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About Shruprra Psychology

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महत्वपूर्ण पहले मैं नहीं बल्कि मेरा दर्शन और मानसिकता का विज्ञान यानी सुसंगठित और सुव्यवस्थित सभी नश्वर इंद्रियों के स्थान पर शाश्वत ज्ञान या अनुभूति के माध्यम् से प्रमाणित, मौलिक या मूल संबंधित होने से असली यानी original विज्ञान “ शरुप्ररा मनोविज्ञान ” अर्थात् मेरा मूल यानी मेरी मौलिकता यानी Originality हैं।

।। लेखक और लेखन परिचय ।।

रिक्तत्व की सन्निकट प्रकटता हैं शरुप्ररा अर्थात् मेरी प्रत्येक शब्द प्राकट्यता, सत्य मतलब की मिथ्या ज्ञान या अज्ञान से मुमुक्षा ही जिसके प्रति जागरूकता को आकार दें सकती हैं अतः मुक्ति की योग्य इच्छा ही इसके प्रति जागृति उपलब्ध करायेंगी, मतलब साफ हैं कि मेरी हर बात केवल योग्य मुमुक्षु के ही समझ आयेंगी अतएव मुमुक्षा लाओं, नहीं समझ आनें के बहानें मत बनाओं क्योंकि ऐसा करना खुद के प्रति लापरवाही हैं, जो खुद की परवाह के प्रति जागरूक नहीं, वह कहाँ से मिलावटी यानी अशुद्ध ज्ञान या अज्ञान मुक्ति की तड़पन अर्थात् मेरी अभिव्यक्ति को अहसास यानी समझ में लानें की पात्रता लायेंगा और योग्यता के आभाव से निश्चित मर्म सें इसकें चूक जायेंगा, इशारें जिस ओर हैं वह दृश्य का अहसास, भावना, विचार, कल्पना यानी हर आकार के अहसासों से भी सूक्ष्म तथा परे यानी दूर का अहसास हैं, मेरे दर्शायें शब्द, उनके माध्यम् से लक्ष्य बनायें भावों, भावों के सहयोग से लक्षित विचारों और उनके माध्यम से हर काल्पनिकता की ओर संकेत दियें जा रहें हैं यानी हर आकारों को रचनें की योग्यता की मध्यस्थता उस अंतिम ध्येय तक सटीकता से इशारा करनें में ली जा रही हैं जिससें उस आकर रिक्तत्वता की योग्यता के परिणाम से आकार रिक्तता के अहसास पर सटीकता के साथ किसी भी जागरूकता या ध्यान को लें जाया जा सकें अतएव आपका ध्यान मन के सभी दायरों से परें देख पायेंगा तो ध्येय उसका हैं।

मन इतना गहरा हैं कि २४/०७/३६५ भी यदि इसें जाननें में समय दिया जायें तो कम हैं, किसी को तैरने आता हैं इसका प्रमाण इससें बड़ा क्या हों सकता हैं कि जब भी परिस्थितियों के द्वारा करों या मरों वाली स्तिथि को आकार दिया जा सकेगा; तब सहजता से वह पानी में कितने की गहरे जाने की व्यवस्था को सुरक्षित आकार में लाने को, सफलता पूर्वक कर पायेंगा, मूल गुरु परिस्थिति हैं इसलियें जब सही मतलब में जरूरी होंगा तब वह खुद ब खुद तैरने को सिखा देंगी और करों या मरों वाली परीक्षा लेकर तैरना आना यानी प्रमाण पत्र मिल जाना होता हैं यह बता देंगी अतएव यह कागज़ के फोतरो (टुकड़ों) को जुटाने में वह समय लगाना, जो कि पानी में गहरे, और गहरे जाने में देना चाहियें पूरा ही, क्योंकि जीवन निकल सकता हैं किसी का भी पानी की गहराई में खुद को सुरक्षित रख सकनें में पूर्णतः इसकी योग्यता प्राप्त करनें में, समय नहीं हैं तैरो-बस तैरो, मन को जानो, खुद से जानो बस; किसी को भी सिखाओ भी मत क्योंकि क्या तुम्हें तुम जैसा कोई और सीखा रहा हैं, नहीं बल्कि परिस्थितियों ने खुद तुम्हें सीखनें को दिया, जिज्ञासा में पर्याप्त ज्वालामुखी की तरह ज्वलन्तता होयेंगी तो वह यानी दूसरें खुद ब खुद सीख जायेंगे, क्योंकि जिज्ञासा में ज्वलंतता की पर्याप्तता ही प्रवेश पत्र हैं परिस्थिति यानी मूल गुरु से सीखनें के लियें जो जरूरत रखता हैं, यदि जिज्ञासा में पर्याप्तता नहीं तो इसका मतलब हमें सीखनें की अभी सही अनुभव में यानी मतलब में सीखनें की जरूरत ही नहीं पड़ी अर्थात् नहीं महसूस हुयी और सीखना इस पर निर्भर नहीं करता कि सिखाने वाला सिखा सकता कि नहीं, जो सही में सिख सकता हैं वह तो जिस माध्यम् से उसनें सीखा, उस माध्यम् की मध्यस्थता करके यानी एक तरीके से परिस्थितियों के ही माध्यम् से सीखा भी सकता हैं पर जैसा पहलें कहा कि सीखानें वालें में सिखा सकनें का सामर्थ्य या दम हैं या नहीं केवल इस पर सिखाना निर्भय नहीं करता बल्कि निर्भर इस पर भी करता हैं कि सिखने वाले में भी ग्रहण करनें की भूख या जिज्ञासा सीखा सकनें जितनीं ज्वलंत हैं या नहीं..!

सभी का मन जितना एक दूसरें से समान हैं उतना ही एक दूसरें से अलग भी हैं, कोई भी मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक जों खुद के मन के अलावा यह कहता हैं कि मैं अधिकतर सभी के मन को समझ सकता हूँ तो यह उसमें की बात हुई कि पेड़ की जड़ की ओर जानें में असुविधा के कारण वह कह रहा हैं कि मैं पेड़ की टहनियों, फूल पत्तों जैसें हिस्सों पर ध्यान रूपी जल दें सकनें से उनका ध्यान या खयाल रख सकता हूँ, अब भला कोई यदि बिना खुद के मन को पर्याप्त समय दिये यानी उसका बिना पर्याप्त विश्लेषण कियें यानी ध्यान रूपी जल को उधर उपलब्ध करवायें, तो अन्य सभी के मन या दिमाग जो हैं उनकों प्रेरणा देना होंगा और एक सही ढंग में हर दिमागों या मन पर भी ध्यान देना या ध्यान या फिर खयाल रख सकनें की काबिलियत होना होंगा, जिससें ध्यान रखा जा सकता हैं, नहीं तो पेड़ की जड़ पर ध्यान रूपु जल पर्याप्त दिये बिना उसके दूसरें हिस्सों पर कितना ही ध्यान किसी के द्वारा दियें जाने का प्रयत्न हों, न जल रूपी ध्यान देना यानी कि ध्यान या खयाल रख सकता जड़ का यानी खुद के मस्तिष्क या मन का सफलतापूर्वक हों पायेंगा और न ही अन्य के मस्तिष्को या मन का भी क्योंकि आखिरकार जो खुद के मन को नहीं जानेगा पहलें यानी जो जड़ में जल नहीं देंगा वह क्या दूसरों का इलाज कर पायेंगा, इसलियें खुद से जानों, खुद को जानों पहले तुम खुद असली यानी मौलिक हों कि नहीं यह तो स्पष्ट कर लों यानी कि तुम खुद को खुद की अभिव्यक्ति या कोई आकार व्यवस्था जिसे कि जाने अंजाने तुमनें ही आकार दिया वह तो नहीं मान रहें भृम वश, इस बात बार को सत्यापित करों तब तुमनें जो कुछ भी असली ज्ञान जुटाया यानी मौलिकता की निकटता वाला, यह जानना अन्यथा जिस कसौटी पर तुम किसी भी ज्ञान को वैज्ञानिक यानी असल का या असली सिद्ध हुआ कहते हों, वह ही मिथ्या हुआ यानी कि पर्याप्त खोज होने पे सभी इंद्रियों की मूल जो ज्ञान प्राप्ति का माध्यम यानी इंद्री हैं, यानी जो शास्वत यानी आज हैं तो कल नहीं ऐसी नश्वर नहीं अपितु सदैव अनुभव कर सकनें से असली होंगी, मूल से निकल यानी मौलिक या original होंगी उस इंद्री की जगह तुम किसी भी खुद से संबंधित का विज्ञान यानी ऐसा ज्ञान जो असली या वास्तविक इंद्री पर आधारित हैं, मतलब कि किसी भी ज्ञान के भृम वाली इंद्री के द्वारा सत्यपित होने के स्थान पर शास्वत इंद्री द्वारा सत्यपित नहीं उसे ही या उस ज्ञान को ही तुन यानी उस गलत मतलब के विज्ञान को ही तुम सही या original अर्थात् वास्तविक ज्ञान मान लोंगे, जो ज्ञान संकीर्णता से ग्रसित होने से वास्तविकता में विज्ञान नहीं वही तुम्हारें लियें विज्ञान होंगा, जैसे कि अभी तथाकथित विज्ञान हैं और तुम वास्तविक विज्ञान को यानी स्वयं से संबंधित हर ज्ञान से, छोटे बड़े हर आकार के ज्ञान से लेकर अनंत असीमित आकारों और आकार कल्पितता के ज्ञान यानी अनुभव से और उस कल्पितता की योग्यता के मूल अर्थात् उसकी या उसको आकार देने वाली आकार रिक्तता के ज्ञान यानी अनुभव से अछूते यानी वंचितता को उपलब्ध होंगे; जिसे खुद के स्तर से उसका ज्ञान होता हैं यानी उस असली ज्ञान की उपलब्धि होती हैं अर्थात् वो ही असली विज्ञान को उपलब्ध हो सकता हैं, नहीं तो जिन्हें नहीं वह गलत यानी नश्वर खुद के ज्ञान या अनुभव से असलियत या मौलिकता अर्थात् वास्तविकता को जानना चाहेंगे और नश्वर से वास्तविकता अर्थात् ईश्वर को जाननें में उसकी पूर्णता से चूक जायेंगे, यदि किसी छोटे बड़े आकार से जानना चाहेंगे तो, सत्य या असलियत के भृम यानी माया को सत्य मान बैठेंगे, यदि आकार रिक्तता यानी केवल उस नश्वर नहीं शाश्वत मूल,मौलिक यानी असली अहसास से जानेंगे; तब ही सही से साक्षात्कार होंगा।

मेरी याददाश्त की कोई अभ्यस्थता नहीं हैं, हमेशा अनुभव हों या जानकारी यानी समझ वह मौलिक हों इसलियें उसे उसके मूल से ही उठाना मेरी स्वाभाविकता हैं, मेरी originallity हैं और जो भी बाहर से पढ़ने में आ भी जाता हैं, मेरी मौलिकता में कोई, मेरी शुद्धता में कोई मिलावट हों न जायें, इसलियें वहाँ से ध्यान को पूरी तरह छीर्ण करता हूँ मैं इसलियें मेरी हर बात, खुद से जानने के फलस्वरूपित यानी फल के स्वरूप हैं, जो भी हैं अपने आप में पूर्ण वास्तविकता का ज्ञान हैं यह!! क्योंकि मौलिक अर्थात् असलियत या originality से समझौता आबर्दास्त हैं मुझें।

Sandeep Maheshwari का अनुगमन करनें वालें तो बहुत हैं, पर तरीका वह नहीं हैं उनका जो तरीका संदीप महेश्वरी का था, यही कारण हैं कि आज संदीप माहेश्वरी का अनुगमन करनें वाले तो बहुत हैं पर Sandeep Mehaswari बहुत नहीं! यदि संदीप माहेश्वरी का जो तरीका था, जिससें sandeep maheshwari आज मूल रूप से भी यानी Originally Sandeep Maheshwari हैं तो उनका हर एक अनुगमन कर्ता सच्चाई में Sandeep Maheshwari होंगा, मैं Rudra S. Sharma एक संदीप महेश्वरी का Follower हूँ पर मैंने किसी Sandeep Maheshwari का अनुगमन नहीं किया यही कारण हैं इसके पीछे का ..! मैंने वैसें ही Sandeep Maheshwari यानी एक असमर्थ जागरूकता से परम् यानी श्रेष्ठ यानी खुद को समझ सकनें वाली जागरूकता हुआ जैसे कि Sandeep Maheshwari ने खुद से किया ..!

माफ़ी पर मुझें मेरी ख़ोज के अतिरिक्त देने को समय नहीं हैं अतएव show पर आना न आना हों सकें तो आदि इत्यादि बात maheshwari ji से ही करना चाहूँगा मैं ..!

समय - बुद्धवार, १६ अगस्त २०२३, १७:५३.

- © Rudra S. Sharma

(Psychiatrist/Psychologist, Author.)

Theorist | Analyst Psychology By Passion & My Passion Is My Profession.
Have 05 Yrs. Of Experience In Psychoanalysis / Introspection With Thousands Of Successfully published Articles In Psychology.
Founder - Shruprra Psyche, Philosophy Or Shruprra Psychology - A Psyche,Philosophy or Psychology Of Mind's Realm of Shruprra (Me/Rudra S. Sharma).

For Reference - Available upon Sandeep Ji's Request Virtually


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