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वो माया है.... - 54



(54)

इंस्पेक्टर हरीश साइमन मरांडी के आदेश पर भवानीगंज पहुँचा।‌ उसने सुमेर सिंह को सारी बातें बताईं। सुमेर सिंह ने कौशल की तस्वीर के साथ कुछ पुलिस वालों को भवानीगंज और उसके आसपास के इलाकों में उसका पता लगाने के लिए भेजा। इसके अलावा कांस्टेबल अरुण वर्मा को विशाल पर नज़र रखने का काम सौंपा।
विशाल की पत्नी कुसुम और बच्चे मोहित की अचानक हुई मौत के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका था। सुमेर सिंह का कहना था कि उन्होंने अपने एक आदमी को उस अस्पताल का पता लगाने के लिए भेजा था जहाँ विशाल के अनुसार उसकी पत्नी और बच्चे को ले जाया गया था। लेकिन उसे वहाँ उस स्थान पर उस नाम का कोई अस्पताल नहीं मिला। वहाँ से कुछ दूर पर एक अस्पताल था जो दस साल पहले ही शुरू हुआ था। जबकी विशाल की पत्नी और बच्चे की मौत का केस बारह साल पुराना है। जिस डॉक्टर का ज़िक्र विशाल ने किया था उस नाम के डॉक्टर को उस इलाके में कोई नहीं जानता है। जो कुछ सामने आया था उसके अनुसार या तो विशाल झूठ बोल रहा था या इतने वर्षों में वह अस्पताल बंद हो गया था। इस बात ने कुसुम और मोहित की मौत को और अधिक रहस्यमई बना दिया था। इंस्पेक्टर हरीश ने साइमन को सारी बात फोन पर बताईं। साइमन ने उससे कहा कि वह अपनी तरफ से जो पता कर सकता है करे। विशाल पर नज़र रखवाए और तस्वीर वाले आदमी का पता करने की कोशिश करे।
इंस्पेक्टर हरीश सारे डीटेल्स के साथ खुद उस जगह पहुँचा जहाँ विशाल का बताया अस्पताल था। वह जगह भवानीगंज पुलिस स्टेशन से कोई पांच किलोमीटर दूर थी। वह जगह बहुत व्यस्त थी। वहाँ बहुत सी दुकानें और कुछ एक संस्थान थे। उसने आसपास के लोगों से मीरा अस्पताल के बारे में पूछना शुरू किया। कोई भी उस अस्पताल के बारे में नहीं बता पा रहा था। इंस्पेक्टर हरीश को पता चला कि यह मार्केट सिर्फ आठ साल पुराना है। इससे पहले यहाँ एक मैदान हुआ करता था। इसलिए कोई भी नहीं बता सकता है कि यहाँ मीरा नाम का अस्पताल था।
इंस्पेक्टर हरीश को ऐसा लग रहा था कि विशाल ने झूठ बोला था। वह भवानीगंज‌ का रहने वाला है। उसे पता होगा कि यहाँ कौन से इलाके हैं जो उस हादसे के बाद ही डेवलप हुए हैं। उसने जानबूझकर इस इलाके के बारे में बताया। क्योंकी ना मीरा अस्पताल नामक कोई जगह थी और ना ही कोई सही तरह से बता सकता था। लेकिन इंस्पेक्टर हरीश एकदम से किसी निर्णय पर नहीं पहुँचना चाहता था। उसने सोचा कुछ देर और पूछताछ करता है। वह दुकानों से थोड़ा आगे बढ़ गया। कुछ आगे जाने पर उसे एक दुकान दिखाई पड़ी। उस पर लिखा था 'मातकृपा होटल'। इंस्पेक्टर हरीश चाय पीने के इरादे से वहाँ चला गया।
होटल एक कोचिंग इंस्टीट्यूट के सामने था। कोचिंग सेंटर में लगे बोर्ड के अनुसार वहाँ बोर्ड परीक्षाओं से लेकर इंजीनियरिंग तक की तैयारी कराई जाती थी। इंस्पेक्टर हरीश होटल की एक बेंच पर बैठ गया। उसने अपने लिए एक चाय मंगाई। वह चाय पी रहा था तभी कोचिंग से कई सारे बच्चों का एक झुंड निकला। उनमें से कुछ होटल में आकर बैठ गए। अचानक होटल में बहुत हलचल हो गई। बच्चे आपस में बातचीत कर रहे थे। वेटर को बुला रहे थे। दो वेटर थे जो इधर उधर भाग रहे थे। यह सब देखते हुए इंस्पेक्टर हरीश अपनी चाय पी रहा था‌। उसे अपने कॉलेज के दिन याद आ रहे थे। कॉलेज से निकल कर वह और उसके कुछ दोस्त इसी तरह एक चाय की दुकान पर जाकर बैठते थे। आज इन बच्चों में वह खुद को और अपने बिछड़े हुए दोस्तों को खोज रहा था।
चाय खत्म होने के बाद उसने पैसे देने के लिए एक वेटर को बुलाया। पैसे देते हुए उसने कहा,
"कोचिंग के कारण यहाँ बहुत लोग आते हैं।"
"हाँ साहब.... कोचिंग भी है और कुछ ही दूरी पर शारदा अस्पताल भी है।"
सुमेर सिंह ने शारदा अस्पताल के बारे में बताया था। वह कुछ साल पहले ही खुला था। चलते हुए इंस्पेक्टर हरीश के मन में ना जाने क्या आया कि उसने वेटर से पूछा,
"यह होटल कितना पुराना है ?"
"साहब हम तो छह महीने से ही काम कर रहे हैं। पर हमारे मालिक का कहना है कि पंद्रह साल हो गए होंगे।"
वेटर की बात सुनकर इंस्पेक्टर हरीश के मन में आया कि हो सकता है कि इस होटल के मालिक को मीरा अस्पताल के बारे में पता हो। उसने वेटर से कहा कि वह उसके मालिक से मिलना चाहता है। वेटर पहले झिझका। लेकिन इंस्पेक्टर हरीश के समझाने पर कि कुछ पूछना है वह उसे अपने मालिक के पास ले गया। होटल के मालिक का नाम देवीप्रसाद था। उसकी उम्र पचास के आसपास थी। इंस्पेक्टर हरीश को देखकर देवीप्रसाद ने कहा,
"क्या बात है साहब ? लड़के से कोई गलती हो गई।"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे तसल्ली देते हुए कहा,
"ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल मुझे आपसे कुछ पूछना था।"
"कहिए हम क्या मदद कर सकते हैं आपकी ?"
"आपका यह होटल कब से चल रहा है ?"
देवीप्रसाद ने सोचते हुए कहा,
"साहब हमने यह होटल 2008 की चैत्र नवरात्रि में शुरू किया था। पंद्रह साल हो गए।"
"अच्छा चलता है आपका होटल।"
"साहब इज्जत से दो बखत खा लेते हैं इतना हो जाता है। आप बताइए कि यह सब क्यों पूछ रहे हैं ?"
इंस्पेक्टर हरीश को लगा कि वह बेवजह मुद्दे से भटक गया। उसने कहा,
"मैंने सुना था कि कुछ साल पहले यहाँ आसपास मीरा अस्पताल था। पर अब तो है नहीं।"
देवीप्रसाद ने उसे ध्यान से देखा। उसके बाद बोला,
"कोई खास बात है साहब।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"हाँ एक बारह साल पुराने केस की पड़ताल में उसका नाम आया था। इसलिए यहाँ पूछताछ के लिए आया था। पर कोई कुछ बता नहीं पा रहा है।"
देवीप्रसाद ने कहा,
"यहाँ एक अस्पताल था साहब। उसका नाम मीरा नहीं समीरा नर्सिंग होम था। जब आप बता रहे हैं लगभग तभी बंद हुआ था।"
इंस्पेक्टर हरीश सोच में पड़ गया। विशाल ने उसे मीरा अस्पताल ही बताया था। लेकिन देवीप्रसाद समीरा नर्सिंग होम कह रहा था। उसका कहना था कि लगभग बारह साल पहले ही वह बंद हुआ था। उसने देवीप्रसाद से कहा,
"कहाँ था वह अस्पताल ?"
"सामने जो कोचिंग सेंटर है उसी में चलता था वह समीरा नर्सिंग होम। छोटा सा था। पर चलता खूब था।"
"तो फिर बंद क्यों हो गया ?"
"अस्पताल के डॉक्टर के बारे में कुछ गलत बातें सामने आ रही थीं। एक दिन सुनने में आया कि वह कहीं भाग गया। उसके बाद नर्सिंग होम बंद हो गया।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कुछ सोचकर कहा,
"डॉक्टर के बारे में किस तरह की गलत बातें सामने आ रही थीं ?"
देवीप्रसाद ने इधर उधर देखा। उसके बाद धीरे से बोला,
"उसके नर्सिंग होम में दो लोगों की मौत हो गई थी। उनके परिवार वालों ने लापरवाही का इल्ज़ाम लगाया था। बहुत बवाल हुआ था। इसके अलावा...."
यह कहकर देवीप्रसाद चुप हो गया। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"जो भी है साफ साफ बताइए।"
"साहब उस डॉक्टर पर नर्सिंग होम की एक नर्स ने गलत काम करने का इल्जाम लगाया था। उसके बाद आसपास खूब बदनामी‌ हो गई थी उसकी।"
"नाम क्या था उस डॉक्टर का ?"
"डॉक्टर का नाम आकाश कुमार था।"
देवीप्रसाद ने सोचने के लिए थोड़ा सा भी समय नहीं लिया। उसने वही नाम लिया था जो विशाल ने बताया था। इंस्पेक्टर हरीश सोच रहा था कि डॉक्टर का नाम तो ठीक है। पर अस्पताल का नाम अलग‌ है। उसने कहा,
"आपको सही तरह से याद है कि उस अस्पताल का नाम समीरा नर्सिंग होम था।"
"साहब अच्छी तरह से याद है। वह नर्सिंग होम हमारे होटल से पहले खुला था। उसके कारण ही हमने उसके सामने यह होटल खोला था। नर्सिंग होम में आने वाले लोगों की वजह से हमारा होटल अच्छा चलता था। पर फिर नर्सिंग होम बंद हो गया। कुछ दिन धंधा थोड़ा मंदा रहा। लेकिन तब तक इस जगह और बहुत चीज़ें खुलने लगी थीं। फिर कुछ समय बाद शारदा अस्पताल खुला। इस मकान में यह कोचिंग खुल गई। सब ठीक हो गया।"
इंस्पेक्टर हरीश ने सोचा कि सिर्फ अस्पताल के नाम के अलावा बाकी चीज़ें वही हैं जो विशाल ने बताई थीं। वह सोच रहा था कि हो सकता है कि विशाल को नाम याद रखने में कुछ भूल हो गई हो। उसने कहा,
"क्या आप बता सकते हैं कि डॉ. आकाश अचानक कहाँ गायब हो गया था ?"
"हमको इस बारे में कुछ नहीं पता।"
"इस मकान का मालिक कौन है ?"
"वह भी नहीं जानते हैं। नर्सिंग होम बंद होने के कुछ दिनों के बाद इस मकान का मालिक आया और यहाँ थोड़ी बहुत मरम्मत और पुताई करा कर मकान किसी को बेंच गया। कुछ दिन नया मालिक इसमें रहा। फिर वह भी चला गया। सुना मकान फिर बिक गया। उसके कुछ दिनों बाद यह कोचिंग खुल गई। तबसे चल रही है। अब यह किसका मकान है हमें नहीं पता।"
इंस्पेक्टर हरीश को लगा कि अब और कुछ पूछने की ज़रूरत‌ नहीं है। उसने कहा,
"आपसे बहुत अच्छी जानकारी मिली। बहुत धन्यवाद।"
यह कहकर इंस्पेक्टर हरीश चलने को हुआ तो देवीप्रसाद ने पूछा,
"कौन सा पुराना केस है जिसके बारे में आप पूछताछ कर रहे हैं ?"
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे कुसुम और मोहित के केस के बारे में बताकर कहा,
"तुम्हें कुछ मालूम है उस केस के बारे में ?"
"हमें तो कुछ नहीं पता। वैसे भी आप कह रहे हैं कि देर रात का मामला था। हम तो अपना होटल ग्यारह बजे बंद कर देते हैं। शुरू से ही ऐसा कर रहे हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश ने एकबार फिर देवीप्रसाद का धन्यवाद किया और वहाँ से चला गया।

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