तू जाने ना... - 4 Priyanca N द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तू जाने ना... - 4

4. रिधिका से हुए सब इंप्रेस



अद्वैत की कार सिंघानिया मेंशन में आकर रुक गई। अहाना का हाथ थामे रिधिका भी कार से उतर गई थी। चारों जैसे ही घर के अंदर जाने लगे तभी किसी ने अपनी तेज़ और भारी आवाज़ में उन्हें रोक लिया।

जज साहब ने कहा... कहां से आ रही है ये सवारी ?

जज साहब की आवाज़ सुन अद्वैत और क्रियांश के चेहरे कि मुस्कुराहट गायब हो गई। वो दोनों जानते थे जज साहब का ये सवाल उन दोनों के लिए ही था। दोनों ने एक दूसरे को देखा।

जज साहब ने दोनों को अपनी कड़ी नज़र से घूरते हुए कहना शुरू किया... इतने बड़े एग्जाम से नाकामयाब होके लौटे हैं आप दोनों कम से कम एक दिन तो शर्म रखनी चाहिए थी। घर बैठ कर कुछ अफ़सोस करना चाहिए था। लेकिन नहीं आप दोनों के मनोरंजन और मौज मस्ती में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। आप दोनों की इन्हीं हरकतों के वजह से आपने पढ़ाई पर फोकस नहीं किया टाइम वेस्ट किया और इसका रिज़ल्ट सामने है।

अहाना और रिधिका दोनों चुपचाप ये सब सुन रहे थे। रिधिका की नज़र क्रियांश पर गई और वो समझ गई कि अब क्रियांश के चेहरे से ये मुकुराहट जाने वाली है और उसका मूड बुरी तरह ख़राब होने वाला है।

उसने क्रियांश का बचाव करते हुए कहा... umm अंकल जी.. इस बार नहीं हुआ तो क्या नेक्स्ट अटेंप्ट में ज़रूर क्वालीफाई कर लेंगे। मैंने बहुत सारे लोगों को देखा है जो फर्स्ट या सेकंड अटेम्प्ट में एग्जाम क्वालीफाई नहीं कर पाते वो नेक्स्ट अटेम्प्ट में कर लेते हैं। ummn ये दोनों भी कर लेंगे और ऐसे बीच में बोलने के लिए सारी अंकल जी।

क्रियांश ने रिधिका को शुक्रिया के भाव से देखा वो समझ गया था रिधिका उन दोनों कि हेल्प कर रही है। जज साहब का भी ध्यान अब रिधिका की तरफ़ गया। जज साहब को देख रिधिका ने झट से कहा... नमस्ते अंकल जी... हम रिधिका हैं... रिधिका राजपूत।

अब अहाना ने भी कहा... पापा ये मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं और सबसे बड़ी बात आज के कल्चरल प्रोग्राम में इसने कृष्ण भजन गाया था जिसके लिए इसे फर्स्ट प्राइज मिला और फिर इसे मेरी वजह से चोट लग गई और मैं इसे यहां ले आई।

जज साहब को वो बच्चे बहुत पसंद थे जो इस मॉडर्न टाईम में भी अपने इंडियन कल्चर को नहीं भूलते। अहाना की बात सुनते ही जज साहब रिधिका से बहुत इंप्रेस हो गए। अहाना ने धनंजय जी और बाक़ी सब से रिधिका को मिलवाया।

रिधिका ने धनंजय जी को हाथ जोड़ कर नमस्ते कहा तो उन्होंने गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाते हुए कहा... तुमसे मिलके अच्छा लगा बेटा... अपने बारे में और कुछ बताओ... किस परिवार से हो... तुम्हारे पापा क्या करते हैं ?

क्रियांश एक पल के लिए परेशान हो गया उसने सोचा अगर रिधिका के परिवार में कोई हाई पोस्ट पर नहीं हुआ तो उसे भी उसके परिवार वाले बेकार ही समझेंगे। रिधिका ने धनंजय जी को गौर से देखा क्रियांश बिल्कुल उनके जैसा ही था बिल्कुल उनकी परछाई।

रिधिका ने कहा... हमारी मां साहब दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ कॉलेज में प्रोफ़ेसर थी लेकिन पिछले साल ही किसी वजह से वो हमारे ननिहाल जयपुर चली गई हैं और हमारे पिता.... वो इस दुनिया में नहीं हैं... वो हमारे पैदा होते ही.... इतना कहकर रिधिका चुप हो गई।

क्रियांश रिधिका की आवाज़ में छुपा दर्द महसूस कर सकता था। वो उसके मुस्कान के पीछे का दर्द देख पा रहा था उसकी आंखों में छुपा वो सूनापन क्रियांश को कहीं न कहीं बेचैन कर रहा था। वो रिधिका का दर्द उसका वो सूनापन बांटना चाहता था लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था वो ये कैसे करे। आख़िर उन दोनों के बीच बात करने के लिए कोई टॉपिक भी तो नहीं होता था।

अमृता जी ने रिधिका का सामान अहाना के रूम में रखवा दिया। अगले 2 दिनों के लिए रिधिका अहाना के कमरे में ही रहने वाली थी।

डिनर के टाइम सब डाइनिंग हॉल में आ चुके थे। सब लोग खाने के लिए बैठे थे। रिधिका भी चेयर पर बैठी और उसने एक नैपकिन उठा कर अपने पैरों पर रखा और दूसरा उठा कर गले में फंसाया और छुरी कांटा उठा कर खाने के लिए तैयार हुई। इन सब में वो ये देख ही नहीं पाई की उसे ऐसा करते देख क्रियांश के साथ अद्वैत और अहाना का चेहरा भी उतर गया। वहीं दूसरी तरफ जज साहब और कमीशनर साहब (धनंजय जी) उससे फिर से इंप्रेस हो गए थे।

कमीशनर साहब ने कहा... वैरी गुड रिधिका बेटा... आई एम वेरी इंप्रेस्ड.. मुझे वो लोग बहुत पसंद हैं जो टेबल मैनर्स फ़ॉलो करते हैं।

रिधिका ने कहा... जी अंकल जी वो मां साहब ने हमें बचपन से ही ये सब सिखा दिया था और हमें कहा था कि जब भी कहीं बाहर जाओ तो अपने टेबल मैनर्स ज़रूर फ़ॉलो करो।

इस पर जज साहब ने अपने तीनों बच्चों को देखते हुए कहा... आप तीनों कुछ सीखिए रिधिका से कितने अच्छे से अपने टेबल मैनर्स फॉलो किया है इन्होंने और एक आप तीनों हैं जो हज़ार बार सिखाने के बाद भी सीख नहीं पाए हैं। जब देखो बस जाहिलों कि तरह हाथ से खाने लगते हैं।

तीनों भाई बहन एकटक बस रिधिका को ही देखे जा रहे थे। अहाना तो उसे ऐसे घूर रही थी जैसे पूछ रही हो... ये सब करने की क्या ज़रूरत थी फंसा दिया ना अब हम सबको अब तुम्हारी वजह से रोज़ डांट पड़ेगी।

रिधिका ने उन तीनों की तरफ़ देखा और वो समझ गई कि उससे कुछ गडबड हो गई है। उसने बात संभालते हुए कहा... अ आप सब सच में हाथ से खाते हैं। अरे वाह ये तो बहुत अच्छा है। हम तो कब से चाहते थे हाथ से खाएं लेकिन मां साहब कि वजह से कभी खा ही नहीं पाए वर्ना सच कहूं तो खाने का मज़ा तो हाथ से खाने में ही है।

इतना कहते ही उसने अपने छुरी कांटे को साइड किया झट से गले वाला नैपकिन हटाया और उन तीनों की तरह हाथ से खाने लगी। क्रियांश ने रिधिका के इस अंदाज़ को देखकर उसे मन ही मन दाद दी और मन में ही कहा... हमारे बिना कुछ बोले ही हर बात को संभाल लेती हैं आप और हमें डांट से बचा लेती हैं। कैसे कर लेती हैं आप ये सब ?

जैसे ही दोनों की नज़रें मिली क्रियांश ने पलक झपकाते हुए रिधिका का दिल से शुक्रिया अदा किया। आख़िर आज शाम कई बार रिधिका ने उसे शर्मिंदा होने से बचा लिया था। क्रियांश को देख रिधिका भी धीरे से मुस्कुरा दी। वहीं कमीशनर साहब और जज साहब रिधिका को ऐसा करते देख हैरान थे कि तभी रिधिका ने खाते खाते कहा... वैसे भी अंकल जी ये एटिकेट्स ना अंग्रेज़ों की देन हैं वर्ना हमारे देश में तो प्राचीन समय से सब ज़मीन पर बैठ कर हाथ से ही खाते हैं।

इस पर अमृता जी ने रिधिका का साथ देते हुए कहा... रिधिका बेटा ये तो आपने बिलकुल सही कहा। हम भी बचपन में चप्पल निकाल कर ज़मीन पर बैठ कर हाथ से खाते थे।

ये सुन तीनों भाई बहन को किसी जीते हुए खिलाड़ी जैसा फील हुआ।

सिंघानिया परिवार कुछ बातों में स्ट्रिक्ट एटिकेट्स फॉलो करते हुए मॉडर्न फैमिली थे तो कहीं बिल्कुल रूढ़िवादी परिवार जो अपने पुराने विचारों को अपनाते हुए अपनी सोच को बदलना नहीं चाहते थे। सिंघानिया परिवार में आज पहली बार था जब किसी ने हाथ से खाने कि वकालत कि और जज साहब और कमीशनर साहब उसे चाह कर भी डांट नहीं सकते थे।

डिनर के बाद रिधिका अहाना के रूम में जाने लगी तो क्रियांश का मन हुआ उसे रोक ले। कल के ट्रैफिक जाम से लेकर डिनर तक रिधिका क्रियांश के दिल के बहुत करीब आ गई थी। वो उसे अपनी नज़रों से एक पल के लिए भी ओझल नहीं होने देना चाह रहा था। उसकी ख्वाहिश थी कि वो रिधिका के साथ कुछ देर बैठे और उसकी बातें सुनता रहे। उसकी ये ख्वाहिश पूरी होना इतना भी आसान नहीं था। लेकिन रिधिका से कुछ कहे बिना नींद भी नहीं आने वाली थी।

क्रियांश को एक आइडिया आया उसने अहाना के रूम का गेट नॉक किया इस वक्त रिधिका रूम में अकेली थी उसने उठ कर गेट खोला और क्रियांश को सामने देख घबराते हुए बोली... अ... आ... आप यहां ? आप सोने नहीं गए ? अ अहाना तो यहां नहीं है वो तो अद्वैत जी के पास गई है।

क्रियांश ने रूम में आते हुए कहा... Um मैं बस ये कहने आया था कि वो नीचे मुझे डांट से बचाने के लिए दिल से थैंक यू।

क्रियांश के इतना कहते ही रिधिका के चेहरे का रंग हल्का गुलाबी हो गया।

उसने क्रियांश की आंखों में देखते हुए कहा... उम्म हमने आपको थैंक्यू कहा क्या ? नहीं ना ? तो आपको भी नहीं कहना चाहिए।

इतना कहकर उसने अपनी नज़रें दूसरी तरफ घुमा ली रिधिका के लिए क्रियांश की गहरी आंखों में ज़्यादा देर तक देखना मुश्किल था।

क्रियांश खुल कर मुस्कुरा दिया और खुल कर बोला... वैसे आपकी आवाज़ बहुत अच्छी है एक अलग सा सुकून देती है और सच कहूं तो लता मंगेशकर जी के बाद मैं पहली बार किसी और का फैन हुआ हूं एंड फर्स्ट प्राइज के लिए... congratulation।

क्रियांश को पहली बार यूं मुस्कुराता देख रिधिका ने उसके गाल पर पड़ने वाले डिंपल को देखा और खो सी गई। रिधिका को यूं बेवजह खोया देख क्रियांश ने कहा... umm शायद आपको रेस्ट करना चाहिए। चलता हूं... गुड नाईट। और रिधिका का जवाब सुने बिना ही वहां से चला गया।

रिधिका ने खुद से कहा... हां वो सबसे अलग है लेकिन हमें इन सबके बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। इन सबका अंजाम अच्छा नहीं होता और खुद को समझाते हुए बेड पर लेट सोने की नाकामयाब कोशिश करने लगी।

अगले दिन संडे था... सुबह देर से उठने वाला क्रियांश पता नहीं कैसे आज जल्दी उठ कर अपने टेरेस पर घूमने आ गया। क्रियांश का टेरेस सिंघानिया मेंशन का सबसे सुंदर हिस्सा था। वहां तरह तरह के फ़ूल थे और एक जगह पर टेबल और 2 चेयर्स भी रखी थी जहां से सिंघानिया मेंशन कि लगभग हर जगह दिखाई देती थी। ढेर सारे फूलों से टेरेस पर बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी। क्रियांश अपने टेरेस पर रखी एक चेयर पर बैठ गया तभी उसकी नज़र नीचे लॉन में गई जहां रिधिका घूम रही थी।

रिधिका को वहां देख हैरान क्रियांश ख़ुद को रोक नहीं पाया और झट से उतर कर नीचे लॉन में आ गया।

उसने रिधिका के पास आते हुए थोड़ा हिचकते हुए कहा... उम्म गुड मॉर्निंग...।

क्रियांश को डर था कहीं रिधिका उसे गलत ना समझ ले कि वो जल्दी उठ कर उसके लिए ही लॉन में आया है।

वहीं अचकचाई हुई रिधिका इस बात से परेशान थी कि कहीं क्रियांश को उसकी आंखों को देख कर ये समझ ना आ जाए कि वो पूरी रात सो नहीं पाई।

दो दिल एक दूसरे से छिपते हुए एक दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे। दोनों के बीच खामोशी फिर से बढ़ रही थी और दोनों के बीच कि ख़ामोशी को तोड़ते हुए क्रियांंश ने पूछा... क्या आप रोज़ सुबह इतनी जल्दी जाग जाती हैं ?

रिधिका ने जवाब दिया... हां वो हॉस्टल में जल्दी उठने का रूल है।

क्रियांश ने महसूस किया रिधिका के सामने आते ही वो सब भूल जाता है। उसके पास जैसे शब्द ही नहीं होते रिधिका से बात करने के लिए। वहीं दूसरी तरफ रिधिका लॉन में लगे गुलाब के गमले के पास खड़े गुलाब के फूलों को छूते हुए सोच रही थी... कल ही मिला ये इंसान आख़िर इस तरह हम पर हावी क्यों होता जा रहा है ?

तभी अहाना की आवाज़ आई जो रिधिका को अपने कमरे में ना पाकर उसे ढूंढ रही थी। अहाना कि आवाज़ सुन कर रिधिका जल्दी से अंदर जाने के लिए आगे बढ़ी और तभी उसे एक झटका लगा किसी ने उसका दुपट्टा पकड़ कर खींच लिया। उसका दिल ज़ोर से धड़का और माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थी।

वो घबरा रही थी और सोच रही थी कि आख़िर क्रियांश ने उसका दुपट्टा इस तरह क्यों पकड़ लिया ? क्रियांश को ऐसे उसका दुपट्टा पकड़ कर रोकने कि क्या वजह थी ? अगर किसी ने क्रियांश को इस तरह उसका दुपट्टा पकड़े देख लिया तो क्या सोचेगा ?