रिश्ते… दिल से दिल के - 20 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 20

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 20
[गरिमा जी बनी दुल्हन और विनीत जी दूल्हा]

शादी की सारी तैयारियां शुरू हो चुकी थीं। आखिरकार वो दिन आ ही गया था जिस दिन गरिमा जी और विनीत जी को शादी के पवित्र बंधन में बंधना था। गरिमा जी शादी के लाल जोड़े में बहुत प्यारी लग रही थीं आखिरकार दामिनी जी ने जो सजाया था अपनी प्यारी और लाडली बहू को।

गरिमा जी के कान के नीचे काला टीका लगाते हुए दामिनी जी बोलीं, "किसी की नज़र ना लग जाए मेरी प्यारी बच्ची को।"

गरिमा जी ने स्टूल से खड़े होकर दामिनी जी की तरफ देखते हुए कहा, "मां! कितना इंट्रेस्टिंग है ना, एक सास ने अपने बेटे की शादी में उसकी होने वाली पत्नी यानी कि अपनी बहू को सजाया है, उसको दुल्हन बनाया है और सोलह श्रृंगार भी करवाए हैं। अगर आज मेरी का ज़िंदा होतीं तो वो भी मुझे ऐसे ही सजाती ना!" कहते कहते उनकी आंखों में नमी उतर आई।

गरिमा जी की बात सुनकर दामिनी जी अपना हाथ को उन्हें दिखाकर बोलीं, "एक थप्पड़ पड़ेगा अगर दोबारा ऐसा कहा तो, किसने कहा कि तुम्हारी मां ज़िंदा नहीं हैं। मैं हूं ना, तुम्हारी सास नहीं, तुम्हारी मां हूं मैं। मैंने तुम में और विनीत में कभी कोई फर्क नहीं किया। हमेशा बराबर का प्यार किया है तो आज तुम्हारी वो मां बीच में कहां से आ गई?" कहकर दामिनी जी झूठ मूठ का मुंह फुलाकर बैठ गईं तो गरिमा जी हल्का सा मुस्कुराईं और उनके कंधों को पकड़कर उनके एक कंधे पर अपनी ठुड्डी रखकर बोलीं, "अच्छा, बाबा! सॉरी, गलती हो गई। दोबारा ऐसा नहीं कहूंगी।"

"पक्का?", दामिनी जी ने मुंह फुलाए ही कहा तो गरिमा जी ने मुस्कुराकर हां में गर्दन हिला दी तो दामिनी जी उनके गले लग गईं और बोलीं, "बेटा! आज तुम्हारे माता–पिता जहां भी होंगे तुम्हें इस तरह खुश देखकर बहुत खुश हो रहे होंगे इसलिए अपनी आंखों में ये गम के आंसू लाकर उन्हें दुःखी मत करो।"

गरिमा जी उनसे अलग हुईं और हां में गर्दन हिला दी।

फिर दामिनी जी भी खुद को सामान्य करके बोलीं, "अरे, मैं भी कहां तुम्हारी बातों में आ गई… आज तो मुझे इतना सारा काम करना है और मैं तुमसे यूं बातें कर रही हूं।"

गरिमा जी उन्हें रोकते हुए बोलीं, "ज़रा हमें भी बताइए और कौन से ज़रूरी काम हैं आपको?"

दामिनी जी बड़ी सी मुस्कान के साथ बोलीं, "बेटा जी! तुम शायद भूल रही हो कि मेरा एक बेटा भी है जिसकी दुल्हन बनकर तुम इस घर में आ रही हो, उसे तो देख आऊं कि वो तैयार हुआ भी है या नहीं?"

गरिमा जी ने हां में गर्दन हिला दी तो दामिनी जी तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गईं।

गरिमा जी मुड़कर खुद को आईने में निहारने लगीं और बोलीं, "आ ही गया वो दिन जब मुझे आपकी दुल्हन बनना था, देखिए आज मेरे चहरे पर जो रौनक है वो मेकअप की नहीं बल्कि आपके प्यार की है। आज मैं गरिमा से मिसेज गरिमा विनीत सहगल बनने जा रही हूं।" वो खुद को आईने में देखकर कह ही रही थीं कि दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।

गरिमा जी ने खुद को आईने में देखते हुए ही कहा, "कौन है?"

लेकिन दरवाज़े से कोई आवाज़ नहीं आई। उन्होंने दरवाज़े की तरफ देखकर फिर से पूछा, "कौन है दरवाज़े पर?"

लेकिन अब भी किसी ने कोई आवाज़ नहीं दी। गरिमा जी फिर से आईने की तरफ मुड़ने को हुईं कि किसी ने फिर से दरवाज़ा खटखटाया और गरिमा जी के पूछने पर फिर कोई आवाज़ नहीं आई तो वो छोटे छोटे कदमों से एक घबराहट के साथ दरवाज़े पर आईं।

दरवाज़ा लॉक्ड नहीं था इसलिए खुल गया। जैसे ही दरवाज़ा खुला तो गरिमा जी चौंककर बोलीं, "तुम?"

"विनीत! बेटा तैयार हुए या…", दामिनी जी ने विनीत जी के कमरे में आते हुए पूछा लेकिन वो अपना वाक्य पूरा कर पातीं उससे पहले ही उनकी नज़र अपने सामने खड़े विनीत जी पर पड़ी जोकि शादी की लाल शेरवानी पहने हुए थे, विनीत जी तो पहले से ही डैशिंग थे ऊपर से शादी वाला लुक तो अमेजिंग था। दामिनी जी विनीत जी को देखकर मुस्कुराई और उनकी आंखें नम हो आईं। विनीत जी को जब उनकी आंखों की नमी दिखी तो वो हैरानी से बोले, "मां! आपकी आंखों में आंसू?"

दामिनी जी मुस्कुराकर बोलीं, "मेरा छोटा सा विनीत आज… आज दूल्हा बन गया है। ऐसा लगता है जैसे कल की ही तो बात है, जब तुम मेरे पास अपने छोटे–छोटे कदमों से दौड़कर आ रहे थे।"

विनीत जी उन्हें अपने सीने से लगाकर बोले, "मां! मेरी विदाई नहीं हो रही है जो आप इतना रो रही हैं।"

दामिनी जी उनसे अलग होकर बोलीं, "तो क्या हुआ, मुझे रोना इस बात का आ रहा है कि तुम इतनी जल्दी बड़ा हो गये! क्यों, थोड़ा टाइम और भी तो छोटा रह सकते थे ना जिससे मैं तुम्हें लाड़ कर सकूं।"

"तो वो तो अब भी कर सकती हैं।"

"नहीं, अब तो तुम पर गरिमा का हक है और होना भी चाहिए, शादी के बाद पति पर उसकी पत्नी का हक होता है।"

"मां! पति पत्नी का रिश्ता अलग है और मां बेटे का अलग। ये किसने कहा है कि एक साथ एक इंसान दोनों रिश्तों को नहीं निभा सकता! जिस तरह पति पर पत्नी का हक है उसी तरह बेटे पर भी मां का पूरा पूरा हक है फिर चाहे वो मैरिड हो या अनमैरिड… और हां, मैंने ये बात क्लियरली गरिमा को बोल दी है कि मेरी मां और मेरे बीच कोई नहीं आ सकता।"

"अच्छा!", दामिनी जी ने कमर पर हाथ रखकर कहा तो विनीत जी गर्दन उठाकर बोले, "बिल्कुल।"

"बड़ा मक्खन लगाया जा रहा है मुझे, देखते हैं शादी के बाद तुम किसकी साइड लेते हो?", दामिनी जी ने आंखें छोटी करके कहा तो विनीत जी उनके गालों को खींचते हुए बोले, "अरे, मेरी प्यारी मां! दिखा दिया ना आपने अपना सास वाला रूप… तभी मैं सोचूं कि हमारी यहां वो प्रथा क्यों नहीं चल रही है जो सदियों से चली आई है, आखिर कैसे मेरी मां सास वाला रोल नहीं निभा रही हैं। अब समझ आया आप सही मौके की तलाश में थीं।"

दामिनी जी उन्हें हल्के से मारते हुए बोलीं, "हां, तो हूं मैं सास… पूरा हक है मेरा अपनी बहू पर हुक्म चलाने का और अगर तुम बीच में आए ना तो बेलन फेंककर मारूंगी।"

विनीत जी हाथ दिखाकर बोले, "नहीं, नहीं, बाबा! मुझे अपनी हड्डियां नहीं तुड़वानी, मैं तो आप दोनों सास बहू के मामलों से दूर ही रहूंगा।"

इतना कहकर वो दोनों ज़ोर से हँस दिए और विनीत जी ने दामिनी जी को गले से लगा लिया तो दामिनी जी बोलीं, "बेटा! वो बच्ची हमारे परिवार को अपना परिवार मान चुकी है, अब हम ही उसकी दुनिया हैं, उसे कभी कोई तकलीफ मत होने देना। उसे दुनिया भर का प्यार और खुशियां देना अब हमारी ज़िम्मेदारी है।"

"और ये ज़िम्मेदारी हम बखूबी निभायेंगे।", विनीत जी ने उनकी बात पूरी करते हुए कहा।

"क्या हुआ? चौंक गई तुम?", दरवाज़े से अंदर आते हुए रश्मि जी ने कहा तो दामिनी जी अपने सीने पर हाथ रखकर बोलीं, "हां, डराने वाले काम किए ही हैं तुमने। ये कोई तरीका है किसी के रूम ने आने का?"

रश्मि जी अपने कान पकड़कर बोलीं, "सॉरी, मैंने सोचा थोड़ा सा मज़ाक कर लूं। पर तुम तो बहुत डर गई, आय एम रियली सॉरी।"

"कोई बात नहीं, तुम आओ, बैठो।", गरिमा जी ने रश्मि जी को एक कुर्सी की तरफ इशारा करके कहा तो रश्मि जी बैठ गईं और गरिमा जी को ऊपर से नीचे देखते हुए बोलीं, "वाउ, गरिमा! यू आर लुकिंग सुपर अमेजिंग… इतनी प्यारी और ब्यूटीफुल दुल्हन तो मैं लाइफ में पहली बार देख रही हूं।"

गरिमा जी हल्का सा मुस्कुराईं और बोलीं, "अरे, बस भी करो। इतनी तारीफ करना भी अच्छा नहीं है कि मुझे पचे ही ना।"

"अरे, नहीं यार! सीरियसली तुम बहुत सुंदर लग रही हो।"

"थैंक यू सो मच फॉर द कॉम्प्लीमेंट… वैसे इस सबका क्रेडिट मां को जाता है।", दामिनी जी खुद को शीशे में देखते हुए कहा तो रश्मि जी शीशे में गरिमा जी को देखते हुए ही बोलीं, "तुम्हारी मां… अरे, तुमने तो उनसे मिलवाया ही नहीं। आज तो बहुत खुश और दुःखी दोनों होंगी ना वो।"

"दोनों?"

"हां, खुशी इस बात की कि उनकी बेटी की शादी होने वाली है और दुःख इस बात का कि आज के बाद उनकी बेटी किसी और की अमानत बन जायेगी।", रश्मि जी ने कहा तो गरिमा जी हल्की सी मुस्कान के साथ बोलीं, "नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। हां, वो इस बात से तो बहुत खुश हैं कि मेरी शादी हो रही है पर दुःखी बिलकुल नहीं हैं क्योंकि मुझे उनके घर से विदा नहीं होना बल्कि उनके ही घर जाना है।"

"मतलब?", रश्मि जी ने नासमझी में कहा तो गरिमा जी बोलीं, "मतलब ये कि जिन्होंने मुझे तैयार किया है वो मुझे जन्म देने वाली मां नहीं हैं बल्कि मेरे हसबैंड, मेरे विनीत जी को जन्म देने वाली मां हैं।"

"ओ, मतलब तुम्हारी सासू मां?"

"हां।"

"अच्छा लेकिन तुम्हें उन्होंने क्यों सजाया तुम्हारी मां ने क्यों नहीं?"

"क्योंकि मेरी मां के हाथ मुझे सजा नहीं सकते सिर्फ मुझे आशीर्वाद दे सकते हैं वो भी वहां ऊपर से।", ऊपर की तरफ इशारा करके जब गरिमा जी ने कहा तो रश्मि जी को अपनी बात पर अफसोस हुआ और वो बोलीं, "ओ, आय एम रियली सॉरी।"

"नहीं नहीं, कोई बात नहीं।"

"वैसे, गरिमा! तुम्हारा कोई देवर है?", रश्मि जी ने जब ये कहा तो गरिमा जी ने हैरानी से उनकी तरफ देखकर कहा, "नहीं, क्यों?"

"वो क्या है ना, मुझे तुम्हारे विनीत जी जैसा ही लाइफ पार्टनर चाहिए, हैंडसम गुडलुकिंग, मुझे प्यार करने वाला, मेरे लिए दुनिया से लड़ जाने वाला और क्यूट सा। पता है जब मैंने विनीत जी को परसों कॉलेज में देखा ना तुम्हारे लिए उस रॉकी से लड़ते हुए तो मेरे दिमाग में ख्याल आया कि एक ही इंसान के अंदर क्या सच में इतनी सारी खूबियां हो सकती हैं! बस तभी से मैंने सोच लिया कि शादी करूंगी तो ऐसे ही लड़के से वरना करूंगी ही नहीं।"

गरिमा जी उनके पास आकर बोलीं, "मेरे सामने मेरे पति के बारे में ये सब बोलते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें?"

उनकी बात पर रश्मि जी थोड़ा डर गईं और बोलीं, "नहीं, मेरा कहने… का मतलब… ये था कि उनके जैसा कोई… वो नहीं, उनके जैसा।"

उन्हें यूं डरते देखकर गरिमा जी ज़ोर से हँस दीं और बोलीं, "अरे, तुम तो डर गई। सॉरी, वो तुमने जो मज़ाक किया ये उसका बदला था।"

अब रश्मि जी की सांस ने सांस आई वो बोलीं, "क्या तुम भी, मुझे तो लगा था कि कहीं तुम मुझे पीट ना दो!"

उनकी बात पर वो दोनों ही खिलखिलाकर हँस गईं।

क्रमशः