वो माया है.... - 31 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 31



(31)

बिजली चले जाने से घुप अंधेरा हो गया था। आज वैसे भी बहुत सर्दी थी। इस अंधेरे में उमा को एक सिहरन सी हो रही थी। उन्हें और अधिक सर्दी लगने लगी। वह कांपने लगीं। अंधेरे में किशोरी का मन भी घबरा रहा था। उन्हें अनुभव हुआ कि पास बैठी उमा कांप रही हैं। वह और डर गईं। उन्होंने डरते हुए पूछा,
"क्या बात है उमा ? कांप क्यों रही हो ? तुमने तो शॉल ओढ़ रखा है।"
उमा ने कहा,
"पता नहीं जिज्जी अजीब सा लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि कुछ ठीक नहीं है।"
यह सुनकर किशोरी और भी घबरा गईं। बद्रीनाथ और विशाल बाहर थे। उन्हें उनकी चिंता होने लगी। उन्होंने कहा,
"डरो मत उमा। भगवान का नाम लो। बल मिलेगा।"
उमा और किशोरी दोनों मन ही मन भगवान का नाम जपने लगीं। पूरे घर में अंधेरे के साथ साथ सन्नाटा पसरा हुआ था। उस सन्नाटे में अचानक फोन की घंटी बजने लगी। उमा का फोन बज रहा था। लेकिन वह अपना फोन दूसरे कमरे में रखकर यहाँ बैठी थीं। फोन की घंटी सुनकर किशोरी ने कहा,
"हो सकता है बद्री का फोन हो। कुछ ज़रूरी बात करनी हो।"
उमा को भी ऐसा ही लग रहा था। लेकिन चारों तरफ अंधेरा था। वह पहले ही डर रही थीं। उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि जाकर फोन उठाएं। लेकिन यह भी सोच रही थीं कि अगर बद्रीनाथ कुछ आवश्यक बात करना चाहते हों तो हो नहीं पाएगी। वह धीरे से बिस्तर से नीचे उतरीं। अंधेरे में धीरे धीरे कमरे की तरफ बढ़ीं। आंगन में आईं तब तक फोन कट गया। आंगन के बीच खड़ी वह सोच रही थीं कि क्या करें ? फिर उन्हें लगा कि चलकर फोन उठाकर देखती हैं कि किसका फोन था। अगर बद्रीनाथ का होगा तो फोन मिलाकर पूछ लेंगी कि क्या बात थी। वह उस कमरे में चली गईं जहाँ फोन था।
कमरे में पहुँच कर उमा ने फोन उठाकर चेक किया कि किसकी कॉल थी। कॉल विशाल की थी। वह फोन मिलाने जा रही थीं तब तक विशाल की कॉल आ गई। विशाल ने बताया कि काम हो गया है। पर बद्रीनाथ की दवाइयां खत्म हो रही हैं। वह बद्रीनाथ के साथ दवाइयां लेने और आगे जा रहा है। उन लोगों को लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी। वह फिक्र ना करें इसलिए फोन किया था। कॉल कटने के बाद उमा ने मोबाइल की टॉर्च जलाई और वापस जाने लगीं।
जब वह आंगन में आईं तो उन्हें छत पर कुछ हलचल सी लगी। उन्होंने मोबाइल ऊपर की तरफ करके देखा तो एक साया सा नज़र आया। फोन उनके हाथ से नीचे गिर गया। इस तरह गिरा कि फ्लैश लाइट वाला हिस्सा नीचे की तरफ था। एकबार फिर अंधेरा हो गया। उमा को लगा कि साया सीढ़ियों से नीचे आ रहा है। वह इतना डर गईं कि भाग भी नहीं पाईं। आंगन की फर्श पर बैठ गईं और चिल्लाने लगीं।
उनके चिल्लाने की आवाज़ किशोरी ने सुनी तो वह डरकर कांपने लगीं। कांपते हुए भगवान का नाम ले रही थीं। उसी समय दरवाज़े पर दस्तक हुई। बाहर से घबराए हुए केदारनाथ की आवाज़ आ रही थी। वह कह रहे थे,
"भाभी क्या हुआ ? दरवाज़ा खोलिए।"
उमा उठना चाह रही थीं पर उठ नहीं पा रही थीं। किशोरी की हिम्मत उठने की हो नहीं रही थी। बाहर खड़े केदारनाथ दरवाज़ा पीटते हुए आवाज़ें लगा रहे थे। यह सब सुनकर आसपास के कुछ लोग भी आ गए।
बिजली आई। उमा ने इधर उधर देखा तो सब सामान्य था। वह उठीं। अपना फोन उठाकर दरवाज़े की तरफ बढ़ीं। उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया। केदारनाथ के साथ एक दो लोग और अंदर आ गए। इतनी देर में किशोरी भी सामान्य होकर बाहर आ गई थीं। उमा ने सबसे कहा कि वह ठीक हैं। अंधेरे में कुछ भ्रम हो गया था इसलिए चिल्ला रही थीं। बाकी लोग वापस चले गए। केदारनाथ अंदर चले गए। तीनों किशोरी के कमरे में चले गए। केदारनाथ ने पूछा,
"अब सही से बताइए भाभी क्या हुआ था ?"
उमा ने जो अनुभव किया था सब बता दिया। किशोरी ने कहा,
"यह सब भ्रम नहीं है। वह आसपास ही मंडरा रही है।"
उमा ने रोते हुए कहा,
"सबकुछ तो छीन लिया उसने अब क्या चाहती है। अगर उसे लगता है कि हमसे गलती हुई थी तो हमें भी ले चले। इस घर को छोड़ दे।"
केदारनाथ के मन में अलग ही बात चल रही थी। वह सोच रहे थे कि इतने सालों तक तो माया ने कभी सामने आकर डराया नहीं। अब वह ऐसा क्यों कर रही है। उन्होंने कहा,
"भाभी हमें तो लगता है कि यह सब मन का वहम है। अब आप ही सोचिए कि इतने सालों से तो वह इस तरह डराने नहीं आती थी।‌ अब क्यों आएगी ? उसे अपना बदला लेना था वह ले चुकी। फिर आपको क्यों डराएगी ?"
उमा ने केदारनाथ को उस दिन की सारी घटना बताई जब पुष्कर की बॉडी घर आने का इंतज़ार हो रहा था। केदारनाथ सब सुनकर हैरान थे। उन्हें कुछ पता नहीं था। उन्होंने कहा,
"सोनम और मीनू ने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया। ना ही सुनंदा ने।"
उमा ने कहा,
"उसके बाद मौका ही कहाँ मिला था। घर लौटने के बाद शायद यह सोचकर ना बताया हो कि तुम परेशान हो जाओगे।"
केदारनाथ ने कहा,
"हो सकता है। सुनंदा शाम से यही कह रही थी कि भइया और विशाल बाहर गए हैं। जाकर देख लो सब ठीकठाक है। हम यहाँ आए तो आप चिल्ला रही थीं।"
किशोरी ने बात आगे बढ़ाई,
"यह बात तो विशाल और बद्री को भी नहीं पता है। बद्री की तबीयत के बारे में जानने के बाद बताना ठीक नहीं समझा। पर आज उमा ने जो महसूस किया वह भ्रम नहीं हो सकता है। अब एकबार फिर तांत्रिक बाबा से बात करनी होगी।"
केदारनाथ को भी अब लग रहा था कि उमा को भ्रम नहीं हुआ है। वह भी डर गए थे। उन्होंने कहा,
"जिज्जी बात तो गंभीर है। अब देर करने की ज़रूरत नहीं है। तांत्रिक बाबा से अभी बात करिए। उन्हें सारी बात बताकर कहिए कि जल्दी कोई उपाय करें। अब माया ना जाने क्या चाहती है जो इस तरह डरा रही है।"
"विशाल और उसके पापा आ जाएं तो उन्हें सारी बात बताकर कहते हैं कि अब माया का कोई पक्का उपाय करें।"
केदारनाथ के मन में भी अब एक भय उत्पन्न हो गया था। उन्हें अपने परिवार की चिंता होने लगी थी। उन्होंने सुनंदा को फोन करके कहा कि वह दोनों लड़कियों के साथ एक जगह पर ही रहें। विशाल और बद्रीनाथ के लौटते ही वह घर आ जाएंगे।

बद्रीनाथ और विशाल खाना खा चुके थे। किशोरी ने उन्हें ज़रूरी बात करने के लिए अपने कमरे में बुला लिया था। उमा भी वहीं थीं। उन्होंने उस दिन और आज जो घटित हुआ उसके बारे में विस्तार से बताया। सब सुनने के बाद बद्रीनाथ भी परेशान हो गए। उन्होंने कहा,
"यह तो परेशानी वाली बात है। तांत्रिक बाबा से बात करनी पड़ेगी।"
विशाल ने कहा,
"पापा उन्होंने कहा तो है कि वह अपनी तंत्र साधना कर रहे हैं। जल्दी ही उस पर काबू कर लेंगे।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"बेटा उस दिन और आज जो हुआ उसके हिसाब से तो वह हमारे आसपास मंडरा रही है। हमें अपनी सुरक्षा का कोई उपाय करना होगा। उनसे बात करना ज़रूरी है। तुम फोन मिलाओ।"
विशाल ने फोन मिलाकर बद्रीनाथ को पकड़ा दिया। उन्होंने सारी बात विस्तार से तांत्रिक को बताईं। तांत्रिक ने कहा कि वह फौरन अपने चेले के साथ आ रहा है। तब तक वो लोग एकसाथ रहें।

तांत्रिक और उसका चेला बैठक में थे। बद्रीनाथ का परिवार उनके पास ही बैठा था। तांत्रिक अपनी आँखें बंद किए हुए था। किशोरी कह रही थीं,
"बाबा हम पर जो मुसीबत आई आपको पता ही है। हमारा जवान बेटा जिसकी कुछ समय पहले ही शादी हुई थी चल बसा। रिपोर्ट में आया था कि उसे धारदार पंजे से मारा गया है। यह काम माया का ही था। अभी भी उसे तसल्ली नहीं हुई है। यहीं आसपास मंडरा रही है। ना जाने क्या चाहती है ?"
तांत्रिक ने अपनी आँखें खोलीं। उसने कहा,
"मैं उसे महसूस कर रहा हूँ। वह इस घर के आसपास ही है। मैं अब उससे बात करूँगा। पूछूँगा कि वह चाहती क्या है ?"
तांत्रिक ने बद्रीनाथ की तरफ देखकर कहा,
"मुझे एक ऐसी जगह चाहिए जहाँ एकांत में उसे बुलाकर बात कर सकूँ।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"आप यहाँ बैठिए। हम सब अंदर चले जाते हैं।"
"नहीं एक ऐसी जगह जो घर का हिस्सा होकर भी अलग हो।"
बद्रीनाथ सोच में पड़ गए। विशाल ने कहा,
"दालान के पास जो कोठरी है। जहाँ मंगला को बांधते थे। घर का हिस्सा होकर भी बाहर है। इतनी जगह भी है कि तांत्रिक बाबा और उनका चेला अपना काम कर सकें। थोड़ी सफाई करनी होगी। वह कर देते हैं।"
सबको यह बात ठीक लगी। तांत्रिक ने अपने चेले के साथ वह जगह देखी। उसे सही लगी। विशाल ने वहाँ सफाई कर दी। तांत्रिक और उसका चेला वहाँ अपना काम करने लगे।
बद्रीनाथ उमा और किशोरी तीनों एक ही कमरे में थे। विशाल को समझाया पर वह माना नहीं। वह ऊपर अपने कमरे में चला गया। उसका कहना था कि जब तांत्रिक अपनी क्रिया कर रहा है तो डरने की क्या बात है।
रात बढ़ने के साथ साथ ठंड बहुत अधिक बढ़ गई थी। बाहर घना कोहरा छाया था। विशाल उस सर्दी में कमरे के बाहर छत पर कुर्सी डालकर बैठा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अपने आपे में नहीं है। वह शून्य में कुछ ताक रहा था।