रिश्ते… दिल से दिल के - 12 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 12

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 12
[पुलिस स्टेशन पहुंची गरिमा जी]

गरिमा जी अपनी गाड़ी से बाहर उतरीं और उन्होंने अपना चश्मा उतारकर पुलिस स्टेशन की तरफ देखा। फिर ड्राइवर से वहीं रुकने के लिए कहकर अंदर चली गईं।

उनके पुलिस स्टेशन के अंदर कदम रखते ही सभी लोग अपनी जगह से खड़े हो गए। वहां के एसएचओ ने गरिमा जी को बैठने के लिए कुर्सी दी तो वो उस पर बैठ गईं। फिर अपनी दाईं ओर देखा जहां लॉकअप में विराज बंद था। उसे देखकर गरिमा जी की मुट्ठियां गुस्से से भिंच गईं पर उन्होंने खुद को कंट्रोल करते हुए उस एसएचओ से कहा, "तो, मिस्टर…" उसकी टेबल से उसका नाम पढ़कर, "रविकांत दुबे जी! जैसा कि आप जानते हैं कि इस लड़के को मैंने ही लॉकअप में डलवाया है… और इसलिए नहीं कि आज ये यहां बंद है और कल इसकी बेल होने पर इसे छोड़ दिया जाएगा। बिलकुल नहीं, ये लड़का इस लॉकअप से बाहर नहीं आना चाहिए क्योंकि अगर ये बाहर आया तो आपको भी इस थाने से बाहर निकलने में जरा सा भी टाइम नहीं लगेगा।"

गरिमा जी की बात सुनकर दुबे जी उन्हें मक्खन लगाते हुए बोले, "अरे, मैडम जी! कैसी बातें कर रही हैं आप! जिसको आप अंदर करवाए हम उसे ही बाहर कर दें, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। आपको और आपके रुतबे को तो पूरा दिल्ली शहर जानता है। भला कौन बेवकूफ होगा जो आपसे पंगा लेगा। आप बिलकुल भी चिंता मत कीजिए, ये लड़का इस लॉकअप से बाहर नहीं निकलेगा और साथ ही साथ इसकी हड्डियों को दो सौ छः से तीन सौ छः करने की जिम्मेदारी भी हमारी।"

फिर गले से थूक गटकाकर दुबे जी बोले, "अ… मैडम! आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूं… वो लड़की है कौन जिसे इसने छेड़ा था कहीं वो आपकी बेटी…" दुबे जी अपनी बात पूरी कर पाते उससे पहले ही गरिमा जी अपनी जगह से खड़ी हो गईं और गुस्से से बोलीं, "लड़की कोई भी हो, इसे या किसी भी लड़के को किसी भी लड़की के साथ ऐसा करने का हक नहीं है। एक लड़की जो इसे इतना प्यार करती थी, इस पर पूरा भरोसा था उसे, उसका दिल तोड़कर इसने उसके साथ…" कहते–कहते गरिमा जी रुक गईं और फिर विराज के सामने पहुंच गईं जिससे विराज डरकर पीछे हो गया।

वो गुस्से में ही उससे बोलीं, "मैं चाहूं तो यहीं तुम्हें ऊपर पहुंचा दूं पर मैं ऐसा करूंगी नहीं क्योंकि मैं भी चाहती हूं कि तुम इस लॉकअप में कैद होकर रहो। जैसे मेरी बेटी को तकलीफ दी है ना तुमने उसी तरह तुम भी इस लॉकअप में पड़े–पड़े सड़ो… और इतना ही नहीं, मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूंगी तुम्हें हर वो तकलीफ देने के लिए जिससे तुम्हें बहुत तकलीफ हो और तुम्हें अहसास हो कि मेरी अक्कू के लिए वो पल कितना दर्दनाक था जब उसने तुम्हारा वो घटिया रूप देखा था। तुम बस देखते जाओ, तुम्हारी जिंदगी को नर्क तो अब मैं बनाऊंगी, आज तक गरिमा सहगल से पंगा लेने की हिम्मत किसी ने नहीं की थी और तुमने तो मेरी बेटी, मेरी अक्कू को तकलीफ दी, तुम तो बिलकुल भी नहीं बच सकते।" कहकर गरिमा जी अपना चश्मा पहनकर वहां से बाहर निकल गईं और विराज के दिल में छोड़ गईं एक भयानक डर कि आखिर उसकी जिंदगी में अब होने क्या वाला है?

प्रदिति कॉलेज के लिए निकलने लगी तो आकृति ने उसे पीछे से आवाज़ दी, "दी!" उसकी आवाज़ पर प्रदिति रुकी और पीछे मुड़कर देखा तो आकृति कॉलेज के लिए तैयार हो चुकी थी। वो तेज़ी से भागकर उसके पास आई और बोली, "आप अकेली क्यों जा रही हैं? भूल गईं क्या कि मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ती हूं जिसमें आप टीचर हैं?"

प्रदिति– "लेकिन, अक्कू! तुम तो…"

आकृति– "मैं तो, क्या?"

प्रदिति– "कल तुम्हारे साथ जो भी हुआ उसके बाद तुम्हें आज आराम करना चाहिए।"

आकृति मुंह से सांस छोड़कर बोली, "दी! मेरे साथ कुछ गलत नहीं हुआ। होने वाला था जिसे आपने आकर रोक लिया तो अब तो मुझे कोई प्रोब्लम है ही नहीं तो फिर मैं यूंही कॉलेज से लीव क्यों लूं?"

प्रदिति– "तुम सच में पूरी तरह ठीक हो?"

आकृति हल्का सा मुस्कुराकर बोली, "दी! अब तक वो विराज नाम की बीमारी थी जिसकी वजह से मेरा दिमाग खराब हो गया था और इसीलिए मैं किसी की भी बात को मानती ही नहीं थी लेकिन अब मेरी वो बीमारी पूरी तरह से दूर हो चुकी है तो अब मैं ठीक नहीं बल्कि परफेक्ट हूं।"

प्रदिति ने उसे गले लगा लिया और बोली, "मेरी स्ट्रोंग बहना!"

आकृति उससे अलग होकर इतराते हुए बोली, "सिर्फ स्ट्रोंग नहीं, स्मार्ट और ब्यूटीफुल भी।"

उसकी बात पर प्रदिति हँस दी और दोनों बाहर जाने लगे कि प्रदिति रुक गई। उसे रुका देखकर आकृति ने पूछा, "क्या हुआ? आप रुक क्यों गईं?"

प्रदिति– "अरे, हमने दादी का आशीर्वाद तो लिया ही नहीं।"

आकृति अपने सिर को खुजलाते हुए धीरे से बोली, "ये भी होता है?"

प्रदिति अंदर चली गई तो आकृति भी उसके पीछे–पीछे आ गई।

प्रदिति ने दामिनी जी को सोफे पर बैठा हुआ पाया तो वो आकर उनके पैर छूने लगी तो दामिनी जी ने अपने पैर ऊपर कर लिए और बोलीं, "अरे, ये क्या कर रही हो बेटा?"

प्रदिति– "दादी के पैर छू रही हूं।"

दामिनी जी खड़े होकर बोलीं, "पर, बेटा! हमारे यहां लड़कियों को लक्ष्मी माना जाता है और लक्ष्मियां पैर नहीं छूतीं।"

प्रदिति– "पर, दादी! मुझे तो आपका आशीर्वाद चाहिए।"

दामिनी जी प्रदिति के गाल पर हाथ रखकर बोलीं, "बेटा! तुम तो वैसे ही इतनी प्यारी हो। तुम्हें आशीर्वाद देने की ज़रूरत नहीं है, वो तो खुद ब खुद दिल से निकलता है।"

प्रदिति– "तो मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दीजिए।"

दामिनी जी हल्का सा मुकुराईं और प्रदिति के सिर पर हाथ रखकर बोलीं, "हमेशा खुश रहो।"

दामिनी जी ने जैसे ही उसे आशीर्वाद दिया प्रदिति ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मन में ही बोली, "पापा! आपको मां का आशीर्वाद ले लिया मैंने। बस अब जल्दी से इसे आप तक पहुंचा दूंगी।"

वहीं दूसरी तरफ विनीत जी को एक अलग सी अनुभूति हुई जैसे आज कुछ अच्छा हुआ हो। उन्हें भी बहुत अच्छा सा लग रहा था लेकिन क्यों ये वो नहीं जान पा रहे थे। विनीत जी को अपने ख्यालों में खोकर मुस्कुराते हुए देखकर रश्मि जी उनके पास आकर बोलीं, "विनीत जी! क्या हुआ? आप ऐसे मुस्कुरा क्यों रहे हैं?"

वो वहीं सोफे पर बैठ गए, रश्मि जी भी उनके पास में बैठ गईं।वो मुस्कुराते हुए ही बोले, "पता नहीं, क्यों? पर आज मां के पास होने का एहसास लग रहा है मुझे। ऐसा लग रहा है जैसे उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दिया हो। आज इतनी सालों बाद ऐसा लग रहा है जैसे इस बेटे को उसकी मां का प्यार का नसीब हो गया हो।"

सच कहते हैं कि अगर रिश्ते दिल से जुड़े हों तो उनका एहसास दिलों तक पहुंच ही जाता है चाहे वो कितनी ही दूर क्यों न हों। जैसे प्रदिति ने दामिनी जी से अपने पिता के लिए दिल्ली में आशीर्वाद लिया और विनीत जी को इस बात का एहसास शिमला में हो गया।

रश्मि जी मुस्कुराकर बोलीं, "ये तो बहुत अच्छी बात है। कहीं ये किसी शुभ घड़ी के आने का संकेत तो नहीं?"

विनीत जी– "पता नहीं, पर अब बस यही प्रार्थना है कि सब अच्छा ही हो। मेरा पूरा परिवार खुश रहे, उस पर कोई भी आंच ना आए।"

रश्मि जी फिर कुछ सोचकर बोलीं, "विनीत जी! प्रदिति से हमारी बात सिर्फ तब ही हुई थीं जब वो दिल्ली पहुंची थी। अब उसे एक कॉल कर लेते हैं पता तो चले हमारी बच्ची कैसी है और वहां सब कैसा चल रहा है?"

विनीत जी– "हां, तुम सही कह रही हो। वैसे भी उसकी याद आ रही थी। मैं अभी उसे कॉल करता हूं।"

विनीत जी प्रदिति को फोन लगाने लगते हैं।

दूसरी तरफ प्रदिति और आकृति कार में बैठकर कॉलेज के लिए जा रही थीं। उन दोनों ने कुछ खट्टी–मीठी सी बातें चल रही थीं तभी प्रदिति का फोन बजा तो उसने उसे देखा… स्क्रीन पर 'पापा' नाम देखकर उसके तो जैसे होश उड़ गए।

प्रदिति ने मन में सोचा, "अगर पापा को ये बात पता चल गई कि मैं सहगल मेंशन में रह रही हूं और अभी अक्कू के साथ हूं तो वो सीधा मुझे शिमला बुला लेंगे क्योंकि वो जानते हैं कि मेरे यहां रहने पर एक दिन मां को सब पता चल जायेगा और फिर…"

प्रदिति सोच ही रही थी कि आकृति फोन को बजता हुआ देखकर बोली, "दी! फोन"

उसकी आवाज़ पर प्रदिति की तंद्रा टूटी और उसने फोन उठाया और बोली, "हेलो!"

दूसरी तरफ से विनीत जी बोले, "प्रदिति! कैसी हो बेटा?"

प्रदिति ने एक फीकी सी मुस्कान के साथ आकृति की तरफ देखा और फिर फोन पर बोली, "मैं ठीक हूं। आप बताइए।"

विनीत जी– "बस तुम्हारी याद आ रही है। घर खाली–खाली सा हो गया है तुम्हारे बिना।"

प्रदिति– "हां, मुझे भी आपकी बहुत याद आ रही थी।"

विनीत जी– "कॉलेज के निकल रही हो?"

प्रदिति– "हां!"

प्रदिति जान–बूझकर विनीत जी को पापा नहीं कह रही थी क्यूंकि अगर आकृति को ये पता चला कि वो अपने पापा से बात कर रही है तो वो भी उनसे बात करने की ज़िद करेगी और फिर सब खराब हो जायेगा।

फिर प्रदिति अचानक से बोली, "वो… मैं कॉलेज पहुंच गई हूं और मुझे क्लास के लिए लेट हो रहा है तो मैं आपको बाद में कॉल करती हूं।" कहकर प्रदिति ने झट से फोन काट दिया।

"लेकिन, प्रदिति…", विनीत जी के शब्द उनके मुंह में ही रह गए क्योंकि तब तक फोन कट चुका था।

रश्मि जी ने विनीत जी से पूछा, "क्या हुआ?"

विनीत जी– "ये बोलकर कि उसे क्लास के लिए लेट हो रहा है, उसने फोन काट दिया।"

रश्मि जी चौंककर बोलीं, "क्या? लेकिन प्रदिति ने पहले तो ऐसा कभी नहीं किया। वो चाहे कितनी भी जल्दी ने क्यूं ना हो, हम दोनों से प्यार और इत्मीनान से बात करती है तो फिर आज अचानक ऐसा कैसे?"

विनीत जी उन्हें समझाते हुए बोले, "क्या पता, सच में उसे लेट हो रहा हो… तुम ये सब छोड़ो। मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है और सर्दी भी इसलिए कुछ गरमागरम बनाकर लाओ ना!"

रश्मि जी ने मुस्कुराकर कहा, "अभी लाती हूं।"

प्रदिति ने फोन तो काट दिया लेकिन वो आकृति की तरफ नहीं देख पा रही थी क्योंकि आकृति उसे ही घूरे जा रही थी। थोड़ी देर बाद आकृति ने पूछ ही लिया, "आखिर कौन था वो जिससे आपको झूठ बोलना पड़ा कि आपकी क्लास के लिए लेट हो रहा है?"

प्रदिति गले से थूक गटककर बोली, " वो… अ… हां, शिमला में हमारे एक नेबर हैं जो बातें कर करके दिमाग खराब कर देते हैं इसलिए मुझे ऐसा बोलना पड़ता है। नहीं तो वो मेरा दिमाग खराब करते जिससे मेरा गला भी सही नहीं रह पाता और अगर गला खराब हो गया तो मैं क्लास में जाकर सबको म्यूजिक कैसे सिखाऊंगी?"

आकृति को प्रदिति की इलॉजिकल बात समझ तो नहीं आई पर ये सोचकर कि प्रदिति झूठ क्यों ही बोलेगी, आकृति ने फिर कुछ नहीं कहा तब जाकर प्रदिति को राहत मिली।

क्रमशः