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वो माया है.... - 56



(56)

इंस्पेक्टर हरीश ने कल रात ही केशव द्विवेदी से बात करके पता कर लिया था कि उससे पहले उस मकान का मालिक कौन था। केशव द्विवेदी ने उसका नाम बता दिया था लेकिन बाकी डीटेल देने के लिए कुछ समय मांगा था। इंस्पेक्टर हरीश अभी कुछ समय पहले ही भवानीगंज पुलिस स्टेशन पहुँचा था। वह और सुमेर सिंह केस के बारे में बात कर रहे थे। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सुमेर अभी तक उस आदमी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला।"
"मिल जाएगा हरीश.....आज‌ तुम्हें आए तीसरा दिन ही हुआ है। भवानीगंज कस्बा है पर इतना छोटा नहीं है। मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही कोई अच्छी खबर मिलेगी।"
"ऐसा ही हो। अच्छी खबर लेकर मैं भी साइमन सर के पास जाऊँ।"
"ज़रूर होगा...."
सुमेर सिंह ने यह बात कही ठीक उसी समय उसके फोन की घंटी बज उठी। सुमेर सिंह ने फोन उठाया। बात करते हुए सुमेर सिंह के चेहरे पर एक चमक आ गई। उसने यह कहकर फोन रख दिया कि तुम वहीं रहो।‌ हम लोग फौरन निकल रहे हैं। उसके चेहरे की खुशी देखकर इंस्पेक्टर हरीश के मन में एक उम्मीद जागी। फोन काटकर सुमेर सिंह ने कहा,
"लगता है वह आदमी मिल गया। हमें फौरन निकलना है।"
सुमेर सिंह ने इंस्पेक्टर हरीश के साथ एक कांस्टेबल को भी ले लिया। सब लोग फौरन पुलिस स्टेशन से निकल गए। सुमेर सिंह के मोबाइल पर कांस्टेबल अरुण ने उस जगह की लोकेशन भेज दी थी।

सुमेर सिंह को फोन करने के बाद कांस्टेबल अरुण फिर से उसी खिड़की के पास गया। उसने छेद से अंदर झांका। उसे फिर पीठ ही दिखाई पड़ी। वह बातें सुनने की कोशिश करने लगा। अंदर कौशल और उसका साथी बात कर रहे थे कि यहाँ से कैसे निकला जाए। कौशल अपने साथी से कह रहा था कि एक गाड़ी का इंतज़ाम करे। आज रात को वह उस गाड़ी में बैठकर मेरठ के लिए निकल जाएगा। वहाँ प्लास्टर कटने तक रुकेगा। उसके बाद पंजाब चला जाएगा।
कांस्टेबल अरुण ने सोचा कि यहाँ रहने से अच्छा है कि वह सड़क के पास जाकर खड़ा हो जहाँ उसकी टीम आएगी। वह सावधानी से चलते हुए उस जगह पहुँच गया। वह अपनी टीम के आने की राह देखने लगा। कुछ देर बाद सुमेर सिंह ने उसे फोन किया और बताया कि उनकी टीम मोड़ तक पहुँच गई है। अरुण ने कहा कि मोड़ मुड़कर सीधे आ जाएं। वह सड़क किनारे खड़ा इंतज़ार कर रहा है।
सुमेर सिंह अपनी टीम के साथ पहुँच‌ गया। अरुण उन्हें लेकर मंदिर के पिछले हिस्से की तरफ चल दिया। उसने बताया कि विशाल जिस तरह बात कर रहा था उससे लगता है कि यह वही आदमी है जिसकी उन्हें तलाश है। वह उसकी शक्ल नहीं देख पाया है। लेकिन उस आदमी के पैर में प्लास्टर चढ़ा है।
कमरे के पास पहुँच कर सुमेर सिंह ने सबको सावधान रहने के लिए कहा। उसके बाद आगे बढ़कर दरवाज़े पर दस्तक दी।

कौशल और उसका साथी दस्तक सुनकर परेशान हो गए। कौशल ने कहा,
"पवन मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। लगता है विशाल का शक सही साबित हुआ।"
पवन ने उसे इशारे से शांत रहने को कहा। वह दरवाज़े के पास गया। कान लगाकर बाहर की आहट सुनने की कोशिश करने लगा। उसी समय सुमेर सिंह ने फिर दरवाज़ा खटखटाया।‌ पवन ने परेशानी से कौशल की तरफ देखा। बाहर से आवाज़ आई,
"पुलिस है.... दरवाज़ा खोलो नहीं तो तोड़कर अंदर आ जाएंगे।"
कौशल और पवन घबराए हुए एक दूसरे को देख रहे थे। वहाँ से निकलने का कोई और रास्ता भी नहीं था। एकबार फिर सुमेर सिंह ने चेतावनी दी,
"दरवाज़ा खोल दो.... नहीं तो तोड़कर अंदर आ जाएंगे।"
कोई चारा ना देखकर कौशल ने इशारे से दरवाज़ा खोल देने को कहा। पवन ने दरवाज़ा खोल दिया। सुमेर सिंह के साथ उनकी टीम अंदर आ गई। कौशल एक तखत पर पैर फैलाए बैठा था। उसकी पीठ खिड़की की तरफ थी। उसने शांति से कहा,
"आप लोग यहाँ क्यों आए हैं ?"
सुमेर सिंह ने कहा,
"पुष्कर की हत्या से तुम्हारा संबंध है।"
कौशल ने पुष्कर को पहचानने से इंकार किया तो इंस्पेक्टर हरीश ने अपने मोबाइल पर तस्वीर दिखाते हुए कहा,
"यह उसी लकी ढाबे के सीसीटीवी कैमरा फुटेज से निकाली गई है जहाँ पुष्कर की हत्या की गईं थी।"
कौशल ने सफाई दी,
"इसका क्या मतलब हुआ सर। ढाबे पर ना जाने कितने लोग जाते हैं। मैं किसी पुष्कर को नहीं जानता हूँ। ना ही किसी हत्या से मेरा संबंध है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"तुम पुष्कर और उसकी पत्नी दिशा को घूर रहे थे। ढाबे पर काम करने वाले एक लड़के चेतन ने तुम्हें हत्या के बाद किसी से उस बारे में बात करते सुना था। तुम पुष्कर के भाई से बात कर रहे थे।‌"
"मैं ना तो पुष्कर को जानता हूँ और ना ही उसके बड़े भाई विशाल को।"
इंस्पेक्टर हरीश ने मुस्कुरा कर कहा,
"मैंने तो पुष्कर के भाई का ना ही नाम लिया और ना ही यह बताया कि वह बड़ा है। लेकिन तुमको तो पता है।"
कांस्टेबल अरुण ने कहा,
"विशाल तुमसे मिलने यहाँ आया था। मैं उसका पीछा कर रहा था। मैंने तुम दोनों को बातें करते हुए सुना है।"
कौशल अपना सर झुकाए चुपचाप बैठा था।
कमरा बहुत बड़ा नहीं था। उससे लगा हुआ वॉशरूम था। साथ में आया दूसरा कांस्टेबल कमरे में चेक कर रहा था कि कुछ है तो नहीं। उसे कमरे की तांड़ पर एक बैग दिखा। बैग उतारा गया तो उसमें पैसे थे। कौशल और उसके साथी पवन को गिरफ्तार कर लिया गया।

घर के आंगन में बद्रीनाथ, किशोरी और उमा बैठे थे। बद्रीनाथ के चेहरे पर खुशी झलक रही थी। किशोरी भी खुश थीं। सिर्फ उमा के चेहरे पर चिंता थी। उन्हें चिंतित देखकर किशोरी ने कहा,
"अब तुम किस बात के लिए चिंता में हो। अब तो सारी चिंता मिटने का समय आ गया है। आज शाम शिवराज ने बाबा कालूराम से मिलाने के लिए बुलाया है। बद्री और विशाल विशाल जाने वाले हैं। अब बाबा कालूराम हम पर कृपा करेंगे और सब ठीक हो जाएगा।"
बद्रीनाथ ने भी उमा को समझाया कि अब बेवजह परेशान मत हो। लेकिन उमा की परेशानी का कारण था। उन्हें लग रहा था कि जब भी घर में खुशियां आने वाली होती हैं माया सक्रिय हो जाती है। एकबार फिर सब ठीक होने की उम्मीद जागी है। कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उन्होंने अपने मन की बात बताते हुए कहा,
"आप दोनों लोग सही कह रहे हैंं। लेकिन हम क्या करें ? इतने सालों से कोई सुख टिका नहीं है इस घर में। जब भी कोई उम्मीद होती है तो मन खुश होने की जगह आशंका से भर जाता है। हमको लग रहा है कि आप लोग बाबा कालूराम से मिलने जाएं उससे पहले ही माया कुछ कर ना दे।"
बद्रीनाथ ने समझाते हुए कहा,
"अब तक बहुत बुरा हो चुका है। अब जो होगा अच्छा ही होगा। तुम अब अपना मन पक्का कर लो।"
यह कहकर वह उठकर खड़े हो गए उन्होंने कहा,
"ऊपर जाकर ज़रा विशाल से बात करते हैं। समझाते हैं कि अब नई शुरुआत की तैयारी करे।"
किशोरी ने कहा,
"बद्री उसे समझाओ कि बीता हुआ भूलकर आगे देखे। इस घर की खुशियां अब उस पर निर्भर हैं।"
बद्रीनाथ सीढ़ियों की तरफ बढ़ रहे थे। कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई वह उधर बढ़ गए। दरवाज़ा खोला तो पड़ोस के तिवारी थे। बद्रीनाथ दालान में उनके साथ बात करने लगे।

कौशल से मिलने के बाद विशाल जब अपने घर पहुँचा था तो बद्रीनाथ ने उसे बताया कि शिवराज ने उन्हें फोन करके कहा है कि आज‌ शाम वह उन्हें बाबा कालूराम से मिलाने ले जाएंगे। उन्होंने विशाल से कहा कि वह भी उनके साथ चले। विशाल उस समय कौशल को लेकर परेशान था।‌ उस समय वह किसी और बात में खुद को उलझाना नहीं चाहता था। इसलिए उसने कहा कि वह शाम को उनके साथ चला जाएगा। यह कहकर वह ऊपर अपने कमरे में आ गया था।
विशाल का मन बहुत घबरा रहा था। बार बार उसे अखबार में पढ़ी खबर की याद आ रही थी। अपने मन को शांत करने के लिए वह आँखें बंद करके लेट गया। दिमागी उलझन से उसका सर भारी हो रहा था। वह एक तरह की बेहोशी महसूस कर रहा था। उस स्थिति में उसने सपना देखा कि पुलिस ने कौशल को पकड़ लिया है। कौशल ने उसका नाम पुलिस को बता दिया है। पुलिस उसे गिरफ्तार करके ले जा रही है। हर कोई उसे पुष्कर की हत्या का ज़िम्मेदार ठहरा रहा है। वह समझाने की कोशिश कर रहा है पर कोई मान नहीं रहा है। उसकी मम्मी भी उसे अपने छोटे भाई की हत्या का ज़िम्मेदार ठहरा रही हैं।

तिवारी से बात करके बद्रीनाथ सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आए। वह सोचकर आए थे कि विशाल को कोई नया काम शुरू करने के लिए कहेंगे। खुद भी उसके साथ काम में लग जाएंगे जिससे उसे मदद मिल सके। जब वह विशाल के कमरे के दरवाज़े पर पहुँचे तो उन्हें विशाल की आवाज़ सुनाई पड़ी। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह सपना देखते हुए बड़बड़ा रहा है। उन्होंने ध्यान से सुना। विशाल कह रहा था कि पुष्कर की हत्या में मेरा कोई हाथ नहीं है। मैंने कौशल को भेजा ज़रूप था पर उससे पहले ही वह अपना काम कर गई। मैंने कुछ नहीं किया है।
उसकी बात सुनकर बद्रीनाथ स्तब्ध रह गए। विशाल पुष्कर की हत्या के बारे में बड़बड़ा रहा था।‌ किसी कौशल का नाम ले रहा था। उन्होंने आगे बढ़कर विशाल को झिंझोड़ा। उसने अपनी आँखें खोलीं। इधर उधर देखा। बद्रीनाथ को देखकर रोने लगा।

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