जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 8 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 8

उधर शक्ति सिंह अपनी बेटी नीलू को ढूँढने का भरसक प्रयास कर रहे थे और इधर नीलू ने उस इमारत के अंदर जाकर सब लड़कियों से बात की, वह हर लड़की से उसके बारे में सब कुछ जानना चाह रही थी। उसने सभी को दिलासा दिया कि वह शीघ्र ही उन सभी को यहाँ से निकाल लेगी। सभी लड़कियाँ नीलू से मिलकर बेहद ख़ुश थीं। एक आशा की किरण उनके अंदर प्रवेश कर गई थी कि शायद अब वह सभी इस नरक से बाहर निकल पाएंगी।

नीलू ने जान बूझ कर वापस इमारत से बाहर निकलने की कोशिश की किंतु गुर्गों ने उसे रोक लिया।

एक ने बदतमीजी से उससे कहा, “एक बार जो यहाँ आता है, यहाँ से वापस नहीं जा पाता, सीधे से अंदर जाओ वरना ठीक नहीं होगा।”

नीलू उन्हें बिना कुछ बोले ही अंदर चली गई।

हीरा लाल ने उस रात अपने आदमियों को गली के आसपास तैनात कर रखा था ताकि कोई भी आदमी उस इमारत तक न पहुँच सके। शाम बीत गई, चांद आ रहा था, लेकिन नीलू का कहीं पता नहीं चल पा रहा था। शक्ति सिंह ने सोचा अब तो पुलिस में शिकायत दर्ज़ करानी ही पड़ेगी। परेशानी में शक्ति सिंह यहाँ से वहाँ भटक रहा था। इतने में उसके फ़ोन की घंटी बजी, बेचैनी में बिना नंबर देखे ही शक्ति सिंह ने फ़ोन रिसीव कर लिया।

उधर से गुर्गे की आवाज़ आई, "शक्ति जी"

लेकिन उसकी आवाज़ सुनते ही शक्ति ने उसे डांट दिया, “बार-बार फ़ोन क्यों कर रहे हो?”

शक्ति फ़ोन काटने ही वाला था कि गुर्गे का अगला वाक्य उसके कानों तक पहुँच गया, "एक बड़ी खूबसूरत लड़की ख़ुद ही शिकार बनकर यहाँ आई है, शक्ति जी," शक्ति ने फ़ोन काट दिया।

कुछ ही पलों के बाद गुर्गे का वही वाक्य फिर से शक्ति सिंह के कानों में गूँजा तो शक्ति एकदम से डर गया, उसका शरीर कांप रहा था। वह डरावनी कल्पना की गिरफ़्त में आ गया और उसकी काटो तो खून भी नहीं जैसी हालत हो गई। उसने तुरंत अपनी जीप निकाली और सीधे पुरानी इमारत की तरफ़ तेज़ी से जीप दौड़ाई। जीप की स्पीड की तरफ़ ध्यान दिए बिना ही वह गाड़ी चला रहा था।

गली के पास शक्ति की जीप पहुँचे उससे पहले ही हीरा लाल के आदमियों ने उन्हें यह ख़बर दे दी।

हीरा लाल ने एक सेल फोन नीलू को दे रखा था, उस फ़ोन पर उन्होंने नीलू को मैसेज करके बता दिया कि उसके पिता आ रहे हैं। हीरा लाल जी का मैसेज आते ही नीलू बाहर की तरफ़ भागी, वह चाहती थी कि उसके पिता जब आयें तब गुर्गे उसको ज़बरदस्ती पकड़ रहे हों। हुआ भी बिल्कुल वैसा ही, नीलू के नीचे आते से ही गुर्गों ने ज़बरदस्ती नीलू को पकड़ लिया और उसे अंदर की तरफ़ खींचने लगे।

इतने में शक्ति सिंह की गाड़ी वहाँ पहुँच गई और गाड़ी से उतर कर वह अंदर की तरफ़ भागे। अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी बेटी को गुर्गों की गिरफ़्त में देखकर शक्ति सिंह ने सीधे पिस्तौल निकाल कर गुर्गों के ऊपर तान दी। उसके ऐसे ख़तरनाक तेवर देख कर गुर्गे एकदम से डर गए और उन्होंने तुरंत ही नीलू को छोड़ दिया।

हैरान होकर एक गुर्गे ने पूछा, “क्या हुआ शक्ति जी?”

नीलू ने डर कर अपने पापा के हाथ को ऊपर की ओर मोड़ दिया और उसी क्षण उसमें से एक गोली हवा का सीना चीरते हुए ऊपर की ओर चली गई। नीलू ने अपने पिता के हाथ से पिस्तौल छीन ली। शक्ति ने अपनी बेटी को सीने से चिपका लिया और अपनी बेटी को सही सलामत देखकर ठंडी सांस ली। शक्ति ने गुर्गों के गाल पर एक-एक चांटा रसीद किया।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः