शक्ति सिंह से मिल कर घर वापस आने के बाद हीरा लाल बहुत बेचैन थे, अपनी पत्नी को उन्होंने सारी परिस्थिति से अवगत कराया और विजया का अधिक ख़्याल रखने की सलाह दी। गायत्री भी बेहद डर गई थी, उन्होंने अब विजया की तरफ़ और अधिक ध्यान देना शुरु कर दिया। विजया को उस पुरानी इमारत में जाने से भी मना किया।
नादान विजया बार-बार प्रश्न करती रहती, "वहाँ क्या है मम्मा, वहाँ क्यों नहीं जाना चाहिए? वहाँ तो बहुत सारी दीदी और आंटी रहती हैं। एक दीदी तो मेरी दोस्त भी बन गई है और मुझे रोज़ बुलाती है।"
विजया की बातें सुनकर गायत्री और अधिक तनाव में आ गई किंतु उसे समझ नहीं आ रहा था कि नासमझ विजया को यह बात कैसे समझाये।
सेठ हीरा लाल लगातार इसी उधेड़बुन में थे कि काश कोई युक्ति मिल जाए और यह मसला हल हो जाए। एक दिन अचानक हीरा लाल के दिमाग़ में एक बहुत ही अच्छी तरकीब आई उन्होंने अपने आदमियों से पता लगाने के लिए कहा कि शक्ति सिंह के घर कौन-कौन रहता है और वह घर से बाहर कब जाता है।
फ़िर क्या था हीरा लाल के आदमियों ने सब पता लगा लिया उन्होंने उसे बताया, "सेठ जी उनकी केवल एक ही बेटी है, लगभग 20-21 साल की उम्र होगी उसकी, पत्नी है और नौकर चाकर भी घर में दिखाई देते हैं। शक्ति सिंह लगभग ग्यारह बजे घर से जाता है और रात में देर से ही घर वापस लौटता है"
हीरा लाल यह बात सुनकर ख़ुश हो गए और उन्होंने जैसा चाहा था बिल्कुल वैसा ही जवाब पाया।
दूसरे दिन लगभग दोपहर के दो बजे हीरा लाल, शक्ति सिंह के घर गए। हीरा लाल को देखकर नौकर ने उन्हें आदर से नमस्कार किया क्योंकि वह भी हीरा लाल को जानता था।
हीरा लाल ने यूं ही पूछा, "शक्ति सिंह जी हैं क्या?"
तुरंत ही शक्ति सिंह के नौकर रामा काका ने ना में जवाब दिया।
"अच्छा तो उनकी बिटिया तो होगी ना उसे बुलाओ"
"जी सेठ जी, अभी बुला कर लाता हूँ। आप अंदर आ कर बैठिये ना"
"नहीं, नहीं, मैं ठीक हूँ आप बिटिया को बुलाइए" रामा काका ने अंदर जाकर नीलू बेटी से कहा कि सेठ हीरा लाल जी आए हैं।
नीलू हीरा लाल जी का नाम सुनते ही बेहद ख़ुश हो गई। वह जानती थी कि हीरा लाल जी एक समाज सुधारक है और शहर में कई स्कूल और अस्पताल भी उन्होंने बनवाए हैं। विशेष तौर पर लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए वह हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं, वह तुरंत ही बाहर जाने के लिए निकली।
हीरा लाल जी बाहर ही रुके हुए थे। गुलाबी रंग की कुर्ती, सलवार और दुपट्टे में नीलू बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसके चेहरे से सादगी और शालीनता दूर से ही नज़र आ रही थी। हीरा लाल के पास जाकर उसने उनके पैर छुए।
"आइए ना अंकल, आप बाहर क्यों खड़े हैं, प्लीज अंदर आइए"
नीलू के ऐसे संस्कार देखकर हीरा लाल हैरान रह गए और सोचने लगे कि शक्ति सिंह की बेटी और इतनी संस्कारी, शायद माँ पर गई होगी।
नीलू के सर पर आशीर्वाद का हाथ रखते हुए वह बोल पड़े, "नहीं बेटा, जल्दी में हूँ असल में मैं तुम्हारे पास ही आया था, शक्ति सिंह के नहीं। बेटा मुझे तुमसे कुछ काम है, कुछ बात करनी है, तुम्हारी मदद की मुझे सख्त ज़रूरत है। समाज कल्याण का काम है, क्या तुम मेरी मदद करोगी?"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः