भले ही उस नवजात शिशु के साथ गायत्री और हीरा लाल जी का कोई सम्बंध नहीं था परन्तु झाड़ियों में पड़े हुए उस शिशु को बचाने के लिए भगवान ने उन्हें चुना था। वह दोनों बाहर खड़े बेसब्री से डॉक्टर का इंतज़ार कर रहे थे।
कुछ देर में डॉक्टर ने बाहर आकर बताया कि बच्ची का बचना मुश्किल है। गायत्री रोते-रोते डॉक्टर से उसे बचाने की मिन्नतें करने लगी। डॉक्टर ने उन्हें दिलासा दी और कहा हम पूरी कोशिश करेंगे, किंतु कम से कम 24 घंटे बच्ची को डॉक्टरों की निगरानी में रखना होगा। यदि इतना समय निकल गया तो बच्ची बच जाएगी। इसके बाद डॉक्टर ने हीरा लाल से पूरी घटना के विषय में जानकारी ली। अस्पताल में सभी लोग इस दर्दनाक घटना की घोर निंदा कर दुःख व्यक्त करने लगे और इसे अंजाम देने वालों को धिक्कारने लगे।
डॉक्टर उस बच्ची का पूरा ख़्याल रख रहे थे। पूरा दिन और पूरी रात यूं ही बीत गई, दूसरे दिन सुबह आठ बजे डॉक्टर ने हीरा लाल और गायत्री को ख़ुशी के साथ बताया कि आपकी बच्ची को भगवान ने नई ज़िंदगी दे दी। यह सुनकर उन दोनों की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। तीन-चार दिन अस्पताल में रहने के उपरांत वह बच्ची को अपने घर ले गए। उन्होंने बच्ची का नाम विजया रखा और उसका लालन-पालन राजकुमारी की तरह होने लगा।
हीरा लाल यूं भी बेटियों से बहुत प्यार करते थे। वह गायत्री से हमेशा कहते रहते थे कि विजया यदि किन्हीं ग़लत हाथों में पड़ जाती तो कैसी होती उसकी ज़िंदगी? हीरा लाल हमेशा ऐसी लड़कियों के लिए चिंता करते थे जो इस तरह से किसी की गलती की सज़ा भुगतती थीं।
विजया धीरे-धीरे बड़ी होने लगी, वह घर में सबकी लाडली थी, उसके सभी नाज़ नखरे पूरा घर उठाता था। उसकी हर ज़िद पूरी करी जाती थी। गायत्री उसे भगवान का दिया वरदान समझती थी और इस तरह से उसका मिलना भगवान का आदेश समझती थी।
हीरा लाल का घर एक बड़ी हवेली के समान था नौकर चाकर, गाड़ियाँ सभी कुछ था किन्तु उनका घर ऐसी जगह पर था जहाँ से बाहर कहीं भी जाने के लिए केवल एक ही गली वाला रास्ता था। उन्हें वहाँ से होकर ही गुजरना पड़ता था।
उस गली में एक बहुत पुरानी खंडहर जैसी काफ़ी बड़ी इमारत थी, जिसमें 15-20 लड़कियाँ रहती थीं। हर शाम कोई लाली लगा कर कोई चमकीले कपड़े पहनकर सजी-धजी बाहर खड़ी नज़र आती थीं। हीरा लाल जी हमेशा वहाँ से निकलते वक़्त निगाहें नीची कर लिया करते थे। वह हमेशा उन लड़कियों के लिए कुछ करने का सोचते रहते थे किंतु कभी हक़ीक़त में कर ना पाए थे।
विजया अब 12 वर्ष की हो चुकी थी, वह अक्सर अपनी हवेली के बगीचे में खेलती रहती थी। एक दिन खेलते-खेलते वह गली से होते हुए उस इमारत तक पहुँच गई। वहाँ खड़ी एक लड़की ने उसे बड़े ही प्यार से अपने पास बुलाया। विजया उसके पास चली गई।
तब उस लड़की ने पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“मेरा नाम विजया है और आपका नाम क्या है दीदी?”
“मेरा नाम पिंकी है।”
पिंकी ने काफ़ी देर तक विजया से बात की और उससे बात करना पिंकी को बहुत अच्छा लगा।
तब उसने विजया से कहा, “तुम हर रोज़ मुझसे मिलने आया करो।”
विजया को भी उसके साथ अच्छा लगा। अतः उसने तुरंत हाँ कह दिया।
खेलते-खेलते विजया कभी-कभी पिंकी से बात करने आ जाती थी।
तभी एक दिन उस इमारत में चल रहे देह के व्यापार को चलाने वाला शक्ति सिंह वहाँ आया और उसने विजया को देख लिया।
उसके आते ही पिंकी ने विजया से कहा, "विजया तुम जल्दी यहाँ से अपने घर भाग जाओ।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः