महिमा प्रभु श्रीराम की
कमलकान्त शर्मा
संदर्भ प्रकाशन भोपाल से कमलकांत शर्मा की कृति 'महिमा प्रभु श्री राम की' पिछले दिनों प्रकाशित हुई है। भारत वर्ष में राम कथा और कृष्ण कथा या महाभारत कथा को आदिकाल से ही गया जाता रहा है, हर कवि इन दो बड़ी कथाओं पर अपनी कलम चलता है सबके नजरिया अलग होते हैं। इसे लघु खंडकाव्य कहा गया है पर मेरी नजर में यह संपूर्ण महाकाव्य है।
हम जिस पोथी के प्रकाश के लिए, जिस पौथी के विमोचन के लिए आज यहां चर्चा कर रहे हैं, उसके सृजन के बारे में स्वयं कमल कांत जी के मतानुसार मैंथिलीशरण गुप्त दद्दा का वह काव्यांश उन्हें याद रहता है
"राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है
कोई कवि बन जाए सहज संभव्य है!'
कमल कान्त जी अपने पिता के जमाने से कवियों के बीच रहे हैं, इसलिए उनमें कविता के संस्कार शुरू से रहे ।
उन्होंने जब इस पुस्तक की रचना आरंभ की तो उन्हें भी ज्ञान नहीं था कि यह ग्रंथ इतना मोटा हो जाएगा, इसलिए पुस्तक के आरंभ में उन्होंने उसे लघु खंडकाव्य कहा. यह उनकी विनम्रता है कि अपनी बड़ी पुस्तक को, बड़े आकार की पुस्तक को बड़े ग्रंथ को भी वह खंडकाव्य कहते हैं और इससे भी मन नहीं भरता तो उनकी विनम्रता रहती है कि यह लघु खंडकाव्य है!
भगवान श्री राम के चरित्र व जीवन दर्शन को लेकर या कहें जीवन यात्रा को लेकर यह ग्रंथ लिखा गया है! रामचरितमानस या कहे तुलसीकृत रामायण जो वेंकटेश्वर प्रेस से छपी थी मुंबई से, लगभग उसको आधार बनाकर इस ग्रंथ की संरचना की गई है। इसमें श्री राम से जुड़े ही सारे प्रसंग है,इस ग्रन्थ के नायक श्रीराम हैं, खण्ड काव्य में एसा ही होता है, यानि इस खण्ड काव्य में रामचरितमानस में जुड़ा शिव पार्वती का प्रसंग नहीं है, प्रताप भानु का प्रसंग नहीं है, याज्ञवल्कि व भारद्वाज का प्रसंग नहीं है, नारद मोह का प्रसंग नहीं है, सीधा राम जन्म से कथा आरंभ होती है और सीता जी के धरती में समा जाने पर यह कथा समाप्त होती है! बालकांड से उत्तरकाण्ड तक की श्री राम की कथाओं को आहिस्ता आहिस्ता लिया गया है, कई जगह यह रामचरितमानस के पास में से गुजरी है, तो कई जगह यह क्षेपक कथाओं तक चली गई। है, श्रवणकुमार की कथा, नारान्तक की कथा, अहिरावण की कथा, इसमें विस्तार से आई है, कथा कथन में छूट लेते हुए कमलकांत जी ने सुमंत को चित्रकूट तक भेज दिया है, रामचरितमानस में उल्लेख है कि जब श्री राम गंगा जी के किनारे पर पहुंचकर केवट को बुलाते हैं तो सुमंत लौट आते हैं। कमल कांत जी के इस ग्रंथ में सुमंत चित्रकूट तक छोड़कर आते हैं, मुझे लगता है यह स्वाभाविक भी है दशरथ जी ने कहा था कि वन में उन्हें ठीक जगह दिखा कर आना, तो चित्रकूट जैसी सुरक्षित जगह छोड़कर आए यह तार्किक भी है। इस तरह जो प्रसंग लेखक को अच्छे लगे वह उन्होंने मुख्य कथा से जोड़ कर दिए हैं।
अगर हम इसका गणितीय विश्लेषण करें तो इसमें आठ कांड है, इसमें दो हजार एक सौ चौअन छन्द है, छन्द का हम छन्द शास्त्रीय विश्लेषण करें तो यह हिंदी छंद प्रभाकर या छंद शास्त्र के किसी ग्रंथ में दिए गए किसी छन्द से नहीं मिलते हैं। यह दोहा नहीं है, सोरठा नहीं है, चौपाई नहीं है, एक मुक्त छंद है जो सुविधा की दृष्टि से आपने चुना है और जब कोई गायक गाएगा तो मात्राओं की जो छोटी सी गड़बड़ है उसे पूरा कर देगा!
राम की महिमा प्रकट करने के लिए, प्रभु श्री राम के प्रताप को प्रकट करने के लिए, प्रसंग ढूंढ ढूंढ कर कमल कांत जी ने बताए हैं। और प्रसंग के ठीक बाद विचार प्रभु श्री राम की महिमा दे बड़े प्रयास के बाद ले आए हैं।'
वह रचना लोकप्रिय होती है जो लोक भाषा में होती है, यह ग्रन्थ भी लोक भाषा में है!
उनकी यह रचना व्यर्द्ध विवरणों के भार से बोर नहीं करती, जब दर्शन विचार उपदेश ज्यादा हो जाता है, तो कोई ग्रंथ बोर करने लगता है! लेकिन यह राम कथा बड़ी दिलचस्प है, रोचक है।
ऐसे महत्वपूर्ण ग्रंथ के सृजन के लिए, मैं उन्हें बधाई देता हूं और महत्वपूर्ण चीज यह है कि ऐसे ग्रन्थ की समीक्षा नहीं की जा सकती। यह तो राम कथा है कोई इसकी क्या समीक्षा करेंगे ? कोई व्यक्ति क्या समीक्षा करेगा !
तो हम इस पुस्तक को एक बड़ा शानदार ग्रंथ कहेंगे अच्छी चीज कहेंगे और अगर हम कमलकांत शर्मा जी के शब्दों में कहें तो उसके मुख्य पृष्ठ पर जो चीज छपी है वह छन्द में पड़ कर सुना रहा हूं-
कर दी कृपा रघुनाथ ने इस दास पर सुन लो सभी !
भूल ना पाएंगे हम महिमा प्रभु राम की कभी!!
इस ग्रंथ में जब भी कवि को अपनी बात कहने का अवसर हाथ लगता है वे सरल भाषा में ज्ञान को साझा करते हैं । एक प्रसंग है पंचवटी में मुनियों का सत्संग हो रहा है, उस समय राघवेंद्र का कथन देखिए-
सृष्टा और सृष्टि की कराते प्रभु पहचान!
प्रथम नाद है और द्वितीय सृष्टि विधान!!
विचार शक्ति होती है जिसमें मानव उसको कहते हैं!
पशु पक्षी तो इस दुनिया में खाने को ही रहते हैं !!
मिलजुल कर मानव रहे तो ना होवे भेद !
मानवता का धर्म समझना तो ना कोई खेद!!
एक अन्य प्रसंग देखें। वैद्य सुषेन से श्री राम बोलते हैं-
कैसे हो उपचार भारत का बदलाओ श्रीमान!
राजनीति और धर्म नीति में कौन बड़ा बलवान!!
एक प्रसंग है कि राम युद्ध करते समय पांब पयादे हैं, बिना वाहन के हैं , पैदल खड़े हैं और रावण रथवान है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है -
रावण रथी विरथ रघुवीरा।
देख विभीषण भएउ अधीरा।।
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सखा धर्म मय अस रथ जा के।
जीत न सकहि कतहुँ रिपु ताके।।
इस दृश्य को प्रस्तुत करते हुए कवि कमल कांत जी ने लिखा है-
बिन रथ के ही चल दिए पैदल श्री रघुवीर !
भक्त विभीषण देखकर हो गया बहुत अधीर!!
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सुनकर भक्त राज की बातें फिर बोले रघुवीर!
मेरे पास धर्म का बाल है वह निर्बल बलबीर !!
ऐसे बहुत से प्रसंग को अपने तरीके से खाने में निपुण कमलकांत जी की यह कृति स्वागत योग्य है।
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