24. उन्हें विश्वास नहीं हुआ ब्राह्म मुहूर्त का समय। दूर से आती हुई पपीहे की ध्वनि पक्षियों की फड़-फड़ । झाड़ियों के बीच से मयूर मयूरी की सुगबुगाहट अभी आसमान में लालिमा का कोई चिह्न नहीं था। पक्षि शावक कुलबुलाकर आँख मूँद लेते। घाघस मुआ... मुआ की ध्वनि कर अभी चुप हुआ है। श्रृगाल छिपने के स्थान पर जाने वाले हैं।
चाहमान शिविर में कुछ थोड़े से लोग उठकर नित्यकर्म की ओर उन्मुख हो रहे थे। बहुत से लोग अभी सोते हुए पुरवा का आनन्द ले रहे थे। अचानक घोड़े हिनहिना उठे। लोग जब तक कुछ समझें, शिविर पर तीर बरसने लगे । 'शिविर में हल्ला मच गया। जो जहाँ था, वहीं चिल्ला पड़ा। महाराज सामन्त सिंह, जैत परमार, चामुण्ड सभी चटपट उठे तीर लगातार बरसते रहे। 'आक्रमण हो गया महाराज । हम लोग कपट के शिकार हुए,'चामुण्ड ने कहा।
रणवाद्य बजने लगा। सैनिक शीघ्रता से तैयार होने लगे। चाहमान शिविर से भी ललकारते हुए सवार निकलने लगे। चाहमानों की ओर से भी तीर चलने लगे। गजपाल हाथियों को लेकर बढ़ने लगे। चामुण्ड का अग्रिम दल आगे बढ़ा। शाह के अग्रिमदल से सामना हुआ। रुस्तम खां चामुण्ड के सामने आ गए। 'चुपचाप लौट जाओ नहीं तो पसलियाँ नहीं बचेंगी', चामुण्ड ने हाँक लगाई। 'यह मैदाने जंग है भाँड़ों का दंगल नहीं', रुस्तम ने अपने जंगजुओं को आगे बढ़ने के लिए ललकारा। चामुण्ड का दल भी आगे बढ़ा पर तुरुष्क थोड़ी दूरी बनाकर ही तीर छोड़ते। दाहिमा वीरों ने शाही सैनिकों की युद्ध नीति को समझते हुए एक दम से हल्ला बोल दिया।
राणा सामन्त सिंह बाएँ मोर्चे पर आगे बढ़े उनके साथ मदन परिहार, कूरम्भ, जामराय यादव अपने अश्व नचाते हुए आगे बढ़े। शाह की ओर से खुरासान खां आगे बढ़े। उनके साथ समी, महमूद, हाजी, हुसैन जैसे सरदार पिल पड़े।
जैसे ही जैत परमार दाहिनी ओर बढ़े उनके साथ अचलेश खींची, धीर परमार, चन्द्रसेन बड़गुज्जर, तेजल डोपिया तुरुष्क सेना को ललकारतें हुए आगे बढ़ चले ।
पृष्ठ भाग में महाराज पृथ्वीराज आदि भयंकर पर विराजमान थे। उनके साथ गुरुराम पुरोहित तथा अनेक गहलौत सरदार मूँछों पर ताव देते हुए निकल पड़े।
तुरुष्क सेना में शहाबुद्दीन गोरी स्वयं पृष्ठभाग में तातार खान, हाहुली राय, पीरन, कुतुबुद्दीन और उम्मीद खान के साथ लोगों को उत्साहित कर रहे थे।
हाहुलीराय को देखते ही पृथ्वीराज का चेहरा तमतमा उठा। पावस पुण्डीर ने उसी समय आकर प्रणाम किया। महाराज की दृष्टि भाँपते हुए पावस ने कहा 'महाराज, आज्ञा हो तो हाहुलीराय का सिर ले आऊँ।' 'शेर के बच्चे, तू हाहुली पर घात लगा', महाराज ने कहा। उसके बाद पावस पुण्डीर ने अपने एक हजार सैनिकों के साथ चक्कर लगाते हुए हाहुली को ललकारा। जब तक वे संभलें उसने कसकर वार किया। सिर कट कर गिरते ही एक पुण्डीर सैनिक ने उठाया और पावस को दे दिया। पावस एक हाथ में सिर एक हाथ में तलवार लिए घोड़े की रास को दांत से दबाए महाराज पृथ्वीराज की ओर बढ़ गया। हाहुलीराय का सिर काट लेने से उसको देखकर लोग भागने लगे। यह शाह ने देखा, तब तक पावस पुण्डीर चाहमान सेना के घेरे में जा चुका था। महाराज के सामने पहुँचते ही सिर नवा कर प्रणाम किया। महाराज ने हाथ उठा, उसका उत्साहवर्द्धन किया।
शहाबुद्दीन गोरी चिन्तित हुआ। उसने अपने सिपहसालारों को ललकारा। दोनों के बीच घमासान होने लगा। यद्यपि शाह के सैनिक गुत्थमगुत्था युद्ध से बचने का प्रयास करते पर कहीं न कहीं उन्हें भिड़ ही जाना पड़ता।
महाराज ने देखा कि सामन्त सिंह पर तुरुष्कों का दबाव बढ़ गया। उनके बहुत से सैनिक कट कट कर गिरने लगे हैं, पावस को समर की सहायता के लिए भेजा। स्वयं भी उसी ओर बढ़ते गए। रक्त की नदी बह चली थी। किसी के हाथ कटे थे, किसी के सिर कोई घायल पड़ा कराह रहा था। युद्ध का यह दृश्य देखकर किसी को वितृष्णा को सकती है पर मानव ने युद्ध को महिमा मंडित कर दिया है। परिणाम भी भोग रहा है पर विकल्प अभी भी नहीं निकल पाया है। युद्ध का आह्वान होते ही अनेक गलत दृष्टिकोण सही मान लिए जाते हैं।
चामुण्डराय शाह की सेना में अपने सैनिकों को घुसाकर आर-पार की लड़ाई का मन बना चुके थे। जो भी सामने पड़ता वे उसे यमलोक का रास्ता दिखा देते। बाएं से सामन्त सिंह और दाएं जैत परमार शाह की सेना को दबाते हुए निकलने का प्रयास करने लगे। पर शाह की सेना भी अपना दबाव बनाए हुई थी। किशोरों के युद्ध कौशल को देखकर लोग दाँतों तले उंगली दबाते चाहमान सेना में अनेक किशोर युद्ध को खेल समझ अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते। सामन्त सिंह को शाही सेना से घिरते देख काका कन्ह उनकी ढाल बनकर पहुँच गए। वे अभी अभी अपने सैनिक बल के साथ सेना में शामिल हुए थे।
शाह की ओर से नुसरत खान अपने सैनिकों सहित झपटा। कन्ह को ललकारते हुए सांग चला दी। कन्ह ने ढाल पर लिया और कुन्त से प्रहार किया। जब दोनों भिड़ गए तो तलवारों से एक दूसरे पर वार करने लगे। अनेक सैनिक इनके युद्ध कौशल को देखने लगे। कन्ह ने तलवार से नुसरत का सिर भुट्टा सा उड़ा दिया पर नुसरत खान का नेजा कन्ह के पेट में धँस गया। दोनों अपने अश्वों से गिरे और स्वर्ग सिधार गए। कन्ह के गिरते ही शाह की सेना में खुशी की लहर दौड़ गई नक्कारे बज उठे। महाराज की आँखें भर आई।
जैत परमार को शाह की सेना में धँसते देखकर विपक्षी सैनिकों में से अनेक ने उन्हें ही पृथ्वीराज समझ धावा बोल दिया। जैत बिना किसी भय के अपना हाथी शाही सेना में धँसाते चले गए। जो भी सामने पड़ता, यमलोक सिधार जाता। अनेक लोगों के आक्रमण को झेलता हुआ जैत पूरी तरह से घिर गया पावस ने यह दृश्य देखा पर जब तक वे जैत तक पहुंचे, भयंकर कटाकटी करते हुए जैत यम का द्वार खटखटा चुके थे। अब पावस पर शाही सेना झपट पड़ी। हाहुलीराय का सिर काट लेने के कारण उसका आतंक फैल गया था। भयंकर युद्ध करता हुआ वह आगे बढ़ा। गाजी खान ने उसे ललकारा। गाजी का चंडूल किन्तु कद्दावर शरीर लोगों में भय पैदा करता था। जितने भार की उसकी सांग थी उतना ही पावस के शरीर का भार था, पर अपनी चुस्ती और तेजी में वह बड़ों बड़ों के कान काट लेता। ग़ाज़ी और पावस दोनों एक दूसरे को छकाते रहे पर ग़ाज़ी का एक बार पावस पर और पावस का ग़ाज़ी पर ऐसा पड़ा कि दोनों ढेर हो गए। पावस के गिरते ही शाही सेना में नगाड़े बजने लगे। शाही सैनिक खुशी से उछल पड़े।
यह दृश्य चामुण्डराय ने देखा। वे दाहिमा वीरों के साथ आगे बढ़े। सूर्य पश्चिम की ओर बढ़ गया। उसकी किरणें तिरछी होने लगी थीं। धूप और उमस ने अपना प्रकोप जारी रखा। क्षेत्र में घमासान मचा हुआ था प्रातः से युद्धरत दोनों सेनाएँ कुछ शिथिल होने लगीं थीं कि बारह हजार अश्वारोहियों का एक दल टिड्डी की भाँति शाह के नेतृत्व में पृथ्वीराज को घेरने के लिए चल पड़ा। सोमेश्वर ने मार्गदर्शन करते हुए शाह की सुरक्षित सेना को पृथ्वीराज के बिल्कुल निकट पहुँचा दिया। चामुण्ड राय ने महाराज की ओर दृष्टि घुमाई तो देखा कि वे शाह के सैनिकों से घिर गए हैं। उन्होंने अपने दाहिमा वीरों को ललकारा और शीघ्रता से महाराज को पीछे किया और स्वयं आगे आकर शाही सेना को प्रत्युत्तर देने लगे। दाहिमा वीर यद्यपि प्रातः से ही युद्ध कर रहे थे, आगे बढ़े पर शाही कवचधारी अश्वारोहियों के सामने टिकने में उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। चामुण्डराय का हाथी धँसता चला गया। शाही अश्वारोहियों ने उसका हौदा काट दिया। चामुण्ड तुरंत घोड़े पर सवार हो आगे बढ़ा पर तेज़ अश्वारोही उसे घेर चुके थे। मंसूर खान ने उसे ललकारा। चामुण्ड ने सांग से प्रहार किया पर मंसूर बचा ले गए। उसने बाण मारा। चामुण्ड की धुकधुकी पर बैठ गया। वे घोड़े से जब तक गिरें तब तक कई तीर उनके शरीर में धँस चुके थे। चामुण्ड के गिरते ही शाह के अश्वारोही खुश हो उछलने लगे। अनेक प्रकार की आवाजें आने लगीं। तुरही, मुरज, नगाड़े बज उठे। सामन्त सिंह ने देखा कि शाह के सैनिक महाराज को घेरते जा रहे हैं। वे भी अपना मोर्चा छोड़ पृथ्वीराज के बचाव में कूद पड़े। बादल के एक टुकड़े ने सूर्य को घेर लिया। लगा जैसे शाम हो गई। सैनिकों को पसीना पोछने की भी फुर्सत नहीं थी। शाही सेना के अश्वारोही बढ़ते जा रहे थे। सामन्त के साथ जो अश्वारोही थे, प्राणों का मोह छोड़ आगे बढ़े। दोनों ओर के कई सहस्त्र सैनिक काम आ चुके थे। चाहमान सेना के अधिकांश वीर कट चुके थे अब वे सुरक्षात्मक रुख अपना रहे थे। पृथ्वीराज को पकड़ने के प्रयत्न किए जा रहे थे। मीरजादों के एक दल को ललकारते हुए शाह ने कहा 'वह पृथ्वीराज है पकड़ लो उसे मीरज़ादे जैसे ही आगे बढ़े सामन्त सिंह के सहयोगियों ने उन्हें ललकारा। पहले तीरों से फिर सांग, तलवार से पर अन्त मे घूसे, मुक्के, कटार, बिछुए चलने लगे। सैनिक एक दूसरे को हूलते हुए गिरने लगे।
शाह ने अपने भांजे खानख़ाना से सामन्त सिंह को पकड़ने के लिए कहा। सामन्त ने भी प्राणों की चिन्ता छोड़ खानखाना पर सांग चला दी। पर खानखाना बचा ले गए। खानखाना की सांग सामन्त सिंह की जांघ में धंस गई। पर उन्होंने घोड़े को उछालकर तलवार से खानखाना का सिर उड़ा दिया। जमाल खान ने देखा घोड़े को एड़ लगाई। सामन्त का सिर तलवार से उड़ा दिया। बादल हटा पर दिन डूबने लगा था। चाहमान सेना का अधिकांश कटाकटी में काम आ गया था। जो बच गए थे वे सब महाराज की सुरक्षा में एक जुट हो गए। महाराज ने आँखें उठाकर देखा। चारों और शाह के सैनिक घेरते आ रहे थे। तुर्क सैनिक शाह की शह पर उत्साहित हो दबाव बनाते जा रहे थे। पृथ्वीराज को लगा कि अब बचना मुश्किल है। उन्हें इसी समय चन्द और संयुक्ता दोनों का स्मरण हो आया। पर दोनों दूर थे उनसे किसी प्रकार का सम्पर्क संभव नहीं था। उन्होंने माँ शारदा को स्मरण किया। आँखों में अनेक बिम्ब उभरते और विलीन होते रहे। बगल में ही श्री राम पुरोहित थे। महाराज ने उनसे कहा, 'अब आप दिल्लिका चले जाइए। राजकुमार को देखिएगा।' न चाहते हुए गुरु राम जाने के लिए प्रस्तुत हुए महराज ने कान का कुण्डल उतार कर उन्हें दे दिया। कुण्डल लेकर गुरुराम जैसे ही आगे बढ़े एक खल्जी पट्टे ने उनका कुण्डल देख लिया। उसने अश्व दौड़ाकर गुरुराम की गर्दन नाप दी। उनका सिर अलग हो गिर पड़ा। पट्टे ने कुण्डल छीन लिया।
पृथ्वीराज गुरुराम पुरोहित की बलि होते देख विषाद से भर उठे। उन्हें लगा कि मेरा दिया हुआ कुण्डल ही उनकी मौत का कारण बना। अब किसी से परामर्श लेने का कोई प्रश्न ही नहीं था। सभी संगी साथी स्वर्ग सिधार गए। जो बचे हैं वे उनके लिए मर मिटने को तैयार हैं। अब मौत का आलिंगन करना है।
शाह ने बलूच, और पठान सरदारों को ललकारा, 'देखते क्या हो? पृथ्वीराज को पकड़ो।' सभी अश्वारोही एक साथ पृथ्वीराज की ओर बढ़े। छः सरदार जो पृथ्वीराज के साथ थे, उन्होंने भी अपने घोड़े बढ़ा दिए। एक बार फिर भयंकर मार काट शुरु हो गई। किसका तीर किसे लग रहा है देखना कठिन था। अश्वारोहियों की भीड़ में बहुतों को मौत के घाट उतार के छः शूर भी कट मरे। पृथ्वीराज का महावत भी मारा गया।
महाराज ने अश्व पर बैठ उसे पुचकारा पर वह आगे बढ़ने के बदले नाट्यारम्भ में लग गया। सोमेश्वर ने शाह की ओर देखा । घोड़ा नृत्य करने लगा। बहुत प्रयत्न करने पर भी वह आगे नहीं बढ़ा। शाह ने भी सोमश्वर की ओर विश्वास पूर्वक देखा। शाह की ओर नक्कारे बज उठे। पर यह क्या? तुकों के तीर सोमेश्वर पर बरसने लगे। वे गिरे और उठ नहीं सके। क्षण क्षण कठिन लग रहा था। शाह ने तातार खां को ललकारा। उसके सैनिक पृथ्वीराज की ओर बढ़े। पृथ्वीराज ने बाणों की झड़ी लगाकर उन्हें रोकने का प्रयास किया। पर तीर खत्म होते जा रहे थे। शाह ने खुरासान को संकेत किया, उसने महाराज की ओर मुँह कर पूरी शक्ति लगा, कहा, 'ऐ हिन्द के सरताज पृथ्वीराज, तू अपनी कमान रख दे तू शहंशाह का कैदी हो चुका है। पृथ्वीराज ने सुना, चारों ओर दृष्टि घुमाई, अपना कोई शूर दिखाई नहीं पड़ा उन्होंने तीर चलाना बंद कर दिया।
एक पहलवान जो तीन दुम्बे अकेले खा जाता था, को शाह ने ललकारा, 'कमान छीन ले।' वह आगे बढ़ा। पृथ्वीराज उसे देखते रहे। जैसे ही वह निकट आया पृथ्वीराज ने एक तीर से उसका काम तमाम कर दिया। शाह के संकेत पर एक दूसरे पट्टे ने आगे बढ़कर पृथ्वीराज से कहा, 'कम्बख्त, काफिर की औलाद, अपनी कमान रख दे।' पृथ्वीराज तमतमा उठे, आँखें लाल हो गई।
उन्होंने तीर चलाकर उसका गला काट दिया। तीर खत्म हो गए तो उन्होंने तलवार निकाल ली। शाह के तीरंदाजों की बौछार से पृथ्वीराज की तलवार भी छूट गई। उन्होंने कटार निकाल ली। एक तीरंदाज़ ने तीर मारा। कटार उनके हाथ से दूर जा गिरी। उनकी हथेली में तीर धँस गया।
जैसे ही महाराज निहत्थे हुए, पहलवानों का एक दल उनसे लिपट गया। अब वे विवश थे, उन्हें बन्दी बना लिया गया। शाह की सेना में नगाड़े, तुरही बज उठे। जीती हुई सेना गर्जना कर अट्टहास कर उठी। शाह की जय जयकार होने लगी। 'अल्लाहो अकबर' का नारा गूंज उठा। घुड़सवार घोड़े नचाकर अपना हर्ष प्रकट कर रहे थे। जश्न अपने शबाब पर था। आसपास के गाँव वालों ने सुना। उन्हें विश्वास नहीं हुआ। इतनी जल्दी कोई निपटारा हो जायेगा इसकी उन्होंने कल्पना न की थी चाहमान शिविर के अधिकांश रक्षक पकड़ लिए गए। शाह की सेना शिविर सामग्री पर टूट पड़ी। घोड़े हाथी जो बच रहे थे, शाह के सैनिकों ने हाँक लिए। चाहमान धावक दिल्लिका, अजयमेरु, कान्यकुब्ज सीमा पर व्यस्त महादण्ड नायक स्कन्द को सूचित करने उड़ चले।
राजा पृथ्वीराज को बन्दी बना शाह की सेना फज़िर की नमाज़ पढ़ अजयमेरु की ओर कूच कर गई। अगले दिन फज़िर की नमाज़ उन्होंने अजयमेरु में पढ़ी। दुर्ग रक्षक बन्दी बना लिए गए। शाह के कारिन्दों ने अजयमेरु छाप लिया।
नगर में लूट मच गईं। मूर्तियां तोड़ी जाने लगीं। नगर वासियों के लिए यह नई विपत्ति थी। राजकोष पर शाह का कब्जा हो गया। पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर रखा गया। जो भी सुनता अपना माथा पीट लेता। शाह के सैनिक पूरे नगर में घूम रहे थे। बहुत से नागरिकों ने नगर छोड़ गाँवों की शरण ली। सरस्वती मंदिर जिसे महाराज विग्रहराज चतुर्थ ने निर्मित कराया था, शाह के सैनिकों से भर गया। यह एक विद्या मंदिर था जिसमें छात्र अध्ययन करते थे। यह चौकोर भूमि पर बना था जिसकी एक भुजा १७१ हाथ थी। पश्चिमी किनारे पर सरस्वती मंदिर था। इसमें १६५ हाथ लम्बी २७ हाथ चौड़ी खम्भों पर टिकी एक बैठक थी। यह भारतीय कला की अप्रतिम पहचान थी। शाह के फरमान से सरस्वती मंदिर को तोड़ कर मस्जिद में बदलने का काम शुरु हुआ।
जहाँ कहीं सोने, चाँदी की मूर्तियाँ मिली, उन्हें तोड़कर इकट्ठा कर लिया गया। हीरे, जवाहरात की खोज में सैनिक लग गए। नगर श्रेष्ठियों से सेना के लिए भोजन सामग्री, वस्त्र आदि उपलब्ध कराने के लिए कहा गया।
शाह ने अजयमेरु नरेश की बैठक में अपना दरबार लगाया। अपने शूरमाओं को शाबाशी और इनाम दिया। 'हमारे पास वक्त नहीं है', शाह ने कहा । 'हमें बहुत जल्द ग़ज़नी पहुँचना है।'
शाह के सम्मुख एक श्रेष्ठी को पकड़कर लाया गया।
'इसके घर से हमने सोना, चाँदी बरामद की। यह भी साथ चला आया है। कहता है शाह से अर्ज़ करेंगे।' तातार ने कहा ।
"क्यों मियां? क्या अर्ज़ करना चाहते हो?' शाह ने पूछा।
'महाराज, पुत्रिका के पाणिग्रहण हेतु' श्रेष्ठी ने इतना ही कहा कि शाह ने प्रताप सिंह से पूछ लिया, 'यह आदमी क्या कह रहा है?"
'हुजूर, अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ ज़ेवर बनवाया था। शादी तय हो चुकी है इसीलिए चाहता है कि वे उसे मिल जाएँ।'
'क्यों मियां यही बात है?" शाह ने पूछा।
'हुजूर इसके घर में कोई लड़की नहीं है,' सैनिक ने कहा।
श्रेष्ठी ने प्रताप सिंह की ओर संकेत किया। प्रताप बोल पड़े, 'हुजूर, इसकी बेटी ननिहाल गई है इसीलिए यहाँ नहीं है।'
'मसला अहम है । हमें सोना, चाँदी जवाहरात चाहिए। हमारे जंगजुओं को इसकी सख्त जरूरत है', शाह ने कहा।
'महाराज शगुन', श्रेष्ठी कहते कहते रह गया। प्रताप सिंह ने शाह को बताय, 'हुजूर, यह आदमी चाहता है कि शादी की रस्म वाला ज़ेवर इसे मिल जाए।'
'क्यों मियां?' शाह के पूछते ही श्रेष्ठी ने सिर हिला कर सहमति दी।
'ठीक है, इसके जेवरात ले आओ।' जेवरात शाह के सामने लाकर रखे गए।
'रस्म वाला ज़ेवर उठा लो, शाह ने कहा । श्रेष्ठी ने एक सोने की अंगूठी और गले का हार उठा लिया। शेष ज़ेवर सैनिक ले गए।
'जाओ' कहते ही श्रेष्ठी सिर नवा कर चल पड़ा। शाह ने अपने सहयोगियों से विचार विमर्श किया। मंदिरों से जो सोना, चाँदी मिला था उसे सैनिकों ने इकट्ठा किया। सरस्वती मंदिर पर मस्जिद निर्माण का जायजा लिया। यह भी निर्देश दिया कि मस्जिद बनाने में शीघ्रता की जाए।
शाह ने कुतुबुद्दीन ऐबक और किमामुल मुल्क, रुहुद्दीन हम्ज़ा को यह दायित्व सौंपा कि वे जीते हुए चाहमान राज्य की देख-रेख करें। चाहमान राजकुमार गर चाहेंगे तो शाह के अधीन राजा के रूप में कार्य करते रहेंगे। इस निर्णय के बाद ही दरबार बर्खास्त हुआ।