(21)
बद्रीनाथ बैठक में बैठे थे। वह एक कॉपी में लिखा हिसाब देख रहे थे। हिसाब पुष्कर की शादी पर हुए खर्च का था। उन्होंने सोचा था कि वैसे तो पुष्कर घर में कोई मदद नहीं करता है। अपनी कमाई का एक पैसा भी उसने कभी हाथ में नहीं रखा। इसलिए उससे कहेंगे कि कम से कम शादी पर जो भी खर्च हुआ है उसकी भरपाई करे। लेकिन विदाई के अगले दिन से ही हंगामा हो गया। कल शाम तो और भी अधिक कहा सुनी हुई। पुष्कर ने उमा के लिए जो कहा वह अपरोक्ष रूप से उन पर निशाना था। पुष्कर कहना चाहता था कि वह सबको दबाकर रखते हैं। यह बात बद्रीनाथ को चुभ गई थी।
शादी पर हुए खर्च की कोई बात नहीं हो पाई थी। बद्रीनाथ सोच रहे थे कि दिशा के घर से भी कुछ नहीं मिला। अब सारे खर्च का बोझ उन पर आ गया है। घर में कमाई का ज़रिया उनकी पेंशन और थोड़ी बहुत खेती है। उसी कमाई से यह खर्च भी पूरा करना होगा।
उनके दिल में आया कि माया के श्राप ने सब खत्म कर दिया। वह परेशान होकर सोचने लगे कि आगे ना जाने क्या होगा।
पुष्कर और दिशा के जाने से उमा बहुत दुखी थीं। उनका दिल घबरा रहा था। अजीब अजीब से खयाल उन्हें परेशान कर रहे थे। इसलिए उन्होंने पुष्कर को सलाह दी थी कि कुछ दिनों के लिए घूमने जाने का प्लान टाल दे। उन दोनों के जाने के बाद वह रसोई में चली गई थीं। पर काम में उनका मन नहीं लग रहा था। अपने मन को शांत करने के लिए पूजाघर में जाकर बैठ गई थीं।
आंगन के एक कोने में थोड़ी धूप थी। किशोरी वहीं चारपाई बिछाए बैठी धूप सेंक रही थीं। उनके दिमाग में भी माया का श्राप ही चल रहा था। वह सोच रही थीं कि अब बस किसी तरह से तांत्रिक बाबा माया को वश में करके इस घर को उसके श्राप से मुक्ति दिला दें। यही सब सोचते हुए उमकी नाक में अजीब सी गंध आई। उन्होंने उस पर ध्यान दिया तो दूध के जलने की गंध थी। वह उठकर रसोई में गईं। उमा वहाँ नहीं थीं। दूध का भगोना चूल्हे पर चढ़ा था जो काला पड़ चुका था। उसके चारों तरफ ज़मीन पर उबल कर गिरा हुआ दूध पड़ा था। बद्रीनाथ भी वहाँ आ गए थे। उन्होंने कहा,
"जलने की गंध आई तो हम यहाँ आ गए। यह दूध कैसे जल गया ? उमा कहाँ है ?"
"हमें तो लगा था कि रसोई में है। हम यहाँ आए तो वह यहाँ दिखी नहींं। दूध उबल उबल कर गिर गया। कभी ऐसी लापरवाही तो की नहीं उमा ने।"
उमा पूजाघर में बैठी भगवान से प्रार्थना कर रही थीं। वह बहुत परेशान थीं। प्रार्थना करते हुए उनकी नाक में भी जलने की गंध पहुँची। एकदम से उन्हें याद आया कि उन्होंने चूल्हे पर दूध उबालने के लिए रखा था। परेशानी में वह यह बात भूल गईं थीं और यहाँ चली आई थीं। वह फौरन उठकर रसोई में आईं। किशोरी ने उनसे पूछा,
"दूध चढ़ाकर कहाँ चली गई थी उमा ? देखो क्या हाल हो गया है।"
उमा ने जला हुआ भगोना देखा तो सर पकड़ लिया। रसोई के बाहर आकर रोने लगीं। बद्रीनाथ ने उनके पास जाकर कहा,
"अब रोने की क्या बात है ? गलती हो गई। कोई बात नहीं। हम अभी जाकर और दूध ले आते हैं।"
उमा ने रोते हुए कहा,
"बात दूध की नहीं है। आज बेटा बहू घर से गए। आज ही यह अपशकुन हो गया।"
उमा की बात सुनकर किशोरी भी परेशान हो गईं। बद्रीनाथ पहले ही जो कुछ हो रहा था उससे परेशान थे। वह नहीं चाहते थे कि एक और बात चिंता का विषय बने। उन्होंने कहा,
"अब इस बात को लेकर रोना धोना मत करो। हम जाकर दूध ला रहे हैं।"
यह कहकर वह चप्पल पहन कर बाहर आए। उनकी निगाह उस जगह पर पड़ी जहाँ तांत्रिक का बनाया सुरक्षा कवच लटका था। सुरक्षा कवच वहाँ नहीं था। यह देखकर बद्रीनाथ के होश उड़ गए। वह परेशान से खड़े थे तभी विशाल आ गया। उन्हें घबराई हुई हालत में दरवाज़े पर खड़ा देखकर उसने कहा,
"क्या बात है पापा ? आप यहाँ क्यों खड़े हैं ?"
बद्रीनाथ ने उस जगह इशारा किया जहाँ कवच लटका था। उस जगह को खाली देखकर विशाल ने कहा,
"कवच कहाँ गया ?"
"नहीं पता....हम अभी बाहर आए तो नज़र पड़ी। ना जाने क्या होने वाला है ?"
विशाल ने आसपास अच्छी तरह से देखा कि शायद कवच किसी तरह नीचे गिर गया हो। पर उसे कवच नहीं मिला। बद्रीनाथ ने उसे दूध जलने वाली बात बताई। उन्होंने कहा,
"जिज्जी और उमा तो पहले ही अपशकुन की बात को लेकर परेशान हैं। कवच गायब हो गया है जानकर तो और परेशान हो जाएंगी।"
विशाल भी चिंता में पड़ गया था। उसने कहा,
"पापा आप अंदर जाइए। हम दूध लेकर आते हैं। उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है।"
बद्रीनाथ घबराए हुए थे। उन्होंने कहा,
"नहीं बेटा अभी बाहर मत जाओ। अंदर चलकर तांत्रिक बाबा को फोन करते हैं।"
वह विशाल को लेकर अंदर आ गए। उन्हें देखकर किशोरी ने कहा,
"क्या हुआ ? दूध लेने नहीं गए।"
बद्रीनाथ ने उन्हें और उमा को बैठक में आने के लिए कहा।
टैक्सी में बैठा पुष्कर अब अच्छा महसूस कर रहा था। दो दिन जो उसने अपने घर पर बिताए थे वह तनाव भरे रहे थे। वह उस माहौल से ऊब गया था। उसने सोचा था कि शादी के बाद दिशा के साथ रोमांटिक पल बिताएगा। दिशा को भवानीगंज और उसके आसपास घुमाने ले जाएगा। वहाँ और कुछ ना सही पर प्रकृति की खूबसूरती है। दिशा कभी किसी गांव या कस्बे में नहीं रही थी। उसे अच्छा लगता। लेकिन इन सबका मौका ही नहीं मिला। वह सोच रहा था कि हनीमून पर वह दिशा की सारी शिकायत दूर कर देगा। उसने बगल में बैठी दिशा की तरफ देखा। वह खिड़की से बाहर देख रही थी। जबसे वह टैक्सी में बैठी थी चुप थी। पुष्कर ने कहा,
"चलो अब हम अपने हिसाब से ज़िंदगी जिएंगे। कोई टेंशन नहीं होगी।"
दिशा ने उसकी तरफ देखा। हल्के से मुस्कुराई और फिर बाहर देखने लगी। पुष्कर को लगा जैसे कि वह किसी सोच में है। उसने कहा,
"बात क्या है ? जबसे टैक्सी में हो चुप हो। बाहर देख रही हो। मेरी किसी बात से नाराज़ हो।"
दिशा ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"अगर मैं किसी बात से नाराज़ होती तो तुम्हें बता देती। मैं कोई बात मन में नहीं रखती हूँ।"
"कुछ तो है जो तुम्हारे मन में है पर तुम बता नहीं रही। बताओ क्या बात है ? इतनी चुपचाप क्यों हो ?"
दिशा कुछ सोचकर बोली,
"तुम्हारे घरवालों के बारे में सोच रही थी।"
"उनके बारे में क्या सोच रही हो ?"
दिशा कुछ कहने जा रही थी। फिर उसने ड्राइवर की तरफ इशारा किया। पुष्कर ने कहा,
"जो भी सोच रही हो उसे मन से निकाल दो। अब हम अपनी ज़िंदगी की एक खूबसूरत शुरुआत करने जा रहे हैं। उसके बारे में सोचो।"
दिशा ने कहा,
"ठीक है....अब मैं हमारी आने वाली ज़िंदगी के बारे में सोचूँगी।"
पुष्कर मुस्कुरा दिया। दिशा की नज़र उसके गले पर गई। वह ध्यान से देखने लगी। पुष्कर ने कहा,
"ऐसे क्या देख रही हो ?"
"पुष्कर तुम्हारा ताबीज़ नहीं दिख रहा है।"
"शर्ट के अंदर होगा। मैंने इस तरह बांधा था कि नीचे लटका रहे। लोग देखते तो बेकार के सवाल पूछते। तुम भी ऐसे ही पहनना कि छुपा रहे।"
दिशा ने हाथ बढ़ाकर उसकी शर्ट का कॉलर उठाया। वह बोली,
"पुष्कर ताबीज़ नहीं है।"
पुष्कर ने शर्ट के अंदर हाथ डालकर देखा। ताबीज़ नहीं था। उसने कहा,
"लगता है नीचे गिर गया।"
वह नीचे झुककर ताबीज़ देखने लगा। ड्राइवर ने कहा,
"कोई तकलीफ हो तो गाड़ी किनारे रोक दूँ।"
दिशा ने कहा,
"नहीं आप गाड़ी चलाते रहिए। आगे कोई चाय की दुकान या ढाबा हो तो रोक दीजिएगा।"
"जी मैडम....बस कुछ देर में ही एक ढाबा आने वाला है। वहाँ चाय और खाना बहुत अच्छा मिलता है।"
दिशा ने धीरे से पुष्कर से कहा,
"जब टैक्सी रुकेगी तो देख लेंगे।"
पुष्कर शांत होकर बैठ गया।
कवच के गायब होने की बात सुनकर किशोरी और उमा बहुत अधिक परेशान हो गईं। पुष्कर और दिशा के जाने के बाद से ही उमा का मन कई तरह की आशंकाओं से घबरा रहा था। दूध जलने की बात ने उनकी चिंता को बढ़ा दिया था। अब तो ऐसी बात सुनने में आई कि उनके लिए खुद पर काबू रखना कठिन हो गया। वह रोने लगीं। रोते हुए उन्होंने कहा,
"पता नहीं पुष्कर और दिशा कैसे होंगे ?"
बद्रीनाथ ने समझाया,
"उनकी चिंता मत करो। दोनों ने ताबीज़ पहन रखा है।"
किशोरी भी डरी हुई थीं। उन्होंने कहा,
"अगर कवच गायब हो सकता है तो क्या ताबीज़ गायब नहीं हो सकते।"
उनकी इस आशंका ने उमा को और परेशान कर दिया। उन्होंने ज़िद पकड़ ली कि फोन करके पुष्कर और दिशा को वापस आने के लिए कहो। विशाल ने तसल्ली दी कि वह फोन कर रहा है। उसने पुष्कर को फोन मिलाया। घंटी बज रही थी पर फोन उठ नहीं रहा था। दिशा को फोन मिलाया तो फोन बिज़ी जा रहा था। इस बात से विशाल भी परेशान हो गया था। उमा बार बार पूछ रही थीं कि बात हुई कि नहीं। वह कोई जवाब नहीं दे पा रहा था।
बद्रीनाथ ने तांत्रिक को फोन करके सारी बात बताई। तांत्रिक ने कहा कि सब लोग एक जगह रहें और भगवान का नाम जपते रहें।
सब लोग पूजाघर में आकर बैठ गए थे। उमा पुष्कर और दिशा को लेकर परेशान थीं और उनकी सलामती के लिए प्रार्थना कर रही थीं।