अतीत के पन्ने - भाग 42 RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग 42

इस तरह से छः महीने गुजर गए थे।
आलेख एकदम पति और पिता का फर्ज अदा कर रहा था।


पिया को अब एहसास हो गया था कि वो एक मां बनने वाली थी।
उसको अब तरह तरह की दिक्कतें आ रही थी।
आलेख एक डाक्टर होने की वजह से वो वी पी,चेक और वजन कम और ज्यादा ये सब देख रहा था।
आलेख ने वो सब किया एक पति करना है और एक बाप भी।।
ना जाने भगवान को क्या मंजूर था जो ये सब कुछ चल रहा था।

छः महीने में ही तो गोद भराई की रस्में होती है।
बस एक बार मुंह से कह दो बस आलेख ने तुरंत हामी भर दी।
पिया ने कहा अब अलग-अलग स्थानों में जाकर रिश्ते दारों को बोल कर आना।
फिर क्या था सब कुछ तैयारी शुरू हो गई।
हवेली में मनपसंद पकवान बन रहा था जो जो जैसे कहा पिया ने वही किया आलेख ने।
क्या सब दोस्ती के लिए या फिर कुछ और।।
ये सब कानाफूसी हो रही थी।।

फिर इस तरह से एक बार फिर दुल्हन की तरह सजी हुई पिया नीचे बैठक में जाकर बैठ गई थी। फिर जो जो नियम होता है गोद भराई का वो सब होने लगा।
सब रिश्तेदार आलेख का व्यवहार देखकर कर बोल ही दिया कि आलेख इतना खुश जैसे वहीं पापा बनने वाला है।
आलेख ने कहा अरे बाबा दोस्त की खुशी मेरी खुशी।
आलेख ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी।।
तरह तरह की मिठाई पकवान सब बना था।
फिर सब रिश्तेदार खाना खाने के बाद सब चले गए।
आलेख ने कहा देखो आज जो कुछ कहा वैसा ही हुआ सब कुछ पर मुझे क्या मिला इसमें।
पिया ने कहा अरे शादी कर लो।।
आलेख ने कहा ना ये नहीं कर सकता हूं तुम तो जानती हो मैं कभी किसी और को वो जगह नहीं दे सकता हूं।
किसी को धोखा नहीं देना चाहता हूं।
पिया ने कहा हां पर खुद को धोखा दे रहे हो।।
आलेख ने कहा ठीक है अब तुम आराम करो।मैं और छाया मिलकर तुम्हारे से तोहफों को समेट कर रखता हूं।।
फिर पिया आराम करने लगी और सब सामान समेटा और पिया के बैग में रख दिया।
छाया ने कहा बाबू अपनी जिंदगी ऐसे ही बर्बाद कर दिया आपने आज छोटी मां होती तो।।
आलेख ने कहा हां, छोटी मां भी तो युही चली गई और मैं भी।।।
इस तरह से पिया का आठवां महीना भी लग गया था डाक्टर ने अब और भी सावधान रहने को कहा है।।
आलेख ने कहा फिर भर्ती कराया जाएं।
पिया ने कहा नहीं इतनी जल्दी में भला क्यों?
अभी तो समय है।
आलेख ने कहा अरे बाबा अब वीर आएगा कि नहीं?
पिया ने कहा अरे नहीं आएगा।
फिर इस तरह से आलेख ने पुरा ध्यान रखा जैसे एक पति रखता है।
एक रात को आलेख ने कहा पिया तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?
शादी तो कर सकती थी मेरा तो सब कुछ तुम्हारा था पर।।।
पिछले कुछ सालों में तुम बहुत बदल गई थी जानता हूं बड़ी मां की वजह से।।
पिया ने कहा अरे अब ये सब बातें मत करो तुम।।
आलेख ने कहा हां ठीक कहा तुमने!
फिर दो दिन बाद ही पिया को प्रसव शुरू हो गया था।।
आलेख बिना देरी किए एम्बूलैंस बुलाया और फिर पिया को लेकर नर्सिंग होम भर्ती कराया।
और फिर सुबह तक आपरेशन हुआ और फिर पिया ने एक बेटी को जन्म दिया।
बच्चे को सबसे पहले नर्स ने आलेख के गोद में दिया।
आलेख खुद को बहुत खुशनसीब समझ रहा था कि उसके गोल में उसकी संतान था पर आलेख रोने लगा और फिर ख़ुशी के मारे पुरे अस्पताल में मिठाईयां बांटी।
एक हफ्ते तक पिया अस्पताल में भर्ती रही उसके बाद पिया और बेटी दोनों को लेकर आलेख हवेली पहुंच गया जैसे कि सब खुशियां वापस आ गई हो।
आलेख को लगा जैसे उसकी छोटी मां वापस आ गई हो।
हु-ब-हु वहीं हंसी, वहीं मुख,ललाट।।
आलेख पागलों जैसे खुशी के मारे क्या क्या न करता पर ये खुशी तो कुछ दिनों के लिए थी।
अब एक जुदाई था।।।।।
पिया एक हफ्ते के बाद आलेख से बोली कि अब मुझे जाना होगा आलेख।।
तुम वादा करो कि कभी भी अपनी शक्ल नहीं दिखाओगे हमें।
मेरी शादी शुदा जिंदगी में कभी दखल नहीं दोगे।।
आलेख ने कहा हां मैं बस इतना चाहता हूं कि तुम हमारी बेटी का नाम काव्या रखना।।
पिया ने कहा अरे ये कैसे हो सकता है तुम जानते हो वीर कभी नहीं मानेगा।
आलेख ने कहा ओह ठीक है तुम खुश रहो और मेरी गुड़िया को खुश रखना।।
कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो एक बार एक फोन कर देना।
आलेख ने अपने गले का हार उतार कर बेटी के गले में पहना दिया और फिर कहा चलो ठीक है तुम जाओ। फिर मुझे भी बहुत काम है।।
पिया अपनी बेटी को लेकर चली गई।
आलेख फिर से उस हवेली में अकेला रह गया था।
वो पागलों कि तरह अपनी बेटी को ढुंढ रहा था उसकी खुशबू को महसूस कर रहा था।।
उसके कुछ कपड़े लेकर अपने अलमारी में रख दिया और फिर बोला छोटी मां आज मेरे पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है।।
ये कैसा जीवन है छोटी मां।
जो आपके साथ हुआ वो मेरे साथ भी हुआ।
इस तरह से एक साल बीत गया था।
हवेली में पहले जैसा ही काव्या कोचिंग सेंटर चल रहा था।
आलेख का चैम्बर बहुत ही अच्छा चल रहा था।
उसे बस अब एक चाहत थी कि एक बार वो बेटी को देख पाता।
आज उसका जन्मदिन है पर मैं कितना अभागा हूं जो एक बार देख ना सका।
एक साल की हो गई गुड़िया।।
पिया ने इतना गलत किया मेरे साथ मुझे तो उसने कभी प्यार नहीं किया बस जो ज़रूरत था बस।।
आलेख भी अन्दर से कमजोर भी हो गया था उसने तो सबकी कितनी कठिन से कठिन बिमारी ठीक किया पर उसको एक बहुत ही कठिन बिमारी हो गई जो शायद लाइलाज हो।।
उसे रक्त की बिमारी हो गई थी कैंसर से पीड़ित था आलेख।।
वो शायद जान कर खुद को मार देना चाहता था।।
छाया भी अब बुढ़ी हो गई थी।
छोटे मालिक जब तक छाया जिन्दा है बस आप बिल्कुल चिंता ना करें

आलेख हंसते हुए कहा हां और क्या अब आपका ही आसरा है बचपन से ही आपको देख रहा हूं।
फिर आलेख थोड़ा बहुत खाना खाने के बाद एकान्त में जाकर बैठ गया।
और फिर अलमारी में से निकाल कर कुछ अतीत के पन्ने को अपनी कांपते हुए हाथों से कलम पकड़ कर लिखने लगा।
शायद यही एक सहारा बचा था जीने का ना जाने क्यों वो भी अपनी छोटी मां की तरह ही कुछ आदत सी लग गई थी डायरी लिखने का।।
भला कैसे ये हो सकता है कि कोई पुरुष भी अपनी व्यथा पन्नों में उतार सकता है।।
एक स्त्री अपनी शक्ति से खुद को सम्हाल लेती है अकेले रहना भी सीख लेती है पर एक पुरूष कभी भी अकेले नहीं रह सकता है उसे अकेलापन काटने को डरता है।।
बस किसी तरह आलेख के दिन कट रहे थे पता नहीं दिल में किस पल की आस लेकर आलेख जिन्दा था।
कैंसर ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी।
जितना पैसा आता वो सब इलाज में जा रहा था रखें भी तो किसके लिए? कोई भी नहीं था उसका।।
आलेख की हालत गंभीर होती जा रही थी।
किसी तरह से शाम ने आलेख को दिल्ली के एम्स में भर्ती करवाया।

इलाज चला काफी दिनों तक फिर भी एक आस बंधी हुई थी जैसे कि कोई आने वाला है।


आलेख आज बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ा था आज अठारहवां वर्ष गुजर गए थे।



क्रमशः