(30)
अदीबा ऑफिस पहुँची तो पता चला कि अखलाक ने उसे अपने केबिन में बुलाया है। अपना सामान डेस्क पर रखकर वह अखलाक के केबिन में चली गई। उसे देखकर अखलाक ने कहा,
"आओ अदीबा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था मैं।"
अदीबा ने गौर किया कि अखलाक बहुत खुश नज़र आ रहा है। उसने बैठते हुए कहा,
"क्या बात है सर ? किसी बड़ी कंपनी का फुल पेज ऐड मिल गया।"
अखलाक ने मुस्कुरा कर कहा,
"वह दिन भी आएगा। हमारे अखबार का सर्क्यूलेशन बढ़ेगा तो वह भी मिलेगा।"
"सर्कुलेशन बढ़ाने वाला ऐसा कौन सा कारनामा हो गया। बहुत दिनों से तो कोई स्कैंडल भी नहीं हुआ।"
"पर तुमने जिस केस पर स्टोरी की थी वह लोगों को बहुत पसंद आई है।"
अदीबा ने आश्चर्य से कहा,
"आपका मतलब वह ढाबे के पास मर्डर की स्टोरी।"
"सही कहा....उसी स्टोरी की बात कर रहा हूँ। लोगों की दिलचस्पी उस केस में है। हमारे अखबार ने उसे तफसील से छापा था। उसके कारण उस दिन का एडीशन अच्छा बिका।"
अदीबा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। उसने कहा,
"यह तो बड़ी अच्छी बात है सर। अब क्या करना है ?"
"करना क्या है....गर्म लोहे पर हथौड़ा मारना है। बाकी लोग जागें उससे पहले उस स्टोरी को आगे बढ़ाओ। शाहखुर्द पुलिस स्टेशन जाकर पता करो कि केस में कुछ नया हुआ।"
अदीबा ने उठते हुए कहा,
"ठीक है सर....वह जो दूसरी स्टोरी है उसकी रिपोर्ट लिख लूँ। फिर चली जाऊँगी।"
"तुम अभी बाकी सब छोड़ो। इस मर्डर वाली स्टोरी पर ध्यान दो। निहाल से कह दो वह रिपोर्ट तैयार कर देगा।"
"ओके सर...."
यह कहकर अदीबा केबिन से निकल गई। जब वह बाहर आई तो उसके कुलीग निहाल और मंजुला उसका इंतज़ार कर रहे थे। मंजुला ने कहा,
"अखलाक सर बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे तुम्हारा। बात क्या है ?"
यह कहकर मंजुला ने आँख मारी। वह इसी तरह अदीबा को छेड़ती रहती थी। अदीबा ने कहा,
"बेवजह अपना दिमाग इधर उधर उड़ाने की ज़रूरत नहीं है। ढाबे के पास हुए मर्डर का केस था। उसके बारे में बात कर रहे थे। लोगों की दिलचस्पी है उस केस में।"
निहाल ने कहा,
"तुम जो स्टोरी करती हो उसमें लोगों की दिलचस्पी बन जाती है। मुझे भी इसका मंत्र सिखा दो।"
"सीधा सा मंत्र है काम करो और सीखो। मैंने भी ऐसे ही सीखा है। फिलहाल गोदाम में हुई चोरी के केस पर रिपोर्ट तैयार करनी है।"
उसने अपनी डेस्क से फाइल उठाकर देते हुए कहा,
"इसमें डीटेल्स हैं। अच्छी सी रिपोर्ट बनाओ और सर को दे देना।"
अदीबा कोई हैंडबैग लेकर नहीं चलती थी। उसने जींस की फ्रंट पॉकेट में अपना मोबाइल चेक किया और पीछे की पॉकेट में वॉलेट। दोनों थे। वह ऑफिस से निकल गई।
अदीबा ने अपनी स्कूटी शाहखुर्द पुलिस स्टेशन के कंपाउंड में खड़ी की। वह अंदर जा रही थी कि एक कांस्टेबल ने कहा,
"नमस्ते मैडम....आज कैसे आना हुआ ?"
अदीबा ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"नमस्ते शिवचरन.....यादव जी से मिलना था।"
"सर तो अभी थाने में हैं नहीं। किसी केस के सिलसिले में बाहर हैं।"
यह सुनकर अदीबा को लगा कि उसे आने से पहले फोन करना चाहिए था। उसने पूछा,
"कब तक लौटेंगे ?"
"हम कुछ कह नहीं सकते हैं। वैसे आपको क्या काम था ?"
"ढाबे के पास हुए मर्डर केस के बारे में कुछ और जानना था।"
"चाहें तो इंतज़ार कर लीजिए।"
शिवचरन थाने के अंदर चला गया। अदीबा खड़ी होकर सोचने लगी कि रुककर इंतज़ार करे या चली जाए। तभी उसे याद आया कि उस दिन जब इंस्पेक्टर हरीश उसे केस के बारे में बता रहा था तो शिवचरन भी बीच बीच में बोल रहा था। वह थाने के अंदर गई। शिवचरन के पास जाकर बोली,
"शिवचरन उस ढाबे वाले मर्डर की सूचना मिलने पर तुम भी तो यादव जी के साथ गए थे।"
"वह पुष्कर वाला केस। हाँ हम गए थे।"
"तो तुम ही कुछ बताओ। कोई नई प्रोग्रेस हुई केस में।"
"मैडम इतनी जल्दी कहाँ कुछ हो पाएगा। तफ्तीश चल रही है।"
"तो मैं कौन सा तुमसे कातिल का नाम पूछ रही हूँ। तफ्तीश में कुछ तो नया आया होगा। जो पता हो बताओ ना।"
शिवचरन असमंजस में दिखा। अदीबा समझ गई कि कुछ है। लेकिन शिवचरन बताने में संकोच कर रहा है। अदीबा ने कहा,
"मुझे तो तुम जानते हो ना। ऐसा कुछ नहीं लिखूँगी जिससे तुम्हारे ऊपर या केस के ऊपर कोई बात आए। तुम बस थोड़ी मदद कर दो। इतनी दूर से आई हूँ। कुछ तो हाथ लगे।"
शिवचरन ने इधर उधर देखा। उसके बाद बोला,
"थाने के पास वाली चाय की दुकान पर जाकर बैठिए। हम कुछ देर में आते हैं।"
अदीबा थाने से निकल कर चाय की दुकान पर चली गई।
पंद्रह मिनट हो गए थे पर शिवचरन आया नहीं था। अदीबा सोच रही थी कि अगर शिवचरन से कोई खास जानकारी मिल जाए तो रिपोर्ट अच्छी बन जाएगी। अखबार का सर्कुलेशन बढ़ेगा तो वह अपना फायदा भी तलाश लेगी। समय बिताने के लिए वह अपने मोबाइल पर रील्स देख रही थी। खाली समय में रील्स देखना उसे पसंद था। वह एक रील देखते हुए हंस रही थी जब चाय की दुकान पर काम करने वाला लड़का उसके पास आकर बोला,
"अब तो ऑर्डर करोगी दीदी......"
अदीबा कहने जा रही थी कि कुछ और रुके कि उसकी नज़र शिवचरन पर पड़ी। उसने कहा,
"दो चाय और एक प्लेट समोसा ले आओ।"
शिवचरन आकर उसके पास बैठ गया। उसने कहा,
"कुछ काम आ गया था। इसलिए देर हो गई।"
अदीबा सीधे मुद्दे पर आते हुए बोली,
"मुझे ऐसा लगा कि केस के बारे में तुम्हारे पास कुछ महत्वपूर्ण है। तुम मुझे बताओ। यकीन मानो मैं उसका इस्तेमाल इस तरह करूँगी कि तुम्हारा नाम ना आए।"
शिवचरन कुछ सोचकर बोला,
"जहाँ लाश मिली थी उसके पास एक जगह मोटरसाइकिल के पहिए का निशान था। एक रात पहले बारिश हुई थी। उस जगह मिट्टी गीली थी।"
अदीबा ने कुछ सोचकर कहा,
"इसका मतलब कातिल मोटरसाइकिल पर था।"
"हो सकता है। जहाँ लाश मिली वह एक मैदान है। वहाँ पेड़ पौधे और झाड़ियां उगी हैं। ढाबे के सामने वाली सड़क आगे जाकर मुड़ गई है। कातिल मोटरसाइकिल से मैदान पार कर सड़क पर आ गया होगा और भाग गया होगा।"
अदीबा फिर सोचने लगी। उसने कहा,
"कोई और बात पता चली है ?"
"ढाबे पर लगे सीसीटीवी कैमरे में पुष्कर उस तरफ जाता दिखा था जिधर लाश मिली थी।"
"कोई और उसके साथ था...."
"नहीं....अकेला था। अपनी टैक्सी के पास खड़ा कुछ कर रहा था। फिर उधर बढ़ गया।"
"दूसरी तरफ कोई दिखाई पड़ा हो...."
"कैमरे की रेंज वहाँ तक नहीं थी।"
लड़का ऑर्डर लेकर आ गया। उसने दो चाय और एक प्लेट समोसा रख दिया। अदीबा ने अपनी चाय उठा ली। शिवचरन ने समोसा उसकी तरफ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया। शिवचरन समोसा खाने लगा। अदीबा ने कहा,
"इसके अलावा भी कुछ और सामने आया है।"
शिवचरन ने चाय का एक घूंट भरा। उसके बाद बोला,
"इसके अलावा और कोई बात पता नहीं चली।"
चाय पीते हुए अदीबा सोच रही थी कि फिलहाल नई रिपोर्ट तैयार करने के लिए काफी कुछ है। उसने अपनी चाय खत्म की। उठते हुए बोली,
"धन्यवाद शिवचरन.....कोई नई बात पता चले तो बताना। मेरा नंबर है तुम्हारे पास।"
"ठीक है...अगर नया कुछ पता चलेगा तो बताऊँगा।"
अदीबा ने बिल चुकाया और चाय की दुकान के बाहर निकल गई। अपनी स्कूटी स्टार्ट की और चली गई।
बद्रीनाथ विशाल के साथ किसी काम से बाहर गए थे। शाम के साढ़े छह बजे थे। आज दिनभर बदली छाई रही थी। थोड़ी सी भी धूप नहीं निकली थी। शाम होते ही कोहरा छा गया था। बहुत ठंड पड़ रही थी। किशोरी अपने बिस्तर पर रज़ाई ओढ़कर बैठी थीं। उमा भी उनके पास बिस्तर पर बैठी थीं। उन्होंने शॉल ओढ़ रखा था। वह किसी सोच में थीं। उन्होंने किशोरी से कहा,
"पुष्कर और दिशा की मतिभ्रष्ट हो गई थी कि उन्होंने ऐसा उपाय किया। घर में खुशी आने का रास्ता ही बंद हो गया।"
किशोरी ने कहा,
"आज की पीढ़ी का क्या कहें। भगवान के मामलों में भी दखल देती है। नहीं तो शादी के बाद तो बच्चे होते ही हैं। उसमें भी रुकावट पैदा करते हैं।"
उमा ने आह भरकर कहा,
"माया का श्राप ही है कि दोनों की मतिभ्रष्ट हो गई।"
किशोरी ने कहा,
"उस दिन तुम चिल्ला रही थीं। क्या माया दिखाई पड़ी थी तुम्हें ?"
"लगा तो ऐसा ही था जिज्जी जैसे कि वह सामने आकर बैठी हो। कह रही थी कि हमने उस समय उसका और विशाल का साथ क्यों नहीं दिया।"
किशोरी ने कहा,
"अब तांत्रिक बाबा जल्दी से उसके श्राप से मुक्ति दिला दें। इस बार कहकर तो गए हैं कि उसे अपने वश में कर लेंगे।"
उमा सोच रही थीं कि अब तो माया का श्राप पूरी तरह से लग चुका है। सबकुछ खत्म हो गया है। पुष्कर के ज़रिए घर में नई खुशी आने की उम्मीद थी। अब तो वह भी चला गया। किशोरी और उमा दोनों शांत होकर अपने अपने विचारों में खोई हुई थीं। उमा उस दिन अपने अनुभव के बारे में सोच रही थीं। उस दिन जो हुआ वह हकीकत था या भ्रम वह समझ नहीं पा रही थीं। सोनम और मीनू की चीख पुकार का उन पर असर हुआ था। वह डर गई थीं। उस डर में उन्हें लगा था कि जैसे माया आकर उनके सामने बैठ गई हो और उनसे सवाल कर रही हो।
इस समय वह और किशोरी घर में अकेली थीं। उस रात के बारे में सोचकर उनके मन में फिर डर पैदा हुआ। अचानक बत्ती चली गईं। एक सिहरन सी उनके शरीर में हुई।