रिश्ते… दिल से दिल के - 24 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 24

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 24
[गरिमा जी की डिलीवरी]

आज उस हादसे को हुए लगभग नौ से दस महीने हो चुके थे। गरिमा जी की प्रेग्नेंसी का भी नौवां महीना चल रहा था। यूं तो अब तक नौ महीने गुज़र गए थे पर गरिमा जी की हालत में कोई सुधार नहीं आ रहा था बल्कि उनकी मानसिक हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी। आज भी वो उस हादसे के बारे में सोचकर डर जातीं और चीजों को अस्त–व्यस्त करने लगतीं, वो खुद को और बाकियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करतीं तो डॉक्टर्स को उन्हें इंजेक्शन देकर बेहोश करना पड़ता। डॉक्टर्स को समझ ही नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे ठीक करें!

दामिनी जी हॉस्पिटल के मंदिर में शिव जी की मूर्ति के आगे बैठी हुई हाथ जोडकर बोलीं, "हे महादेव! वो रात हमारी ज़िन्दगी की सबसे भयानक रात थी हम तो उस सदमे से थोड़ा बहुत बाहर आ गए हैं पर हमारी गरिमा को हालत में कोई सुधार नहीं है। अब उसकी सारी सलामती आपके हाथ है। बस आप उसे जल्दी से ठीक कर दीजिए… और आपसे एक और प्रार्थना करना चाहती हूं, प्लीज़ कुछ ऐसा कीजिए कि गरिमा उस बच्चे को जन्म दे और वो मर जाए इससे गरिमा की जान भी बच जायेगा और उस गंदे खून को भी मुझे अपने घर नहीं रखना पड़ेगा।"

"मां!"

विनीत जी गरिमा जी के पास आए और उन्होंने भगवान से उन्हें इस तरह की प्रार्थना करते हुए सुना तो वो गुस्से से उन्हें बोले, "ये क्या कह रही हैं आप?"

गरिमा जी अपनी जगह से खड़ी हुईं और विनीत जी की तरफ देखकर बोलीं, "मैंने गलत क्या कहा? अगर वो बच्चा मर जाए तो सारी परेशानियां ही खत्म हो जाएंगी।"

"मां! आपको वो बच्चा परेशानी लगता है? अरे, बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं… और फिर वो तो हमारी गरिमा का बच्चा है।"

"नहीं, वो उस वैशी दरिंदे का बच्चा है।"

"मां! पूरे नौ महीने गरिमा ने उस बच्चे को अपने पेट में पाला है, अपने खून से सींचा है उसे और आप कह रही हैं कि वो मर जाए! वो मेरी गरिमा का बच्चा है मतलब मेरा बच्चा है।"

दामिनी जी विनीत जी की बातों से उक्ता चुकी थीं, वो बोलीं, "बस करो, विनीत! तुम ये सब कह भी कैसे सकते हो? चलो ठीक है मेरी छोड़ो इस समाज को क्या जवाब दोगे तुम और एक पल के लिए समाज को भी भूल जाओ, गरिमा को कैसे संभालोगे जब हर पल वो इस बच्चे को देखेगी और उसे वो रात याद आयेगी तो क्या करोगे तुम?"

दामिनी जी के आखिरी वाक्य ने विनीत जी को सोच में डाल दिया। दामिनी जी फिर कुछ कहने को हुईं कि रश्मि जी भागते हुए वहां आईं और विनीत जी और दामिनी जी से बोलीं, "विनीत जी…! आंटी…! गरिमा को लेबर पेन स्टार्ट हो गए हैं।"

दोनों ने ये सुना तो रश्मि जी के साथ तेज़ी से गरिमा जी के रूम के आगे आ गए। अंदर से गरिमा जी की चीखें सुनाई दे रही थीं। उनकी चीखों को सुनकर उन तीनों का दिल बैठा जा रहा था और तीनों ही भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि गरिमा जी बिलकुल ठीक हों उन्हें कुछ भी ना हो।

विनीत जी दूसरी तरफ मुंह करके खड़े हो गए फिर वो जाकर वहां बेंच पर बैठ गए। उनका पूरा शरीर डर के मारे कांप रहा था। कुछ देर बाद सभी को एक किलकारी सुनाई दी। जहां विनीत जी और रश्मि जी के चहरे पर खुशी आ गई वहीं दामिनी जी का चहरा फीका पड़ गया।

डॉक्टर बाहर आए और मुस्कुराते हुए उन सभी को बोले, "बेटी हुई है।"

विनीत जी और रश्मि जी ये सुनकर खुश हो गए पर दामिनी जी को कोई फर्क नहीं पड़ा। वो डॉक्टर से बोलीं, "गरिमा कैसी है?"

"जी, वो फिलहाल बेहोश हो गई हैं। अभी कुछ नहीं कह सकते। उनको जब होश आएगा तब ही पता चल सकता है कि उनकी हालत क्या है!" कहकर डॉक्टर जाने लगे तो विनीत जी उनसे बोले, "डॉक्टर! क्या मैं अपनी वाइफ और बेटी से मिल सकता हूं?"

"जी, बस थोड़ी देर रुकिए। अंदर से जब नर्सेज बाहर आएंगी तो आप चले जाइएगा।"

"जी, थैंक यू डॉक्टर!", विनीत जी ने कहा तो डॉक्टर ने मुड़कर उनसे कहा, "मिस्टर सहगल! आपको ज़रा सा भी दुःख नहीं हो रहा?"

"दुःख किस बात का, डॉक्टर? मेरी गरिमा और मेरी बच्ची दोनों सही सलामत हैं।"

"मिस्टर सहगल! ये मैं भी जानता हूं और आप भी कि वो बच्ची आपका खून नहीं है लेकिन फिर भी आप इतने खुश हैं और उसे अपनी बच्ची भी कह रहे हैं।"

"डॉक्टर! मैं गरिमा से बहुत प्यार करता हूं उसकी हर चीज़ को मैंने अपनाया है तो उसकी बच्ची को कैसे ठुकरा दूं? और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो बच्ची किसका खून है, मुझे बस इतना पता है कि उसे मेरी गरिमा ने जन्म दिया है और इसलिए वो मेरी बेटी है और मैं उसका पिता।"

विनीत जी की कही बात पर डॉक्टर की मुस्कान बड़ी हो गई और वो बोले, "मिस्टर सहगल! आज आपको देखकर मुझे आपको सैल्यूट करने का मन कर रहा है। मैंने प्यार करने वाले तो कई देखे, प्यार में एक–दूसरे के लिए जान देने वाले भी देखे लेकिन कभी कोई ऐसा नहीं देखा जो अपनी पत्नी की उस संतान को अपनाए जो उसके रेप की वजह से पैदा हुई हो।" कहकर डॉक्टर ने विनीत जी के कंधे पर हाथ रखा और बोले, "भगवान करे, आपका ये प्यार और आपकी ये जोड़ी हमेशा सलामत रहे।"

इतना कहकर डॉक्टर वहां से चले गए। थोड़ी देर बाद जब नर्सेज कमरे से बाहर आईं तो वो तीनों अंदर चले गए।

विनीत जी ने बेहोश गरिमा जी को देखा जोकि आज भी उन्हें वैसे ही मुरझाई हुई लग रही थीं जैसे पिछले नौ महीने से थीं। उस एक हादसे ने ना सिर्फ गरिमा जी की खुशी छीनी बल्कि उनकी आंखों में इस तरीके से आंसुओं को भर दिया कि वो हमेशा बहते ही रहें। एक तो गरिमा जी की तकलीफ पहले ही असहनीय थी ऊपर से उन्होंने अभी उस तकलीफ को भी सहा था जो एक मां को अपने बच्चे को इस दुनिया में लाने के लिए झेलनी पड़ती है। इसीलिए उनकी आंखों से बहे हुए आंसू उनके गालों पर अब भी थे उन्हें देखकर विनीत जी तड़प उठे और उन्होंने खुद पर काबू किया। वो उनके पास आकर बैठ गए और उन्हें गौर से देखा सच में उनकी गरिमा पूरी तरह से बदल चुकी थी; जो नूर बिना किसी मेकअप के भी उनके चहरे पर सजा रहता था वो तो जैसे कहीं खो ही गया था।

विनीत जी को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि ये उनकी वही गरिमा है जो अपनी शादी के दिन किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी। उनको देखकर उनकी आंखों से आंसू बह आए पर उन्हें पोंछते हुए उन्होंने पालने में सोई हुई उस बच्ची को देखा और वो बेहोश गरिमा जी से बोले, "गरिमा! देखो तो, कितनी प्यारी बच्ची को जन्म दिया है तुमने… बिलकुल तुम्हारे जैसी ही खूबसूरत है। तुमने कहा था ना कि तुम्हें बच्चे बहुत प्यारे लगते हैं, अब देखो तुम्हारी खुद की एक प्यारी सी गुड़िया इस दुनिया में आ गई है।"

पीछे खड़ी रश्मि जी और दामिनी जी अपने आंसुओं को रोक जी नहीं पा रही थीं। रश्मि जी भी गरिमा जी के पास आईं और बोलीं, "हां, गरिमा! बिलकुल तुम पर गई है ये… बेहद सुंदर और प्यारी है। ऐसा लगता है जैसे ये गॉड गिफ्टेड हो।"

"गॉड गिफ्टेड? क्यों ना हम इसका नाम प्रदिति रखें मतलब गॉड गिफ्टेड?", विनीत जी ने एक खुशी के साथ कहा तो रश्मि जी भी मुस्कुराकर बोलीं, "हां, बहुत प्यारा नाम है।"

"ठीक है, तो आज से हमारी बच्ची का नाम है प्रदिति, गरिमा और विनीत की प्रदिति।", विनीत जी ने खुशी के साथ कहा।

दामिनी जी उन दोनों की बात सुनकर थोड़े गुस्से के साथ बोलीं, "बस करो तुम दोनों। कितनी बार बोलूं मैं तुम्हें कि ये लड़की ना तो गरिमा का हिस्सा है और ना हमारे परिवार का, ये सिर्फ उस हैवान की हैवानियत का नतीजा है। इसे तो कहीं… हां, तुम इसे अनाथ आश्रम में छोड़ आओ।

विनीत जी अपनी जगह से खड़े हुए और उन्होंने उस बच्ची को पालने में से गोद में उठाया और बोले, "कितनी मासूमियत है इसके चहरे पर, कितनी प्यारी है ये! इसकी मासूमियत मुझसे चीख–चीखकर कह रही है कि मैं इसे कहीं ना जाने दूं और आप कह रही हैं कि मैं इसे अनाथ आश्रम ने छोड़ आऊं! नहीं, मां… मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा। ये मेरी बच्ची है और मेरे पास ही रहेगी।"

"नहीं, ये… ये हमारी बच्ची नहीं है… ये… ये उस… उस रॉकी की बच्ची है। मैं इसे नहीं छोडूंगी… मैं खुद भी मर जाऊंगी और इसको भी मार दूंगी।", गरिमा जी ने होश ने आते ही अपने होश खो दिए और पागलपन में ये सब कहने लगीं।

हर कोई उन्हें इस तरह देखकर डर गया। वो प्रदिति की तरफ वहां से एक चाकू लेकर बढ़ने लगीं विनीत जी ने एक हाथ से प्रदिति को संभाले रखा था और दूसरे हाथ से गरिमा जी को रुकने का इशारा करते हुए बोले, "गरिमा! देखो, मेरी बात सुनो। ये हमारी बच्ची है तुम ऐसे कैसे कर सकती हो?"

"नहीं, मैं पहले इसे मारूंगी और फिर खुद को क्योंकि मैं वो सब याद करके जिंदा नहीं रह पाऊंगी, मैं मर जाऊंगी।", गरिमा जी पूरी तरह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थीं।

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, रश्मि जी जल्दी से डॉक्टर को बुलाकर लाईं तो कुछ वॉर्ड ब्वॉयज ने गरिमा जी को पकड़ा और उन्हें बेहोशी जा इंजेक्शन दे दिए तब जाकर सबकी जान ने जान आई।

डॉक्टर ने सबको वहां से बाहर निकलने के लिए कह दिया तो वो तीनों बाहर आ गए।

दामिनी जी प्रदिति की तरफ गुस्से से देखकर बोलीं, "मैंने कहा था ना कि इस लड़की को अगर हम अपने घर ने रखेंगे तो परेशानी ही होगी। देखा न तुमने, कैसे गरिमा की हालत खराब हो गई इस लड़की को देखकर!"

विनीत जी कुछ कहने को हुए कि डॉक्टर ने उनकी बात के जवाब में कहा, "ऐसा कुछ भी नहीं है, मां जी! अगर आप इस बच्ची को उनसे दूर भी कर देंगे तब भी वो इसी तरह से बिहेव करेंगी क्योंकि उनके दिमाग से उसरत की बातें निकल ही नहीं पा रही हैं अगर ऐसा ही चलता रहा तो…"

डॉक्टर ने जब अपनी बात अधूरी छोड़ी तो सबकी जान हलक में आ गई। विनीत जी ने डरते हुए कहा, "तो क्या, डॉक्टर?"

"आय एम सॉरी टू से पर अगर यही सब हुआ तो उनकी जान भी जा सकती है।"

"नहीं , डॉक्टर! ऐसा मत बोलिए। कुछ नहीं होगा गरिमा को।", रश्मि जी भी चिंतित होते हुए बोलीं।

विनीत जी ने एक डर और उम्मीद के साथ कहा, "डॉक्टर! कोई तो तरीका होगा ना गरिमा की जान बचाने का?"

डॉक्टर ने कुछ देर तक सोचा और फिर बोले, "अब तो बस एक ही तरीका है।"

"क्या, डॉक्टर?", सभी एक साथ प्रश्नसूचक दृष्टि से उन्हें देखकर बोले।

क्रमशः