गुलदस्ता - 7 Madhavi Marathe द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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गुलदस्ता - 7

 ३६

उँचाई को छुने वाले

बुलंद किले

उनके राजाओं की

कहानी बताते है

बेखौफ दरवाजे

हाँथियों की टकराव के किस्से

बडे गर्व से दिखाते है

कितने राजाओं ने राज्य किया

आए और गए

पर मैं अभेद्य रहा

हर एक राजा का राज्याभिषेक देखा

और उनका पराभव भी

कण कण से लढता रहा

तोफ के गोले झेलता रहा

लेकिन अंतरशत्रू के आगे

मैं हार मानता रहा

अब गए वो राजे रजवाडे

केवल निशानियाँ रह गई

वीर गाथा सुनाने के लिये

अब मुझे स्मारक बनाया गया 

 ................................

 ३७

पहली बार जब लडकी

साडी पहनती है, तब वो

एक अलग मोड पर खडी

है, यह बात ध्यान में आती है

पल्लू इस शब्द का अर्थ भी उसे

मालूम नही है, लेकिन फिर भी

नजाकत से पल्लू संभालती है

साडी का रेखिक गोलाकार, एक एक

कोने का उभार, इस सबकी

जानकारी उस छोटी लडकी में नही होती है

लेकिन फिर भी साडी पहनकर जब वो

दर्पण में देखती है तब उसे

खुदकी सुंदरता के साथ

खुशी से झुमता हुआ आईना

और माँ की चिंताभरी नजर

दोनों को एक साथ दिख जाती है

................................... 

३८

वादियों और घाटियों में

गुजरते वक्त, असीम शांती का

अनुभव होता है

वहाँ मानवी चिन्हों का अभाव

रहता है, केवल निसर्ग के

अस्तित्व से भरा स्पंदन फैला

होता है

हिंस्त्र श्वापदों में भी

दिखाई देती है मानवता,

नाना लता वृक्षों से

बरसने वाली हलकी सी

धुप की छाँव, शाम की नीरवता में

संवेदना का स्पर्श, रात्री की गूढता में

आसमान में चमकते लाखों सितारे

उस घाटियों में शांती का भी एक

तरह का नाद है यह बात

अनुभव होती है

वह नाद सुनते सुनते कभी डर का

आभास होता है, तो कभी

वह नाद आत्मा को स्पर्श करता हुआ

दुसरे जहाँ में पहुंचा देता है

..................................... 

३९

बच्चे जब खेलते है तब उन्हे

देखते रहने का मन करता है

झुठमूठ का हँसना रोना और

बाद में की दिलजमाई

कभी एक टॉफी का बट जाना

या उसके लिये लडाई

कभी बाप की तरह से बरताव तो

कभी माँ का प्यार बाँटना

झुठमूठ के सांसारिक खेल में

बस केवल मजे से अनुभव करना

..................................... 

 ४०

भीगा हुआ पंछी

धीरे से डाली पर बैठ गया

पत्तियों ने अपने हाथों से

उसका बदन पोंछ दिया

सूरज की गरमी से

धरती में पडी दरारे

पवन की गरम हवाओं में

धूल मिट्टी पसारे

पानी की खोज में

नजर इधर उधर दौडे

मृगजल की भुल में

आँखों से आँसू बरसे

पेड खडे आसमान में

धरती की रक्षा करते हुए

सूरज को शांत करते

बादल धरती पर बरसे

इंद्रधनुष्य की खिडकी से

सूरज देखे धरती को

आसमान में नीला रंग

धरती फैलाए हरियाली को

..............................

४१

बजी शहनाई

शादी की घडी समीप आयी

सोला शृंगारसे सजी

नववधू तैयार हुई

मेंहदी से लाल रंगे  

हरी चुडियाँ हाथों में

बिलवर उन पर शोभे

कंगनों की कतार में

गले में सोने की माला

कानों में झुमका लटके

कमर में मेखला ठुमककर

पैंजनों से बात करे

गोरे बाजूं में लहरे

बाजूबंद की नाजुकसी जंजीर

लफ्फेदार सुहागन जोडा

बालों में खिले फुलों के हार

सजधज के दर्पण देखे

वधू मन में लज्जाए

साँवला सलोना वर

वधू को देख मुस्काए

...........................