प्रफुल्ल कथा - 1 Prafulla Kumar Tripathi द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 41

    श्रेया अपने दोनो हाथों से आकाश का हाथ कसके पकड़कर सो रही थी।...

  • Podcast mein Comedy

    1.       Carryminati podcastकैरी     तो कैसे है आप लोग चलो श...

  • जिंदगी के रंग हजार - 16

    कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उ...

  • I Hate Love - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 48

    पिछले भाग में हम ने देखा कि लूना के कातिल पिता का किसी ने बह...

श्रेणी
शेयर करे

प्रफुल्ल कथा - 1


मेरा जन्म गोरखपुर से लगभग 20 कि.मी.दूर खजनी के एक गाँव विश्वनाथपुर में को हुआ था | यह गाँव सरयूपारीण ब्राम्हणों के सुप्रसिध्ध गाँव सराय तिवारी का ही एक हिस्सा था | मेरे गाँव से लगभग एक कि.मी.की दूरी पर आमी नदी बहा करती थी जो अब लुप्तप्राय हो चली है | उस आमी नदी और उसके ठीक किनारे स्थित कपूरी (मलदहिया) आम के बहुत बड़े बागीचे { जिसे हमलोग बडकी बगिया कहा करते थे } को मैं अब भी भूल नहीं पा रहा हूँ क्योंकि उससे जुड़ी ढेर सारी स्मृतियाँ हैं | आप कल्पना कीजिए कि बचपन में आप किसी ऐसे ही बागीचे में पहुंचे हों ,उन्मुक्त रूप से नदी में नहा रहे हों , डाल पर चढ़ कर आम तोड़ चुके हों और अब आम खाए जा रहे हों ... सच एकदम सच और विश्वास मानिए ऐसा भी हुआ है कि तैयारी के साथ तो बागीचा हम पहुंचे ना हों और नदी देखकर नहाने के लिए मन मचल उठा हो तो... तो बस कपड़ा फेंका और कूद गए नदी में .. और जब तक आम की दावत समाप्त हुई कपडे भी सूख जाया करते थे | नहाना भी नहाने जैसा नहीं होता .. तब तक नहाते जब तक आँखें लाल अंगार नहीं हो जाया करतीं ,हाथ पाँव थकने से नहीं लगते ..और मेरे मित्र तो आपकी सतह तक हो आया करते मछलियों की तरह,उल्टा लेटकर तैरते,पद्मासन लगा बैठते , छुई छुऔवल खेलते और और वि किनारे वाले आम के पेंड पर चढ़कर छलांग भी तो लगा देते थे..अब शायद ये सारी बातें महज़ किस्से बनकर इन किताबों में ही रह गए हैं ! कभी कभी जब बाढ़ आती तो हमलोगों के घर के पास तक तुम अपना आंचल फैला देती थीं और मछलियों का इनाम भी दिया करतीं थीं | खेत पानी में डूब जाते लेकिन अगली फसल सोने की देकर जाते | गाँव में जब वधुएँ आया करती थीं तो आमी का ही तो पानी लेकर कुलदेवी की पूजा हुआ करती थी |
ओ माँ, आमी, हो सकता है आपको “हेमाद्रि संकल्प” में उल्लिखित नदियों में स्थान ना मिल पाया हो ,लेकिन सच मानिए आप ही हमारी गंगा, जमुना, भागीरथी, यमुना,नर्मदा..सब कुछ अब भी हो ! आपका नाम आमी है ..पूर्व में कुछ और रहा होगा लेकिन आप तो मेरी अम्मा नदी हो | आप भले ही अब भूमिगत हो चली हो लेकिन आप मेरे जीवन से कभी भी नहीं जा सकेंगी |कभी भी नहीं !
मेरी दादी जी मूलतः नेपाल की थीं |उनका जन्म क्वार सुदी एक सम्वत 1966 को बनगाईं (नेपाल) में हुआ था | आषाढ़ सुदी एकादशी संवत 2033 में उनका काशीलाभ हुआ था | मेरे बाबा पंडित भानुप्रताप राम त्रिपाठी का जन्म गोरखपुर के दक्षिणांन्चल के ब्राम्हणों के प्रतिष्ठित एक गाँव सरया तिवारी में हुआ था | वे जमींदार थे | उनका देहांत 21 मई 1987 को अपने गाँव के सीवान पर ही एक दुर्घटना में चोटिल होने के बाद काशी ले जाते समय रास्ते में हुआ था | मेरी मां श्रीमती सरोजिनी त्रिपाठी का जन्म गोरखपुर के भिटहां (डवरपार)में 15 अगस्त 1933 को हुआ था | उनकी शादी मात्र 15 वर्ष की उम्र में 26 फरवरी 1948 को पिताजी के साथ हो गई थी |उन्होंने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था |
(क्रमश :)