जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 7 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 7

अपनी बेटी को उदास देख कर शक्ति सिंह ने चिंतित होते हुए पूछा, "बेटा क्या हो गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या मेरी बच्ची की? चलो डॉक्टर को दिखा देते हैं।"

नीलू देख रही थी कि उसे जरा-सा उदास देखकर पापा इतने चिंतित हो जाते हैं फिर दूसरी लड़कियों की तकलीफ़ उन्हें क्यों दिखाई नहीं देती। उसने कहा, "मैं ठीक हूँ पापा, डॉक्टर की ज़रूरत नहीं है।"

रात को सब अपने-अपने कमरे में सो गए, नीलू रात भर सोचती रही क्या करे? सुबह उठकर नीलू रोज़ की तरह चलने के लिए निकल गई, लेकिन हर सुबह की तरह वह वापस ना लौटी।

कुछ समय बाद उसने अपनी माँ को फ़ोन करके बताया, "माँ मेरी एक दोस्त मिल गई है मैं कुछ देर बाद घर आऊंगी।"

माँ ने कहा, “ओ के बेटा।”

नीलू ने बहुत सोच समझकर एक निर्णय लिया था और उसे अपने इस निर्णय में हीरा लाल जी की मदद चाहिए थी। नीलू ने उन्हें फ़ोन करके मिलने के लिए बुलाया। हीरा लाल भी नीलू से मिलने तुरंत ही आ गए। नीलू ने उन्हें अपना निर्णय सुनाया। सुनकर हीरा लाल जी हैरान रह गए और उन्होंने उसे मना कर दिया किंतु नीलू नहीं मानी।

उसने हीरा लाल को समझाते हुए कहा, “अंकल इसके अलावा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। पापा ऐसे तो नहीं मानेंगे।”

आख़िर कार हीरा लाल को नीलू की बात माननी ही पड़ी।

अपने मकसद को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अब नीलू ने अपना काम शुरू कर दिया। हीरा लाल जी भी उसका ख़्याल रखने के लिए तत्पर थे। दिन ढल गया, शाम होने आई लेकिन नीलू अपने घर नहीं पहुँची, तब नीलू की माँ ने उसे फ़ोन लगाया किंतु नीलू का फ़ोन स्विच ऑफ ही आ रहा था।

माँ को चिंता हो गई और तब उसने अपने पति शक्ति सिंह को फ़ोन लगा कर कहा, “नीलू सुबह से घर से गई है अब तक लौटी नहीं है। उसका फ़ोन भी बंद है मुझे बहुत चिंता हो रही है, आप जल्दी घर आओ और उसे ढूँढो।”

शक्ति सिंह भी चिंता ग्रस्त हो गए, तुरंत अपने नौकरों को बुला कर इधर-उधर भेजा और नीलू को ढूँढने की हर मुमकिन कोशिश शुरु कर दी लेकिन पूरे गाँव में ढूँढने के बाद भी नीलू का कहीं कोई पता नहीं चला।

पुरानी इमारत में शक्ति सिंह के आदमी हमेशा ही उपस्थित रहते थे, वे नीलू को नहीं जानते थे। नीलू ने पुरानी इमारत में जैसे ही प्रवेश करा, वहाँ उपस्थित शक्ति सिंह के गुर्गे इतनी खूबसूरत लड़की को इस तरह अपने आप ही इमारत में आते देखकर बहुत ख़ुश हो गए। शिकार स्वतः ही जाल में फंसने आ रहा है, उन्होंने उसे अंदर आने दिया।

एक गुर्गे ने उससे पूछा, "कौन हो तुम, यहाँ क्यों आई हो?"

नीलू ने उदास होते हुए जवाब दिया, "मेरा इस संसार में कोई भी नहीं है, कुछ गुंडे मेरे पीछे लगे थे। मैं उनसे बचते हुए यहाँ तक आई हूँ, मुझे कुछ वक़्त छुपने की जगह देंगे?"

"जी ज़रुर," गुर्गे ने ख़ुश होकर कहा

अब गुर्गे ने तुरंत ही शक्ति को फ़ोन लगाया यह बताने के लिए कि एक लड़की इस तरह से हमारे कब्जे में है किंतु बेचैन और चिंता ग्रस्त शक्ति सिंह ने गुर्गे का फ़ोन नहीं उठाया। वह तो अपनी प्यारी लाडली बेटी को ढूँढने के लिए कई जगह स्वयं ही फ़ोन लगाने में व्यस्त थे। दो-तीन बार गुर्गे ने फ़ोन किया किंतु शक्ति सिंह ने फ़ोन नहीं उठाया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः