Chintan-Chandrashekhar Goswami books and stories free download online pdf in Hindi

चिन्तन-चन्द्रशेखर गोस्वामी

चिंतन
चंद्रशेखर गोस्वामी का यह गद्य संग्रह 'चिंतन 'कुल बारह रचनाओं के साथ साहित्य केंद्र प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। साहित्य से इतर रसायन शास्त्र की पाठ्यपुस्तकों आदि की लगभग 10 पुस्तकों के प्रकाशन के बाद कहानी,निबंध व संस्मरण विधा में उनकी यह पहली कृति है। संग्रह में शामिल कहानियाँ औसत आकार में है , हरेक रचना लगभग 15-20 मिनट में पढ़ी जा सकती हैं।
पहली कहानी मिठाई है। इस कहानी में गांव का माहौल, चरित्र रिश्ते -नाते, जातिगत भेदभाव बुलाकर परस्पर दिए जाने वाले संबोधन बहुत सशक्त रूप में आए हैं । कथा में अलाव पर बातचीत हो रही है तो सब लोग मिठाई की बात कर रहे हैं कि दिवाली पर कहां से कौन सी मिठाई खरीदी जाएगी !तब पंडित लखनलाल को कुशवाहा जी के कहने पर याद आता है कि उनका बेटा रामू बेंगलुरु में है और वह बेंगलुरु से शुद्ध मिठाई ला सकता है तो लखनलाल जी उसको फोन कर देते हैं ।दिवाली पर रामू मिठाई लेकर आता है, जब भोग लगा या जाता है तो पंडित जी देखते हैं कि मिठाई का हर पीस कागज में बड़ी उम्दा तरीके से पैक हुआ है। लखन लाल जी की माँ के पूछने पर रामू कहता है 'दादी नेस्ले बहुराष्ट्रीय कंपनी की मिठाई है, इसे चॉकलेटी मिठाई कहते हैं । पूरे देश में एवं बड़े बड़े शहरों में सभी लोग अब इसी मिठाई का के रूप में उपयोग करते हैं। इसमें न मावे की झंझट और न ही असली नकली का खेल।' (पृष्ठ 17)
रेडीमेड चाइल्ड संग्रह की दूसरी कहानी है, इसमें कंचन और राजशेखर का नया विवाह हुआ है। कंचन एक कॉरपोरेट कंपनी की सीईओ है जबकि राजशेखर आईंएएस। राजशेखर ने अपनी प्रतिनियुक्ति दिल्ली में ले ली है क्योंकि कंचन भी वही है । राजशेखर की मामी, मां और बुआ को हर स्त्री की तरह यही चिंता सताने लगती है कि विवाह को समय बीता जा रहा है, पर घर में किलकारी नहीं गूंजी। जबकि कंचन और राजशेखर यह तय कर चुके हैं कि सोच विचार कर ही बच्चे की प्लानिंग करेंगे और न हुआ तो कहीं से गोद ले लेंगे। बाद में मामी और मां जब अचानक राजशेखर के घर पहुंच कर राजशेखर और उसकी पत्नी कंचन को संतान के लिए बात करते हैं, तो राजशेखर की मामी इस विषय में डॉक्टर से बहुत पहले पूछ आई थी। डॉक्टर ने दो ही पद्धति बताई थी 'पहली पद्धति जिज़ आईवीएफ अर्थात इन वीटो फर्टिलाइजेशन है। इसमे पति के स्पर्म का नमूना लिया जाता है औऱ स्पर्म इक्विपमेंट में क्यूबर में रखा जाता है जहां पर दो या तीन भ्रूण ग्रो करते हैं। इसे स्त्री के यूटेरस में इंजेक्ट करते हैं। ×××
दूसरी प्रक्रिया है सरोगेसी अर्थात 'रेडीमेड चाइल्ड ' प्राप्त करना ।यह भी मेडिकल प्रोसेस है। इसके तहत एक महिला के अंडे को एक चिकित्सा प्रक्रिया के तहत पुरुष के शुक्राणु के साथ फर्टिलाइज किया जाता है और फिर उससे बनने वाले भ्रूण को सरोगेट मां अर्थात किराए पर गर्भधारण के लिए ली जाने वाली स्त्री के गर्भाशय में रख दिया जाता है जो उसे बच्चों को 9 माह तक गर्भ में रखती है और समय पूरे होने के बाद बच्चे को जन्म देकर शर्तों के मुताबिक लाखों रुपए लेती है। पूरे समय ( गर्भाधान अवधि में) का होने वाला व्यय भी आपको देना है ।'(पृष्ठ 22 ) कंचन कहती है' मेरे पास समय का ही तो अभाव है पर एक दिन भी बड़ी मुश्किल से फ्री रह पाती हूं तो आईवीएफ तो संभव नहीं है हां सरोगेसी अच्छा रहेगा। आजकल कई सेलिब्रिटी इसको अपने हैं सफल है तो मेरे दृष्टिकोण से क्योंकि बात वंश बढ़ाने की है, अतः सरोगेसी से मातृत्व प्राप्त करने एवं बच्चा प्राप्त करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है ।'(पृष्ठ 23)
सरोगेसी वही लोग अपनाते हैं जो या तो अपना फिगर खराब नहीं करना चाहते या जिन्हें गर्भधारण से लेकर बच्चों के जन्म और बाद के टिपिकल 6 महीने तक बच्चों को रखने में परेशानी होती है मजबूर होकर वे दोनों सेरोगेसी मदर के सुझाव पर गौर करते हैं ।
'चौपाल पर मंथन' इस संग्रह की एक अन्य कहानी है , जिसमें बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश के एक जिले के एक गांव की शाम का वर्णन आया है। वहां अलाव पर बैठकर बुंदेला राजा, पंडित जी, जैन साहब,वकील साहब, पटेल साहब और सभी ठाकुर बातें कर रहे हैं । इन सबके आपसी चर्चा और विवाद का विषय है चुनाव के पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले वादे ! कोई कहता है कि किसानों और व्यापारियों की कर्ज माफी के कारण बैंक की जमा पूंजी खत्म हो रही है और बैंक दिवालिया हो रहे हैं !तो कोई कहता है कि मुफ्त की रेवड़ी बांटने से लोग कामचोर होते जा रहे हैं । इस पूरे बाद विवाद का विषय बहुत मौजू,सम्यक और अच्छा है। बढ़िया मुद्दे पर विमर्श किया गया है ।
कहानी 'कामवाली ' आजकल की आम कामवालियों की समस्या पर नहीं बल्कि एक जागृत काम वाली की कहानी है। गांव में रहते गजाधर प्रसाद का बेटा जब प्रशासनिक अधिकारी बन जाता है, तो उसका विवाह पूर्व सांसद हरिप्रसाद जी की बेटी से होता है। बेटा नौकरी ज्वाइन करने पर कुछ दिनों बाद ही अपने मां पिता को लेने गांव आ जाता है। मां और पिता जब गांव से शहर आते हैं, तो काम करने के लिए एक काम वाली की तलाश की जाती है। कामवाली बड़ी मुंहफट और साफ दिल की स्त्री है। वह कहती है मैं वैसे तो छुट्टियां नहीं करती, लेकिन मुझे तीन बार तो छुट्टी चाहिए ही चाहिए । मां के पूछने पर श्रजी भोलेपन से वह बताती है कि नया वर्ष मनाने के लिए हमको दो दिन की छुट्टी चाहिए और होली खेलने के लिए 3 दिन की छुट्टी चाहिए, गांव में होने वाले पंचायत विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय प्रत्येक में उसे 7 दिन की ड्यूटी चाहिए होती है। रानी देवी ने कहा 'नया वर्ष, होली तो समझ में आया किंतु तुम चुनाव लड़ने की सोच रही हो तो हमारे यहां क्या काम करोगी और तुम 7 दिन में क्या चुनाव लड़ोगी अपना पैसा और समय की बर्बादी ही है मेरे हिसाब से तो। वो हँसते हुए बोली 'अरे माताजी आप क्यों मजाक कर रही हैं, हम घर-घर कम कर मजदूरी कर पेट पालते रहते हैं, क्या चुनाव लड़ने की सोच भी सकते हैं । अरे सुनो मुझे चुनाव उनाव से कोई लेन देन नहीं है, मैं तो चुनाव के समय प्रत्याशियों द्वारा जो माल हमारे वोटर होने का मिलता है वह लेने जाते हैं। पार्टियों के जो चुनाव में प्रत्याशी होते हैं वे धोतियाँ, पाजेब, कोई नगद ₹500-1000 और हमारे आदमी को इसके अध्यक्ष देसी दारू के पाउच के बड़े पैकेट जो कई दिनों तक चलते हैं,बाँटते हैं ,उन्हें लेंने, नहीं तो दूसरे लोग हमारे नाम से ले लेते हैं। वोटो से हमें क्या लेना देना? दें या ना दें, किसे दें हमारा अधिकार है।(पृष्ठ31)
संग्रह की एक कहानी 'वो 40 दिन' है । संजय रिटायर होकर आए हैं और अभी उन्हें 40 भी दिन नहीं हुए हैं कि पहले दिन से ही उनकी पत्नी उन्हें लगातार टोकने लगती है। कभी कहती है 'घूमो' कभी कहती है 'घर का काम करो' कभी कहती है 'नाती को खिला लो' कभी सब्जी लाने को बोलती है और जब वे टीवी देखते हैं तो वह चिल्ला कर कहती है कि 'अरे अब बुढ़ापे में क्या करोगे टीवी देख दाख कर । सोचो जरा बहू गोपाल के होमवर्क को लेकर इधर होती रहती है, ऑनलाइन उसकी कक्षाएं कराती है, आप कम से कम इतना तो कर ही सकते हो कि शाम को गोपाल को बैठक उसका होमवर्क करादो। बहू को कुछ राहत मिलेगी।'( पृष्ठ 33 )जब बेटा यह देखता है कि मां कुछ ज्यादा ही टोक रही है पिता को, तो चिंतित हो जाता है । एक दिन पिता सोच रहे हैं कि इन 40 दिनों में क्या हो गया, भागवान तुम मुझे क्यों परेशान कर रही हो, अब मैं 40 वर्षों तक मेरी नौकरी करते कभही भी कुछ न कहा में इतना काम किया तब मुझे नहीं टोका तो इन 40 दिनों में तो लगता है तुम मुझे उठते बैठते कड़वा ही बोल रही हो। अगली सुबह ऐसा सुनकर मम्मी बोलती है ' मैं नहीं चाहती हूं कि जो मैं आपसे कह रहा हूं वह बेटा बहू को भी आपसे कुछ कहें।' यह सुनकर बेटा बहू स्तब्ध रह गए। पापा बोले ऐसे विचार तुम्हारे मन में क्यों आए, क्या उन्होंने तुमसे कुछ कहा तुम ऐसा क्यों लग रहा है। पृष्ठ 34)
' उतरन' कहानी एक ऐसे छोटे बेटे घनश्याम की कथा है जिसे बचपन से ही बड़े भाइयों के उतारे गए कपड़े और जूते पहनने को मिलते रहे हैं और कॉपी किताब भी उसे अपने बड़े भाइयों की ही उपयोग की भी मिलती है जब उसका बड़ा भाई अचानक खत्म हो जाता है तो उसकी पत्नी से विवाह करने को घनश्याम से कहा जाता है। घनश्याम कोई जवाब नहीं देता , तब घनश्याम की मां शहर से आए अपने देवर से कहती है कि तुम ही इस से बात करो। अभी राजेश के ब्याह को 15 दिन भी नहीं हुए हैं और यह बहु लड़की विधवा हो गई है , घर की घर में रहेगी तो सारी समस्याएं शांत हो जाएंगी। चाचा के पूछने पर घनश्याम यही कहता है कि मेरे भाग्य में उतरन ही क्यों लिखी है, मैं आज तक भाइयों की उतरन स्वीकार करता रहा हूं । यह कहते हुए घनश्याम तो उदास हो जाता है, पर बाकी सब के चेहरों पर सुकून की मुस्कान छूट जाती है।
कहानी 'भाग्य चक्र' में कोरोना के दौरान घटी अजीब अजीब स्थितियों में से एक की कहानी है। संजय एक गरीब घर का लड़का है, उसके पिता किसान है, जब वह बीटेक और एम टेक करता है तो उसके पिता खेत बेचकर उसकी उसे परीक्षा दिलाते हैं। वह मेधावी लड़का है, इसलिए यूपीएससी का एग्जाम दे के बड़ा अफसर बनना चाहता है। वह इंदौर जाकर तैयारी कर परीक्षा देता है। उसका अच्छा अध्ययन होने के कारण मैन एग्जाम में वह पास हो जाता है और फिर उसका इंटरव्यू होताहै। इंटरव्यू देकर वह इन्दौर में आराम कर रहा था कि पिता उसे देखने आते हैं। इस समय कोरोना अपने जोरों पर था। संजय को बुखार हो जाता है, जब जांच कराई जाती है, तो कोरोना पॉजिटिव हो जाने के कारण उसे अस्पताल ले जाया जाता है और कहा जाता है कि 10 दिन बाद हम इसे घर भेज देंगे । पिता चुपचाप संजय के कमरे में पड़े रहकर 10 दिन काटने का इंतजार करते हैं कि एक दिन पहले ही खबर आती है कि संजय नहीं रहा पिता अपने इकलौते बेटे की मृत्यु पर जिस मार्मिक ढंग से विलाप करते हैं, वह पाठक के दिल को हिला देता है।
' बोनस बेटा' एक ऐसे बेटे की कहानी है जिनकी जन्म पर उसकी मां कहती थी कि मैंने तो बस दो संताने मांगी थी, एक बेटा और एक बेटी यह तीसरी संतान बेटा के रूप में क्यों आ गया ?यह तो भगवान ने मुझे बोनस में दे दिया ! बोनस बेटा के पिता लॉ सब्जेक्ट के प्रोफेसर थे, वे बड़े मन लगाकर सबको पढ़ते थे ,उनके पढ़ाई सबसे ज्यादा स्टूडेंट जज बन गए। बाजार में उनका बड़ा सम्मान था ।लेकिन अचानक जब एक मित्र को गोलीबारी से बचाते समय वे खुद गोली का शिकार होकर खत्म हो जाते हैं तो सारा घर विपत्ति में पड़ जाता है। बड़ा भाई एक धंधा शुरू करता है, जैसे तैसे घर संभालते लगता है कि बड़े भाई की भी मृत्यु जाती है। फिर घर एक तरह से अनाथ हो जाता है। छोटा बेटा धीरे-धीरे बढ़ते हुए पढ़ाई भी करता है, घर भी संभालता है और वह लगभग पिता की तरह पद पाना चाहता है कि उसी दिन पिता की पुण्यतिथि पर उसे पिता याद आते हैं। सारी कहानी उसे फ्लैशबैक में ही याद आती है , उसे जब पिता की याद आती है तो वह मां से कहता है । मां के आंसू टपकने लगते हैं ,वह पूछता है कि अब दुख क्या है ,तो मां कहती है 'बेटा,मुझे दुख इस बात का है कि मैं तुझे हमेशा यह कहा कि तू तो मेरा बोनस बेटा है। क्योंकि हमने तो केवल दो बच्चों का ही सोचा था किंतु दीदी के पैदा होने के बाद तेरे पिताजी की इस जिद पर कि दो बेटे होना चाहिए, पर तुम इस दुनिया में आए और देखो आज बड़े बेटे के चले जाने के बाद तुम ही तो मेरे सभी कुछ हो बेटे, मुझे माफ करना कि मैं तुम्हें बोनस बेटा कह तुम्हारे दिल एवं मन को चोट पहुंचाई ! '(पृष्ठ 47)
संग्रह की कहानी 'महामारी के दुष्प्रभाव' विश्व की कठोर और भयावह महामारी कोरोना से संबंधित है। इस कहानी में मेहता साहब एक कॉलेज के प्राचार्य हैं, वह बताते हैं कि उनके कॉलेज में पढ़ने वाली पद्मिनी नामक लड़की को पुलिस तलाश कर रही है क्योंकि उस लड़की ने एक नर्सिंग होम में नकली नाम से भर्ती होकर एक अविकसित भूमि को जन्म दिया और बच्चे को छोड़कर भाग निकली थी। मेहता साहब अपने मित्र नागर साहब को बताते हैं कि बच्ची परेशान थी, कोरोना में उसके पिता और माता खत्म हो गए थे और वह लगभग अनाथ थी । वह मकान तलाश करते हुए जब एक जगह पहुंची तो पता लगा कि वहां किसी बैंक का कर्मचारी रहता है। जिसने उसे लिव इन में रहने का प्रस्ताव दिया, जिसे पद्मिनी स्वीकार कर लिया। लिव इन में रहते इन दोनों के बीच प्रेम पनपा और सर एक संबंध हो गए। जब लड़की गर्भवती हुई, तो वह लड़का भाग निकला था, यह भी अफवाह ठीक है , वह लड़का मुस्लिम था, इस तरह शहर में हिंदू मुस्लिम के भेदभाव को बढ़ावा देते हुए लोगों ने तलवार खींच ली। लिव इन के दुष्परिणामों को दर्शाती यह कहानी गोस्वामी जी के सामाजिक विचारों को प्रकट करती है।
' कोल्हू का बैल बनाम आधुनिक मशीन' एक संस्मरण है । शेखर नाम के सज्जन के घर में तमाम लंबे अरसे के बाद तीनों बेटियां आती हैं। उन्हें पता लगता है कि बेटियों ने अपने-अपने घरों में आधुनिक तेल पिराई मशीन ले ली है, जिनमें तेल बीज डालते ही तुरंत तेल निकाल कर सामने आ जाता है। तेल को रिफाइन करते वक्त उपयोग किए जाने वाले खतरनाक रसायन का अंश रिफाइन किए तेल में शामिल होता है, इस कारण विभिन्न बीमारियों से ग्रसित समाज और व्याधियों के लिए स्वास्थ्य हित में इस तरह की तेल मशीन की मांग बढ़ी है, यह मशीन बड़ा अच्छा अविष्कार है। इन तेल मशीनों के प्राचीन रूप कोल्हू को याद करता हुआ लेखक अपने बचपन के उन तेली काका के को याद करता है, जिनके घर में एक बूढ़ा बैल कोल्हू में जुता हुआ रहता था और सुबह 8 से रात 8 तक लगातार कम करता था। बस बीच में 1 घंटे को रेस्ट दिया जाता था। उसे बैल पर दया आती है और वर्तमान आविष्कारों को लेखक उचित ठहरता है, व जानवरों को राहत देने वाला मानता है । फिर उसे याद आता है कि अभी जब घूमने निकले थे तो एक जगह भैंसा जोत कर गन्ना पिराई का काम किया जा रहा था, उसे लगा कि शीघ्र ऐसी मशीन आ जाएगी कि जब बिना भैंसे के पिराई होने लगे। पशु प्रेम और प्राकृतिक तथा दोषरहित तेल के प्रति अपने भावों को प्रकट करते इस लेख में काफी कुछ वास्तविकता प्रकट की है ।
'गुरु की खेती बाड़ी' भी लगभग संस्मरण है ।लेखक चर्चा तब से शुरू करता है, जब वह खुद शिष्य था और उसके गुरु विद्या प्रदान कर रहे थे। वह अपने गुरुओं को बड़ी श्रद्धा से याद करता है । इसके कारण उसका व्यक्तित्व बड़ा और वह उसकी पढ़ने में रुचि जागृत हुई। वह शिवपुरी के प्रोफेसर रामकुमार चतुर्वेदी चंचल , डॉक्टर परशुराम शुक्ल विरही से लेकर डॉक्टर चंद्रपाल सिंह सिकरवार , डॉ सीताराम दातरे और एचडी पटवर्धन जैसे सरल करमठ व अंग्रेजी, संस्कृत , रसायन शास्त्र के विद्वान को याद करता है। वह शिवपुरी शहर के अन्य पत्रकार, साहित्यकार मित्रों वीरेंद्र वशिष्ठ, कोचेटा जी, राठी जी , डॉक्टर अनुपम शुक्ला, संजय बेचैन, कृष्ण बल्लभ मुद्गल, हरी उपमन्यु और प्रमोद भार्गव तक को गहराई से याद करते हैं। संस्मरण के एक हिस्से में वे उसे प्रसंग को भी स्नान करते है जब वे चंबल के एक जिले में पोस्टेड होके गये, तो एक लड़का उसकी क्लास में बेहूदी से आकर बैठ गया और उसके बिना अनुमति अंदर आने की बात का उसने ऐंठ कर जवाब दिया । बाद में एक दिन घर से कॉलेज जाते समय वह लड़का उन्हें मोटरसाइकिल बिठाकर लाता है तो उसके मधुरतम व्यवहार से चमत्कार में भर गया लेखक उसे घर आने का निमंत्रण देता है । शाम को लेखक के गृहस्थी सामान से विहीन कमरे में वह लड़का जाकर बैठता है तो बताता है कि बचपन में उस पर झूठा मर्डर केस लग गया था और इस कारण वह एक हत्यारे और अपराधी के रूप में कुख्यात होने लगा था। इसका उसने लाभ भी लिया। लेकिन पहली बार किसी ने प्यार से बात की तो मुझे आपके प्रति श्रद्धा जागृत हुई है। एकाएक वह लड़का रोने लगता है। लेखक का आशय है कि गुरु अपने शिष्यों के रूप में फसल बोता है, उसकी रखवाली करता है, विद्या अध्ययन का जल छिड़काव कर वह उन्हें निरोग सुरक्षित करता है । इस विषय पर केंद्रित यह संस्मरण एक शिक्षक के अनुभव से और तथ्य परक है।
' चाय पर चर्चा' चाय पर लिखा गया एक निबंध है। वर्तमान में चाय किन-किन उपयोग में आती है, शोधकर्ताओं ने चाय के बारे में क्या-क्या शोध किया है, ग्रीन टी किस तरह औषधि के रूप में प्रयोग हो रही है और वजन कम करने व हृदय संबंधी बीमारियों की आशंका को काफी करने लगी है यह सब तथ्य अनुसंधानकर्ताओं के नाम लेते हुए उनके लिखे की चर्चा करते हुए लेखक ने चाय पर विस्तृत विवरण इस निबंध में प्रस्तुत किया है ।
इन समस्त कहानियों में समसामयिक मुद्दे, एक सामान्य बालक और युवक के मन में उठते सवाल, उसके मन में बरसों से दबी रह गई इच्छाएं, स्मृतियां और घटनाएं उभर के आती हैं । इस संग्रह को हम कहानी संग्रह तो नहीं कह सकते, क्योंकि इसमें कहानियों के साथ निबंध भी हैं और संस्मरण भी। अनेक कहानियों के स्वरूप निबंध की तरह हैं , जिनमें आगे पीछे कोई चरित्र खड़ा करके कहानी का रूप दिया गया है। कहानी के चरित्रों में अधिकांश चरित्र जाने पहचाने और वास्तविक से हैं। संस्मरण के चरित्र तो है ही वास्तविक। शिवपुरी के अध्यापक, लेखक, पत्रकारों के नाम वास्तविक बताए हैं, तो चंबल वाले संस्मरण में लेखक छात्र और उसके पिता का नाम छिपा गए है ।
भाग्य चक्र और महामारी के दुष्प्रभाव कोरोना बीमारी के बारे में बतलाए गए कोरोना के प्रोटोकॉल, इलाज, कोरोना के दौरान उभर के आये भ्रष्टाचार, चरित्र और समाज में व्याप्त हुई भयावहता आदि का विस्तृत जिक्र लेखक ने किया है।
पात्रों की दृष्टि से देखें तो इस कहानी संग्रह के अधिकांश कहानियों में स्त्री पात्र का नाम कंचन है, लेखक को इस नाम से या तो ज्यादा स्नेह है या वह अपने परिचय क्षेत्र में आई किसी कंचन को इन कहानियों के माध्यम से शिद्दत से याद करना चाहते हैं।
इन कहानियों में लेखक के सभी चरित्र विश्वसनीय हैं, चाहे वह पहली कहानी 'मिठाई' के पंडित लखन लाल हो, कहानी रेडीमेड चाइल्ड की कंचन हो या उसकी सास वंदना, चौपाल पर मंथन कहानी में जो चरित्र हैं, वह अपने वर्ग और जाति के प्रतिनिधि चरित्र त हैं और लेखक ने उन्हें बिना नाम के लगभग इसी रूप में उल्लेख किया है, जैसे बुंदेला ठाकुर, मझले पंडित भैया, जैन साहब, वकील साहब ,पटेल साहब और ठाकुर साहब , उतरन के घनश्याम जैसे छोटे भाई हर घर में होते हैं जिन्हें हमेशा उतरन पहनने को मिलती है और यह उतरन इस कहानी में इस स्थिति तक आ जाती है कि बड़े भाई की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी भी छोटे भाई को दी जा रही है, वो 40 दिन के संजय ऐसे रिटायर्ड व्यक्ति हैं, जो अभी अपनी रिटायर्ड जिंदगी को जीना शुरू ही नहीं कर पाए थे कि उनकी पत्नी उन्हें टोकने लगती है ताकि बेटा बहू उसे ना टोके ।
मिठाई, चौपाल पर मंथन में ऐसी एक समान चर्चा को कहानी का रूप दिया गया है, जो किसी भी गांव के किसी भी चौपाल पर सहज रूप से घटित हो सकती है। इनको संस्मरण भी कहा जा सकता है और निबंध भी ।

इन कहानियों का देश काल और वातावरण अभी-अभी ताजा मुद्दों पर केंद्रित होने के कारण पाठक के सामने बाद साफ-साफ प्रकट हो जाता है। वर्तमान परिवेश की यह कहानी लेखक द्वारा साफ तौर पर स्थान के नाम लेकर लिखी गई हैं, जिनमें चंबल का एक जिला, शिवपुरी शहर और लेखक का जन्म स्थान ललितपुर जिला और ललितपुर का जाखलौन नामक गांव जहां लेखक का पूरा परिवार रहता है, इस कहानी में खुलकर आया है । हां अगर यह परिवेश उन स्थानों के लोगों की मानसिकता और वहां के दर्शनीय स्थान को प्रकट करता, तो कहानी ज्यादा आवश्यकता होती ।
यूँ तो सँग्रह की भाषा सहज व सरल परिनिष्ठित हिंदी है जो सबको समझ मे आती है। लेकिन पात्रानुकूल सम्वाद व भाषा के स्तर पर यह कहानी संग्रह ज्यादा समृद्ध नहीं है, सामान्य भाषा में लेखक ने सम्वाद लिखने का प्रयास किया है। उनका यह पहला संग्रह है इसलिए अनेक वाक्य पूरे नहीं बनते हैं, वे वहां भी कई जगह कोष्टक लगा देते हैं जहां कोई बोल रहा, ध्यान देने की बात यह है कि जब व्यक्ति कोई संवाद बोल रहा होता है तो उनमें कोष्टक लगाने की कोई जगह नहीं होती है। लेखक किसी व्यक्ति का नाम लेकर उसकी विशेषताओं को भी साथ में जोड़ देते हैं तो वाक्य अस्पष्ट और कमजोर हो जाता है। लेखक बुंदेली क्षेत्र जाखलौन के रहने वाले हैं, उनके कुछ संस्मरण और कहानी अपने बुंदेली क्षेत्र की हैं, लेकिन लेखक ने पात्रों से बुंदेली भाषा में वाक्य नहीं बुलवाए हैं,पात्रों को विश्वसनीय बनाने के लिए यह जरूरी था। कहानीयों में कहावतें और मुहावरे बहुत कम आए हैं। इन मुहावरों इन कहावतें का अगर लेखन इन कहानियों में उपयोग करते, तो लेखक की लोक संस्कृति के प्रति जागृति, पात्रों को देखने और प्रस्तुत करने की दक्षता प्रकट हो सकती थी।इस तरह कलात्मक तौर पर जब हम इस कहानी इन कहानियां का परीक्षण करते हैं तो हमें अनेक कमजोरी प्रकट होती है। होशियारी है कि लेखक ने सावधानी से इस संग्रह को कहानी संग्रह नहीं लिखा, बल्कि गद्य सँग्रह लिखा है । प्रचलित परंपरा के अनुसार कोई भी किताब किसी एक विधा की ही निकलती है।
प्रमोद भार्गव ने भूमिका लिखते हुए इसे कहानी संग्रह कहा है तो लेखक ने भी इस कहानी संग्रह ही कहा है, पर यह मूलतः कहानी संग्रह नहीं है। यह लेखक के गद्य संग्रह लिख देने से प्रकट हो रहा है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया इसमें कुछ संस्मरण कुछ निबंध शामिल है,आधी कहानी। जिनमे कुछ तो दरअसल लेख और निबंध हैं, जिनमें चरित्रों का नाम जोड़कर कहानी बना दी गई है ।
प्राय प्रत्येक कहानी की शुरुआत किसी प्रकृति विवरण किसी दार्शनिक विचार या कहानी के मुख्य विषय के विश्लेषण के साथ आरंभ हुई है। इन कहानियों की एक कमजोरी यह भी है कि इनमें लेखक जब किसी के संवाद लिखता है तो उदाहरण चिन्ह नहीं लगाता और संवाद बंद हो जाने के बाद अगले पात्र के संवादों को न तो पैराग्राफ छोड़ना, न तो नए पैराग्राफ से शुरू करता और न उसके जवाब में कहे गए वाक्य को नए पैराग्राफ में कहता यानी निबंध की तरह लोगों के विचार विमर्श, पैराग्राफ और द्वंद लेखक अनवरत लिखता चला गया है। इस कारण इन कहानियों का वैसा प्रभाव पाठक पर गहराई से नहीं पड़ता जैसा पढ़ना चाहिए।
कहानियों में व्यक्त मुद्दों के बारे में लेखक के फंडामेंटल बड़े साफ हैं, फिर उनका विश्लेषण भी उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से किया है। लेकिन कई जगह केवल अपनी बात व्यक्त कर देने के लिए ही उन्होंने कहानी का रूप दे दिया है। ऐसी तमाम कलात्मक, वैचारिक और भाषागत चूक होने के बाद भी इस संग्रह के बारे में लेखक को इस बात के लिए बधाई दी जानी चाहिए कि उसने आसपास की घटनाओं, अपने मन में उमड़ते घूमते प्रश्न और याद में बसे चरित्रों को लेकर कहानी लिखी हैं। इसकी कहानीयां बहुत लंबी नहीं है , छोटी है, इसलिए किसी कहानी को पढ़ते वक्त बहुत ज्यादा समय नहीं लगता है ।
जैसा कि प्रमोद भार्गव ने अपनी भूमिका में स्वीकार किया है 'कहानियों का कहन और शिल्प सहज व सरल है ।आंचलिकता है। जड़ों की ओर लौटने का गहरा मोह है । गोस्वामी जी का यह पहला कथा संग्रह है, इसलिए इसमें शिल्प की कसावट थोड़ी कम है, लेकिन उनमें विषयों की पकड़ और काव्य को सशक्त रूप देने की क्षमता अद्भुत है।अतएव भविष्य में उनका जो भी नया कहानी संग्रह आएगा, उसके शिल्प विधान में कसावट देखने में आएगी।'(पृष्ठ 8)
प्रमोद भार्गव के इस कथन से सहमत होते हुए आशा की जा सकती है कि लेखक अब जब नई कहानी लिखेंगे, उनका नया संग्रह आएगा या इसी संग्रह का परिवर्तित संस्करण प्रस्तुत करेंगे, तो उनमें कलात्मकता और रचना कौशल पूरी दक्षता के साथ प्रकट होगा।
इस संग्रह के लिए लेखक को एक बार फिर बधाई ।
पुस्तक चिंतन (गद्य संग्रह)
लेखक- चंद्रशेखर गोस्वामी प्रकाशक -साहित्य केंद्र प्रकाशन दिल्ली
पृष्ठ 70
मूल्य ₹150

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