समीक्षा -उम्र दर उम्र
(कहानी सँग्रह)
लेखिका-अनिता रश्मि
प्रकाशक-राष्ट्रीय सेल्स एजेंसी जयपुर
रांची बिहार की कथा लेखिका अनीता रश्मि का पहला कहानी संग्रह "उम्र दर उम्र" राष्ट्रीय सेल्स एजेंसी जयपुर से प्रकाशित होकर आया है। इसमें लेखिका की बारह कहानी शामिल हैं। लेखिका हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं और दैनिक समाचार पत्रों में कहानी लिखती रही हैं । रांची जैसे बड़े शहर में रहने के बाद भी लेखिका के भीतर बसा ग्रामीण व्यक्तित्व अभी जीवित है। उनके रचनाकार मन में गांव की बोली-बानी, संस्कार, रीति- रिवाज तथा विशेष आंचलिक शब्दों को बखूबी याद रखता है और वक्त-जरूरत इस्तेमाल भी करता है। उनकी इस तरह की सांस्कृतिक और भाषिक शब्दावली से हिंदी का कथा साहित्य समृद्ध होता है।
इस संग्रह की कहानी 'गुलाबी लिफाफा ' निशा,शालिनी, नवीन और पीयूष की कहानी है। निशा की शादी नवीन से हुई थी, निशा को कोई संतान नहीं हुई तो नवीन ने निशा की जगह खुलेआम शालिनी को घर में ला बिठाया। निशा ने एक बच्चा गोद लेने की बात की तो नवीन भड़क उठा। निशा गुस्से में घर छोड़ कर चली आई । उसने एक बहुत अच्छे व्यक्ति पियूष से विवाह कर लिया। उन दोनों में भी कोई संतान नहीं हुई। अरसे बाद नवीन गुलाबी लिफाफा में पत्र लिखकर बार-बार निशा को बुला रहा था कि यहां आ जाओ मैं तुमसे क्षमा मांगना चाहता हूं, बच्चों में तुम्हारा मन बहल जाएगा ! पियूष के कहने के बाद भी निशा नहीं जाती । अंत में शालिनी का खत आता है कि नवीन का एक्सीडेंट हुआ है ,आकर उसे देख जाओ ,उसकी हालत बेहद खराब है । पीयूष के कहने से निशा चली जाती है, लेकिन तब तक नवीन की मृत्यु हो चुकी है ।निशा बारह दिन तक वहीं रूकती है। उसे पता लगता है कि शालिनी से भी नवीन की कोई संतान नहीं हुई। पड़ोसी के बच्चे ही शालिनी को मां कह के बुला रहे थे। इस कहानी में प्रमुख पात्र निशा, नवीन और पीयूष हैँ। बीच बीच में टुकड़ों में पत्र शैली का नया प्रयोग इस कहानी में किया गया है। छोटे-छोटे तीन-चार पत्र लेखिका ने इस कहानी में रखे हैं जो मनुष्य के भावों को व्यक्त करते सहज पत्र हैँ,घरेलू अन्दाज़ के पत्र नहीं। निशा के मनोवैज्ञानिक द्वंद्व को इस कहानी में खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है। लेकिन कुल मिलाकर कहानी का अंतिम निष्कर्ष 'दुख ही जीवन की कथा रही' यही सूत्र वाक्य निकलकर आता है ।
इस संग्रह की एक कहानी 'एक नौनीहाल का जन्म' एक खेतिहर किसान की पत्नी को काम करते वक्त खेत पर बच्चे के जन्म लेने के एक सामान्य दिखते असाधारण दिन का वृतांत है। खेतिहर मजदूर भोले की पत्नी शनिचरी के गर्भ के पूरे नौ महीने हो चुके हैं , फिर भी वह धान की रोपाई करवाने के लिए खेत पर काम करती है। वहीं उसको प्रसव वेदना होने लगती है, तो उसकी मजदूरिन सखियां खेत की झोंपड़ी में ले जाकर प्रसव में मदद कर प्रसवोत्तर परिचर्या में उठ जाती हैं। इन सब मजदूरों के मलिक बड़े भले आदमी हैं,वे शनिचरी की मजदूरी और प्रसव समय जानने की पूर्व से ही चिंता कर रहे थे। बच्चे के जन्म की खबर सुनकर वह भोले से पूछते हैं कि 'का नाम रखेगा रे ?'तो भोला बताता है 'आज मंगर है तो मंगरा नाम,और का !सोम रहता, सोमरा रखते !' मलिक आगे पूछते हैं कि ' क्या बनाएगा बेटे को रे ?'तो भोला कहता है कि 'का बनाएगा मालिक, यहीं न काम करेगा, रख लेना!'(एक नौनीहाल का जन्म) इस कहानी में सब तथ्य कुछ हटकर हैं।ऐसा देखने में आया है कि कितना भी गरीब मजदूर क्यों न हो,गर्भ के अंतिम दिन तक काम करने महिलाएं नहीं जाती हैं, हालांकि लेखिका ने जिस अंचल की यह कथा कही है - ' का मालिक आप नहीं जानते कि हियां बच्चा जनने के दिन तक लुगाई काम करती है और बच्चा होने के कुछे दिन बाद फिर काम पर चली जाती है ।आप काहे पूछे ऐसे? शनिचरा जरूरे करेगी!' उसका पति था यह । इस कहानी में प्रसव से जुड़ी कई क्रिया व शब्द आये हैं -जैसे मसाले को गर्म किया जाना,तिलों को रगड़ना, प्रसव होने वाली महिला को गरमा गरम माड़ पिलाना, चमैनी का काम (चमैनी यानी प्रसव कराने वाली महिला।)इत्यादि।।
'दूधों नहाओ पूतों फलों ' की आंचलिक आशीर्वाद वाली कहावत 'दूध निहाबो,पूतों फलो' के रूप में इस कथा में आई है।
पगला बहू,एकरे तो फल्ले है, बीहन( धान का पौधा) जैसे आंचलिक शब्द इस कहानी को समृद्ध बनाते हैं ।
इस कहानी के प्रमुख चरित्रों में एक मालिक हैं, जो बड़े उदार हैं मजदूरों के साथ पहली बार इस पर खुश होते हैं और सबसे उनके हाल-चाल पूछ कर गर्भवती मजदूरीन शनिचरा का भी ध्यान रखते हैं, उसके बेटा पैदा होने पर अपने भंडार से गुड मंगवाकर सबको खिलाते हैं। दूसरा चरित्र भोला (जो शनिचरी का पति है) वह नवजात को भी मालिक की सेवा में रखना चाहता है। शनिचरी मेहनती स्त्री है। अन्य चरित्रों में पगला बहू, सोमारी आदि हैं, जो वे सहज भी है और विश्वसनीय भी है । यूँ तो कहानी के सभी चरित्र विश्वसनीय है ।
' सब मदमस्त कि शनिचरी जोर से चिल्लाई। उसके दर्द को पहचान दो एक औरते हतप्रभ रह गयी। अब आज के रोपाई की मजदूरी गयी। शनिचरी की भी और बच्चा जनने में मदद करने वाली औरतों की भी। मन के उल्लास पर घड़ों पानी पड़ने से शनिचरी एवं सब की आंखें डबडबा गई।' ( एक नौनीहाल का जन्म) लेखिका को प्रकृति चित्रण करने और दृश्यांकन में रँग भरने में बड़ा उत्साह है। कहानी का आरंभ होता है-
"दाढ़ा, एक गाँव ! दस-पाँच झोपड़ियां, एक मालिक के विशाल भंडार और प्रकृति की उंन्मुक्तता से दान के कारण सौंदर्यशाली ग्राम ! इस ग्राम ने बारिश की पहली फुहार पाते ही ग्रीष्म की तपती दुपहरी में मुरझाते पौधों को शर्माते लजाते हंसते, हंस कर उठ जाते देखा।' 'उल्लास से धरती का आंगन गदराया हुआ था । '
'झोपड़ी में काले बादलों ने अंधेरा उतार दिया था। यूं भी दिन का प्रकाश मयस्सर न था झोपड़ी को, ऊपर से नीम चढ़ा बादल ।'
'वह शांत निढाल पड़ गई । साथ ही बच्के के रोने की आवाज झोपड़ी के बाहर तक गूंज उठी
केहूं!...केहूँ !...केहूँ.. !'
इस सँग्रह में 'कितनी उपेक्षा' नामक कहानी किशोर मनोविज्ञान पर गहरा विमर्श करती हुई कहानी है। इसमें जोशी दंपत्ति व्यस्त परिवार है, पति धंधे के लिए प्राय बाहर रहते हैं ,उधर मिसेज जोशी दिन रात अपने मित्रों की पार्टी और अपने गाइड के जॉब में व्यस्त रहती है। उनकी किशोरी बेटी अमृता अकेलापन महसूस करती है, वह मम्मी की गोदी में सिर रखकर सोना चाहती है, मम्मी के पास बैठ बात करना चाहती है। लेकिन मम्मी के पास उसके लिए कोई समय ही नहीं है। मम्मी तो खन्ना के साथ बैठी बिना बात हंसती और निरर्थक विषय पर बात करती रहती हैं । अमृता झांकते हुए शिकायती नजर से यह दृश्य देखती है, अचानक खन्ना की नजर अमृता पर पड़ती है तो वह उसे बुलाता है-आओ अमृता!लेकिन अमृता नहीं आती । मम्मी गुस्सा होकर अमृता को बुलाकर खन्ना से माफी मनवाना चाहती है। यहां तक कि उस के पीछे उसके कमरे तक जाती हैं लेकिन तब तक खन्ना चले जाते हैं अगले दिन जोशी बेटी को समझा बुझाकर शांत करती है और एक दाई का बंदोबस्त करती है। यह कहानी किशोरी के मनोवैज्ञानिक द्वंद्व की कहानी है। मां, पिता की हरकत पर नजर रखते किशोर इस कहानी में आए हैं ।अपने धंधे में जुटे लोगों की व्यस्तता, बेहाल बच्चे, तरसते बच्चे हीइस कहानी का प्रमुख आधार हैँ।
'अंतिम पृष्ठ' कहानी पति पत्नी के परस्पर नेह व घृणा की कहानी है, विश्वास और वफ़ा की कहानी भी। मिट्ठू नामक पात्र अपनी मामी के पास अपने मामा का खत लेकर आया है। उसकी मामी अकेली रहती हैं, जिन्हें घमंडी व लड़ाकू कहकर मामा ने घर से निकाल दिया था। मामी जी विलासिता लपूर्ण ढंग से रह रही हैं ,वह उनकी समृद्धि का सूचक है । मामी के पास लगातार तीसरी विजिट करने के बाद मामी अपना मन खोलती हैं और मिट्ठू को बताती हैं कि तुम तो छोटे थे तुम्हें शायद पता नहीं कि तुम्हारे मामा से मेरे विवाद का कारण मेरा घमंड नहीं बल्कि मामा का दुश्चरित्र होना है , तुम्हारे मामा के एक परस्त्री से संबंध थे। मिट्ठू अब तक यही समझता था कि उसकी मामी घमंडी स्त्री थी, उसके नाना-नानी भी यही समझते रहे। मिट्ठू को याद आता है कि मामी के घर छोड़ जाने के बाद दो महीने में ही मां ने सुलेखा आंटी से शादी कर ली थी , कुछ समय बाद सुलेखा आंटी खत्म हो गई थी, शायद इसीलिए उस खाली जगह को भरने के लिए दमा के शिकार मामा अपनी पूर्व पत्नी को बुला रहे हैं । वे जानते हैं कि मिट्ठू के प्रति उनकी पत्नी के मन में पुत्र वत्सल भाव हैं। मां ने मिट्ठू के हाथ मामी की लिखी कविताओं की एक डायरी भेजी है, वह डायरी देखकर मामी उसे छूती भी नहीं है। उन्होंने तो वह पत्र भी नहीं खोला था, जो पहली बार मिट्ठू लेकर आया था। मामी वह डायरीवापस कर देती हैं-
अब मैं लौटने की तैयारी कर रहा था। डायरी साथथी। मामी ने कहा था 'गंगा में अस्थि विसर्जन से स्वर्ग मिलता है न। यह डायरी मेरा अस्थि कलश है। मरकर भी शायद मर न सकूंगी । जैसे अभी जी कर भी जी नहीं रही। मेरा अस्थि कलश तेरे हाथ में हो इससे बड़ा कौन सा सुख।' एकाकी दुखी महिला की मानसिकता को प्रकट करते हुए मामी कहती हैं 'नहीं मिट्ठू! कभी-कभी दुख कहने से हल्का ही होता है। एक कंधा तो चाहिए न रोने के लिए। मेरे पास तो वह भी नहीं और एक कर भी तो चाहिए मेरे कंधे पर सोने के लिए... बड़े का नहीं हो बच्चे का तो हो। कहां है वह भी।' शून्य में एक आवाज तैरती आयी। याद आ गया बेटा हूं मैं उनका। क्यों वे मुझे बेटा कहती थीं- समझती थीं। सब समझ गया अब। लिपटकर कंधे पर रोने की इच्छा हुई। लेकिन बड़े हो जाने के संकोच ने रास्ता रोक लिया।(अंतिम पृष्ठ) इस कहानी में प्रमुख चरित्र मामी, मिट्ठू और मामा है। मामी बेहद सुसंस्कृत, शालीन और शिष्ट भारतीय स्त्री हैं जो पति से अपनी जिजिविषा के लिए अलग हुई, अपने आत्मसम्मान के लिए हुई, न कि कहीं और शादी के लिए । वे अन्यत्र शादी नहीं करती और मिट्ठू के आने पर भी बहुत आत्मीयता से मिलती हैं । मिट्ठू एक ऐसा युवक है जो बचपन में मां-बाप को खोचुका था और मामा मामी के साथ ही रहता था। जब-जब मामा मामी के कमरे के भीतर से शोर को सुनता था ,उसे बड़ा दुख होता था। मांमा की बताई बातें अनुसार उसे और नाना नानी दोनों को लगता था कि मामी घमंडी है। लेकिन वही मिट्ठू जब असलियत जान जाता है तो जार-जार रो पड़ता है और मामी को कतई निर्दोष साबित करता है। तीसरा पात्र मामा है, जो सामने तो नहीं आता है, लेकिन उनका चरित्र, उनके अभिमान, उनका घमंड और उनकी चर्चा चिंता परिस्थितियों के सामने खुल जाती हैं । इस कहानी में पति-पत्नी के बीच की लड़ाई तो है ही, विश्वास के तड़कने की कहानी भी है। कोई व्यक्ति एक सुंदर और शालीन व सुघड़ तरीके से रहती स्त्री को छोड़कर भी किसी अन्य स्त्री के प्रति आकर्षित हो सकता है, ऐसी घटनाओं को स्वर देती यह कहानी कई नए अनजाने तथ्य पाठक के सामने प्रकट करती है। मिट्ठू का द्वंद शुरू से आखरी तक अलग-अलग दिशाओं में है ।उसे जो-जो जानकारी मिलती है, याद है वह तब तब बीच में लगातार द्वंद्व का शिकार होता रहता है । इस तरह यह कहानी जीते जाते चरित्रों की कहानी है ।
संग्रह की अन्य कहानियों में बसेरा, यह रिश्ते, आस्था भंग,घर दे घर तक का सफर,आसरा,परास्त व पहल इत्यादि हैं ।
संग्रह की एक कहानी 'समाज सेवक' एक विशिष्ट कहानी है,इसमें दाताराम नाम के एक सेठ हैं,जो हैं तो पैसे वाले और बड़ी कोठी में निवास करते हैं, लेकिन उनका सोच बड़ा ओछा है । वे कोई भी चीज दान करते हैं तो उसका प्रचार जरूर करते हैं और इसीलिए वे अपने नाम के साथ पंडित दाता दीन बन्धु दरिद्र नारायण और महान सेवक लिखते हैं। उन्होंने अपने घर के बाहर ऐसी ही नेम प्लेट भी लगा रखी है। एक गरीब, भूखा, परेशान तथा बहुत आकुल-व्याकुल बच्चा उस घर में प्रवेश करता है तो माली उसे भगाता है, दाताराम उसे पास बुला लेते हैं , उससे कहते हैं 'तुम्हें रोटी खिलाऊंगा !'लेकिन उस बच्चे के बार-बार रोटी मांगने के बाद भी दाताराम रोटी नही देते, पहले अपने नौकर के द्वारा फोटोग्राफर को बुलाते हैं, उस भूखे भिखारी बच्चों को पास खड़ा करके फोटो खिंचाते हैं और बड़ी देर बाद जब रोटी आती है तो बच्चे के सामने रखते हैं।लेकिन तब तक बच्चा खत्म हो चुका है ,वे यह जानते हुए भी उसे अपने सीने से लगाकर एक और फोटो खिंचवाते हैं । बच्चा जो खत्म हो चुका है, उसे अपने नौकर के हाथ गटर के पास फिकवा देते हैं ।
अगले दिन समाज के कुछ लोग दाताराम का सम्मान करने आते हैं, तो वे दिखावटी तौर पर मना करते हैं और अंत में मान जाते हैं । इधर उनके सम्मान की तैयारी हो रही है, कि उधर उस मृतक भिखारी बच्चे के साथी बच्चों ने शव को उठा लिया है और वे वह शहर में जुलूस निकालते हुए न्याय की मांग के साथ राजपथ पर बढ़ गए हैं । यह कहानी कई सिरों से कई वर्गों तक जाती है। वह बच्चा शुरू से भिखारी न था , मजदूर था! कम उम्र में ईंट के भट्टे पर काम करता था, नदी की बाढ़ में उसे छोड़कर उसकी बहन और मां-बाप बह गए, सब कुछ चला गया,तो वह लौटकर ही वहीं ईंट भट्ठे पर ही काम करने लगा । जहां उसकी मजबूरी समझ उससे इतना काम कराया जाता कि वह खाने और सोने को तरस जाता। एक दिन वह वहां से भाग निकलता है और भीख मांगने लगता है । दाता राम जैसा एक बड़ा विलक्षण दिखावटी और पाखंडी चरित्र इस कहानी में सामने आया है, जैसे कि समाज में यहां वहां हमको दिखाई दे जाते हैं इस तरह विश्वसनीय चरित्र से सजी इस कहानी में अंत में लेखक ने दो स्त्रियों निर्मित की है एक तरफ ऐसे पाखंडी का सम्मान और दूसरी तरफ इस पाखंडी के पाखंड प्रदर्शन के दौरान ही मृत्यु हो गए बच्चे को न्याय के लिए उठने नन्हे बच्चों के कदम गहरा संकेत देते हैं। कथा की परत खोलते हुए लेखक ने न केवल अपनी कच्चे दक्षता का प्रदर्शन किया है बल्कि समाज के पाखंड और प्रदर्शन का भी उल्लेख किया है।
इस संपूर्ण कहानी संग्रह की कहानियाँ हमारे आसपास के चरित्रों की कथायें हैं । कुछ कहानी उन पतियों की कहानी है, जो पुरुष सत्तावादी अहंकार में और अहम में डूबे हुए हैं, अपनी पत्नी को केवल शरणार्थी समझ कर घर से निकाल देने की भाषा बोलने वाले नवीन या मामा हमको समाज में प्राय दिख जाते हैं। ऐसे पुरुषों के प्रति नफरत और गुस्सा पैदा करने में समर्थ लेखिका ने इनके बरअक्स मिट्ठू की मामी और निशा जैसी सशक्त स्त्रियों की रचना की है जो उनकी सत्ता को चुनौती देती हुई अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के साथ अपना नया जीवन शुरू कर रही हैं। कहानी में मिट्ठू जैसे नीर क्षीर विवेकी पात्र भी हैं, जो दूर से सब कुछ देखते हैं और दया के भाव से दूसरे चरित्रों से बात करते हैं। ऐसे सामान्य से हटकर थोड़ा अधिक गुण वाले चरित्रों में 'नौनिहाल का जन्म' के मालिक, ग़ुलाबी लिफापा के पीयूष और अंतिम प्रश्न का मिट्ठू शामिल है। वहीं 'एक नोनीहाल का जन्म' की सोमरी और पगला बहू जैसी महिला चरित्र हैं, जो आज भी भाईचारा ,बंधुत्व, बहनचारा के लिए अपनी मजदूरी और अपना समय खर्च करने को तैयार हैं।
यह संग्रह लेखिका की उन कहानियों का संग्रह है जो पूर्व में विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। निश्चय ही यह संग्रह लेखिका को यश प्रदान करेगा।
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