शाकुनपाॅंखी - 28 - रणभेरी बज उठी Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शाकुनपाॅंखी - 28 - रणभेरी बज उठी

39. रणभेरी बज उठी

महाराज को गुप्तचरों ने सूचित किया कि शहाबुद्दीन गोरी की सेनाएं कान्यकुब्ज की ओर बढ़ रही हैं। वे चिन्तित हो उठे। पंडित विद्याधर कान्यकुब्ज छोड़कर चले गए हैं। कान्यकुब्ज की सेनाएँ कर उगाही के लिए सुदूर क्षेत्रों में व्यस्त हैं। इस समय की विडम्बना कहें या कुछ और। चाहमानों से युद्ध करते कान्यकुब्ज की सेना खप गई थी। पुनर्गठन के बाद भी सैन्यबल अभी उस स्थिति में नहीं पहुँच पाया । कान्यकुब्ज सैन्यबल की प्रशंसा के पुल बांध दिए जाते थे पर इस समय ? तराइन युद्ध के बाद अनेक चाहमान सामन्तों ने अपने को स्वतंत्र करने का प्रयास किया। कान्यकुब्ज की सेनाएँ भी अपने राज्य की सीमाओं पर लगीं जिससे वे गहड़वाल राज्य की रक्षा कर सकें। ऐसे में गोरी का अभियान ? वे थोड़े चिन्तित हुए।
शहाबुद्दीन गोरी ने अनुभव किया कि बिना कान्यकुब्ज नरेश को पराजित किए उत्तर भारत में उसकी पैठ नहीं हो सकती । चाहमानों की लूट से उसने ग़ज़नी पाट दिया था। ज़र्रादा सवारों का भी दबाव रहता कि जीविका के लिए अभियान चलाया जाए। भेदियों के तार जुड़े रहते । कान्यकुब्ज के एक एक कोषागार की उसे सूचना दी। जयचन्द्र की सेना में तुरुष्कों की भी अच्छी संख्या थी । अश्वारोही जिसका नमक खाते, अदा करने की भरपूर कोशिश करते ।
सीमा पर लगी कान्यकुब्ज सेना ने गोरी को रोकने की कोशिश की पर सफल नहीं हो सकी। गोरी के साथ पचास हजार सैनिक थे। दिल्ली स्थित कुतुबुद्दीन एवं इजुद्दीन की सेनाएं भी उसमें आ मिलीं। कान्यकुब्ज में जय चन्द्र ने अपने सेनाध्यक्षों एवं आमात्यों की बैठक की। इसमें मेघ और हरि भी सम्मिलित हुए। दोनों अपनी शिक्षा समाप्त कर शीघ्र ही गुरुकुल से लौटे हैं। महाराज ने मेघ और हरि दोनों को कान्यकुब्ज की सुरक्षा में रखना चाहा, पर मेघ ने निवेदन किया कि वह महाराज के साथ रहकर तुर्क सेना का सामना करना चाहता है। उसके इस निवेदन से महाराज को प्रसन्नता ही हुई। उन्होंने हरि को कान्यकुब्ज की रक्षा का भार सौंपा।
महाराज की अनुमति पाकर मेघ बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि वह तुर्क सैन्य से युद्ध कर अपनी माँ के सम्बंध में प्रचारित कलंक मिटा सकता है। अतः पुर में पहुँचते ही उसने पुकारा, 'माँ! मैं महाराज के साथ युद्ध भूमि में जा रहा हूँ । मुझे अशीष दो ।'
'वत्स, तू महाराज के साथ रहेगा इससे अधिक प्रसन्नता की बात क्या हो सकती है? युद्ध में अधिक सतर्कता की आवश्यकता होती है। जाओ वत्स, विजयी होकर लौटो ।' माँ ने मेघ के मस्तक पर रोली अक्षत का टीका लगा आशीष दिया। मेघ ने चरण स्पर्श किया और चल पड़ा पर शुभा का मन जाने क्यों उदास हो गया। क्या भविष्य कुछ दूसरी कथा लिखेगा?
महाराज ने अपने तुर्क नायक पीर जमाल को बुलाया। आकर उसने माथ नवाया।
'जो हुक्म, महाराज ?' उसने कहा ।
'समय आ गया है.......।' तुर्क नायक समझ गया, कहा, 'महाराज नमक खाया है। हमारे सैनिक आखिरी दम तक अदा करेंगे।' महाराज ने डंका बजवा दिया। सेना तैयार होकर चंदावर की ओर बढ़ गई। महाराज भी हाथी पर सवार हुए। मेघ ने एक कुम्मैत अश्व को अपने लिए चुना।
कान्यकुब्ज सेना ने जल की सुविधा देख अपना शिविर लगा दिया। जय चन्द्र की सेना में 'जय बजरंग बली', 'हर हर महादेव', के साथ 'अल्लाहो अकबर', का भी उद्घोष होता । 'परम भट्टारक महाराज जय चन्द्र की जय' से पूरा मैदान गूंज उठता। तुर्क नायक जमाल ने अपने सैनिकों से कहा, 'यही नमक अदा करने का समय है।' सैनिकों ने उत्साह पूर्वक अपने अस्त्र उठाकर हुंकार भरी।
गोरी की सेना भी कुछ दूरी बनाकर गोलबन्द हुई। शिविर लग गए। गोरी, कुतुबुद्दीन, इजुद्दीन ने मिलकर विचार किया। युद्ध भूमि में भी महाराज एवं सुल्तान के शिविर राजसी ठाट का ही परिचय देते। दोनों पक्षों के झण्डे लहराते। एक अश्वारोही अपना सब्जा घोड़ा दौड़ाते हुए कान्यकुब्ज शिविर में दाखिल हुआ। शहाबुद्दीन गोरी की चिट्ठी लिए था वह। महाराज के सम्मुख लाया गया। 'गुलामी की तौंक पहन कर राज करो या ......,' चिट्ठी का मर्म सुनते ही महाराज का मुखमण्डल तमतमा उठा।
दूत के जाते ही रणभेरी बज उठी। सुल्तान का भी डंका बज उठा । व्यूह रचना कर सेनाएँ आगे बढ़ीं। पीर जमाल ने कहा, 'हरावल हमें दें महाराज।' महाराज ने सहमति दे दी। एक सैन्य दल का नेतृत्व मेघ ने लिया। वाम पार्श्व में वीरम राय एवं दाएँ पार्श्व में सहसमल ने हाँक भरी। हरावल में तुर्क सैनिक देखकर सुल्तान के सैनिक चौंके। पर जमाल के सैनिकों ने सबके दांत खट्टे कर अपनी दक्षता का परिचय दिया। महाराज जय चन्द्र और शहाबुद्दीन गोरी दोनों पृष्ठिका में रह कर सैन्य संचालन करते रहे। मैदान रक्त और लोथों से पटता रहा।
अंधेरा होते ही सेनाएँ अपने अपने शिविरों को लौट पड़ीं। कान्यकुब्जेश्वर ने पीर जमाल का उत्साहवर्धन किया। मेघ ने युद्ध भूमि का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया। उनके बाएं हाथ में तीर लगा था।
रात में पीर जमाल के सम्मुख एक व्यक्ति आया। उसकी वेष-भूषा कान्यकुब्ज सैनिकों की थी। जमाल से उसने बहुत धीरे-धीरे कुछ कहा पर जमाल तैश में आ गया। उसको डाटकर कहा, 'चुपचाप लौट जाओ। जमाल अपने ज़मीर से सौदा नहीं करता । मज़हब अपनी जगह पर है। और जंग बिल्कुल दूसरी जगह। दोनों का घालमेल न करो। जल्दी निकल जाओ।' वह व्यक्ति उठा और चुपचाप निकल गया। पर पीर जमाल सो न सका। वह सोचने लगा कि सुल्तान को कैसे सूझ गया कि मैं मज़हब के नाम पर महाराज को धोखा दे दूँगा । या रब तूने सुना? मेरा ईमान भी देखते हो न? महाराज ने मुझ पर यकीन किया तो मुझे भी खरा उतरना है। इसमें मज़हब कहाँ आ गया ?... या खुदा! उसने आसमान की ओर देखा। थोड़ी देर अपने शिविर में टहलता रहा। रात सरकी तो उसने फज़िर की नमाज़ अदा की। उसे थोड़ी शान्ति मिली। सैनिक भी उठ गए थे।
दूसरे दिन फिर रणभेरी और नक्कारों के साथ दोनों ओर की सेनाएं मैदान में आ गई। कुतुबुद्दीन भयंकर युद्ध कर रहे थे पर कान्यकुब्ज के वीरमराय, सहसमल और पीर जमाल भी उन्हें करारी टक्कर दे रहे थे। दिन भाग रहा था। कुतुबुद्दीन को जमाल ने जैसे ही ललकारा, कुतुबुद्दीन का एक तीर जमाल के घोड़े की दाहिनी आँख के को में बैठ गया। तब तक मेघ सामने आ गया। उसने कुतुबुद्दीन पर तीरों की बौछार कर दी । लौह कवच ने कुतुबुद्दीन की रक्षा की पर उनका अश्व तीरों की मार से भाग चला। दिन ढलने लगा।
इजुद्दीन ने मेघ को ललकारा। मेघ ने कुन्त फेंक कर उत्तर दिया। दोनों और की सेनाएँ कटकटा कर भिड़ गई थीं। अपने पक्ष को उत्साहित करते शूरवीर बढ़ रहे थे। इजुद्दीन और जमाल एक दूसरे के सामने आ गए। दोनों कुशल तीरन्दाज थे। तीरों की बौछार होती रही। जमाल का एक तीर इजुद्दीन की बांह में धंस गया। उसके हटते ही कुतुबुद्दीन ने अपने अश्व को एड़ लगाई। कुतुबुद्दीन का एक तीर जमाल के गले को बेध गया । जमाल का अश्व उन्हें लेकर भागा। जमाल के गिरते एक सैनिक ने उन्हें उठाकर शिविर में पहुँचाया। यह दृश्य वीरम ने देखा। उन्होंने अपने अश्व को एड़ लगाई। कुतुबुद्दीन जैसे ही सामने पड़े वीरम ने उन्हें ललकारा। दोनों ओर से तीरों की बौछार होने लगी।
सूर्य की किरणें आकाश को भेदने लगी थीं। आकाश के सिन्दूरी होते ही सेनाएँ शिविरों की ओर लौट पड़ीं।




40. मौत का वरण करेंगे पर.....

प्रत्यूष का समय। बाबा परिसर में एक आस्तरण पर ध्यानस्थ थे। एक अश्वारोही आ कर रुका। अश्व को एक पेड़ में बांध कर बाबा के सामने आकर गिर पड़ा। बाबा की आँख खुली। उन्होंने भट को उठाया। भट रात भर चल कर थक चुका था। आश्रम में कुछ विद्यार्थी रात में भी रुकते थे। बाबा ने दो विद्यार्थियों को बुलाया । ‘भट के लिए जल' बाबा के मुख से निकलते ही एक विद्यार्थी दौड़कर जल लाया । भट ने मुँह हाथ धोया । भट के बाएं हाथ में घाव था। बाबा ने औषधि लगाकर पट्टी की । दूसरा विद्यार्थी जल के साथ अमावट ले आया। भट ने खाकर जल पिया। पर उसकी आँखें लटपटाने लगीं। 'सो जाओ भट' बाबा ने एक विद्यार्थी को संकेत किया। वह उसे लेकर कुटिया के अन्दर चला गया। दूसरा विद्यार्थी घोड़े को चरने के लिए टेकरी पर बांध आया।
बाबा आस्तरण पर बैठे ही थे कि दोनों विद्यार्थी आ गए। 'बाबा कुछ पूछना चाहता हूँ' एक ने कहा । 'पूछो' ।
'भट के बारे में बिना कुछ जाने ही....।'
'शरण दे दिया। यही न?"
'हाँ बाबा ।'
'तुम दोनों ने देखा कि भट भूख प्यास से पीड़ित, थका हुआ है। ऐसी स्थिति में हमारा कर्तव्य है कि उसकी सेवा कर सहज होने दें। उसे सहायता की आवश्यकता है। तत्काल हमें उसे उपलब्ध कराना चाहिए। हम लोगों ने वही किया है वत्स । जानकारी प्राप्त करना इसके बाद का काम है। ऐसा विवेक जाग्रत करो जिससे निर्णय कर सको कि किस कर्म को वरीयता दी जानी चाहिए।' कहते हुए बाबा उठे, उन्हीं के साथ दोनों विद्यार्थी भी ।
तीसरा प्रहर। बाबा के सामने भट बैठा हुआ है। एक ओर पारिजात भी आकर बैठ गए हैं
'भट, तुम्हें कष्ट तो नहीं हुआ?"
'आपकी कुटिया में कष्ट?"
'कहो, कैसे आना हुआ ?"
'क्या बताऊँ? मैं एक खोख्खर हूँ। नमक की पहाड़ियों में हमारा गांव था । खेत थे। पत्नी थी। एक बहन थी।'
'क्या अब वे सब नहीं हैं?"
' बता रहा हूँ.... एक-एक कर बताऊँगा। आपको न बताऊँगा तो किसे बताऊँगा?" भट की आँखें लाल होने लगीं। चेहरा रक्ताभ हो उठा। 'हरा भरा गांव था। खेती खूब उपजती । श्रम करते और मोद मनाते।' भट रुक गया। उसकी आँखें बन्द हो गईं।
पारिजात भी उत्सुक हो उसे देखते रहे ।
'यदि बताने में तुम्हें कष्ट हो तो बताने की आवश्यकता नहीं ।' 'नहीं, कष्ट कैसा ? बाबा खोख्खर सम्मान पूर्वक जीने के आदी हैं। मेरे रक्त में वही सम्मान भाव बह रहा था। शहाबुद्दीन गोरी के सैनिकों ने सारा गाँव रौंद डाला। घर से सोना, चाँदी अनाज जो कुछ मिला, उठा ले गए। खोख्खर कट मरे पर इस्लाम कुबूल न किया। जो बच गए वे प्रतिशोध की आग में जल रहे हैं बाबा ।... मेरी बहन को पकड़ा तो पत्नी ने विरोध किया। पत्नी का सिर कलम कर बहन को बाँध ले गए। वह बेचारी तड़पती रही पर कौन सुनता? उस समय मैं घर पर नहीं था। लौटा तो सारा घर उजड़ चुका था। मैने प्रण किया है बाबा.... शहाबुद्दीन को यमलोक पहुँचाऊँगा । जब तक ऐसा न कर पाऊँगा मुझे शान्ति नहीं मिलेगी।'
'पर....।' बाबा के मुख से निकलते ही भट बोल उठा, 'बाबा काम कठिन है। आप यह भी कह सकते हैं असंभव है। पर मैं अपने जीवन का मोह छोड़ चुका हूँ बाबा ।'
'पर इधर कैसे आ गए भट?' पारिजात कुछ और जानना चाहते थे।
'बताता हूँ। आप जानते ही होंगे, शहाबुद्दीन गोरी भारत आया हुआ है।'
'इतना तो ज्ञात है', पारिजात बोल उठे ।
'कान्यकुब्ज के महाराज जयचन्द्र को ध्वस्त करने के लिए आया है वह। चंदावर के मैदान में दोनों सेनाएँ भिड़ीं। मैं भी इसी ताक में था कि कोई ऐसा अवसर मिले तो अपनी लक्ष्यपूर्ति करूं । पर गोरी एक बार घायल होने के बाद बहुत सतर्क रहने लगा है। उस तक पहुँचना भी अब कठिन होता जा रहा है।'
‘क्या तुम चंदावर गए थे?' बाबा ने पूछ लिया ।
'हाँ, वहीं से आ ही रहा हूँ। महाराज जयचन्द्र और उनके बेटे मेघ का युद्ध कौशल देखने योग्य था । सहसमल, वीरम राय जिधर निकलते रक्त की नदी बहा देते । पर संयोग को कौन मिटा सकता है। बाबा ?” 'कैसा संयोग ?' बाबा ने पूछ लिया।
'संयोग ही कहूँगा मैं। गोरी ने मेघ को घेरने की योजना बनाई । वह स्वंय तो सुरक्षा कवच के बीच चलता रहा पर चाहता था कि विपक्षी कान्यकुब्ज नरेश आवेश में आकर निर्णय करें। हुआ भी वही । कुतुबुद्दीन और इजुद्दीन ने मेघ को घेर लिया। वह वीरतापूर्वक लड़ा। इजुद्दीन के एक तीर ने मेघ के गले को बेध दिया। पर गिरते गिरते उसका कुन्त एक ताज़िक सरदार को मौत के घाट उतार गया ।
महाराज ने मेघ को गिरते हुए देखा। उन्होंने अपना श्वेत गजराज आगे बढ़ाया । कान्यकुब्ज की सेनाएं आगे बढ़ीं। तुर्क सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। यह दृश्य कुतुबुद्दीन ने देखा । वह अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़ा। महाराज ने मेघ के शव को अपने शिविर में भिजवाया। गोरी पृष्ठिका में अपने घोड़े पर सवार अवसर की ताक में था। जयचन्द्र को घेरने के लिए कुतुबुद्दीन की सेना अपना दबाव बढ़ाने लगी। महाराज अपने तीरों से विपक्षियों को भागने के लिए विवश कर रहे थे। सामने कोई टिक नहीं पा रहा था। पर कुतुबुद्दीन का एक तीर निर्णायक सिद्ध हुआ । तीर महाराज की आँख में जा धँसा। सैनिकों की लोथों का अम्बार लग रहा था। पर महाराज के गिरते ही सब कुछ बदल गया। सहसमल और वीरम भी प्राण हथेली पर रखकर आगे बढ़े। कुतुबुद्दीन और इजुद्दीन के तीरों से वे बच नहीं सके। गोरी ने अपने सैनिकों को ललकारा। कान्यकुब्ज की सेना में हड़कम्प मच गया। तुर्क सैनिकों का उत्साह बढ़ गया। उन्होंने भयंकर युद्ध कर कान्यकुब्ज सेना को काट डाला। उनके नक्कारे बजने लगे। जो बचे, वे तितर बितर हो गए।
तुर्क सैनिकों ने बढ़कर शिविर को लूट लिया। तीन सौ हाथियों सहित सहस्रों अश्व हाथ लगे। पर बाबा आश्चर्य है, गोरी के भेदिए कितने सजग हैं? चंदावर से गोरी की सेनाएँ सीधे असनी दुर्ग की ओर बढ़ गई। सुना जाता है कि असनी दुर्ग में महाराज का कोषागार है। इजुद्दीन की सेना कान्यकुब्ज की ओर निकल गई। कान्यकुब्ज के लड़के लड़कियाँ दास और बाँदियों के रूप में ग़ज़नी के चौराहों पर बिकेंगे।' 'यही तो कष्टकर है भट' बाबा ने कहा । 'सामान्यजन ही हर तरह की लूट का शिकार होता है। जन में इतनी चैतन्यता नहीं आ रही है कि वे इस तरह के कार्यों का विरोध कर सकें।" विरोध ?" पारिजात कह उठे । 'आतंक और भय से पीड़ित सामान्य जन असहाय हो जाता है।" आतंक और अत्याचार के विरुद्ध उठना कठिन अवश्य हैं बाबा, पर असंभव नहीं। मेरा ही देखिए सब कुछ लुट गया, पर मैं हताश नहीं हूँ । मैं इसका प्रतिशोध ले कर रहूँगा ।' भट उसी उत्साह से बोलता रहा। 'आस्था पर जो आक्रमण हो रहा है, यह अवश्य चिन्ता का विषय है', पारिजात ने कहा 'पर किसी समाज को सत्ता के बल पर किसी पंथ में दीक्षित करना सरल नहीं होगा।' बाबा कह उठे। बिल्कुल सरल नहीं होगा बाबा लोग मौत का वरण कर लेंगे पर.....।' भट कहते कहते अटक गया। असनी दुर्ग के रक्षक मौत के घाट उतार दिए गए। भेदिया आगे आगे और शहाबुद्दीन पीछे पीछे चलते रहे। भेदिए के साथ कपाट तोड़ने वाले भी थे । कोषागार का कपाट टूटते ही मुहम्मद गोरी की आँखें खुली की खुली रह गईं। 'इतना खजाना या खुदा तू कितना रहम दिल है।' खजाने के सामने ही गोरी का आसन लग गया। सुल्तान के सिपहसालार दौड़ने लगे। सोने, चाँदी और रत्न इकट्ठा कर, उन्हें बाँध बकुचे बनाए जाने लगे। कातिब एक एक का हिसाब लिखने लगे। ऊँटों की कतार लग गई । बकुचे ऊँटों पर लादे जाने लगे। कहते हैं एक हज़ार चार सौ ऊँटों पर खजाना लादा गया। सैन्य टुकड़ी की सुरक्षा में उन्हें ग़ज़नी के लिए रवाना किया गया। गोरी ने कुतुबुद्दीन को शबाशी दी। 'मैं बहुत खुश हुँ', उसने कहा । भेदिया भी इनाम पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ ।