शाकुनपाॅंखी - 42 - मनुष्य की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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शाकुनपाॅंखी - 42 - मनुष्य की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है

62. मनुष्य की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है

कच्चे बाबा के आश्रम में कुछ नागरिक प्रश्नाकुल बैठे हैं। बाबा और पारिजात रोगी को औषधि देने गए हैं। अभी लौट नहीं पाए। 'जजिया कर लगा दिया गया है। हमारे मंदिर नष्ट किए जा रहे हैं। बालिकाएँ पकड़ ली जाती हैं। ऐसे में......।' एक नागरिक ने समस्या रखी। 'हमें किसी प्रकार तुर्क शासन को उखाड़ फेंकना चाहिए । तभी इससे मुक्ति मिल सकेगी।' दूसरे नागरिक ने अपनी बात रखी। पर उखाड़ फेंकना क्या इतना सरल है?" पहले ने प्रश्न किया। 'शासक बदल जाने पर क्या आस्था भी बदल जाएगी? अपनी इच्छानुसार कोई किसी भी पंथ को स्वीकार कर सके इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए या नहीं? राजा का पंथ सभी ग्रहण कर लें यह आवश्यक तो नहीं है। यह बात अवश्य है कि राजा के प्रभाव में आकर कुछ लोग राजा के पंथ की ओर झुक जाते हैं पर दूसरे पंथ वालों पर अतिरिक्त कर, बलात् धर्म परिवर्तन, दास दासी बनाना, सब कुछ असह्य है।' एक नागरिक ने आक्रोशित होकर कहा। सभी चुपचाप सुनते रहे। 'हमने एक युक्ति निकाली है।' एक गाँव वासी ने कहा । 'कैसी युक्ति?" दूसरे ने पूछ लिया। इस्लाम के अनुयायी वराह से बहुत दूर भागते है, यह बात हम लोगों ने देखी है। अब हमारे घर की महिलाएँ वराह के रक्त से महावर लगाती हैं। वराह का एक बच्चा हम अवश्य पालते हैं। भगवान वराह ने कभी पृथ्वी को बचाया था अब हम उन्हें पालकर अपना कवच बना रहे हैं।' 'तात्कालिक निदान है यह। हमें इसका स्थाई निदान खोजना होगा।' 'क्या है स्थाई निदान ?' एक ने प्रश्न किया।
'हम सब को सजग होना होगा। अपनी आस्था, अपनी संस्कृति के बचाव हेतु सन्नद्ध होना होगा। राजा का पंथ ही हमारा पंथ होगा इस धारणा के विरोध में सभी को खड़ा होना होगा। राजा को बाध्य करना होगा कि वह सभी पंथों के प्रति समभाव रखे। 'बहुत आसान नहीं है यह मार्ग ।'
" पर इसी कठिन मार्ग का अनुसरण करना होगा। एक एक आदमी के मन में यह बात बिठानी होगी। पर हमें अपने में इतना अनुशासन लाना होगा कि हम किसी पंथ के विरुद्ध आग न उगलें। विभिन्न पंथों के लोग साथ रह सकें, हमें ऐसा वातावरण बनाना चाहिए। शक्ति अर्जित करने के लिए गाँव गाँव में अखाड़े विकसित करो। गाँव की सुरक्षा के लिए हम स्वयं खड़े हों।'
'आपका कहना उचित है। हम सभी इस कर्म में लगें।' एक वृद्ध ने हामी भरते हुए कहा। पारिजात और कच्चे बाबा भी आ गए। सभी ने उठकर उन्हें प्रणाम किया। 'कैसे समरसता उगा पाएँगे, जब हम अपने ही भाई बन्दों को अछूत मानते रहेंगे? मंदिरों को उनकी परिधि से दूर रखेंगे।' सभी की दृष्टि कच्चे बाबा पर टिक गई। 'हम शुद्रों, अन्त्यजों को अलग करते रहेंगे, उन्हें सम्मान न देंगे तो उनमें विश्वास कैसे उगा पाएँगे? हमें प्रयास कर अपने समाज की विसंगतियों को दूर करना होगा, बलात् धर्म परिवर्तन के सम्मुख तभी हम खड़े हो सकेंगे। वे दास बनाते है, तो हम भी दास संस्कृति से मुक्त हों । कुरीतियों के खिलाफ पूरे समाज को खड़ा होना होगा।' बाबा ने दृष्टि उठा कर देखा । 'हम तैयार है बाबा' सभी एक स्वर से बोल पड़े। 'समूह बद्ध होकर हम इस संकट का शमन करेंगे।' 'तुर्कों द्वारा इस्लाम कबूल कराने का प्रयास ज़रूर किया जा रहा है। कुछ थोड़े लोग जो भय या आतंक के वशीभूत हो इस्लाम स्वीकार कर रहे हैं, वे भी विभेद के शिकार हैं। तुर्क भारतीय मुसलमानों को महत्त्व नहीं देते। उन्हें किसी प्रकार का प्रशासकीय पद या सुविधा नहीं देते।' पारिजात कहते गए।
'यह आत्मवलोकन का समय है। हमारे किसान पीड़ित हैं । कर देते ही हैं । लूट से भी त्रस्त हैं। अशक्तों पर दबाव बढ़ रहा है, मनुष्य की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है, पर हताश होने की आवश्यकता नहीं है।' कहते हुए बाबा उठ पड़े। उन्हीं के साथ सभी उठे ।