प्यार का अनोखा रिश्ता - भाग १७ RACHNA ROY द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार का अनोखा रिश्ता - भाग १७

हिना ने कहा अच्छा ये बात है।
हिना भी इस तरह से अपने काम में व्यस्त रहने लगी थी।
शाम को कोचिंग क्लास भी चलता रहा।

फिर एक महीने में हिना ने बहुत कुछ सीख भी लिया था।
आज हिना बहुत खुश थी क्योंकि उसे पहली बार सैलेरी मिल रहा था।


हिना को कचहरी पहुंचते देर हो गई थी।
शर्मा जी ने कहा हिना बेटा आइए आफिस में!
हिना ने कहा हां चलिए।
हिना आफिस पहुंच कर एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर किया और फिर एक लिफाफा मिला।
हिना ने लिफाफा बैग में रखने लगीं तभी ‌शर्मा जी ने कहा अरे बेटा एक बार गिन लो।
हिना ने कहा अरे अंकल ठीक ही होगा।
फिर वहां से हिना निकल गई और सोचा कि सबके लिए कुछ शापिंग कर लूं। पापाजी के लिए एक गर्म कोट, मम्मी जी के लिए एक स्वेटर और एक मिस्टर खरूस के लिए एक मफलर।
सारा सामान लेकर हिना घर पहुंच गई।
हिना ने सारे पैकेट सोफे पर रखा और फिर बोली अरे मालती सब कहां गए?
मालती ने कहा अरे सब तो अपने कमरे गए हैं आपका खाना लगा दूं?
हिना ने कहा अरे अभी नहीं।
मालती ने कहा मैडम आज आप खुश हो बहुत।।
हिना ने कहा वो आज मुझे मेरी पहली तनख्वाह मिली है।
फिर हिना जल्दी से सारे पैकेट सोफे से उठाया और फिर जल्दी जल्दी सीढियां चढ़ने लगी और उसे क्या पता कि राज नीचे उतर रहा था तो दोनों एक-दूसरे से टकरा गई और फिर हिना गिरने वाली थी पर राज से सम्हाल लिया और फिर बोला कि अरे थोड़ा तो आगे पीछे, ऊपर नीचे देखा कीजिए क्योंकि हर मोड़ पर मैं तो मिलूंगा है ना!!
हिना ने कहा हां, ठीक है थैंक यू नहीं बोलुगी।।
ये कहते हुए हिना दौड़ गई।
राज वहीं सीढ़ियों पर खड़ा हो कर ये सोचता रहा कि इसे हुआ क्या है?

हिना सीधे पापा जी के कमरे के पास पहुंच गई और बोली क्या मैं अन्दर आ जाऊं?
आभा ने कहा अरे बेटा आओ ना।
हिना हंसती हुई कमरे में पहुंच गई और अपने बैग में से लिफाफा निकाल कर रमेश के हाथ में देते हुए कहा पापा जी ये मेरी पहली तनख्वाह! मुझे आशीर्वाद दीजिए।
रमेश ने अपने हाथों में वो लिफाफा देख कर रोने लगे और फिर कहां देखा आभा आज सच में भगवान ने हमें एक बेटी दे दिया।
मैं हमेशा ये सोचा करता कि काश एक बेटी भी देता पर देखो।
हिना ने कहा अरे पापाजी आप रोने लगे।
रमेश ने कहा ये खुशी के आंसु है तो जो बेटों ने कभी न किया वो तूने किया।
हिना ने एक पैकेट पापा को दिया और फिर दूसरा पैकेट मम्मी जी को दिया और बोली ये आप लोगों के लिए।
और फिर हिना जाने लगी।
रमेश ने कहा बेटा ये तो घर की लक्ष्मी को देना चाहिए और वो तो तू है।।
हिना ने कहा मुझे जरूरत होगा तो

मैं खुद ले लुंगी।
रमेश ने देखा आभा मेरी बेटी तो लक्ष्मी है।
हिना ने कहा आप लोग आराम कीजिए मैं आती हूं।
फिर हिना इधर उधर देखने लगी।
और फिर सीधे राज के रूम में गई तो देखा कोई नहीं था।
हिना ने कहा अच्छा हुआ खरूस नहीं है मैं यह पैकेट सोफे पर रख देती हुं।
फिर हिना वहां से सीधे अपने कमरे में चली गई।
फिर फैश होकर आराम करने लगी।


फिर कब आंख लग गई पता नहीं चल पाया।

कुछ देर बाद ही मालती जगाने लगीं और बोली अरे आप खाना भी नहीं खाई चाय का समय हो गया।
हिना आंख मलते हुए उठ गई और बोली ओह बहुत लेट गया।
चूहे कूद रहे हैं।।
मालती हंसने लगी और फिर बोली आइए नीचे।
हिना जल्दी से उठ कर बाथरूम चली गई।
फिर नीचे बैठक में पहुंच गई।
देखा तो पापाजी और मम्मी जी बैठे थे।
आभा ने कहा आओ बैठो चाय और पकौड़े खा लो।
लंच भी नहीं किया आज।
हिना ने कहा हां वो सो गई थी।
फिर हिना चाय और पकौड़े खाने लगी और इधर उधर देखने लगी।
आभा ने कहा किसे ढुंढ रही हो राज को?
हिना ने कहा हां,देवर जी कहां गए?
आभा ने कहा हां,वो दोस्तों के साथ पालम गया है।
हिना ने कहा ओह!
फिर थोड़ी गुमसुम सी हिना बैठ कर अपना काम करने लगी।।


इस तरह से तीन दिन बीत गया।। हिना को अब एक उलझन होने लगी एक आदत सी हो गई थी कुछ आदतें ऐसी होती हैं अब राज आप देखना मैं क्या करती हुं।।
बिना बताए गए हो? वैसे भी मैं कौन होती हुं पुछने वाली मेरा तो यहां कुछ नहीं है।।


क्रमशः