रिश्ते… दिल से दिल के - 10 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

श्रेणी
शेयर करे

रिश्ते… दिल से दिल के - 10

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 10
[प्रदिति पहुंची सहगल मेंशन]

गरिमा जी हॉल में चहलकदमी कर रही थीं और बार–बार दरवाज़े की तरफ देख रही थीं। दामिनी जी उनके पास खड़ी उनसे बोलीं, "गरिमा! बेटा, तुम चिंता क्यों कर रही हो? आज पहली बार थोड़े ही ना अक्कू बाहर गई है, आ जायेगी।"

गरिमा जी घबराकर बोलीं, "मुझे बहुत डर लग रहा है मां? हां, वो पार्टीज़ में जाती रहती है पर आज मुझे बहुत ज़्यादा डर लग रहा है, वो मेरा फोन भी नहीं उठा रही है।" कहते हुए गरिमा जी फिर से चहलकदमी करने लगीं।

तभी दामिनी जी के मुंह से डर के मारे निकला, "अक्कू!"

उनकी आवाज़ की दिशा में जब गरिमा जी ने देखा तो पाया कि प्रदिति सहमी हुई आकृति को कंबल में लपेटकर खड़ी थी।

उसे इस हालत में देखकर गरिमा जी और दामिनी जी दोनों डर गईं और वो भागकर आकृति को संभालने के लिए गईं।

गरिमा जी ने आकृति को ऊपर से नीचे तक घबराहट से देखा और बोलीं, "अक्कू! ये… ये सब क्या है? तुमने ये कंबल क्यों लपेटा हुआ है?"

"हां, बेटा! बताओ क्या हुआ है?", दामिनी जी ने भी चिंतित स्वर में कहा।

उनकी बात सुनकर प्रदिति बोली, "पहले आप इसे अंदर ले चलिए। मैं बताती हूं सब।"

तब गरिमा जी और दामिनी जी आकृति को पकड़कर अंदर ले गईं। प्रदिति वहीं खड़ी रह गई और दरवाज़े पर खड़ी अंदर का नज़ारा देखने लगी। वो जानती थी कि बहुत जल्द इस घर में आएगी, अपनी मां और दादी से मिलेगी लेकिन इस स्थिति में… ये कभी नहीं सोचा था।

आकृति को ले जाकर उन दोनों ने सोफे पर बिठाया और खुद उसके पास में बैठ गईं।

गरिमा जी ने उसके गाल पर हाथ रखकर पूछा, "अक्कू! बताओ, बेटा! हुआ क्या है तुम्हें? तुम इतनी डरी हुई क्यों हो?"

इतना सुनते ही आकृति गरिमा जी के गले लगकर रो पड़ी और बोली, "सॉरी, मॉम! प्लीज़ मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, बहुत बड़ी बेवकूफ थी मैं जो मैंने आपकी बात नहीं मानी। आय एम रियली सॉरी!"

"बेटा! डोंट क्राइ… और तुमने ऐसा क्या किया जो तुम्हें मुझसे माफ़ी मांगनी पड़े।", गरिमा जी ने उससे सवाल पूछा पर वो कुछ भी कहने की हालत में नहीं थी।

प्रदिति ने जब ये देखा तो वो दरवाज़े से ही बोली, "विराज ने अक्कू के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की।"

ये सुनकर तो दामिनी जी चौंक गईं और गरिमा जी की भौंहें गुस्से से तन गईं और हाथों की मुट्ठियां भींच गईं।

वो गुस्से में बोली, "उसने मेरी बच्ची, मेरी अक्कू के साथ… उसे तो मैं छोडूंगी नहीं। हाउ डेयर ही टच माय डॉटर!" कहते हुए वो गुस्से में खड़ी होने वाली थीं कि आकृति ने उन्हें रोका, "मॉम! वो मेरे साथ कुछ गलत कर देता अगर सही टाइम पर दी नहीं आई होतीं तो" कहकर उसने प्रदिति की तरफ इशारा किया तो गरिमा जी और दामिनी जी दोनों की नजरें प्रदिति पर चली गईं।

आकृति नम आंखों से ही आगे बोली, "अगर उस वक्त ये वहां नहीं पहुंचतीं तो आज मेरी इज्ज़त…" कहते–कहते वो फिर से रो पड़ी तो दामिनी जी ने उसे संभाला।

गरिमा जी अपनी जगह से खड़ी हुईं और प्रदिति के पास आकर बोलीं, "तुमने आज जो मेरी अक्कू और इस परिवार के लिए किया है, उसका एहसान तो ये परिवार जन्मों में भी नहीं चुका पाएगा… थैंक यू शब्द भी बहुत छोटा है इसके लिए तो" गरिमा जी ने हाथ जोड़कर कहा तो प्रदिति ने उनके हाथों को नीचे किया और बोली, "ये आप क्या कह रही हैं? आप मेरी मां… मां के समान हैं और अक्कू को तो मैंने अपनी बहन माना है ऐसे कैसे उसकी इज्ज़त पर कोई भी आंच आने देती।"

प्रदिति ने जैसे ही कहा, गरिमा जी ने उसे अपने गले से लगा लिया। आज प्रदिति को वो सुकून मिला था जिसकी तलाश उसे इतनी सालों से थी, कब से वो चाहती थी कि अपनी मां के गले लगे, उसकी मां उसे प्यार करें और आशीर्वाद दें… आखिरकार आज वो दिन आ ही गया। हां, वो बात अलग है कि गरिमा जी को अभी प्रदिति की असली पहचान नहीं पता।

गरिमा जी ने उसे खुद से अलग किया और कहा, "चलो, बेटा! अंदर चलो।" कहकर गरिमा जी उसे अंदर लाने लगीं।

आज प्रदिति को बहुत सुकून मिल रहा था आज वो अपनी मां, दादी और अक्कू के साथ है और उसकी मां उसे खुद घर के अंदर ले जा रही है। वो खुश तो होना चाहती थी पर जब उसे आकृति के बारे में याद आया तो उसने अपनी उस खुशी को छिपा लिया।

गरिमा जी ने उसे पास वाले सोफे पर बैठा दिया।

दामिनी जी भी उसके आगे हाथ जोड़कर बोलीं, "बेटा! तुम्हारा बहुत–बहुत धन्यवाद जो तुमने हमारी अक्कू की इज्ज़त को बचाया।"

"नहीं, दादी! प्लीज़ आप ऐसे मत कहिए। आप मुझसे बड़ी हैं और ये सब मैंने किसी पराए के लिए थोड़े ही ना किया है, अपने परिवार के लिए किया है।", प्रदिति ने कहा तो सभी ने उसे हैरानी से देखा तो वो बोली, "वो… अक्कू ने मुझे अपनी बड़ी बहन कहा तो उस हिसाब से आप दोनों भी मेरा परिवार हुईं।"

"हां, बेटा! अक्कू ने भी बिलकुल सही कहा और तुमने भी कि ये परिवार अब तुम्हारा भी है। आज से तुम भी हमारे लिए अक्कू के जैसी ही हो।", गरिमा जी ने बड़े ही प्यार से कहा।

फिर प्रदिति बोली, "मां!"

उसकी आवाज़ पर सभी ने उसे हैरानी से देखा तो वो गरिमा जी से बोली, "मैं आपको मां बुला सकती हूं ना?"

गरिमा जी ने मुस्कुराकर कहा, "हां, बेटा! बिलकुल।"

ये सुनकर प्रदिति के चहरे पर भी मुस्कान आ गई। फिर वो आगे बोली, "मैं अक्कू को उसके कमरे में ले जाऊं? रात भी बहुत हो गई और वो थक भी गई है तो उसे उसके कमरे में सुला आती हूं।"

"हां, बेटा! ले जाओ।", गरिमा जी ने मुस्कुराकर कहा तो प्रदिति आकृति को उसके कमरे में ले गई।

गरिमा जी अपनी जगह से खड़ी हुईं और गुस्से से भरी लाल आंखों से बोलीं, "विराज! अब तक तुम सिर्फ मेरी बेटी के पैसों के पीछे थे लेकिन आज जो तुमने किया है वो बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अब से तुम्हारा बुरा वक्त शुरू होता है।" कहकर गरिमा जी बाहर निकलने को हुईं कि दामिनी जी ने उन्हें रोका, "बेटा! इतनी रात को कहां जा रही हो? "

"मां! मैं उस लड़के को छोडूंगी नहीं। उसे तो…"

"बेटा! उसे सज़ा कानून देगा। हम कौन होते हैं उसे सज़ा देने वाले और अगर हमने कानून तोड़ा तो उल्टा हम ही इस केस में फंस जायेंगे इसलिए तुम शांत हो जाओ और हम पुलिस को इस बात की सूचना दे देते हैं।" दामिनी जी ने कहा तो गरिमा जी ने हां में गर्दन हिला दी।

आकृति अपने कमरे में डरी सहमी अपने बेड पर कांपे जा रही थी। प्रदिति उसके पास बैठी थी उससे उसकी ये हालत देखी नहीं जा रही थी। उसने आकृति के चहरे को अपनी हथेलियों में भरकर कहा, "अक्कू! क्यों डर रही हो तुम? तुम्हें कुछ नहीं हुआ है।"

आकृति ने डरकर रोते हुए कहा, "दी! उसका हाथ बिलकुल मेरे सामने था। वो मुझे कितनी गंदी नज़र से देख रहा था। अगर आप नहीं पहुंचती तो…"

प्रदिति ने उसे अपने गले से लगाकर कहा, "कैसे नहीं पहुंचती? मेरी बहन को मेरी ज़रूरत थी।"

आकृति उससे अलग होकर बोली, "लेकिन तब तो हमारे बीच ये बहनों वाला रिश्ता था ही नहीं।"

प्रदिति उसके गाल पर हाथ रखकर बोली, "ये रिश्ता तो बहुत पहले से था बस फर्क इतना है कि मैंने उसे जल्दी पहचान लिया और तुम देर से समझी।"

आकृति ने नासमझी से कहा, "मतलब?"

"कुछ नहीं, तुम सो जाओ। रात बहुत हो गई है।", प्रदिति उसे बेड पर लिटाकर बोली।

इसके सिर को चूमकर प्रदिति जाने लगी कि आकृति ने उसका हाथ पकड़ लिया और छोटी बच्ची की तरह कहा, "आज आप मेरे साथ सो जाइए ना, प्लीज। मुझे बहुत डर लग रहा है।"

"डरने की क्या बात है? घर में सब हैं ना।"

"नहीं, दी! प्लीज़। मेरे साथ सो जाइए ना। प्लीज़"

आकृति के ज़्यादा आग्रह करने पर प्रदिति ने हां में सिर हिला दिया और उसके पास आकर लेट गई। आकृति उससे झट से लिपट गई तो प्रदिति ने एक मुस्कान के साथ उसके सिर पर हाथ फेरा।

बहुत थकी हुई होने की वजह से दोनों ही सो गईं।

दामिनी जी और गरिमा जी बाहर दरवाज़े से ये नज़ारा देख रही थीं।

दामिनी जी गरिमा जी से बोलीं, "देखा, बेटा! थोड़ी ही देर में कितना गहरा रिश्ता बन गया दोनों में।"

गरिमा जी उनकी बात के जवाब में बोलीं, "नहीं, मां! थोड़ी देर में नहीं। इनका रिश्ता तो बहुत पुराना है। शायद पिछले जन्म का। इतने प्यार से तो अक्कू कभी मेरे गले लगकर भी नहीं सोई।"

दामिनी जी गरिमा जी के कंधे पर हाथ रखकर बोलीं, "बेटा! तुमने कभी उसे ये मौका जी नहीं दिया।"

दामिनी जी की बात पर गरिमा जी ने उन्हें हैरानी के साथ देखा तो दामिनी जी बोलीं, "हां, बेटा! विनीत के जाने के बाद तुमने कुछ बनने की ज़िद में अपनी इस बच्ची को तो जैसे भुला ही दिया था, कब तुम्हारी छोटी सी अक्कू बड़ी हो गई तुम्हें पता ही नहीं चला क्योंकि तुम अपना वो समय अपने काम को, अपनी कंपनी को दे चुकी थी। मैं ये नहीं कह रही कि तुमने कुछ गलत किया, तुमने बहुत अच्छा काम किया था इसीलिए तो तुम आज इस मुकाम पर हो पर बेटा अगर उस काम के साथ–साथ तुमने अक्कू के बचपन को भी जिया होता तो शायद हमारी अक्कू का व्यवहार तुम्हारे प्रति ऐसा कभी नहीं होता और शायद आज ये नौबत भी नहीं आती।" कहकर दामिनी जी अपने कमरे की तरफ चली गईं और गरिमा जी के दिमाग में कई सवाल छोड़ गईं।

गरिमा जी वहीं खड़ी सोचने लगीं, "सही तो कहा मां ने, मैंने एक परफेक्ट बिजनेस वुमन बनने की ज़िद में अपने अंदर की उस मां को तो मार ही डाला जिस मां की मेरी अक्कू को ज़रूरत थी। मैंने क्यों किया ऐसा? आज सच में मुझे मेरी उस छोटी अक्कू की बहुत याद आ रही है।" कहते–कहते गरिमा जी की आंखों में नमी आ गई।

क्रमशः