एपिसोड 17 ( मंदिर में काव्या ओर राघव ! )
वहीँ रूम में , रोनित से रुका नहीं जा रहा था | इसलिए ख़ुशी के इतने मना करने के बाद , भी रोनित बोल ही पड़ा |
रोनित :: "पता हिया भाभी , वो जो काव्या है न , भाई को थोडा उससे दूर ही रखना |
काश्वी मसुमियत से :: "पर क्यूँ , वो तो राघव की दोस्त है न ?"
तो ख़ुशी छिड़ते हुए बोलती है :: "दोस्त , नहीं भाभी , वो तो इसलिए क्यूंकि काव्या के पेरेंट्स ओर हमारे पेरेंट्स एक दुसरे को बहुत टाइम से जानते हैं |"
काश्वी :: "तो इसमें क्या हुआ ? तुम लोग ज्यादा सोच रहे हो |" रोनित अपना सर पीट लेता हाही | ओर फिर एक गहरी सांस लेते हुए काश्वी से कहता है |
रोनित :: "अरे भाभी , काव्या भाई को बचपन से पसंद करती है | हम उसे अच्छे से जानते हैं | उसे जो चाहिए होता है , वो हासिल करके ही रहती है |" तो ख़ुशी भी कहती है |
ख़ुशी :: "हाँ भाभी , ओर आपने नोटिस नहीं किया होगा , पर वो आपको बहुत बुरी तरह घूर रही थी | मानो मार ही डालेगी |" ख़ुशी इर रोनित की बातों को सुन , काश्वी की हसी निकल गई | ओर वो हस्ते हुए बोली |
काश्वी :: "हा हा हा हा , क्या बच्चो जैसी बाते कर रहे हो दोनों | राघव कोई चीज़ थोड़ी न हैं , की काव्य उन्हें मुझसे छीन लेगी | तुम लोग भी न |" रोनित ओर ख़ुशी को समझ नहीं आ रहा था , की अब वो काश्वी को कैसे समझाएं | इसलिए जाते जाते ख़ुशी बस काश्वी से एक बात बोलकर गई |
ख़ुशी :: "बस ध्यान रखना भाभी |" ओर ये कह , रोनित ओर ख़ुशी वहां से चले जाते हैं | क्यूंकि राघव भी बाथरूम से बाहर निकल चूका था | फिर राघव ओर काश्वी ने अपना डिनर किया , ओर फिर दोनों सो गये |
वहीँ काव्या गुस्से में पागल हो रही थी | उसे बार बार राघव का काश्वी की फ़िक्र करना ही याद आ रहा था | जिससे उसका गुस्सा ओर बढ़ता जा रहा था | तभी काव्या गुस्से में खुद से बोलती है |
काव्या :: (गुस्से में ) "इस लड़की का कुछ करना होगा | क्यूंकि राघव सिर्फ मेरा है | सिर्फ काव्या का |"
काव्या का गुस्सा इतना बुरा था , की उसे कुछ भी समझ नहीं आता था , की वो क्या कर रही है | ओर यही बात रोनित ओर ख़ुशी काश्वी को समझाना चाहते थे | ऐसा नहीं था , की काश्वी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया था | बात सिर्फ इतनी सी थी , की काश्वी इस बारे में अभी सोचना नहीं चाहती थी |
सब सही चल रहा था | एक दिन , काश्वी सुबह जल्दी कॉलेज के लिए निकल गई | क्यूंकि उसकी एक बहुत जरूरी काम करना था | ओर जाते जाते , काश्वी के मन में अचानक से आया |
काश्वी :: (मन ही मन ) "बहुत दिन हो गये , मंदिर नहीं गई | एक काम करती हूँ , भोलेनाथ के दर्शन करती हुई जाती हूँ |"
काश्वी मंदिर जाती है | पर वो नहीं जानती थी , की आज उसका मन्दिर जाना , एक नए खतरे का आगाज़ करेगा | जब काश्वी हाथ जोड़कर , प्रार्थना कर रही थी , अचानक से काव्या भी वहां पर आ जाती है | ओर काश्वी को मन्दिर में देख , काव्या का दिमाग खराब हो जाता है |
काव्या इस वक्त का कब से इंतज़ार कर रही थी | राघव काश्वी को कभी अकेला ही नहीं रहने देता था | ओर जब राघव नहीं होता , तो रोनित या ख़ुशी काश्वी के साथ होते | ओर अगर , वो भी ना हो , तो रंजना जी तो काश्वी को कभी भी काव्या के साथ रहने ही नहीं देते थे |
काश्वी को फर्क भी नहीं पड़ता था , क्यूंकि वो अपने कामो में व्यस्त रहती थी | कभी घर के काम तो कभी कॉलेज के | काश्वी ने काव्या के बारे में कभी सोचा ही नहीं | जैसे ही काश्वी पीछे मुड़ी , काव्या जाकर खुद उससे टकरा गई | ओर गिरने का नाटक करती हुई , जोर से चीलाई |
काव्या :: "आह ! हे भाब्वान |" काव्या को देख पहले तो काश्वी सोच में पड गई |
"ये काव्या , ये यहाँ कब आई ? ओर मैंने तो इसे छुआ भी नहीं | तो ये गिरी कैसे ?" काश्वी यही सोच रही थी , की काव्या जोर से चीखते हुए उससे बोली|
काव्या :: "काश्वी , तुमने मुझे इस तरह धक्का क्यूँ दिया ?" काश्वी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था | वो वहां कड़ी थी | पर जैसे ही काश्वी ने काव्या की मद्दत के लिए हाथ बढ़ाया , काव्या साइड में देखते हुए , रोते हुए किसी से बोली |
काव्या :: "देखो न , ना जाने किस बात का बदला ले रही है | कितनी जोरसे धक्का मारा |" काश्वी ने जब पीछे मुड़कर देखा , की काव्या किस से बात कर रही थी तो काश्वी कुछ पलों के लिए दांग रह गई |ओर उसके मुह से निकला |
काश्वी :: "राघव आप ?" राघव को हबी समझ नहीं आ रहा था , की काश्वी यहाँ क्या कर रही है | राघव यही सब सोच रहा था , की उसके कानो में रोनित हुई काव्य की आवाज़ आई | जो रोते हुए ये कह रही थी , की काश्वी ने उसे जानबूझ कर धक्का मारा | ओर अब उसे चोट भी आ गई | राघव बोला |
राघव :: "क्या काश्वी , थोडा देखके ,चलो |" ओर ये कह राघव गुस्से में काश्वी को देखता है | जैसे उसे भी काव्या की बात पर भरोसा हो | उसे मानो सच में लग रहा था , की काव्या सच बोल रही है | ओर सीधा काव्या की मद्दत करने , आगे बढ़ जाता है |
राघव काव्या को उठाने की कोशिश करता है | पर काव्या ने अपना पैर पकड़ रखा था | ओर रोते हुए काव्या राघव से कहती है |
काव्या :: "मुझसे नहीं उठा जयेगा रघु | बहुत दर्द हो रहा है |" काव्या का दर्द देख , राघव ने सिद्ध काव्या को अपनी गोद में उठाया , ओर वहां से जाने लगा | राघव ने एक बार भी पिच्छे मुड़कर भी काश्वी की ओर नहीं देखा | जिसकी आँखें नम हो चुकीं थी | जिसे कुछ समझ ही नहीं आया की क्या हुआ | सिवाए इसके की राघव को उससे ज्यादा काव्या के झूठे आंसुओं पर भरोसा है |
क्या होगा आगे ? आखिर राघव काव्या के साथ मंदिर में क्या कर रहा था ? ओर क्या राघव अब काश्वी से नाराज़ हो जायेगा ?
जानने के लिए बने रहिये मेरे साथ |