रिश्ते… दिल से दिल के - 25 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 25

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 25
[प्रदिति की यशोदा मां]

विनीत जी ने एक डर और उम्मीद के साथ कहा, "डॉक्टर! कोई तो तरीका होगा ना गरिमा की जान बचाने का?"

डॉक्टर ने कुछ देर तक सोचा और फिर बोले, "अब तो बस एक ही तरीका है।"

"क्या, डॉक्टर?", सभी एक साथ प्रश्नसूचक दृष्टि से उन्हें देखकर बोले।

"अगर मिसेज सहगल की याददाश्त चली जाए तो उनकी जान बचाई जा सकती है।", डॉक्टर ने कहा तो सभी ने हैरानी से उनकी तरफ देखा।

विनीत जी चौंककर बोले, "ये आप क्या कह रहे हैं, डॉक्टर? हमारी गरिमा को सबकुछ भूलना पड़ेगा?"

"जी!", डॉक्टर ने कहा तो दामिनी जी सवालिया नजरों से बोलीं, "मतलब गरिमा हम सबको भूल जायेगी?"

डॉक्टर ने धीरे से हां में गर्दन हिला दी तो सभी के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं।

रश्मि जी ने एक आखिरी उम्मीद के साथ कहा, "डॉक्टर! क्या और कोई तरीका नहीं है?"

"देखिए, हम भी मजबूर हैं। वो इस हादसे से बाहर नहीं निकल पा रही हैं ऐसे में यही एक रास्ता है जिससे वो उस हादसे को भूलकर अपनी ज़िन्दगी खुशी से जी सकें।"

दामिनी जी– "लेकिन डॉक्टर साहब… अगर वो सबकुछ भूल ही जायेगी तो अपनी ज़िंदगी खुशी से कैसे जियेगी?"

डॉक्टर– "आप उन्हें अपने बारे ने याद दिला सकते हैं लेकिन धीरे–धीरे ताकि उनके दिमाग पर कोई ज़ोर ना पड़े।"

"लेकिन गरिमा सबकुछ भूलेगी कैसे?", विनीत जी ने पूछा तो डॉक्टर बोले, "हम उन्हें कुछ ऐसी दवाइयां और इंजेक्शंस देंगे जिससे वो कुछ ही दिनों में अपनी याद्दाश्त को देंगी और फिर उनका दिमाग एक कोरे कागज़ की तरह हो जायेगा, बिलकुल खाली। उनके दिमाग में आप सबको अपनी तस्वीर डालनी होगी उन्हें ये बताना होगा कि आप उनका परिवार बस एक बात का ख्याल रखियेगा, इस हादसे के बारे में कभी कोई बात उन्हें पता नहीं चलनी चाहिए वरना…"

"वरना, क्या डॉक्टर?"

"वरना इस बार तो हम उन्हें बचा लेंगे पर शायद अगली बार ना बचा पाएं। जब तक ये सच उनसे छिपा हुआ रहेगा तब तक वो अपनी ज़िन्दगी जी सकेंगी।", डॉक्टर ने कहा तो सभी सोच में पड़ गए।

विनीत जी ने एक नज़र दामिनी जी की तरफ देखा जिन्होंने पलकें झपकाकर हां ने गर्दन हिला दी।

विनीत जी ने एक गहरी सांस ली और डॉक्टर से बोले, "ठीक है, डॉक्टर! आप गरिमा की दवाइयां शुरू कीजिए। हम तैयार हैं अपनी एक नई गरिमा को अपनी ज़िन्दगी में लाने के लिए।"

डॉक्टर ने एक हल्की सी मुस्कान दी और अंदर चले गए।

विनीत जी ने पहले उनके जाने की दिशा में देखा और फिर अपनी गोद में प्रदिति को जिसकी मासूमियत बार–बार उनका मन मोहे ले रही थी।

दामिनी जी ने फिर से एक गुस्से के साथ कहा, "अब बोलो, तुम क्या करोगे इस लड़की का? कैसे रखोगे इसे अपने घर में और किस हैसियत से? जब गरिमा पूरी तरह से सबकुछ भूल चुकी होगी उसके बाद जब इस लड़की को देखेगी तो क्या जवाब दोगे तुम उसे, कहां से आई ये लड़की?"

"मां! जब हम उसे ये याद दिलाएंगे कि हम उसका परिवार हैं तो ये भी कह देंगे कि ये हमारी ही बच्ची है, मेरी और गरिमा की।"

दामिनी जी साफ इंकार करते हुए बोलीं, "बिलकुल नहीं, मैं इस लड़की को अपने घर में रखकर गरिमा की ज़िंदगी के साथ कोई भी खतरा मोल नहीं ले सकती। तुम इसका कुछ भी करो पर ये हमारे घर नहीं रहेगी।"

"लेकिन, मां…"

"विनीत! तुम अगर कोई और बात कहते तो मैं मान लेती, परिस्थितियां अलग होतीं तो भी मैं इसे स्वीकार कर लेती लेकिन अब सवाल गरिमा की जान का है जोकि तभी बच सकती है जब उससे वो सच छुपा रहे और अगर ये लड़की हमारे घर रही तो बहुत जल्द ही गरिमा को सब पता चल जायेगा। इसलिए तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं मैं, प्लीज अपनी ये ज़िद छोड़ दो और इसे किसी अनाथालय में छोड़ आओ।"

दामिनी जी की बातें सुनकर विनीत जी दिल बहुत दुःखी हो गया लेकिन दामिनी जी की कही बातों भी तो सही थीं, आखिर सवाल गरिमा जी की जान का था। विनीत जी ने फिर से प्रदिति को तरफ देखा जिसने कसकर विनीत जी की उंगली को आपके हाथ से पकड़ा हुआ था मानो ये कहना चाह रही हो कि उसे खुद से दूर मत कीजिए। उसे देखकर विनीत जी की आंखों से आंसू बह आए।

उनका अपना दिल मजबूत किया और बोले, "ठीक है, मैं इसे… आज ही किसी ऑर्फनेज में छोड़ आऊंगा।" इस बात को बोलने में ना जाने कितनी हिम्मत जुटाई थी उन्होंने!

यूं तो कुछ देर पहले ही उनका रिश्ता प्रदिति से जुड़ा था लेकिन ये कुछ इस तरीके से जुड़ गया था कि शायद कभी ना टूटे। भले ही उनका रिश्ता खून का नहीं था पर फिर भी बहुत प्यारा था क्योंकि वो रिश्ता दिल से दिल का था।

उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मुड़ने को हुए कि रश्मि जी उनके आगे आ गईं और बोलीं, "विनीत जी! गरिमा ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है आज जहां वो है उसकी एक वजह मैं भी हूं उसने मेरी इज्ज़त बचाई थी और बदले में उसे ये सज़ा मिली तो मेरा भी तो कुछ फर्ज़ बनता है कि मैं उसके लिए कुछ करूं। और कुछ तो मैं नहीं कर सकती लेकिन आपकी तकलीफ को थोड़ा सा काम कर सकती हूं।"

रश्मि जी ने कहा तो विनीत जी और दामिनी जी दोनों ने उन्हें हैरानी से देखा। वो प्रदिति के सिर पर हाथ फेरकर आगे बोलीं, "मैं जानती हूं कि आपको बहुत तकलीफ हो रही है प्रदिति को खुद से दूर करते हुए और इसलिए भी क्योंकि आपको उसे अनाथाश्रम में छोड़कर आना पड़ेगा; जानती हूं कि अनाथाश्रम ने बच्चों को सिर्फ पाला जाता है घर जैसा प्यार और मां जैसी ममता नहीं मिलती वहां, सभी बच्चों को माता–पिता के प्यार के लिए तरसना पड़ता है।"

रश्मि जी ने कहा तो विनीत जी ने नजरें झुका लीं तो रश्मि जी बोलीं, "गरिमा तो इस बच्ची को मां का प्यार नहीं दे सकती क्योंकि इस सबसे उसकी जान को खतरा हो सकता है लेकिन मैं तो इसकी मां बन सकती हूं ना!"

रश्मि जी की बात पर विनीत जी और दामिनी जी हैरान थे। वो आगे बोलीं, "हां, विनीत जी! इस बच्ची को जब मैंने पहली बार देखा तो बहुत ही प्यार आया इस पर, मैंने सोचा अगर मेरी कोई बेटी हो तो बिलकुल ऐसी ही हो। शायद भगवान का वो संकेत ही था कि इसकी देवकी तो गरिमा बनी लेकिन यशोदा मुझे बनना है। इससे इसे मां का प्यार और अपना परिवार भी मिल जायेगा और आपको भी ये चिंता नहीं होगी कि आपकी प्रदिति किसी तकलीफ में है। कई प्रदिति को हर वो खुशी देने की कोशिश करूंगी जिसकी वो हकदार है।"

विनीत जी नम आंखों से रश्मि जी से बोले, "लेकिन, रश्मि! अगर प्रदिति को तुम पालोगी तो लोग तुम्हें गलत समझेंगे और शायद तुम्हारा होने वाला पार्टनर भी।"

रश्मि की हल्का सा मुस्कुराईं और बोलीं, "लोगों का क्या है वो तो तब भी कहते हैं जब कोई कुछ बुरा करता है और तब भी कहते हैं जब बहुत अच्छा करता है। जब लोगों ने माता सीता जैसी पवित्र नारी को नहीं छोड़ा तो मैं तो एक सिंपल सी लड़की हूं। मुझे कोई परवाह नहीं है लोगों की और रही बात पार्टनर की… तो मुझे प्रदिति मिल गई है तो मुझे किसी पार्टनर की ज़रूरत नहीं है। आज से प्रदिति ही मेरी दुनिया है।"

उनकी बातें सुनकर विनीत जी की आंखों से फिर से आंसू बह आए। दामिनी जी की भी आंखें अनायास ही गीली हो गईं।

"इतना बड़ा त्याग कर रही हो तुम हमारे लिए!", विनीत जी ने अपनी नम आंखों से कहा तो रश्मि भी अपनी आंखो की नमी को साफ करके बोलीं, "ये त्याग नहीं है बल्कि इससे मुझे दुनिया की बेस्ट गिफ्ट मिलने वाली है।"

उसी दिन से विनीत जी ने प्रदिति को मुझे सौंप दिया। इस तरह से मैं बन गई प्रदिति की मां और उन्होंने मेरे लिए एक घर भी खरीदकर दे दिया जिसमें मैं उसकी परवरिश करने लगी। तुम्हारे सबकुछ भूलने के बाद विनीत जी और आंटी जी ने तुम्हें धीरे–धीरे सब याद दिला दिया और तुम्हारी जिंदगी भी बहुत अच्छे से चलने लगी। विनीत जी तुमसे छिपकर हर रोज़ ऑफिस जाने से पहले प्रदिति से मिलने आते। उन्होंने पिता होने का हर फर्ज़ अदा किया। प्रदिति की एक मुस्कुराहट से उनका पूरा दिन बन जाता। जब वो प्रदिति के साथ खेलते तो अपनी सारी तकलीफें भूल जाते थे।

कुछ महीनों बाद तुमने आकृति को जन्म दिया। तुम्हारे घर में एक बार फिर खुशी का माहौल छा गया। लेकिन एक बात नहीं बदली वो था विनीत जी का प्रदिति के लिए प्यार उन्होंने कभी भी प्रदिति और आकृति में कोई भेदभाव नहीं किया। दोनों को हमेशा बराबर का प्यार दिया। आखिर दोनों ही उनकी गरिमा की अमानत थीं।

उस दिन भी विनीत जी प्रदिति को मिलने ही आए थे जब तुमने उन्हें मेरे और प्रदिति के साथ देखा और उसके बाद उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। वो जानते थे कि अगर इस शहर ने हम रहे तो तुम्हें हमें देखकर फिर से तकलीफ होगी इसलिए उन्होंने ये शहर ही छोड़ दिया और मेरे और प्रदिति के साथ शिमला सेटल हो गए। इस बात के भगवान भी साक्षी हैं कि उन्होंने हमेशा तुम्हें प्यार किया है। इतने साल वो प्रदिति की वजह से मेरे साथ रहे लेकिन आज तक कभी उन्होंने मुझे उस नज़र से नहीं देखा जिसमें तुम बसी हुई थी। यहां तक कि वो तो मुझे छूने से भी कतराते थे। उनका स्पर्श भी एक दोस्त की तरह होता था। हम दोनों सिर्फ प्रदिति के माता पिता बने थे हमारे बीच कभी कोई ऐसा संबंध नहीं बना जिसकी वजह से तुम्हारे साथ धोखा हो। विनीत जी ने हमेशा से सिर्फ अपनी गरिमा को प्यार किया है।" इतना कहकर रश्मि जी मुड़ीं तो उन्होंने देखा कि गरिमा जी अपनी जगह पर बैठी हुई बुरी तरह से रो रही थीं।

रश्मि जी उनके पास आईं तो गरिमा जी रोते हुए बोलीं, "मैंने कैसे इतना बड़ा पाप कर दिया, कैसे उस इंसान को गलत समझ लिया जिसने मेरे लिए अपनी पूरी ज़िंदगी कुर्बान कर दी? मेरे जान को कोई खतरा ना हो इसलिए उन्होंने धोखेबाज़ कहलाना भी स्वीकार कर लिया, अपने पूरे परिवार से दूर हो गए, अपनी मां अपनी बेटी से दूर हो गए सिर्फ मेरे लिए और मैं उन्हीं को गलत समझती रही! मैं कैसे कर सकती हूं एक देवता समान इंसान के साथ ऐसा, कैसे?"

गरिमा जी बुरी तरह से रोए जा रही थीं। रश्मि जी ने उन्हें संभाला और बोलीं, "गरिमा! तुम शांत हो जाओ। तुम्हारी गलती नहीं थी तुम्हें तो कुछ पता ही नहीं था तो तुम खुद को दोषी मत समझो।"

"लेकिन दोषी तो मैं हूं तुम तीनों की। मेरी वजह से विनीत जी, तुमने और उस बच्ची ने कितना सबकुछ सहा। मां जी को भी सब पता था लेकिन उन्होंने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा अपने बेटे की याद में हर पल रोती होंगी वो सिर्फ और सिर्फ मेरी वजह से। मैं सबकी दोषी हूं, मैंने सब कुछ गलत किया, मैने… मैंने ठीक नहीं किया… मैंने…", कहते–कहते गरिमा जी के शब्द लड़खड़ाने लगे।

रश्मि जी ने उन्हें शांत कराने की और संभालने की कोशिश की पर गरिमा जी की आंखों के आगे अचानक से अंधेरा छा गया और वो बेहोश हो गईं। रश्मि जी ज़ोर से उनका नाम लेकर चिल्लायीं।

"रश्मि कहां रह गई? इतनी देर हो गई उसे अब तक तो आ जाना चाहिए था।", विनीत जी ने अपनी घड़ी ने देखते हुए बोला तो प्रदिति भी चारों तरफ देखकर बोली, "हां, पापा! मम्मा को बहुत देर हो चुकी है। मैं जाकर देखती हूं।"

विनीत जी ने हां में गर्दन हिला दी तो प्रदिति उठकर जाने लगी कि विनीत जी का फोन बजा जिसे सुनकर प्रदिति रुक गई। विनीत जी ने फोन उठाकर हेलो बोला लेकिन जैसे ही किसी ने दूसरी तरफ से कुछ कहा तो विनीत जी की आंखें बड़ी हो गईं और वो चौंककर बोले, "क्या?"

उनको इस तरह डरा और परेशान देखकर प्रदिति भी डर गई।

विनीत जी के हाथ से उनका फोन छूट गया।

क्रमशः