रिश्ते… दिल से दिल के - 11 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 11

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 11
[प्रदिति रहेगी सहगल मेंशन में]


सुबह की प्यारी भीनी धूप जब खिड़की से प्रदिति के चहरे पर आई तो उसने अपनी आंखें खोलीं तो देखा कि आकृति अब भी उसे लिपटकर सो रही थी। उसे देखकर उसके चहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। उसने प्यार से उसका माथा चूमा और धीरे से उसके हाथ को अपने ऊपर से उठाकर बाथरूम की तरफ चली गई।

डाइनिंग टेबल पर नाश्ता बनकर तैयार हो चुका था और गरिमा जी और दामिनी जी उस पर बैठी हुई थीं। प्रदिति सीढ़ियों से नीचे आई तो दोनों ने मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा और उसे अपने पास बुलाया। प्रदिति भी जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गई।

प्रदिति ने उन दोनों को प्रणाम किया तो दोनों ने उसे आशीर्वाद दिया।

गरिमा जी ने उसे नाश्ता करने के लिए कहा तो प्रदिति हल्का सा मुस्कुराई और बोली, "मैं घर जाकर नाश्ता कर लूंगी।"

दामिनी जी बोलीं, "अरे, बेटा! नाश्ता यहां बना है ना तो कर लो। तुम्हारी मां को भी थोड़ा आराम मिल जायेगा नहीं तो उन्हें अलग से नाश्ता बनाना पड़ेगा।"

"नाश्ता तो मैं ही बनाऊंगी घर जाकर।", प्रदिति ने हल्के से कहा तो गरिमा जी मुस्कुराकर बोली, "देखा, मां! कितनी प्यारी बच्ची है। अपनी मां को ज़रा भी तकलीफ नहीं देना चाहती इसीलिए नाश्ता भी घर जाकर खुद ही बनाएगी।"

उनकी बात सुनकर प्रदिति बोली, "नहीं, मां! वो मेरे मम्मा और पापा यहां नहीं रहते इसलिए मैं ही जाकर नाश्ता बनाऊंगी।"

"यहां नहीं रहते मतलब?", दामिनी जी ने प्रदिति से सवाल किया तो जवाब में प्रदिति ने कहा, "वो शिमला में हैं। अब तक मैं भी वहीं रहती थी। अभी दो–तीन दिन पहले ही यहां आई हूं वो यहां अक्कू के कॉलेज में मुझे म्यूजिक टीचर के तौर पर अपॉइंट किया गया है।"

उसकी बात पर दामिनी जी बोलीं, "मतलब तुम अक्कू की टीचर हो?"

"जी, मैं उसे म्यूजिक सिखाती हूं।", प्रदिति ने जवाब दिया तो गरिमा जी भी प्रदिति से बोलीं, "मतलब तुम किराए के घर में रहती हो?"

प्रदिति– "हां, वो पापा ने सारा इंतजाम करवा दिया था।"

गरिमा जी– "मतलब, अकेले?"

प्रदिति ने हां में गर्दन हिला दी तो गरिमा जी कड़क आवाज़ में बोलीं, "अब तुम वहां नहीं जाओगी।"

प्रदिति और दामिनी जी दोनों ही गरिमा जी की बात पर हैरान थीं तो प्रदिति चौंककर बोली, "लेकिन, क्यों?"

गरिमा जी– "प्रदिति! तुम जानती हो ना कि तुम्हारा ऐसे अकेले वहां रहना सेफ नहीं है वो भी तब जब तुमने अक्कू को बचाने के लिए उस विराज जैसे लड़के से पंगा लिया है। हां, मैंने उसको जेल में डलवा दिया है लेकिन फिर भी तुम्हारा यूं अकेले रहना सेफ नहीं है।"

"पर, मां! मैं पूरी तरह से अकेली नहीं हूं। वो मकान मालिक हैं ना, वो नीचे ही रहते हैं।", प्रदिति ने कहा तो गरिमा जी ने घूरती हुई नजरों से उसे देखा और बोलीं, "मैंने कहा ना, तुम्हारा वहां रहना सेफ नहीं है।"

उनकी बात के समर्थन में दामिनी जी भी बोलीं, "हां, बेटा! मान जाओ गरिमा की बात क्योंकि इसके अंदर का ज्वालामुखी समय देखकर नहीं फटता। वो तो बिना किसी सूचना के फट जाता है। तुम उससे जल जाओ इससे अच्छा है कि इसकी बात मान लो… और वैसे भी, बेटा! अक्कू को देखा न तुमने कि तुम्हारे साथ उसे कितना सुकून मिला था। जिस तरह वो तुमसे लिपटकर सो रही थी उससे साफ–साफ पता चल रहा था कि तुम उसकी जिंदगी में एक बहुत खास जगह के चुकी हो। अगर तुम यहां रुकोगी तो उसे भी अच्छा लगेगा। इसीलिए अपनी अक्कू के लिए ही रुक जाओ।"

दामिनी जी की बात सुनकर प्रदिति ने पहले दामिनी जी को और फिर गरिमा जी को देखा और बोली, "लेकिन, मेरा सामान तो…"

गरिमा जी बोलीं, "तुम उसकी टेंशन मत लो। मैं ड्राइवर को भेजकर सारा सामान मंगवा लूंगी। अब तुम वो सब मत सोचो और अच्छे से नाश्ता करो।"

प्रदिति ने एक हल्की सी मुस्कान दी और नाश्ता करने लगी।

प्रदिति ने मुस्कुराते हुए मन में सोचा, "कल मेरी बहन की वजह से मैं अपने इस घर में आई और आज मेरी मां ने मुझे हक से और डांटकर इस घर में रुकने को कहा। शिव जी! मैं समझ चुकी हूं कि ये आपका ही संकेत है कि सबकुछ बहुत जल्द ठीक होने वाला है।"

गरिमा जी अपना बैग उठाकर दामिनी जी से बोलीं, "मां! मैं ऑफिस के लिए निकल रही हूं।"

दामिनी जी ने चौंककर पूछा, "लेकिन, बेटा! अभी तो एक घंटा है ऑफिस के खुलने के लिए।"

गरिमा जी– "मां! वो मेरा ऑफिस है और मैं तो कभी भी वहां जा सकती हूं और आज तो बहुत इंपोर्टेंट काम करना है मुझे। इसलिए जल्दी जाना पड़ेगा।"

फिर दामिनी जी ने कुछ नहीं कहा। गरिमा जी घर से बाहर निकल गईं।

दामिनी जी ने प्रदिति से सवाल किया, "बेटा! और कौन–कौन है तुम्हारे घर में?"

प्रदिति ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "मेरी मां, पापा, एक बहन, एक प्यारी सी दादी, मम्मा और मैं।"

दामिनी जी हैरानी से बोलीं, "मां और मम्मा?"

"हां, मेरी दो–दो माएं हैं और दोनों मुझे बहुत प्यार करती हैं।"

"लेकिन, दो माएं कैसे हो सकती हैं?"

"वो…", प्रदिति आगे कुछ कहती कि पीछे से आकृति ने आवाज़ लगाई, "दी!"

दोनों ने मुड़कर पीछे देखा तो वहां आकृति मुस्कुराते हुए खड़ी थी। वो तेज़ी से भागकर आई और आकृति के गले लग गई।

दामिनी जी झूठी नाराज़गी दिखाते हुए बोलीं, "वाह, बेटा! बहन के आने पर दादी को भूल गई!"

उनकी बात पर आकृति भागकर उनके पास गई और उनके भी गले लग गई। फिर उनका गाल चूमकर बोली, "अरे, दादी! आप भी कोई भूलने वाली चीज़ हो। आप तो हमेशा मेरे लिए सबसे ऊपर रहोगी।"

"हां, हां, अब मक्खन लगाना बंद करो और नाश्ता करो।", दामिनी जी ने खुद से अलग करके कहा तो आकृति नाश्ता करने के लिए बैठ गई।

दामिनी जी आकृति से बोलीं, "अक्कू!"

आकृति नाश्ता करते हुए, "हम्म्म?"

दामिनी जी– "तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है।"

आकृति– "क्या?"

दामिनी जी– "आज से तुम्हारी दी हमारे साथ ही रहेगी।"

आकृति जिसने अपने मुंह में ब्रेड का बड़ा सा बाइट रखा था ये खबर सुनकर वो उसके मुंह ने रह गया और वो खुश होकर झूमने लगी। कुछ कह भी रही थी लेकिन उस टुकड़े के मुंह में होने की वजह से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।

उसने जैसे–तैसे उसे चबाकर अपने पेट में पहुंचाया और बोली, "ये कोई मज़ाक तो नहीं है ना?"

दामिनी जी– "नहीं।"

वो जल्दी से दामिनी जी के गले लगकर खुशी से बोली, "वाह, दादी! आपने तो मेरी गुड मॉर्निंग को और भी गुड कर दिया।"

फिर वो जाकर प्रदिति के गले लगी और बोली, "दी! अब हम साथ रहेंगे।"

लेकिन फिर अचानक से वो मुंह बनाकर बैठ गई। उसकी इस हरकत पर दामिनी जी और प्रदिति ने एक–दूसरे को देखकर नजरों से ही सवाल किया। फिर प्रदिति ने आकृति से पूछा, "क्या हुआ, अक्कू? तुम अचानक से इतनी उदास क्यों हो गई?"

आकृति मुंह बनाए ही बोली, "आप दोनों ने तो ये फैसला कर लिया लेकिन वो लेडी हिटलर… उनका क्या?"

प्रदिति तो कुछ समझी नहीं लेकिन दामिनी जी अच्छे से जानती थीं कि वो ये नाम किसके लिए यूज करती है। वो उससे बोलीं, "गरिमा ने खुद प्रदिति को यहां रहने की परमिशन दी है बल्कि परमिशन ही नहीं दी ऑर्डर देकर रोका है।"

अब तो आकृति की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। वो फिर से प्रदिति के गले लगने को हुईं कि प्रदिति ने उसे रोक दिया और बोली, "अपने मां के बारे में ऐसा बोलते हैं!"

आकृति मुंह बनाते हुए बोली, "अरे, दी! आप अभी उन्हें जानती नहीं हैं। वो सच ने लेडी हिटलर हैं, पूरा दिल्ली शहर उनकी हिटलरगिरी से परेशान है।"

प्रदिति ने आकृति को घूरते हुए कहा, "होंगी वो पूरे दिल्ली के लिए हिटलर लेकिन मुझे उन्होंने मां के जैसा प्यार किया है तो मेरे लिए तो वो मां ही हैं और मेरी मां को कोई भी कुछ नहीं कहेगा।"

उसकी बात आकृति हैरान थी। वो हैरानी से बोली, "वाह! एक दिन में ही आपका उनके साथ ऐसा रिश्ता बन गया?"

प्रदिति– "मेरा और उनका रिश्ता तो सालों पुराना है।"

प्रदिति की बात सुनकर आकृति और दामिनी जी दोनों ही हैरान थीं। जब प्रदिति को इस बात का एहसास हुआ तो वो अपनी बात संभालते हुए बोली, "मैंने उन्हें मां कहा है ना तो उस हिसाब से मेरा और उनका रिश्ता तो सालों पुराना है।"

अब जाकर उन दोनों को प्रदिति की बात समझ आई और प्रदिति की सांस में सांस।

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क्रमशः