Wo Maya he - 40 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 40



(40)

सूरज रो रहा था। बार बार कह रहा था कि अब उसका भी अंजाम वही होगा जो चेतन का हुआ है। इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे कि ऐसा कुछ नहीं होगा। सूरज बार बार ताबीज़ वाली बात का ज़िक्र करते हुए कह रहा था कि यह शैतानी शक्ति का काम है। उसकी बात सुनकर सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"सर अखबारवाले भी बिना सोचे समझे कुछ भी लिख देते हैं। अब बताइए यह ताबीज़ वाली बात लिखने की क्या ज़रूरत थी। केवल सूरज ही नहीं। बाकी खबर पढ़ने वाले लोगों के मन में भी ना जाने कैसी कैसी बातें आई होंगी।"
सब इंस्पेक्टर कमाल की बात सुनकर अब तक चुप खड़े कांस्टेबल शिवचरन ने कहा,
"सर खबर रोज़ाना में जो भी छपा है उसके कारण बहुत सारी बातें फैल रही हैं। कल शाम हम पुलिस स्टेशन के पास चाय की दुकान पर गए थे। हम चाय का इंतज़ार कर रहे थे जब दुकान के मालिक ने हमसे इस विषय में बात करना शुरू कर दिया। वह भी सूरज के जैसी बातें ही कर रहा था। कह रहा था कि दुकान पर आने वाले अधिकतर लोग इसी तरह बातें करते हैं।"
इस बात से सूरज को बल मिला। उसने कहा,
"देखा ना साहब.....केवल हम ही ऐसी बातें नहीं कर रहे हैं। बाकी लोगों को भी यही लगता है।"
उसकी बात सुनकर इंस्पेक्टर हरीश ने दलील देते हुए कहा,
"पुष्कर और चेतन की गर्दन पर वार करके उन्हें बेहोश किया गया था। फिर किसी पंजेनुमा धारदार हथियार से उन्हें मारा गया। अगर वह कोई शैतानी शक्ति होती तो उसे बेहोश करने की क्या ज़रूरत पड़ती। वह तो कभी भी और कहीं भी उन्हें मार देती। यह किसी इंसान का काम है। पुष्कर की लाश के पास मोटरसाइकिल के पहियों के निशान भी मिले थे। कोई शैतानी शक्ति मोटरसाइकिल चलाती है क्या ?"
इंस्पेक्टर हरीश की दलील सुनकर सूरज शांत हो गया था लेकिन अभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं था। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"अब तुम यह बताओ कि तुम चेतन को यह बात बताने से रोक क्यों रहे थे ?"
सूरज ने अपनी आस्तीन से अपनी आँखें पोछीं। उसके बाद बोला,
"जब चेतन ने हमको यह बात बताई तो हमें लगा कि आप लोगों को पता चलेगा तो उस आदमी के बारे में पूछताछ करेंगे। हमें तो उसके बारे में कुछ पता नहीं था। तब तक हमें शैतानी शक्ति वाली बात समझ नहीं आई थी। हमने ताबीज़ वाली बात पर खास ध्यान नहीं दिया था। चेतन की हत्या के बाद जब अखबार में भी ताबीज़ के बारे में पढ़ा तब हमारा ध्यान इस तरफ गया। तब हमें लगा कि यह काम किसी शैतानी शक्ति का ही है।"
"जब मैं उस आदमी के बारे में पूछताछ करने आया था तब भी तुमने कुछ नहीं बताया। चेतन को भी कुछ नहीं बताने दिया।"
"तब भी हमको यही लगा था कि बताकर झंझट क्यों मोल लें।"
"जब चेतन ने बताना चाहा। मुझे मैसेज किया तो तुमने उसकी पिटाई की।"
"साहब हमसे गलती हो गई थी। उसका एहसास हुआ था तभी हम चेतन से माफी मांगने के इरादे से उसके पास गए थे। वह ढाबे में नहीं दिखा तो उसका पीछा करते हुए पुलिस स्टेशन तक चले गए।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"किसी पर हाथ उठाना, पुलिस से केस से संबंधित बात छिपाना जुर्म है।"
"साहब हमें चेतन को पीटने का बहुत अफसोस है। बहुत अच्छा लड़का था साहब। गरीब अनाथ था। इसलिए हमारी छोटी सी मदद का बहुत एहसान मानता था। ढाबे में काम करता था और हमारी सेवा भी करता था। इससे हमारा दिमाग खराब हो गया था। पहले सिर्फ गालियां देते थे। उस दिन हाथ भी उठा दिया।"
सब इंस्पेक्टर कमाल ने कहा,
"अब सजा के डर से बातें बना रहे हो। पर कुछ होने वाला नहीं है। तुम्हें भी तुम्हारे किए की सज़ा मिलेगी।"
"साहब अब कानून की सजा का डर नहीं है। अब तो चिंता है कि कहीं वह शैतानी शक्ति हमें भी ना मार दे।"
इंस्पेक्टर हरीश ने गुस्से से कहा,
"बेकार की बात मत करो। समझाया ना कि यह सब एक इंसान का किया हुआ है। जल्दी ही पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी। अब तुम जाओ। जब भी तुम्हारी मदद की ज़रूरत होगी तुम्हें बुलाएंगे।"
सूरज उठते हुए बोला,
"उससे बच गए तो आपकी मदद कर देंगे।"
यह कहकर वह पुलिस स्टेशन से निकल गया। उसके जाने के बाद इंस्पेक्टर हरीश सब इंस्पेक्टर कमाल के साथ केस के बारे में बात करने लगा। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"कमाल कुछ ही दिनों में इस क्षैत्र में दो हत्याएं हुई हैं। दोनों एक दूसरे से जुड़ी हैं। अब हमें जल्दी से जल्दी इस बात का पता लगाना है कि वह कड़ी कौन सी है जो दोनों को जोड़ती है।"
"हाँ सर..…मुझे लगता है कि अगर वह आदमी जिसे चेतन ने बात करते हुए सुना था हमारे हाथ लग जाए तो बहुत कुछ सामने आ सकता है।"
"तुम ठीक कह रहे हो कमाल। उसकी सीसीटीवी फुटेज से निकाली गई तस्वीर सर्कुलेट कराई थी। पर अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। तुम उस समय बीमारी के कारण छुट्टी पर थे। लेकिन अब तुम उसे तलाशने का जिम्मा अपने ऊपर ले लो।"
"ठीक है सर। मैं पूरी कोशिश करूँगा कि इस मामले में सफलता पा सकूँ।"
यह कहकर सब इंस्पेक्टर कमाल चला गया। उसके जाने के बाद इंस्पेक्टर हरीश फिर से केस के बारे में सोचने लगा। उसके दिमाग में ताबीज़ वाली बात घूम रही थी। ऐसा नहीं था कि उसे किसी शैतानी शक्ति के होने का अंदेशा था। लेकिन खबर रोज़ाना की रिपोर्ट में लिखा था कि दिशा और पुष्कर ने टैक्सी में ताबीज़ को अच्छी तरह खोजा था। वह सोच रहा था कि ताबीज़ का संबंध अवश्य किसी खास बात से रहा होगा। वह अनुमान लगाने लगा कि क्या सिन्हा परिवार की किसी से कोई पुरानी दुश्मनी थी। जिसके चलते जादू टोना या ऐसा कुछ किया जा रहा था। चेतन ने जो बात सुनी थी उसके अनुसार वह आदमी कह रहा था कि ताबीज़ खो जाने से वह अपना काम कर गई। इंस्पेक्टर हरीश सोच रहा था कि दुश्मनी के पीछे कोई औरत हो सकती है।
सच पता करने का एक ही रास्ता था। वह विशाल से बात करे। उसके पास विशाल का नंबर था। उसने फौरन विशाल को फोन किया। लेकिन कॉल लगी नहीं। वह दोबारा फोन करने जा रहा था तभी शिवचरन ने आकर सूचना दी कि अदीबा आई है। शिवचरन के पीछे से अदीबा की आवाज़ आई,
"नमस्ते यादव जी। बहुत दिनों से मिलना नहीं हो पाया आपसे।"
यह कहते हुए वह अंदर आ गई। उसने बैठते हुए कहा,
"एक और कत्ल हो गया। बेचारा चेतन। ना जाने उसने किसी का क्या बिगाड़ा था।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"आप तो ऐसे दिखा रही हैं जैसे बहुत बुरा लगा हो आपको।"
"यादव जी यह कैसी बात कर रहे हैं ? किसी इंसान का कत्ल होगा तो एक इंसान होने के नाते अफसोस तो होगा।"
"लेकिन आपको तो बैठे बिठाए मसाला मिल गया। आपने उस हत्या को बड़े रोचक अंदाज़ में लोगों के सामने पेश कर दिया।"
इंस्पेक्टर हरीश की यह बात अदीबा को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"देखिए यादव जी मैंने वही किया जो मेरा काम है। इस तरह की घटनाओं की रिपोर्ट छापना ही मेरा काम है।"
इंस्पेक्टर हरीश ने गुस्से से कहा,
"आपका काम है कि आप भ्रामक बातें फैलाकर लोगों को गुमराह करें। आपको बस अपने अखबार का सर्कुलेशन बढ़ाना है। चाहे उसके लिए निराधार बातें ही क्यों ना की जाएं।"
यह इल्ज़ाम सुनकर अदीबा भी भड़क गई। उसने कहा,
"यादव जी अब आप बेवजह मुझ पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं। मैंने कौन सी निराधार बात लिखकर लोगों को गुमराह किया है।"
"आपने अपनी रिपोर्ट में ताबीज़ वाली बात लिखी है। आपको पता है कि उसकी वजह से कितने भ्रम फैल रहे हैं।"
"मैंने जो लिखा है वह सच है। ताबीज़ वाली बात मुझे इस्माइल ने बताई थी। इस्माइल उसी टैक्सी का ड्राइवर था जिससे दिशा और पुष्कर ट्रैवल कर रहे थे। आप चाहें तो इस्माइल से पूछ सकते हैं। बाकी लोगों ने उसे किस तरह लिया यह मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है।"
"बिल्कुल....आपकी ज़िम्मेदारी तो सिर्फ अखबार को फायदा पहुँचाना है।"
इंस्पेक्टर हरीश का यह तंज़ अदीबा को चुभ गया। वह उठकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"यादव जी मेरी रिपोर्टिंग से अगर मेरे अखबार को फायदा पहुँचता है तो यह मेरा हुनर है। मैंने कुछ भी झूठ नहीं लिखा है। वही लिखा है जो हुआ है।"
अदीबा ने नमस्ते किया और वहाँ से चली गई। इंस्पेक्टर हरीश को एहसास हुआ कि वह कुछ अधिक ही तल्ख हो गया था। लेकिन अब तो जो होना था हो चुका था। उसने अपना फोन उठाया और एकबार फिर विशाल का नंबर लगाया। मैसेज सुनाई पड़ा कि रीचार्ज ना होने से इनकमिंग कॉल सेवाएं समाप्त हो गई हैं। कुछ सोचकर इंस्पेक्टर हरीश ने केदारनाथ का नंबर मिलाया। घंटी बजी पर फोन नहीं उठा।

विशाल तालाब वाले मंदिर के चबूतरे पर बैठा था। उसके हाथ में खबर रोज़ाना की प्रति थी। खबर पढ़कर वह बहुत गंभीर हो गया था। तभी उसका एक साथी उसके पास आकर बैठ गया। उसने कहा,
"क्या बात है विशाल फोन रिचार्ज क्यों नहीं कराते हो। तुम्हें फोन मिलाया था। पर पता चला कि इनकमिंग बंद हो गई है।"
विशाल ने उसकी तरफ देखा पर कुछ कहा नहीं। वह उठा और अखबार लेकर अपने घर की तरफ चल दिया।

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