20.उठो वीरवर
गुरु श्री राम पुरोहित और चन्द आज बहुत दुःखी दिख रहे थे। उन्होंने महाराज से भेंट करना चाहा था पर महाराज आज अन्तःपुर से बाहर ही नहीं निकले। हाहुलीराय राज सभा में अपमानित होकर अपनी गढ़ी को लौट चुके हैं। महाराज ने मंत्रणा सभा में बैठना कम कर दिया है। सोमेश्वर और प्रताप सिंह के व्यवहार अधिक संदेहास्पद लग रहे हैं। गुप्तचरों ने सूचना दी कि धर्मायन के यहाँ गज़नी के तुर्कों का आना जाना बढ़ गया है। पर सबसे अधिक उद्वेलित करने वाली सूचना शहाबुद्दीन गोरी के बारे में थी। अपने चुने हुए तुर्क, ताजिक, खल्जी और अफ़गान घुड़सवारों की बड़ी सेना के साथ वह पेशावर पहुँच गया है। उसका उद्देश्य चाहमान नरेश को परास्त करना है। चन्द से महाराज की भेंट दो दिन पूर्व हुई थी। इस समय उनसे विचार विमर्श करना अत्यन्त आवश्यक था। उन्होंने प्रतिहारी को बुलाया। तालपत्र के टुकड़े पर स्थिति का विवरण देते हुए लिखा- गोरी आपकी धरती रौंद रहा है और आप गोरी के रस में मग्न हैं। महाराज ने चन्द का लिखा पढ़ा। अपनी असावधानी पर लज्जित हुए। गुरु राम पुरोहित और चन्द से आकर मिले। मंत्रणा कक्ष में चले गए। गुरु राम और चन्द दोनों ने नई सूचनाओं की जानकारी दी। कुछ अपनों के विश्वासघात पर चर्चा हुई। महाराज ने स्वीकार किया कि इधर कुछ दिनों से नींद अधिक आ रही है। पर कोई चिन्ता की बात नहीं है। चन्द आश्वस्त नहीं हुए। गुरु राम और चन्द दोनों ने औषधि लेने की बात कही।
'महाराज, ज्ञात हुआ है कि गोरी ने इस बार बड़ी सशक्त सेना तैयार की है ।'
'पर उसे कितनी बार हम हरा चुके हैं? अभी पिछली बार तो वह मरते मरते बचा है।'
'लेकिन हम लोग उसका पीछा कर नष्ट नहीं कर सके। इस समय हम अपने अनेक योद्धाओं को खो चुके हैं। कान्य कुब्ज के युद्ध में भी हमारे सत्तावन सामन्त मारे गए। सेनाधिपति स्कन्द दक्षिणी मोर्चे पर सन्नद्ध हैं। वहाँ से उन्हें हटाया नहीं जा सकता । गोरी से पिछला युद्ध तो उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा गया था।' चन्द कहते रहे। महाराज ने भी अनुभव किया कि सशक्त योद्धाओं का इस समय अभाव है। 'पर विकल्प ही अब क्या बचा है।' महाराज ने कहा, 'जो भी शूरवीर बचे हैं, उन्हें संगठित कर युद्ध संचालन करना होगा।' काका कन्ह मथुरा वृन्दावन की यात्रा पर थे। उन्हें शीघ्र बुलाने के लिए धावक दौड़ाया गया। चन्द ने जब यह बताया कि मंत्री सोमेश्वर और प्रताप सिंह जैसे वीर पर भरोसा नहीं किया जा सकता तो महाराज चौंक पड़े। जो छोड़ गए थे उन पर शंका करना तो ठीक था पर जो प्रशासन के अंग हैं क्या उनमें भी ऐसे लोग हो सकते हैं? महाराज को जल्दी विश्वास नहीं हुआ। दोनों पर महाराज का विश्वास था। इसीलिए जब तक कोई प्रत्यक्ष प्रमाण न हो, महाराज उन्हें खोना नहीं चाहते थे।
पृथ्वीराज के बहनोई चित्तौड़ नरेश राजर्षि सामन्त सिंह जिन्होंने डूगरपूर अपना आवास बनाया था, शहाबुद्दीन के आगमन की सूचना मिलने पर चिंतित हुए। दिल्लिका की स्थिति का भी उन्हें अनुमान था। उन्होंने अपने भाई बन्धुओं, मंत्रियों को इकट्ठा कर स्वयं दिल्लिका जाने का मन्तव्य प्रकट किया। राजकुमार को राज का भार सौंप, चुने हुए घुड़सवारों तथा कुछ गज सेना को साथ ले दिल्लिका की और चल पड़े। मार्ग में उन्हें और दाहक सूचनाएँ मिलीं- गोरी लाहोर पहुँच गया है। उसने पुराने सैनिकों को जिन्हें पिछले वर्ष दण्डित कर घुमाया था, क्षमादान दे दिया है। उसकी सेना का आकार बढ़ता जा रहा है।
पृथ्वीराज ने युद्ध को अनिवार्य समझ अपने सामन्तों को आमंत्रित किया। जो किसी कारण रूठ गए थे, उन्हें मनाने की भी योजना बनी पर कान्यकुब्ज या चन्देल से कोई सहायता की अपेक्षा करना व्यर्थ था।
राजर्षि सामन्त सिंह दिल्लिका के निकट पहुँचे, कविवर चन्द और पृथ्वीराज ने उनका स्वागत किया। निगमबोध घाट पर उनका खेमा लग गया। राजर्षि के साथ उनकी पत्नी रानी पृथाकुमारी भी थीं। रानी महारानी इच्छिनी के आवास पर ठहरीं। 'सुन रहा हूँ राजकीय कार्यों पर कम समय दे रहे हो। सामन्त आपस में ही भिड़ रहे हैं। यह अच्छी स्थिति नहीं, शहाबुद्दीन लाहोर में डेरा डाल चुका है। ऐसी स्थिति में थोड़ी भी असावधानी पूरे समाज के लिए बहुत भारी पड़ जाएगी। जनता का दुःख दर्द सुनना, उसका निदान ढूँढ़ना हमारा धर्म है। जनता का विश्वास ही हमारा सम्बल है। गणों की भाँति हम लोग चुने नहीं गए हैं, इससे हमारा दायित्व कम नहीं हो जाता।' सामन्त सिंह ने पृथ्वीराज को समझाया।
निगम बोध घाट पर ही पृथ्वीराज ने अपने लोगों से मंत्रणा की जिसमें गुरु राम पुरोहित, चन्द, चैतराव, बड़गुज्जर, प्रसंगराय खींची, जामराय यादव और राणा सामन्त सिंह सम्मिलित हुए। जानते हुए भी सामन्त सिंह ने पूछा 'चामुण्डराय कहाँ हैं?' महाराज ने चन्द को संकेत किया। 'राजर्षि, वे कारागार में निरुद्ध हैं', चन्द ने कहा। 'यह समय सभी को जोड़ने का है। सामन्त सिंह ने सुझाया। गुरु राम पुरोहित ने भी हामी भरी। निश्चित किया गया कि जो भी सरदार, सामन्त किसी कारण अलग हो गए हैं, उन्हें इकट्ठा किया जाए। छोटे मोटे विवादों को भूल जाने का यही समय है ।
'युद्ध को कभी छोटा न समझो। थोड़ी सी असावधानी बड़ा संकट पैदा कर सकती है।' सामन्त सिंह की इस चेतावनी के साथ ही सभा समाप्त हुई।
कारागार की कुंडी खटखटाते ही चामुण्डराय के मुख से निकला 'कौन?' 'मैं हूँ चन्द', चन्द ने लपक कर कहा 'कविवर आज कैसे दर्शन हुआ?" दीवार की ओर ही देखते हुए चामुण्डराय ने कहा, 'अवश्य कोई आवश्यकता पड़ी होगी अन्यथा आज तक....।'
'महावीर चामुण्ड, मेरी ओर तो देखो।'
'चामुण्ड कब से महावीर हो गया? कविवर मुझे मत बरगलाओ।' चामुण्ड की वेदना उभर आई। उन्होंने आँख उठाकर चन्द की ओर देखा। गुरु राम पुरोहित को भी सामने पाकर प्रणाम किया।
चन्द ने भृत्य को बेड़ियाँ खोलने का आदेश दिया। 'महाकवि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ रही है? अब तो मैं अभ्यस्त हो गया हूँ।'
'महाराज ने आपको मुक्त करने का आदेश दिया है।' चन्द ने कहा।
'इसमें भी कोई षड्यन्त्र होगा महाकवि ? मुझे यहीं रहने दो। राजा का क्या ठिकाना। एक छोटे से प्रकरण पर मुझे बेड़ियाँ डलवा दी। अब सारे वीरों को कान्यकुब्ज में खपाकर मुझे मुक्त किया जा रहा है। इससे राजा का क्या प्रयोजन सिद्ध होगा? मैं तो राजा के पक्ष में अस्त्र उठाने से रहा।'
'आप योद्धा हैं। देश और समाज की ढाल हैं। समाज की सुरक्षा का दायित्व आपके कन्धों पर है', गुरु ने कहा।
'योद्धा को यदि शत्रु ललकारे, तो वह कब तक खड़ा देखता रहेगा? गोरी लाहोर तक आ गया है। अनेक वीर कान्यकुब्ज और चन्देल युद्ध में खप चुके हैं। आप पर ही सबकी निगाहें लगी हैं।' चन्द ने जोड़ा।
'महाराज के साथ पुण्डीर, यादव, खींची, परमार जैसे योद्धा हैं ही, एक चामुण्ड यदि न भी रहा तो क्या अन्तर पड़ेगा?" चामुण्ड राय का क्रोध कम नहीं हुआ। 'राजर्षि सामन्त सिंह और महाराज पृथ्वीराज भी आपका स्वागत करने के लिए आए हुए हैं। अपना गुस्सा खत्म करो। गुरुराम पुरोहित बोल पड़े। 'क्या परमपूज्य डूगरपुर नरेश ?' चामुण्ड चौंक पड़े।
'हाँ, मैं आ गया हूँ वीरवर। यह संकट का समय है। यह जानते हुए कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है, मैं तुम्हें युद्ध का मोर्चा संभालने के लिए सहमत कराने आया हूँ। महाराज पृथ्वीराज भी अपनी गलती अनुभव कर रहे हैं। यह समय आपसी अन्तर्विरोधों को समाप्त कर एक जुट होने का है। यह समाज, देश और यह दिल्लिका नगरी तुम्हारी ओर बड़ी आशा से देख रही है। उठो, यह बैगनी पाग बांधो।' सामन्त सिंह कहते गए पर चामुण्ड मौन ही रहा।
'उठो वीरवर', कहकर सामन्त सिंह ने चामुण्ड का हाथ पकड़ लिया। चामुण्ड उठ तो गए पर उनकी आँखों से आँसू झरने लगे। महाराज पृथ्वीराज ने आगे बढ़कर चामुण्ड को गले लगा लिया और बैगनी पाग जो भृत्य लिए खड़ा था, चामुण्ड के शीश पर रख दी।
'जब महाराज मुझ पर कृपालु हैं तो सब ठीक है। में महाराज का सेवक हूँ ।'
महाराज के साथ ही उन्होंने धरती को भी प्रणाम किया। कारागार से बाहर निकलते ही जन समूह इकट्ठा हो गया। चाहमान नरेश के साथ ही 'चामुण्डराय की जय' का भी उद्घोष होने लगा। चाहमान नरेश ने चामुण्डराय को तलवार भेंट की। चामुण्डराय के लिए लाया गया श्याम लोहित अश्व निकट ही खड़ा था। महाराज के संकेत पर चामुण्डराय अश्व के निकट आए। उसे पुचकारा और कूद कर सवार हो गए। नरेश और राजर्षि दोनों प्रसन्न हुए। चन्द ने चामुण्ड का यशगान किया। चामुण्ड ने अपना कार्यभार सँभाल लिया है, यह जान नागरिकों में हर्ष की लहर दौड़ गई पर जो चामुण्ड से असंतुष्ट थे, उन्हें लकवा मार गया। राज कर्म में इस तरह के समूह बनते बिगड़ते रहते हैं।