शाकुनपाॅंखी - 22 - पस्त न समझें Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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शाकुनपाॅंखी - 22 - पस्त न समझें

30. पस्त न समझें

बन्दीगृह का कपाट जोर से खुला। भृत्य उन कपाटों को धीरे से खोलते थे । जब शाह का कोई सिपहसालार कपाट खुलवाता तो जोर की आवाज़ होती । कपाट खुलने की आवाज़ से पृथ्वीराज को लगा कोई अधिकारी होगा। कोई नई विपत्ति, यही सोच वह मौन ही रहा। अब तो आँखें भी नहीं हैं। केवल ध्वनि सुनकर ही अनुमान लगा सकता है। पदचाप निकट आता गया ।
'महाराज,' यह सम्बोधन सुनकर वह चौंक पड़ा। पूछ पड़ा,
'कौन?"
'मैं', प्रताप सिंह ने कहा।
'देख रहे हो प्रताप ?'
'देख रहा हूँ महाराज ।'
'मैंने कितनी बार शाह के सिपहसालारों को बन्दी बना छोड़ दिया। शाह को पराजित किया पर उन्होंने मेरी आँखें निकलवा ली।'
'जान रहा हूँ महाराज। पर अब क्या किया जा सकता है। ईश्वर को यही मंजूर था । “किया तो अब भी जा सकता है.... बहुत कुछ। कुछ करने के लिए साधन और अवसर का उपयोग करना होगा।'
'ठीक कहते हैं महाराज। पर जो स्थितियाँ हैं, उनमें क्या हो सकता है?" 'एक पृथ्वीराज के न रहने से उत्तर भारत पौरुषहीन नहीं हो गया प्रताप ? अपनी धरती से किसी ऐसे सैन्य बल को जो बाहर से आया है, खदेड़ना बहुत कठिन नहीं होता।' 'पर महाराज, आपके बन्दी हो जाने से जैसे सबका पराक्रम ही चुक गया। उत्साह ही ध्वस्त हो गया । दुःखी तो मैं भी हूँ महाराज, पर कुछ भी कर पाने में असमर्थ ?"
'यह क्यों कहते हो प्रताप ? धरती क्या वीरों से खाली हो गई? मैं पंगु बना दिया गया। क्या सभी इस स्थिति में पहुँच गए हैं?"
'पर एक बड़े सैन्यबल से टक्कर लेने के लिए एक शक्तिशाली संगठन की आवश्यकता होगी, कौन संगठित करेगा सभी को ?"
'हमारे ही महादण्डनायक, हरिराज, किल्हन देव किस किस का नाम गिनाऊँ? किशोरों को भी आगे किया जा सकता है। जन मानस की आस्था के केन्द्र टूट रहे हैं। मंदिर ही नहीं बौद्ध विहार भी टूटेंगे प्रताप ? आस्था बदल लेना बहुत सरल नहीं होता। मेरी पराजय से किसी को प्रसन्नता हो सकती है पर कब उनके पराजय की घड़ी आ जाए, इसे कौन जानता है? तक्षशिला का क्या हुआ यह तो ज्ञात है? हमने सभी धर्मों, जातियों को प्रश्रय दिया। उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया। मेरे आकलन और रणनीति में कमियाँ हो सकती हैं। मुझे उसका फल भी मिला पर पूरा समाज निरुपाय और दरिद्र हो जाएगा, उसका हौसला ही पस्त हो जाएगा, यह तो कल्पना से परे है ।'
'पर महाराज, नेतृत्व बिना समाज डूबता आया है। राजपरिवार अपनी ऐंठ में ही अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं। छोटे छोटे प्रकरण पर युद्ध का आहान कर देते हैं । उनमें एकता का सूत्र कैसे पिरोया जा सकता है? बिना सशक्त तैयारी के शाह से निपटना कठिन है। उनके कवचधारी अश्वारोहियों से पार पाने के लिए उतनी ही कुशलता एवं स्फूर्ति की आवश्यकता है। सामान्य अश्वारोही उनपर कैसे विजय पा सकेंगे?"
'तुम्हारा आत्मबल भी डिगा हुआ लगता है। तुम बराबर शाह की प्रशंसा के पुल बांधते हो?"
'क्या मैं असत्य कह रहा हूँ महाराज?" पृथ्वीराज थोड़ी देर तक सोचते रहे। उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध रखी है । आँखें निकाल लिए जाने के बाद वे आँखों पर पट्टी बांधे रहते हैं। उनके चेहरे पर थोड़ी चमक आई। उन्होंने प्रताप से कहा, 'प्रताप
तुम्हें एक बात बताऊँ?”
'बताइए महाराज ।'
'यदि मुझे धनुष और बाण दे दिया जाए तो अब भी मैं शाह को यमलोक भेज सकता हूँ?'
'वह कैसे महाराज ? बिना आँखों के...।'
'मैं शब्दों पर बाण चलाता हूँ यह तो जानते हो न ?”
'हाँ, महाराज ।'
'यदि मेरे हाथों में धनुष बाण हो और शाह पहुँच के अन्दर उसे कुछ बोलने के लिए उत्साहित किया जाए तो उसकी आवाज़ पर एक ही बाण से उसे स्वर्ग भेज सकता हूँ।'
'यह तो बहुत कठिन नहीं है महाराज ।' 'सोच लो । मैं प्रतिज्ञा करता हूँ...... ।'
'आप कितने साहसी हैं महाराज? मैं देखता हूँ कि क्या किया जा सकता है? महाराज मुझे आज्ञा दें। किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो......।'
पृथ्वीराज हँस पड़े। एक अन्धे की आवश्यकताएं बहुत सीमित होती हैं प्रताप ।'
' पर आप महाराज हैं। यह कठोर दण्ड .....।'
'उसके बारे में नहीं सोचता प्रताप।' 'चलता हूँ, महाराज।' प्रणाम कर प्रताप चल पड़े। पृथ्वीराज पदचाप को अनुभव करते रहे । बन्दी गृह से प्रताप सीधे सुल्तान के पास गया। 'बन्दा परवर, मैंने चाहमान के दिल को टटोलने की कोशिश की । वह चाहता है कि बचे हुए सिपहसालार अवाम को लेकर बगावत कर दें। हम लोग जो सोचते थे, बात बिल्कुल उल्टी निकली। वह अपने घर, कुनबा वगैरह के बारे में सोचता ही नहीं । दिन रात बग़ावत के बारे में सोचता है।' सुल्तान प्रताप की बात गौर से सुनता रहा ।
प्रताप कहता गया, 'हुजूर, चाहमान को अभी आप हौसला पस्त न समझें। उसके हौसले थे?" बुलन्द 'हैं। वह तो ...... ।' कहते कहते प्रताप रुक गया। 'कहो क्या फरमा रहे थे?’
'हुजूर, गुस्ताखी माफ हो, वह तो आप को हलाक करने की तजवीज़ सोचता रहता है ।'
'क्या ? ', सुल्तान चौंक पड़ा ।
'हकीकत है हुजूर । वह सोचता रहता है कि कैसे आपका वजूद खत्म कर सके। उसे आवाज़ पर तीर चलाने का फ़न हासिल है। वह सोचता रहता है कि उसे तीर कमान मिल जाए और आप दायरे के अन्दर हों। आपकी ज़बान पर वह तीर चला देगा ।' 'घबराओ नहीं प्रताप । उसके इस फ़न का भी इम्तहान लिया जाएगा।'
'हुजूर ।'
'तुम फिक्र मत करो।'
शाह ने तातार, ऐबक और हम्जा को बुलाया ।
'क्या यहाँ के इन्तजामात पूरे हो गए?"
'हाँ हुजूर', हम्जा ने कहा ।
'गुलाम और बाँदियों को हांक कर लाहोर ले चलो। सोना, चांदी, जवाहरात ऊँटों पर लाद दिए जाएँ । यहाँ के बन्दोबस्त के लिए फौज का पुख्ता इन्तज़ाम होना चाहिए । अपनी एक फ़ौज यहाँ रहेगी, इन्तज़ाम देखने और किसी भी बग़ावत को रोकने के लिए। हाँ, इस प्रताप सिंह पर नज़र भी रखी जाए और काम भी लिया जाए।' 'ऐसा ही होगा,' ऐबक बोल उठा ।
' पर इस चौहान का क्या होगा?' हम्ज़ा ने पूछ लिया ।
‘इसी मौजूँ पर बात करना चाहता हूँ । रिहा नहीं करना है यह तो तय हैं। गर इसे अजमेर या दिल्ली में हलाक किया जाता है तो यहाँ की अवाम में बगावत का सुर बुलन्द हो सकता है।' 'तब?' तातार ने पूछ लिया ।
'क्यों न चौहान को गज़नी ले चला जाए। गज़नी की अवाम भी देखे, कैसा था राय पिथौरा? और हाँ, वहाँ हलाक कर देने पर उसकी मज़ार पर रोने वाला भी कोई न होगा।' रोने तो यहाँ भी कोई नहीं जाएगा।' हम्जा बोल पड़े।
'कैसे?' 'हुजूर का इकबाल इतना बुलन्द है कि सौ दो सौ घुड़सवार जिधर भी निकल जाएं फतह ही फतह ..... । ऐसे में चौहान की मज़ार पर जाने की हिमाकत कौन करेगा?"
हम्जा बोलपड़े ।
'राख की तह में चिनगारियां भी हो सकती हैं, हम्जा। हमें बहुत ख़बरदार रहना होगा।' 'हकीकत बयां कर रहे हैं हुजूर ।' हम्जा ने हामी भरी। अवाम बहुत जज़्बाती होती है । उसका जज्बा हमारे खिलाफ भड़क न उठे, यह हमें देखना होगा। चौहान की मौत जज़्बाती माहोल पैदा कर सकती है।'
'हुजूर, चौहान से खौफ खाने की जरूरत नहीं है।' ऐबक और तातार दोनों बोल पड़े । ‘ख़ौफ़ खाने की बात नहीं है। दानिशमंदी से अपना रुतबा कायम करने का सवाल अवाम को कब्जे में लेने के लिए शऊर से काम लेना होगा ।'
'वह शऊर आपके सिपहसालारों में है ।' हम्जा इत्मीनान से अपनी बात कह गए। तभी भेदिये ने आकर आदाब किया। सुल्तान की दृष्टि घूमी । कुतुबुद्दीन, तातार और हम्जा भी उसे देखने लगे ।
'हुजूर, चौहान सिपहसालार स्कन्द राय पिथौरा से मिल चुका है।'
'ऐं', सभी चौंक पड़े। 'हमारे रम्माज़ क्या करते हैं । कैदखाने के चोबदारों ने ख़बर क्यों नहीं की।' सुल्तान का चेहरा तमतमा उठा।
'हुजूर, वह शाही सिपहसालार बन कर गया था ।'
"यह और भी बुरी ख़बर ।' सुल्तान बड़बड़ा उठे। बिना किसी को बताए राय पिथौरा को ग़ज़नी भेज दिया जाए आज ही रात, हीरे, जवाहरात लदे ऊँटों के साथ ।
'ठीक है हुजूर । भेज दिया जाएगा।' हम्ज़ा ने उत्तर दिया 'पर साथ में किसी को ...।’
'इजुद्दीन को भेज दो ।'