गुलदस्ता - ४
२०
खुले मैदान में
जब बिजली चमकी
तब होश गवाँकर मैं
उसे देखतेही रह गई
क्या उसका बाज
चापल्य से किया हुआ
चकाचोंध शुभ्रता का साज
तेज रफ्तार गती की
प्रचंड ताकत
अनाहत नाद की
गुंजती हुई प्रखर वाणी
गगन व्यापक मस्ती
मालिन्य धो देने का ध्यास
क्षणमात्र के दर्शन से
वह आत्मस्वरूप तेज
देखकर महसुस हुआ
यह भी एक सगुण
साक्षात्कार है
इसी भावावेश में
अपना होश गवाकर
मैने आँखे बंद कर ली
................................
२१
समंदर की अनंतता में
शोर करते हुए किनारे
गहिरा नीला पानी सेतू पर
सफेद रेत को पुकारे
दौडती आती है लहरे
तट की आकर्षण में
भीगे हुए किनारों से मिलकर
चली जाती है मस्ती में
समंदर की गर्जना
आकाश में समा जाती है
सूरज डूबे पानी में
दिन की चिलचिलाहट थम जाती है
लहरेदार रात गूढ भरी
नृत्य करता काला पानी
तारों भरे आकाश में
हलकेसे बात करता कोई
उछलता है समुंदर
तारों को पाने के लिए
चांदनियाँ देखे दुर से
खुदको समंदर में समाए हुए
पानी में तारों का
प्रतिबिंब देखकर
समंदर गहरी शांती पाता है
तारों को थपकीयाँ देकर
लोरी गुनगुनाता है
भोर की अमृतबेला में
लुप्त हो जाते है तारें
सूरज की लालीमा में
समंदर, अब दिन को पुकारे
................................
२२
बहुत राह देखी तुम्हारी
लेकिन तुम नही आए
कभी लगा ऐसा, की तुम रुठ गये हो
कभी कभी हो जाती है देर,
इसीलिये तुम्हारी राह देखी नही
तो, तुम्हे इसी बात का गुस्सा आ गया
और गरजते बरसते बिजली की
चकाचौंध से अपना गुस्सा व्यक्त किया
फिर शांत होकर थोडीही देर के बाद
रिमझिमती जलधारा में
भीगोकर सबको मिलने आ गए
.................................
२३
एक एक पल के साथ
सारा जीवन जीना है
रुठे हुए पलों को
मिन्नतों से मनाना है
हँसी मजाक के पलों में
ख़ुशी से जीना है
तो कभी गम के पल,
आँसूओं के साथ पीने है
चुनोती के पलों में
ताकत लगाकर उठ जाना है
रिश्तों की रेशमी डोर को
तरलता से महसूस करना है
जनम लिया है तो,
जीने का मकसद याद रखना है
ईश्वरीय शक्ती के आगे
अपना पूर्ण समर्पण करना है
..............................
२०
खुले मैदान में
जब बिजली चमकी
तब होश गवाँकर मैं
उसे देखतेही रह गई
क्या उसका बाज
चापल्य से किया हुआ
चकाचोंध शुभ्रता का साज
तेज रफ्तार गती की
प्रचंड ताकत
अनाहत नाद की
गुंजती हुई प्रखर वाणी
गगन व्यापक मस्ती
मालिन्य धो देने का ध्यास
क्षणमात्र के दर्शन से
वह आत्मस्वरूप तेज
देखकर महसुस हुआ
यह भी एक सगुण
साक्षात्कार है
इसी भावावेश में
अपना होश गवाकर
मैने आँखे बंद कर ली
२१
समंदर की अनंतता में
शोर करते हुए किनारे
गहिरा नीला पानी सेतू पर
सफेद रेत को पुकारे
दौडती आती है लहरे
तट की आकर्षण में
भीगे हुए किनारों से मिलकर
चली जाती है मस्ती में
समंदर की गर्जना
आकाश में समा जाती है
सूरज डूबे पानी में
दिन की चिलचिलाहट थम जाती है
लहरेदार रात गूढ भरी
नृत्य करता काला पानी
तारों भरे आकाश में
हलकेसे बात करता कोई
उछलता है समुंदर
तारों को पाने के लिए
चांदनियाँ देखे दुर से
खुदको समंदर में समाए हुए
पानी में तारों का
प्रतिबिंब देखकर
समंदर गहरी शांती पाता है
तारों को थपकीयाँ देकर
लोरी गुनगुनाता है
भोर की अमृतबेला में
लुप्त हो जाते है तारें
सूरज की लालीमा में
समंदर, अब दिन को पुकारे
२२
बहुत राह देखी तुम्हारी
लेकिन तुम नही आए
कभी लगा ऐसा, की तुम रुठ गये हो
कभी कभी हो जाती है देर,
इसीलिये तुम्हारी राह देखी नही
तो, तुम्हे इसी बात का गुस्सा आ गया
और गरजते बरसते बिजली की
चकाचौंध से अपना गुस्सा व्यक्त किया
फिर शांत होकर थोडीही देर के बाद
रिमझिमती जलधारा में
भीगोकर सबको मिलने आ गए
................................
२३
एक एक पल के साथ
सारा जीवन जीना है
रुठे हुए पलों को
मिन्नतों से मनाना है
हँसी मजाक के पलों में
ख़ुशी से जीना है
तो कभी गम के पल,
आँसूओं के साथ पीने है
चुनोती के पलों में
ताकत लगाकर उठ जाना है
रिश्तों की रेशमी डोर को
तरलता से महसूस करना है
जनम लिया है तो,
जीने का मकसद याद रखना है
ईश्वरीय शक्ती के आगे
अपना पूर्ण समर्पण करना है