(16)
माया रविवार छोड़कर हर रोजं विशाल से गणित पढ़ने आती थी। अब वह बहुत खुल गई थी। उमा के साथ खूब बातें करती थी। किशोरी को भी वह अच्छी लगती थी। इसलिए पढ़ाई पूरी होने के बाद भी देर तक वहीं रहती थी। मनोरमा अक्सर कहती थीं कि माया को यहाँ इतना अच्छा लगता है कि अगर उसका बस चले तो यहीं रहने लगे। उमा भी अगर कुछ खास बनाती थीं तो माया के लिए बचाकर रखती थीं।
माया सिर्फ उमा और किशोरी के साथ ही नहीं खुली थी। जब बद्रीनाथ घर पर होते थे तो उनसे भी हंसकर बात करती थी। पुष्कर और उसके बीच तो सबसे अधिक छनती थी। विशाल के साथ वह गंभीर रहती थी। इस गंभीरता का कारण यह नहीं था कि वह उसे पढ़ाता था इसलिए वह उससे संकोच करती थी। बल्की इसका कारण उसके मन में विशाल के लिए प्रेम था। जो दिन पर दिन बढ़ रहा था।
विशाल का अठ्ठारवां जन्मदिन तीन महीने पहले ही बीता था। घुंघराले बालों और बड़ी बड़ी आँखों वाला विशाल बहुत सुंदर दिखता था। उसका सांवला रंग उसे और अधिक आकर्षक बनाता था। किशोर वय की माया के दिल पर उसके इस रूप ने जादू कर दिया था। जब वह गणित पढ़ाते हुए सवाल समझा रहा होता था तो वह उसके चेहरे को निहार रही होती थी। कई बार विशाल ने उसे खुद को ताकते देखा था। पुष्कर छोटा था पर माया किस तरह उसके भाई को देखती है समझ रहा था।
एक दिन उमा और किशोरी पड़ोस के घर में कीर्तन के लिए गई थीं। बद्रीनाथ अपने भाई केदारनाथ के घर गए हुए थे। विशाल रोज़ की तरह माया को पढ़ा रहा था। पुष्कर उसी कमरे में बैठा था। वह अंग्रेज़ी की किताब से कविता याद कर रहा था। अचानक विशाल उठकर खड़ा हो गया। उसने माया को डांटते हुए कहा,
"तुम्हारा मन पढ़ने में नहीं लग रहा है। अपने घर जाओ।"
विशाल के इस तरह डांटने से माया सकपका गई। उसने पुष्कर की तरफ देखा। उसके बाद अपनी किताब कॉपी समेट कर घर चली गई।
इस घटना को बीते एक हफ्ता हो गया था। माया विशाल से पढ़ने नहीं आ रही थी। उमा को लग रहा था कि ऐसा क्या हो गया कि माया पढ़ने नहीं आ रही है। उन्होंने पुष्कर को बुलाकर पूछा कि कुछ हुआ था क्या ? पुष्कर ने बताया कि माया दीदी गलती कर रही थी इसलिए भइया ने डांट दिया था। उमा ने विशाल को बुलाकर समझाया कि गलती कर रही थी तो समझा देते। डांटना ठीक नहीं था। उन्होंने पुष्कर से कहा कि माया के घर जाए और उससे कहे कि मम्मी ने बुलाया है।
पुष्कर माया के घर गया। उसने अपनी मम्मी का संदेश उसे दे दिया। मनोरमा उस वक्त घर पर नहीं थीं। माया ने उसे मिठाई खाने को दी। उससे कहा कि इंतज़ार करे वह अभी आ रही है। मिठाई खाने के बाद पुष्कर उसकी राह देखने लगा। कुछ देर में माया अपने कमरे से बाहर आई। उसके हाथ में चार पर्तों में मोड़ा गया कागज़ था। पुष्कर को देते हुए बोली,
"यह चिट्ठी सिर्फ विशाल के लिए है। ना तुम इसे पढ़ोगे और ना किसी और को दोगे।"
पुष्कर ने हाँ में सर हिलाया। माया ने एकबार फिर अपनी बात दोहराई। पुष्कर ने चिट्ठी अपनी पैंट की जेब में डाल ली। उसने आश्वासन दिया कि चिट्ठी विशाल को ही देगा।
पुष्कर जब घर पहुँचा तो विशाल किसी दोस्त से मिलने गया था। जब वह लौटकर आया तो बद्रीनाथ ने फिर किसी काम से भेज दिया। पुष्कर को चिट्ठी देने के लिए रात तक इंतज़ार करना पड़ा। दोनों भाई एक ही कमरे में सोते थे। बिस्तर पर लेटे हुए पुष्कर ने कहा,
"आज मम्मी ने माया दीदी के घर भेजा था।"
विशाल ने पूछा,
"क्यों ?"
"मम्मी ने उन्हें मिलने बुलाया है।"
विशाल ने कुछ नहीं कहा। पुष्कर ने उसकी तरफ करवट बदल ली। कुछ देर उसे देखने के बाद बोला,
"उस दिन दीदी ने आपका हाथ पकड़ा था इसलिए गुस्सा हो गए थे।"
यह सुनकर विशाल ने भी उसकी तरफ मुंह घुमा लिया। पुष्कर ने कहा,
"हमने उन्हें हाथ पकड़ते देखा था। वह पढ़ाते हुए आपको देखती रहती हैं। आपको प्यार करती हैं।"
प्यार वाली बात सुनकर विशाल ने कहा,
"तुमने यह सब कहाँ से सीखा ?"
पुष्कर ने कोई जवाब नहीं दिया। अपनी पैंट की जेब में हाथ डाला और चिट्ठी निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी। विशाल समझ गया कि यह किसने दी है। वह चिट्ठी लेकर अपनी टेबल के पास गया और लैंप जलाकर पढ़ने लगा। पुष्कर लैंप की रौशनी में विशाल के चेहरे पर आते भावों को देख रहा था। चिठ्ठी पढ़ते हुए विशाल के चेहरे पर एक मुस्कान थी।
माया ने फिर पढ़ने आना शुरू कर दिया। विशाल उसे पढ़ाता था। पढ़ाते हुए दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते थे। पुष्कर यह सब देखता रहता था। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में माया ने गणित में ठीक ठाक नंबर पाए थे। उसके बाद उसने गणित विषय लिया ही नहीं। लेकिन अब उसे आने जाने के लिए किसी बहाने की ज़रूरत नहीं रह गई थी। वह जब जी करता था आ जाती थी। उमा और किशोरी से बातें करती थी। पुष्कर से हंसी मज़ाक करती थी। कभी कभी बद्रीनाथ से भी बातें करती थी। इन सबके बीच विशाल आसपास ही होता था। दोनों एक दूसरे को, दूसरों से नज़रें बचाकर देखते रहते थे।
विशाल और माया के बीच प्यार परवान चढ़ चुका था। दोनों घर के बाहर मिलने लगे थे। घर के पास वाला तालाब ऐसी जगह थी जहाँ दोनों बैठकर बातें किया करते थे। पुष्कर आसपास ही होता था। एक दिन उसने माया को कहते सुना था,
"विशाल हमारा प्यार टाइम पास नहीं है। तुमको हमारा होना ही होगा।"
विशाल ने जवाब दिया था,
"माया....हमारे कॉलेज का आखिरी साल है। उसके बाद कोई नौकरी ढूंढ़कर घरवालों से बात कर लेंगे।"
उस समय पुष्कर को लगा था कि विशाल जो कह रहा है वही करेगा।
इस बातचीत के दो हफ्तों के बाद ही होली का त्यौहार मनाया जा रहा था। सारा आलम मौज मस्ती और रंगों से सराबोर था। इस माहौल से विशाल और माया कैसे बच सकते थे। सर्वेश कुमार और मनोरमा माया को लेकर होली खेलने आए थे। बाहर दालान में मर्दों की महफिल जुटी थी। औरतों ने बैठक में डेरा जमा रखा था। इन सबके बीच विशाल माया को रंग लगाने के लिए व्याकुल था। वह आंगन में सीढ़ियों के पास खड़ा था। माया बैठक में थी। उसके लिए वहाँ जाकर माया को रंग खेलने के लिए बुलाना संभव नहीं था। पुष्कर एक ऐसी कड़ी था जो उन दोनों को जोड़ने का काम करता था। दो सालों में वह भी बड़ा हो गया था और बहुत कुछ समझने लगा था। विशाल ने उससे कहा कि जाकर किसी बहाने से माया को उसके पास ले आए।
बैठक में माया भी इस फिराक में थी कि किसी बहाने से वहाँ से उठा जाए। पुष्कर जब वहाँ पहुँचा तो उसे बहाना मिल गया। वह उसके साथ रंग खेलने के बहाने आंगन में आ गई। सीढ़ियों के पास खड़े विशाल ने उसका हाथ पकड़ा और छत पर ले गया।
पुष्कर सीढ़ियों के पास बैठा था। तभी उसका एक दोस्त होली खेलने के लिए आ गया। वह उसके साथ बाहर चला गया। वहाँ और भी दोस्त थे। वह सबके साथ होली खेलने लगा। यह भूल गया कि विशाल ने नज़र रखने को कहा था।
कुछ देर बाद जब वह घर लौटकर आया तो माहौल में तनाव था। सर्वेश कुमार अपने परिवार को लेकर जा चुके थे। बद्रीनाथ आंगन में बैठे थे। विशाल नज़रें झुकाए उनके सामने खड़ा था। उमा और किशोरी भी एक तरफ खड़ी थीं। विशाल ने नज़रें उठाकर पुष्कर की तरफ देखा। उनमें शिकायत थी। बद्रीनाथ ने गुस्से से कहा,
"क्या वक्त आ गया है। मर्यादाओं का खयाल ही नहीं रहा। अभी पढ़ाई तक पूरी नहीं की। किसी लायक नहीं बनें। पर फिल्मी हीरो की तरह इश्क लड़ा रहे हैं।"
विशाल की आँखों से आंसू बह रहे थे। बद्रीनाथ और भी गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा,
"जिज्जी समय पर पहुँच गईं। नहीं तो तुम दोनों ने हद पार कर दी थी। क्या मुंह रह गया हमारा सर्वेश के सामने। छोटा भाई मानते हैं हम उसे।"
किशोरी ने कहा,
"बद्री सारी गलती विशाल की ही नहीं है। इतनी बड़ी लड़की को क्या संस्कार दिए हैं सर्वेश और मनोरमा ने। लड़की को अपनी सीमा समझाना बहुत ज़रूरी होता है।"
"अब जिज्जी अपना सिक्का खोटा निकल जाए तो दूसरे को क्या दोष दें। कॉलेज में पढ़ रहा है। यह भी नहीं जानता है कि कुछ ऊँच नीच हो जाती तो समाज में कितनी थू थू होती।"
बद्रीनाथ विशाल को डांट रहे थे। किशोरी बार बार यही कह रही थीं कि गलती सिर्फ उसकी नहीं माया की है। बल्की उससे भी अधिक उसके माँ बाप की है।
पुष्कर अपने कमरे में चला गया था। वह पछता रहा था कि अपने दोस्तों के साथ होली खेलने क्यों गया।
बाद में उमा और बद्रीनाथ की बातों से उसे पता चला कि क्या हुआ था।
किशोरी कुछ दिनों से माया और विशाल की हरकतों पर नज़र रखे थीं। उन्होंने महसूस किया था कि दोनों के बीच कुछ है। जब माया पुष्कर के साथ आंगन में आई तो वह सतर्क हो गईं। खुद भी उठकर आंगन में आने लगीं। उसी समय कुछ औरतें आ गईं। किशोरी को रुकना पड़ा। उनसे निपटते ही किशोरी आंगन में आईं तो कोई नहीं था। उन्होंने हर कमरे में झांका। कोई दिखाई नहीं पड़ा। वह बैठक में जा रही थीं तभी उनका ध्यान सीढ़ियों पर गया। वह छत पर कम जाती थीं। पर उनका शक उन्हें छत पर ले गया। वहाँ विशाल और माया सारे आलम से बेखबर एक दूसरे की बाहों में थे।