अतीत के पन्ने - भाग 38 RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग 38

आलेख की कब आंख लग गई पता नहीं चल पाया और फिर सुबह हो गई।
आलेख ने देखा कि सब तैयार हो गए थे।
पिया वीर के साथ हंस रही थी।
आलेख मन में सोचा कि देखा छोटी मां आज पिया कितनी सुन्दर लग रही है बिल्कुल तुम्हारी छवि।।
पर अब वो किसी और की अमानत है।
मेरे सपने भी तुम्हारे जैसे ही है जो कभी पुरे नहीं होंगे।।
फिर सब नाश्ता करने लगे।
जतिन ने कहा आलेख बेटा तुमने जो किया वो हम कभी भी भूल नहीं सकते हैं।
और फिर आलेख ने कहा अरे नहीं नहीं ऐसा कुछ भी नहीं किया मैंने।
फिर सब जाने की तैयारी करने लगे।
जतिन के सारे रिश्तेदार आलेख की तारीफ कर रहे थे।
पिया ने कहा आलेख अब जा रही हुं मैं।
और फिर कभी नहीं आउंगी।
हम तो दिल्ली चले जाएंगे।
आलेख ने कहा हां, ठीक है।
फिर सब सामान गाड़ी में आलेख ने खुद रख दिया था।
फिर आलेख ने कहा हाथ जोड़कर वीर से कहा कि पिया का ख्याल रखना।।
वीर ने कहा हां, ठीक है चलो भाई !
अब रहो तुम अकेले।।
पिया भी पुरी तरह से गहनों से लदी हुई आलेख की तरफ नजर दौड़ाई और फिर बिना कुछ बोले कार में बैठ गई।

जतिन ने कहा आलेख आज तुमने जो किया वो मैं।।
आलेख ने कहा अरे नहीं, नहीं अंकल।
फिर सब धीरे धीरे अपने अपने घर को चले गए।
हवेली एक बार फिर से वही अकेलापन,अंधेरा हो गया था।
आलेख ने कोचिंग सेंटर दो दिन का अवकाश दिया था।
दो दिन आलेख खुद को छोटी मां के कमरे में कैद करके रखा था।
ना कुछ खाना न पीना।।

छाया भी अलग परेशान हो रही थी अरे बाबा मैं किसे अपना दुखड़ा सुनाऊं।।
बाबू तो खुद को मारने पर उतारू हो गया है।
बाबूजी और काव्या दी तो चले गए और आलेख बाबू को बेसहारा कर गए और पिया दीदी भी बेवफा निकली।।
अब क्या होगा?
कुछ देर बाद ही शाम आ गया और दुकान की चाबी लेकर चला गया।

आलेख ने बहुत कोशिश किया पर खुद को मार न सका।

आलेख नीचे आकर बोला खाना लगा दो।।
आलेख खाना खाने बैठ गया और फिर वो जी भर कर खाने लगा।
आलेख ने कहा मुझे और खाना दे दो।

छाया भी हैरान रह गई।
ये छोटे सहाब को क्या हुआ।
आलेख जोर जोर से खाना खाने लगा।
फिर आलेख खाना खाने के बाद बैठक में जाकर टीवी चला दिया और फिर खुब जोर जोर से रोने लगा।
छोटी मां देखो आज तुम्हारा बाबू बिल्कुल अकेला रह गया है बस सब कुछ तो है पर पिया नहीं है।।।
चली गई वो हमेशा के लिए।।
फिर इस तरह से एक महीना बीत गया।।

कोचिंग सेंटर में आज टीचर्स डे का उत्सव हो रहा था।
स्टूडेंट द्वारा संचालित एक नाटक चल रहा था।
कुछ देर बाद ही सब नाश्ता करने करने लगे थे।।
आलेख वहीं पर बैठा पिया के बारे में सोच रहा था।
तभी पिया वहां नाश्ता करते हुए नजर आई।
आलेख ने अपनी आंखें साफ करने लगे और फिर बोले मेरी आंखों को क्या हुआ है ये क्या पिया है?
फिर सब कार्यक्रम आयोजित हो गया और सभी घर चले गए।

आलेख समझ गया था कि पिया के साथ कुछ ठीक नहीं है।
आलेख ने कहा अरे पिया तुम कब आई?
पिया ने कहा हां अभी आई थी।
आलेख ने कहा अच्छा रहोगी क्या?
पिया ने कहा हां।
आलेख ने कहा वीर भी आया है क्या?
पिया ने कहा नहीं वो नहीं आया।
आलेख ने कहा वहां सब कुछ ठीक है?
पिया ने कहा क्या सुनना है तुमको?
आलेख ने कहा अरे ऐसा क्यों बोल रही हो? मुझे ऐसा लगा रहा है कि तुम खुश नहीं हो?
पिया जोर जोर से हंसने लगी और फिर बोली हां बहुत खुश हूं मैं।।।
इतनी तो कोई नहीं।।।
आलेख ने कहा अच्छा ठीक है चलो बैठक में चलें?
फिर दोनों नीचे बैठक में जाकर बैठ गए।
अब बताओ क्या बात है?
पैसों कि जरूरत है क्या?
पिया ने कहा नहीं, कुछ भी नहीं।
आलेख ने कहा पर तुम्हारे गहने कहा गए?
पिया ने कहा वो तो सास ने रख दिया।
आलेख ने कहा ये कैसा ससुराल है जहां पर बहु के गहने निकाल लिया जाता है।
पिया ने कहा तुम्हें इससे क्या? ये बताओ मेरी याद आती है?
आलेख ने कहा हां, क्यों नहीं?पर तुम्हें तो नहीं आती होगी?
पिया ने कहा हां।
पर एक चीज है जो मुझे चाहिए?
आलेख ने कहा अब और क्या ही दे सकता हूं तुम्हें?
पिया ने कहा हां तुम ही दे सकते हो?
आलेख ने कहा हां,बताओ तो क्या चाहिए?
कुछ पैसों कि जरूरत है क्या?
पिया कुछ कहने वाली थी कि घर से फ़ोन आ गया और वो चली गई।
आलेख ने सोचा पता नहीं क्यों पिया इतनी बदली सी लग रही थी?
जाने क्या मांगे वो।जो मैं ना दे पाऊं।।

ये सोचते हुए कब बैठक आंख लग गई।।

क्रमशः