Wo Maya he - 57 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 57

(57)

विशाल बद्रीनाथ से लिपट कर बच्चे की तरह रो रहा था। वह पहले ही विशाल का बड़बड़ाना सुनकर परेशान थे। अब उसके इस तरह रोने से उन्हें घबराहट हो रही थी। वह विशाल के सर पर हाथ फेर रहे थे। उसे चुप हो जाने के लिए कह रहे थे। बहुत मुश्किल से विशाल कुछ शांत हुआ। बद्रीनाथ ने कमरे में रखे जग से उसे पानी पिलाया। जब वह पूरी तरह शांत हो गया तो उन्होंने पूछा,

"इस तरह क्यों रो रहे थे ?"

उनके इस सवाल पर विशाल ने परेशान होकर उनकी तरफ देखा।‌ बद्रीनाथ ने कहा,

"तुम पुष्कर की हत्या के बारे में कुछ बड़बड़ा रहे थे। बात क्या है ? तुम किसी कौशल का नाम ले रहे थे। वह कौन है ?"

विशाल बद्रीनाथ की तरफ देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बहुत घबराया हुआ हो। कुछ कहना चाहता हो पर कह ना पा रहा हो। उसकी आँखों में डर दिखाई पड़ रहा था। बद्रीनाथ और अधिक घबरा गए। उन्हें कुछ देर पहले उमा द्वारा जताई गई आशंका की याद आई। उन्होंने कहा,

"विशाल हमें बहुत घबराहट हो रही है। जो भी है खुलकर बताओ।"

विशाल बताने जा रहा था तभी उमा कमरे में आईं। वह घबराई हुई थीं। उन्होंने कहा,

"विशाल के पापा....नीचे पुलिस आई है। वह इंस्पेक्टर साथ है जो उस दिन आया था।"

यह सुनते ही विशाल रोते हुए बोला,

"पापा..... हमने पुष्कर की हत्या नहीं कराई है। उसे माया ने मारा है। हमें बचा लीजिए।"

बद्रीनाथ कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि यह हो क्या रहा है। उन्होंने उमा से कहा,

"तुम विशाल को संभालो। ना जाने क्या बड़बड़ा रहा है। हम नीचे जाकर बात करते हैं।"

उन्होंने विशाल से कहा,

"हम जब तक ऊपर ना आएं तुम यहीं रहना।"

बद्रीनाथ जाते हुए दरवाज़ा बाहर से बंद कर गए। उमा हैरत से विशाल का डरा हुआ चेहरा देख रही थीं। वह कुछ पूछतीं तब तक विशाल उनके सीने से लगकर रोने लगा।

 

बद्रीनाथ नीचे आए। पुलिस बैठक में थी। किशोरी भी वहीं थीं। वह इंस्पेक्टर हरीश पर चिल्ला रही थीं,

"यह क्या बेकार की बात है ? हमने पहले ही कहा था कि जो हुआ है वह माया का किया हुआ है। तुम उसे नहीं पकड़ सकते। अब विशाल पर बेवजह आरोप लगा रहे हो।"

बद्रीनाथ अंदर दाखिल हुए तो उनसे बोलीं,

"यह इंस्पेक्टर फालतू की बात कर रहा है।"

बद्रीनाथ ने उन्हें इशारे से चुप कराया। उसके बाद बोले,

"जिज्जी आप अंदर जाइए। हम बात करते हैं।"

किशोरी ने इंस्पेक्टर हरीश को घूरकर देखा। उसके बाद चली गईं। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,

"बद्रीनाथ जी हम विशाल को गिरफ्तार करने आए हैं।"

"किस बात के लिए ?"

"उसने पुष्कर और दिशा के पीछे किसी को भेजा था। कौशल नाम है उसका। वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया है। उसने यह भी कुबूल किया है कि विशाल ने उसे पैसे दिए थे। आप विशाल को बाहर लेकर आइए। नहीं तो मुझे अंदर जाकर उसे गिरफ्तार करना पड़ेगा।"

बद्रीनाथ ने विशाल के मुंह से कौशल का नाम सुना था। उसकी घबराहट बता रही थी कि कोई गहरी बात है। वह जानते थे कि पुलिस के पास विशाल को गिरफ्तार करने के सबूत होंगे। उन्होंने कहा,

"आप क्या कह रहे हैं हम नहीं जानते। इस समय विशाल की तबीयत ठीक नहीं है।"

"बद्रीनाथ जी मेरे पास विशाल को गिरफ्तार करने के पर्याप्त सबूत हैं। इसलिए आप सहयोग करें।"

इंस्पेक्टर हरीश ने यह बात सख्त लहज़े में कही थी। बद्रीनाथ ने कहा,

"आप ठहरिए। हम विशाल को लेकर आते हैं।"

वह विशाल को लाने के लिए चले गए।

विशाल रो रहा था। वही सब बड़बड़ा रहा था जो बद्रीनाथ से कह रहा था। उमा ने घबरा कर उसे अपने सीने में भींच रखा था। उन्हें लग रहा था कि यह सब माया का किया हुआ है। उसने विशाल की बुद्धि भ्रष्ट कर दी है। उसके कारण ही पुलिस आई है। वह विशाल को तसल्ली दे रही थीं कि वह घबराए नहीं। आज तुम्हारे पापा बाबा कालूराम से मिलने जाएंगे। वह कोई ना कोई उपाय ज़रूर करेंगे।

कमरे का दरवाज़ा खुला। बद्रीनाथ अंदर आए। उमा ने कहा,

"पुलिसवाले चले गए ?"

बद्रीनाथ ने कहा,

"उमा.....विशाल को पुलिस के साथ जाना होगा।"

यह सुनकर उमा ने कहा,

"क्यों विशाल ने किया क्या है ?"

"कुछ तो किया है उमा। इसकी घबराहट बता रही है कि कुछ गलत है।"

उमा ने विशाल को और ज़ोर से भींचते हुए कहा,

"हम अपने बच्चे को कहीं नहीं जाने देंगे।"

"उमा बेकार की ज़िद मत करो। नहीं तो इंस्पेक्टर ऊपर आकर गिरफ्तार कर लेगा।"

"ऐसे कैसे गिरफ्तार कर लेगा वह नासपीटा।"

पीछे से किशोरी की आवाज़ आई। वह हांफ रही थीं। बद्रीनाथ ने कहा,

"आप ऊपर क्यों चढ़ीं जिज्जी ?"

"क्या करते हम ? हमारे बच्चे को बचाने के लिए आना पड़ा। तुम उसे पुलिस को देने की बात कर रहे हो।"

बद्रीनाथ ने खीझकर कहा,

"हमारी भी औलाद है। अपनी खुशी से नहीं सौंप रहे हैं पुलिस को। इंस्पेक्टर हरीश ऐसे ही मुंह उठाकर नहीं आ गया है। विशाल खुद कौशल का नाम ले रहा था। उस कौशल को पुलिस ने पकड़ लिया है। इसने उसे पैसे दिए थे। यह बात भी उसने कुबूल की है।"

बद्रीनाथ ने आगे बढ़कर विशाल को उमा से अलग किया। उसका कंधा पकड़ कर बोले,

"इस तरह रोने से पुलिस से छूट नहीं पाओगे। चुपचाप पुलिस के साथ जाओ। जो सच है वह बताओ।"

वह विशाल को नीचे ले जाने लगे। उमा और किशोरी ने रोकने का प्रयास किया पर सफल नहीं हो पाईं। इस सबके चक्कर में किशोरी ज़ोर ज़ोर से हांफने लगीं। वह छत पर पड़ी कुर्सी पर बैठ गईं। उमा जमीन में बैठकर रोने लगीं।

बद्रीनाथ ने विशाल को इंस्पेक्टर हरीश के हवाले करते हुए कहा,

"हमें नहीं पता है कि इसने किया क्या है ? आपको जो पता चले हमें भी बताइएगा।"

उन्होंने विशाल से कहा,

"जो सच है वही बताना। तुम निर्दोष हो तो तुम्हें कुछ नहीं होगा।"

विशाल ने कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप इंस्पेक्टर हरीश के साथ चला गया।

इंस्पेक्टर हरीश के जाने के बाद बद्रीनाथ तखत पर बैठ गए। उनके भीतर भावनाओं का आवेग था। उसे संभाल पाना मुश्किल था। वह रोने लगे। विशाल को पुलिस के हवाले करते हुए उन्हें तकलीफ हुई थी। पर वह जानते थे कि इसके अलावा और कोई चारा नहीं है। उनका गिरफ्तारी का विरोध करना किसी काम का नहीं था। इसलिए उन्होंने विशाल को लाकर इंस्पेक्टर हरीश के सामने खड़ा कर दिया था। अब जब उनके सामने पुलिस उसे ले गई तो उनके लिए खुद पर नियंत्रण रख पाना कठिन हो गया।

रो लेने के बाद जब उनका दिल कुछ हल्का हुआ तो दिमाग ने काम करना शुरू किया। वह सोचने लगे कि उन्हें तो यह भी नहीं पता कि पुलिस ने किस इल्ज़ाम में विशाल को गिरफ्तार किया है। इंस्पेक्टर हरीश का कहना था कि उसने कौशल नाम के आदमी को पुष्कर के पीछे भेजा था। किस मकसद से यह पुलिस ने नहीं बताया। विशाल ने कौशल को पैसे दिए थे। पर यह सब पुष्कर की हत्या से कैसे जुड़ता है पुलिस ने नहीं बताया था।

विशाल जिस तरह से घबराया हुआ था। नींद में बड़बड़ा रहा था उससे इतना तो पक्का था कि वह पूरी तरह से निर्दोष नहीं है। पर पुष्कर की हत्या में उसका हाथ नहीं हो सकता है इस बात का उन्हें पूरा भरोसा था। वह सोच रहे थे कि अब उन्हें विशाल को बचाने के लिए कुछ करना होगा। सबसे पहले तो उसे बेल दिलाने की ज़रूरत थी। उसके लिए एक वकील चाहिए था। वह सोचने लगे कि क्या करें। उन्हें याद आया कि उनके साले मनोहर के साढ़ू के फुफेरे भाई वकील हैं। वह उठे अपना मोबाइल लेकर मनोहर को फोन करके सारी बात बताई।

मनोहर से बात करने के बाद उन्हें किशोरी और उमा की सुध आई। वह आंगन में आए तो देखा कि उमा किशोरी को पकड़ कर धीरे धीरे नीचे ला रही हैं। वह भागकर गए। किशोरी को सहारा देकर नीचे लाए। उन्हें आंगन में पड़ी चारपाई पर बैठा दिया। किशोरी अभी भी हांफ रही थीं। उमा रसोई से पानी लेकर आईं। किशोरी को पानी पिलाया। उसके बाद सहारा देकर चारपाई पर लिटा दिया। बद्रीनाथ की तरफ मुंह करके बोलीं,

"हमारा डर गलत नहीं था। देखा आपने....एक उम्मीद जागी थी कि शायद इस घर का भला हो। लेकिन माया ने अपना काम कर दिया। विशाल को पुलिस ले गई। अब ना जाने क्या होगा ?"

उमा फिर रोने लगीं। किशोरी ने कहा,

"बद्री.... तुमने पुलिस को रोका क्यों नहीं ?"

"जिज्जी हमारे रोकने से कुछ ना होता। कोई बात तो है। हम जब विशाल के कमरे में गए थे तब वह नींद में बड़बड़ा रहा था। कौशल का नाम ले रहा था जिसे पुलिस ने पकड़ा है।"

उमा ने रोते हुए कहा,

"सब माया का ही किया है। अब ना जाने विशाल का क्या होगा ?"

"हमने मनोहर से बात की है। उसके साढ़ू के फुफेरे भाई जगदीश नारायण वकील हैं। भवानीगंज में ही रहते हैं। उसने कहा है कि उनसे बात करके फोन करता है।"

"हमारी समस्या वकील हल नहीं कर पाएगा। बाबा कालूराम के पास जाइए।"

"उमा बाबा कालूराम माया के श्राप से मुक्त कर सकते हैं। विशाल को बेल नहीं दिला सकते हैं।"

बद्रीनाथ का फोन बजा। मनोहर का फोन था। मनोहर ने कहा कि जगदीश नारायण से बात हो गई है। बद्रीनाथ उससे जाकर मिलें वह मदद कर देगा। मनोहर शाम तक वहाँ पहुँच जाएंगे। बद्रीनाथ जगदीश नारायण से मिलने जाने लगे तो उमा ने कहा,

"अभी तक खाना भी नहीं बना है। आप भूखे जाएंगे।"

"इतना सब होने के बाद भूख रह कहाँ गई है। तुम आराम से बना लेना। हम जाकर जगदीश नारायण से मिलते हैं।"

बद्रीनाथ ने कपड़े बदले और घर से निकल गए।

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