वो माया है.... - 41 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 41



(41)

विशाल जब घर पहुँचा तब बद्रीनाथ घर के दालान में पड़ोस के तिवारी के साथ बात कर रहे थे। विशाल उनसे नज़रें बचाकर अंदर जाने लगा तो तिवारी ने कहा,
"अरे विशाल जरा यहाँ आओ।"
आवाज़ सुनकर विशाल रुक गया। वह तिवारी के पास गया। हाथ जोड़कर बोला,
"नमस्ते चाचा जी।"
तिवारी ने खाली पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा,
"बैठो यहाँ..... कुछ बात करनी है।"
विशाल कुर्सी पर बैठ गया। अखबार उसने अपनी पीठ के पीछे दबा दिया। तिवारी ने कहा,
"अब कब तक इस तरह ज़िंदगी बिताओगे। भूल जाओ सब। नए सिरे से जीवन शुरू करो।"
विशाल सर झुकाए बैठा था। उसे इस तरह की बातें अच्छी नहीं लगती थीं। बद्रीनाथ भी उससे यह बात कर चुके थे। उसने उनसे कहा था कि उसके लिए अपनी पत्नी और बच्चे को भूलकर नया जीवन शुरू करना संभव नहीं है। इस समय उसे इस बात का बुरा लग रहा था कि उसके पापा ने बाहर वालों के साथ भी यह बात करनी शुरू कर दी है। इस बात के गुस्से में वह कोई जवाब नहीं दे रहा था। उसे चुप देखकर तिवारी ने कहा,
"अपने माँ बाप के बारे में सोचो। उन पर क्या बीत रही होगी। पुष्कर तो हमेशा के लिए चला गया। अब तुमसे ही सारी उम्मीदें हैं।"
विशाल ने बद्रीनाथ की तरफ देखा। उसके बाद तिवारी की तरफ देखकर बोला,
"हमसे उम्मीद क्यों लगा रखी है ? हमने तो शुरू में ही कह दिया था कि अब हम दूसरी शादी नहीं करेंगे। पुष्कर के जाने का दुख हमको भी है। लेकिन उसके चले जाने से हम अपने आपको बदल नहीं सकते हैं।"
यह कहकर विशाल उठा और घर के अंदर चला गया। बद्रीनाथ और तिवारी दोनों उसके इस व्यवहार से आवाक थे।
विशाल सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जा रहा था तभी उमा ने आवाज़ दी,
"ऊपर क्यों जा रहे हो ? खाने का समय है। खाना खा लो फिर जाकर आराम करना।"
विशाल सीढ़ियां चढ़ते हुए रुक गया था। उसने कहा,
"पहले बुआ जी और पापा को खिला दीजिए। हमारी थाली लगाकर रख दीजिए।‌ हम बाद में खा लेंगे।"
"जिज्जी खा चुकी हैं। अपने कमरे में आराम कर रही हैं। अब तुम और तुम्हारे पापा रह गए हैं। तुम दोनों को खिलाकर हम भी खाएं। तुम्हारे पापा ना जाने कितनी देर से बातें कर रहे हैं।"
"हमारी थाली लगाकर रख दीजिएगा। हम बाद में खा लेंगे।"
उमा ने गुस्से से कहा,
"थाली लगाकर रखने की क्या ज़रूरत है। गरम गरम खा लो। हम भी रसोई समेट कर छुट्टी पाएं।"
"तो फिर आप लोग खा लीजिए। हमें नहीं खाना है।"
"क्यों नहीं खाना है ?"
उमा के इस सवाल से विशाल चिढ़ गया। उसने कहा,
"क्योंकी हमारी इच्छा है। हम अपनी इच्छा से इतना तो कर ही सकते हैं।"
विशाल सीढ़ियां चढ़कर ऊपर चला गया।‌ उमा सन्न रह गई थीं। उन्होंने बीते कुछ समय से विशाल के व्यवहार में परिवर्तन देखा था। अब वह बात बात पर गुस्सा होने लगा था। इस बात से वह परेशान थीं।

कुछ देर तक बद्रीनाथ और तिवारी विशाल के बारे में बात करते रहे। तिवारी के घर से उनका पोता खाना खाने के लिए बुलाने आया। वह चले गए। बद्रीनाथ को लगा कि उन्हें भी अंदर जाकर खा लेना चाहिए। वह उठ रहे थे तभी विशाल की कुर्सी पर उन्हें अखबार दिखाई पड़ा। अखबार लेकर वह अंदर आ गए। अभी पढ़ने का मन नहीं था। इसलिए बैठक में रख दिया।‌
बद्रीनाथ आंगन में आए तो उमा बैठी रो रही थीं। उन्होंने पास जाकर पूछा,
"क्या बात है उमा ? रो क्यों रही हो ?"
उमा ने उन्हें सारी बात बताई। सब सुनने के बाद बद्रीनाथ ने भी तिवारी के सामने जो हुआ सब बता दिया। उन्होंने कहा,
"उमा.... क्या हो गया है विशाल को ? पहले एकदम गुमसुम रहता था। अब अक्सर खीझ उठता है।"
बद्रीनाथ कुछ देर मन ही मन सोचते रहे। उसके बाद बोले,
"अभी उसे नीचे बुलाते हैं और बात करते हैं।"
उमा ने उन्हें रोकते हुए कहा,
"रहने दीजिए। अभी उसका मन ठीक नहीं है।"
"यही तो जानना है कि अब उसका मन ठीक क्यों नहीं रहता है।"
उमा ने बद्रीनाथ की तरफ देखकर कहा,
"अपनी पत्नी और बच्चे को खोने के बाद से ही उसका मन खराब है। फर्क इतना है कि पहले कुछ बोलता नहीं था। अंदर ही अंदर घुटता था। अब बोलने लगा है।"
"तभी तो समझा रहे हैं कि बीता हुआ भूलकर नया जीवन शुरू करे। लेकिन वह सुनता ही नहीं है।"
उमा ने शिकायत भरी नज़रों से बद्रीनाथ को देखा। उन्होंने कहा,
"जब हमने उसकी नहीं सुनी थी तो वह हम लोगों की क्यों सुनेगा। क्या कमी थी माया में ? सिर्फ ज़िद ने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की है।"
बद्रीनाथ के दिल में यह बात किसी तीर की तरह लगी थी। पुष्कर की मौत की खबर आने पर भी उमा ने ऐसी ही बात कही थी। वह खुद भी कई सालों तक माया वाले किस्से को लेकर पछताते रहे थे। उमा ने आगे कहा,
"पर हम भी किस मुंह से शिकायत करें।‌ अपने लिए तो कभी चूं तक नहीं की। लेकिन औलाद के लिए तो बोल सकते थे। लेकिन तब हमने भी चुपचाप सब होने दिया।"
बद्रीनाथ के लिए अब वहाँ खड़ा रहना कठिन हो रहा था। वह बैठक की तरफ बढ़े तो उमा ने कहा,
"खाना तो खा लीजिए....."
बद्रीनाथ ने ठहर कर उमा की तरफ देखा। वह बोले,
"हमारी भी इच्छा नहीं है।"
वह बैठक में चले गए। उमा की आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। कुछ देर आंसू बहाने के बाद उन्होंने अपने पल्लू से आँखें पोंछीं। फिर रसोई में जाकर खाना ढककर रख दिया। अपने कमरे में जाकर लेट गईं।

विशाल अपने कमरे में लेटा हुआ था। तिवारी ने जो कुछ कहा था उसने उसके मन में हलचल पैदा कर दी थी। वह सोच रहा था कि उसके परिवार वाले हमेशा सिर्फ अपने बारे में क्यों सोचते हैं। आज तक उन्होंने कभी भी उसके दुख के बारे में नहीं सोचा। इतने सालों से वह उदासी भरी ज़िंदगी जी रहा था। उन्होंने कभी भी इस बात की कोशिश नहीं की कि उसके दिल के दर्द को कम कर सकें।
कुसुम और मोहित की मृत्यु के साल भर बाद उसके पापा ने दूसरी शादी के लिए कहा था। पर तब उसका दुख नया था। पत्नी और बच्चे की मौत को वह भुला नहीं पा रहा था। उसका मन नई ज़िंदगी शुरू करने के लिए तैयार नहीं था। उसने मना कर दिया था। उसके बाद फिर कभी उसके घरवालों ने उससे इस विषय में कोई बात नहीं की। उसे उसके हाल पर छोड़ दिया।
तब उन्हें उम्मीद थी कि पुष्कर के ज़रिए वह अपनी खुशियां पूरी कर लेंगे। लेकिन जब पुष्कर उनकी इच्छा पूरी किए बिना चला गया तो उसके पापा फिर उसके पास दूसरी शादी करने का प्रस्ताव लेकर आए। इस बार उसने इसलिए मना कर दिया क्योंकी उसे लगता था कि घरवालों को उसकी कोई चिंता नहीं है। उन्हें सिर्फ अपनी खुशी दिखाई पड़ रही है।
वह माया को बहुत चाहता था। उसने इस बात की तैयारी भी की थी कि उसके साथ शादी कर ले। पर जब माया अपना सबकुछ छोड़कर उसके पास आई थी तब वह कुछ नहीं कर पाया। माया उससे कहती रही थी कि उसका हाथ थाम ले। उसे कहीं ले चले। दोनों शादी करके अपनी दुनिया बसाएंगे। तब वह कमज़ोर पड़ गया था। माया अकेली सबसे लड़ रही थी। उससे मिन्नतें कर रही थी। लेकिन वह सर झुकाए खड़ा रहा था।
उस समय वह खुद‌ को इस लायक नहीं पा रहा था कि घरवालों का विरोध करके माया का हाथ थाम सके। जब माया उसके परिवार से विनती कर रही थी तब भी वह माया के साथ खड़े होकर यह नहीं कह पाया कि वह माया को चाहता है। वह माया के बिना जी नहीं सकता है। वह इस बात का इंतज़ार कर रहा था कि शायद उसके पापा और बुआ माया की विनती सुनकर पिघल जाएं और उसकी और माया की शादी के लिए राज़ी हो जाएं। उसे अपनी मम्मी से पूरी उम्मीद थी कि कम से कम वह तो उसकी खुशी के लिए आवाज़ उठाएंगी। पर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा।
ना उसके घरवाले पिघले और ना माया के मम्मी पापा। माया उसके घर के आंगन में अकेली अपने और उसके हक के लिए लड़ती रही। जब उसका साथ भी नहीं मिला और वह हर तरफ से हार गई तो अपने गुस्से में इस घर को श्राप देकर चली गई।
माया के बारे में सोचते हुए विशाल का दिल दर्द से तड़प उठा। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। वह बोला,
"हम तो तुमसे माफी भी नहीं मांग सकते हैं माया। तुम्हारी मौत का कारण हमारी कायरता थी। हमें खुशियों का कोई हक नहीं था। हमारी खुशियां छीनकर तुमने अच्छा किया। हम इसके ही लायक थे। अब सारी ज़िंदगी तड़पेंगे फिर भी तुम्हारे साथ किए अन्याय की भरपाई नहीं कर पाएंगे।"
वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। वह रो रहा था और उसके ज़ेहन में कुसुम और मोहित के चेहरे घूम रहे थे। कुसुम ने उसे कुछ ही समय में इतना प्यार दिया था कि उसके दिल के ज़ख्म भरने लगे थे। वह माया को भी भूलने लगा था। उसका काम अच्छा चल रहा था। पैसा और रुतबा बढ़ रहा था। मोहित के आने से उसकी ज़िंदगी पूरी हो गई थी। फिर अचानक उसकी खुशियों पर ग्रहण लग गया। उसकी सारी खुशियां एक ही रात में जीवन भर के मातम में बदल गईं।
वह मन ही मन कह रहा था कि माया का दिल दुखाकर उसने पाप किया था। उसके किए का परिणाम कुसुम और मोहित को भुगतना पड़ा।