोरों से हंसने लगी।मैं थोड़ी देर बाद अपनी सांसों पर काबू किया।


"वो...वो....वो "मुंह तो खुला पर मेरा गला इससे आगे ही नहीं बढ़ रहा था "वो मैं मिस को ये Design देकर आता हूं "मैने जल्दी में कहा और चार्ट उठाकर जाने लगा।
"श्रेयस अरे रुको तो मैं भी आती हूं...heyyy" आंशिका ने हंसते हुए मेरी तरफ देखकर कहा
" कोई जरूरत नहीं है मैं अकेले ही ठीक हूं तब तक तुम मेरा यही वेट करना "मेने बिना आंशिका की तरफ देखे कहा और ऐसे तेज़ी से निकला मानो कोई ट्रैन छूट गई हो,आंशिका श्रेयस को ऐसे जाता देख ओर जोर से हंसने लगी, वो उसकी तरफ तब तक देखती रही जब तक वो उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया।
"पागल कहीं का..." मुस्कुराते हुए आंशिका ने अपनी आंख में आए पानी को हटा दिया।
यही छोटे छोटे खुशियों के पल जिंदगी की ख़ूबसूरती बन जाते है और जब इंसान अकेला होता है तब यही पल जिंदगी मैं कही हमारे मुस्कुराने वजह बन जाते है और नई राह बना देंते है।

To be continued.....