(22)
पुष्कर और दिशा ढाबे पर चाय पी रहे थे। दिशा की मम्मी का फोन आ गया था। वह उनसे बात कर रही थी। बात करते हुए विशाल की कॉल आई। उसने अपनी मम्मी की कॉल को होल्ड पर रखकर पुष्कर से कहा,
"भइया का फोन आ रहा है।"
"तुम्हारे फोन पर ?"
यह कहते हुए उसने अपनी जेबें टटोलीं। उसका फोन नहीं था। उसे याद आया कि जब टैक्सी रुकी थी तो ताबीज़ ढूढ़ने के लिए उसने मोबाइल सीट पर रख दिया था। उसके बाद भूल गया। उसने कहा,
"तुम मम्मी से बात करो। मेरा फोन टैक्सी में छूट गया है। मैं उसे लेकर भइया को फोन कर लेता हूँ।"
यह कहकर वह फोन लेने टैक्सी की तरफ चल दिया। टैक्सी के पास पहुँचा तो ड्राइवर टैक्सी लॉक करके कहीं गया था। पुष्कर ने सोचा कि नेचर कॉल के लिए गया होगा। वह उसका इंतज़ार करने लगा।
उसके दिमाग में ताबीज़ की बात घूम रही थी। टैक्सी में अच्छी तरह से देखने के बाद भी ताबीज़ नहीं मिला था। दिशा और उसे ताबीज़ खो जाने की चिंता नहीं थी। उन लोगों ने तो बस घरवालों की तसल्ली के लिए ताबीज़ पहने थे। उन्हें बस उमा के बारे में सोचकर बुरा लग रहा था। उनसे झूठ बोलने में संकोच होता। अब विशाल का फोन आ रहा था। पुष्कर सोच रहा था कि मम्मी ने उनका हालचाल पूछने के लिए फोन कराया होगा। वह ताबीज़ के बारे में ज़रूर पूछेंगी। उसने सोचा कि सच बोलकर उनकी चिंता बढ़ाने से अच्छा होगा झूठ बोलना।
ड्राइवर का इंतज़ार करते हुए पुष्कर को नेचर कॉल की ज़रूरत महसूस हुई। उसने ढाबे पर किसी को शिकायत करते हुए सुना था कि वॉशरूम बहुत गंदा है। वह इधर उधर टहलने लगा। टहलते हुए वह देख रहा था कि शायद आसपास कहीं कोई जगह हो जहाँ नेचर कॉल के लिए जा सके। ढाबे के दूसरी तरफ सड़क पार कुछ झाड़ियां थीं वह वहीं चला गया।
ड्राइवर लौटकर आया। उसने गाड़ी को अनलॉक किया और अंदर बैठ गया। वह पुष्कर और दिशा के आने की राह देख रहा था। कुछ देर बाद उसे फोन की घंटी सुनाई पड़ी। उसे पता था कि पिछली सीट पर एक फोन पड़ा है। इससे पहले भी घंटी बजी थी। उसने पीछे पलटकर देखा था तो स्क्रीन पर विशाल भइया लिखा था। तब उसने फोन नहीं उठाया था। इस बार भी उसने सोचा कि फोन नहीं उठाएगा। पर उसने पीछे मुडकर स्क्रीन पर देखा। इस बार दिशा नाम दिखाई पड़ा। उसने पुष्कर के मुंह से दिशा का नाम सुना था। वह सोचने लगा कि जब दोनों एकसाथ हैं तो फोन करने का क्या मतलब है। कहीं कोई ज़रूरी बात ना हो। यह सोचकर उसने फोन उठाने के लिए हाथ बढ़ाया।
अपनी मम्मी से बात करने के बाद दिशा पुष्कर का इंतज़ार करने लगी। देर हो गई तो उसने सोचा कि शायद विशाल से लंबी बात हो रही होगी। वह बैठी रही। जब कुछ अधिक समय हो गया तो उसने पुष्कर को फोन किया। फोन उठते ही उसने कहा,
"कहाँ रह गए पुष्कर बड़ी देर हो गई। तुमने अपना नाश्ता भी खत्म नहीं किया।"
उधर से ड्राइवर ने कहा,
"मैडम मैं टैक्सी ड्राइवर हूँ। फोन पिछली सीट पर पड़ा था। आपका नाम देखा तो उठा लिया।"
"पुष्कर कहाँ है ?"
"मैडम सर तो यहाँ नहीं हैं।"
ड्राइवर की बात सुनकर दिशा घबरा गई। उसने कहा,
"पुष्कर तो अपना फोन लेने टैक्सी तक गया था।"
"लेकिन मैडम सर तो यहाँ नहीं आए। मैं तो टैक्सी में आप लोगों का इंतज़ार कर रहा था। हाँ कुछ देर के लिए ज़रा फ्रेश होने गया था। लेकिन अगर सर आए होते तो यहीं मिलते।"
यह बात चौंकाने वाली थी। दिशा फौरन टैक्सी की तरफ जाने लगी। ढाबे पर काम करने वाला लड़का चिल्लाया,
"मैडम बिल तो दे जाइए।"
दिशा ने बिना रुके कहा,
"अपने पति को लेकर आ रही हूँ।"
भागती हुई दिशा टैक्सी के पास पहुँची। ड्राइवर बाहर खड़ा हुआ था। उसने फोन दिशा को पकड़ाते हुए कहा,
"मैडम सर का फोन है। सर तो दिखाई नहीं पड़ रहे।"
दिशा परेशान थी। उसने कहा,
"आसपास देखते हैं। तुम उस तरफ जाओ मैं इधर देखती हूँ।"
ड्राइवर और दिशा पुष्कर को तलाशने लगे। दिशा पुष्कर का नाम पुकार रही थी। उसे परेशान देखकर कुछ लोगों ने उससे कारण पूछा। दिशा ने कहा कि उसके पति पुष्कर का पता नहीं चल रहा है। लोग भी उसके साथ ढूंढ़ने लगे। कुछ देर बाद झाड़ियों की तरफ से एक आदमी चिल्लाया,
"यहाँ कोई गिरा पड़ा है।"
यह सुनते ही दिशा उस तरफ भागी। ड्राइवर और बाकी लोग उसके पीछे भागे। वहाँ जाकर दिशा ने जो देखा उसके होश उड़ गए। पुष्कर ज़मीन पर गिरा पड़ा था। उसके चारों तरफ खून था। वह उसके पास गई और उसका नाम लेकर बदहवास सी चिल्लाने लगी,
"पुष्कर यह क्या हो गया तुम्हें ? उठो हमें चलना है।"
एक आदमी ने आगे बढ़कर चेक किया। उसने कहा,
"यह तो मर गया है।"
दिशा के कान में जब यह बात पड़ी तो वह बेहोश हो गई।
सब पूजाघर में बैठे भगवान का नाम ले रहे थे। उमा का मन बहुत घबरा रहा था। विशाल उनकी दशा समझ रहा था। वह धीरे से उठकर आंगन में गया और पुष्कर को फोन मिलाया। कुछ देर घंटी बजने के बाद फोन उठ गया। विशाल ने कहा,
"पुष्कर फोन किया था। ना तुमने उठाया और ना दिशा ने।"
उस तरफ से एक अंजान आदमी का स्वर सुनाई पड़ा। उस आदमी ने बताया कि ढाबे पर पति पत्नी चाय नाश्ते के लिए रुके थे। कुछ समय पहले पति की लाश ढाबे के पास झाड़ियों में मिली। पत्नी बेहोश है। पुलिस को खबर दी जा चुकी है। यह खबर सुनते ही विशाल की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। उसने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू किया। उस जगह का पता पूछा जहाँ लाश मिली थी।
पुलिस घटना स्थल पर पहुँच गईं थी। पुष्कर की लाश पोस्टमार्टम के लिए ले जाई गई थी। दिशा को होश आ गया था। पुलिस ने उससे पूछताछ की थी। पर उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। उसे पास के अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था। उसके फोन से नंबर लेकर पुलिस ने उसकी मम्मी को सारी सूचना दे दी थी। पुलिस ने टैक्सी ड्राइवर और वहाँ मौजूद लोगों से भी पूछताछ की।
पुष्कर की मौत की ह्रदय विदारक घटना ने सिन्हा परिवार को बुरी तरह तोड़ दिया था। उमा तो खबर सुनते ही बेहोश हो गई थीं। उन्हें होश में लाया गया तो सदमे के कारण वह एकदम चुप हो गई थीं। बुत बनी बैठी थीं जैसे उनके शरीर से भी प्राण निकल गए हों। किशोरी छाती पीट पीट कर रो रही थीं। कह रही थीं कि माया ने इस घर की खुशियों को निगल लिया है। केदारनाथ और सुनंदा अपनी दोनों बेटियों के साथ खबर मिलते ही आ गए थे। सुनंदा किशोरी को संभालने की कोशिश कर रही थीं। सारे मोहल्ले में सूचना फैल गई थी। आस पड़ोस के लोग घर में एकत्रित हो गए थे। मनोहर को भी सूचना भेज दी गई थी। वह और नीलम भवानीगंज के लिए चल दिए थे।
बद्रीनाथ निढाल से बैठक में पड़े तखत पर लेटे थे। विशाल उनके पास खड़ा रो रहा था। केदारनाथ ने कहा,
"बेटा भइया तो बुरी तरह टूट गए हैं। अब तुमको हिम्मत रखनी होगी। हम जानते हैं कि बड़ा कठिन समय है। पर क्या कर सकते हैं।"
कहते हुए वह भी रोने लगे। पड़ोस में रहने वाले तिवारी ने उन्हें समझाते हुए कहा,
"केदार अब इस तरह ना करो। हिम्मत रखनी होगी तभी तो पुष्कर का शरीर लेने जा पाओगे।"
केदारनाथ ने खुद को संभाला। उन्होंने विशाल से कहा,
"तुम्हारी पुलिस से क्या बात हुई थी ?"
विशाल ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा,
"इंस्पेक्टर हरीश यादव से बात हुई थी। उन्होंने बताया था कि पुष्कर की बॉडी को किस अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए ले जाएंगे। वहीं पास के अस्पताल में दिशा को भी भर्ती कराया है।"
"बेटा....अब चलने की तैयारी करो। हम लोग पहुँचेंगे तो पोस्टमार्टम जल्दी हो सकेगा। उसके बाद बॉडी को अंतिम संस्कार के लिए यहाँ लेकर आना होगा।"
विशाल ने कहा,
"हमने अपने एक दोस्त से बात की है। वह गाड़ी का इंतज़ाम करके आता होगा।"
केदारनाथ ने कहा,
"हमें लगता है कि भइया को यहीं रहने देते हैं। हम लोग चलकर पुष्कर की बॉडी ले आते हैं।"
अचानक बद्रीनाथ उठकर बैठ गए। रोते हुए बोले,
"कल शाम को हमने गुस्से में गलत बात बोल दी। वह सच हो गई। हमारी ज़बान को आग क्यों नहीं लग गई।"
यह कहकर वह बहुत ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। सब उन्हें चुप कराने लगे। आंगन में किशोरी छाती कूट कर रो रही थीं। किशोरी बार बार एक ही बात कह रही थीं कि माया के श्राप ने सब खत्म कर दिया है। सुनंदा और दूसरी औरतें उन्हें चुप करा रही थीं। उमा पत्थर की मूर्ती बनी हुई थीं। किशोरी की बात सुनकर उन्होंने उनकी तरफ देखा और गुस्से से बोलीं,
"आप और विशाल के पापा ज़िद पकड़ कर बैठ गए थे। जिसकी सज़ा पहले कुसुम और मोहित को मिली और अब पुष्कर को।"
यह कहकर उमा ज़ोर ज़ोर से रोने लगीं। सुनंदा के कहने पर सोनम उनके लिए पानी लेकर आई। पर उन्होंने पिया नहीं। किशोरी उमा की बात सुनकर एकदम चुप हो गईं। उमा का ऐसा रूप उन्होंने पहली बार देखा था। बद्रीनाथ विशाल के साथ आंगन में आ रहे थे। यह बात सुनकर उन्हें भी धक्का लगा।
विशाल का दोस्त गाड़ी लेकर आया था। केदारनाथ और विशाल मना कर रहे थे पर बद्रीनाथ ज़िद करके उनके साथ चले गए।