(15)
तय हुआ था कि कल सुबह पुष्कर और दिशा नहाकर पूजाघर में जाएंगे। किशोरी उन्हें ताबीज़ देंगी। दोनों ताबीज़ पहन लेंगे। पुष्कर और दिशा अपने कमरे में जाने के लिए आंगन में आए तो रसोईघर की बत्ती जल रही थी। पुष्कर ने कहा,
"दिशा तुम ऊपर जाओ। मम्मी किचन में होंगी। मैं उनसे मिल लेता हूँ।"
"तो मैं भी मिल लेती हूँ पुष्कर।"
दोनों रसोई में गए। उमा अकेले खाना बना रही थीं। पुष्कर ने चप्पलें बाहर उतार दीं। अंदर जाकर उमा के पैर छू लिए। उमा ने उसकी तरफ देखा। पुष्कर ने कहा,
"मम्मी मुझे माफ कर दीजिए। मुझे मालूम है। आपको मेरी बात का बहुत बुरा लगा है।"
"बेटा बुरा तो लगा था। पर माँ का दिल बच्चे की भलाई ही सोचता है। इसलिए हम चाहते हैं कि तुम दोनों ताबीज़ पहन लो। संभल कर रहो। यहाँ रहते तो तसल्ली रहती। पर अगर रुक नहीं सकते हो तो ताबीज़ उतार कर रखना नहीं।"
दिशा भी रसोई में आ गई। उसने कहा,
"मम्मी आप निश्चिंत रहिए। हम दोनों ताबीज़ तब तक नहीं उतारेंगे जब तक आप लोग नहीं कहेंगे।"
यह सुनकर उमा को तसल्ली हुई। उन्होंने कहा,
"ठीक है तुम दोनों ऊपर जाओ। खाना बन जाएगा तो हम भिजवा देंगे।"
दिशा ने कहा,
"मम्मी मैं आपकी मदद करती हूँ।"
उमा ने कुछ नहीं कहा। दिशा उनकी मदद करने लगी। पुष्कर ने अपनी मम्मी को गले लगाया और ऊपर चला गया।
कल सुबह दिशा को अपनी मम्मी के घर के लिए निकलना था। वह जानती थी कि अपनी मम्मी के घर पहुँचने के बाद उसके लिए आगे की कहानी जानना मुश्किल हो जाएगा। वह चाहती थी कि पुष्कर अभी उसे आगे की कहानी बताए। पुष्कर उसके पास ही लेटा था। उसके मन में जो कुछ हुआ वही चल रहा था। दिशा ने उसके सीने पर अपना सर रखकर कहा,
"क्या सोच रहे हो पुष्कर ?"
"सोच रहा था कि घरवालों का डर कितना गहरा है।"
दिशा जो चाहती थी पुष्कर ने बात उसी दिशा में मोड़ दी थी। उसने कहा,
"मैंने भी महसूस किया है पुष्कर। तभी मेरे मन में सारी बात जानने की इच्छा है। कल हम लोग मम्मी के घर चले जाएंगे। फिर मौका नहीं मिलेगा।"
पुष्कर ने कुछ सोचकर कहा,
"ठीक है....."
वह उठकर बैठ गया। दिशा भी पालथी मारकर बैठ गई। पुष्कर ने एकबार फिर उसी झरोखे से अतीत में झांकना शुरू किया।
पुष्कर अपने मम्मी पापा की बात पूरी नहीं सुन पाया था। उसका मन यह जानने के लिए बेचैन था कि भइया ने ऐसी कौन सी बात की जिसे सुनकर उसके पापा ने भाभी और मोहित की मौत का केस पुलिस में दर्ज़ नहीं कराया। रात दिन यही सवाल उसके मन को परेशान करता रहता था। उसने सोचा था कि अपनी मम्मी से इस विषय में बात करेगा। पर उसे मौका ही नहीं मिल पा रहा था।
एक दिन शाम के समय वह बैठा पढ़ रहा था। लेकिन मन में वही सवाल घूम रहा था। उसकी मम्मी उसके पास आकर बोलीं कि किशोरी पूजाघर में बुला रही हैं। पुष्कर को समझ नहीं आया कि बात क्या है। उसने अपनी किताबें बंद करके रख दीं। आंगन में हाथ पैर धोए और पूजाघर में चला गया। वहाँ उसके मम्मी पापा और विशाल मौजूद थे। वह भी चटाई पर बैठ गया। इंतज़ार करने लगा कि किशोरी वह बात बताएं जिसके लिए बुलाया था।
किशोरी गंभीर मुद्रा में बैठी थीं। कुछ क्षणों के बाद उन्होंने कहा,
"यह तो डराने वाली बात है बद्री। तुमने पहले कुछ क्यों नहीं बताया ?"
"जिज्जी उस घटना के बाद हम लोग तो सब भूल गए थे। हमें तो लगा था कि मरने के बाद वह क्या नुकसान पहुँचाएगी। जब बहू और मोहित की मौत हो गई तब अस्पताल में विशाल ने बताया।"
किशोरी ने विशाल से कहा,
"तुमने कुछ क्यों नहीं बताया विशाल। समय रहते पता चलता तो कोई उपाय किया जाता। आज कुसुम और मोहित ज़िंदा होते।"
पुष्कर समझ नहीं पा रहा था कि किसकी बात हो रही है। पर यह समझ गया था कि उसका संबंध उसकी भाभी और मोहित की मौत से है। विशाल ने कहा,
"बुआ जी..... मुझे भी मोहित के जन्मदिन से एक रात पहले ही वह सपना आया था। मैंने तब यह सोचा कि सिर्फ एक सपना है। मैं मोहित के जन्मदिन की पार्टी की तैयारी में लग गया। जब यह सब हुआ तब मुझे उस सपने की याद आई। तब तक देर हो....."
कहते हुए विशाल रोने लगा। बद्रीनाथ ने उसे शांत कराया। विशाल ने कहा,
"सपने में उसने कहा था कि तुम्हारे जीवन की खुशियों का अंत आ गया है। कुसुम और मोहित की मौत की ज़िम्मेदार माया है। वह इस घर के आंगन में श्राप देकर गई थी। मरकर भी अपना बदला पूरा करने के लिए भटक रही है।"
माया का नाम सुनकर पुष्कर की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। उमा रो रही थीं। किशोरी चिंता में डूबी थीं।
कहानी में एक नया नाम जुड़ा था। दिशा ने इससे पहले किसी के मुंह से माया का नाम नहीं सुना था। पुष्कर कहानी सुनाते हुए रुक गया था। वह उसकी तरफ देख रहा था। दिशा ने कहा,
"माया कौन थी ? भइया ने उस दिन किस श्राप की बात की थी ? किस बात का बदला लेना था उसे कि मरकर भी भटक रही थी ?"
दिशा का एक साथ इतने सवाल पूछना बता रहा था कि वह माया के बारे में जानने के लिए बहुत बेचैन है। पुष्कर ने कहा,
"एक समय था जब इस घर में माया इस तरह आती जाती थी जैसे कोई अपने घर में आता जाता है। उसने तो मन ही मन इस घर को अपना मान लिया था। उस दिन की राह देख रही थी जब विशाल भइया के साथ शादी करके इस घर में आती। पर ऐसा हुआ नहीं।"
पुष्कर फिर अतीत के गलियारे में चला गया।
मार्च का महीना था और पुष्कर और विशाल के इम्तिहान चल रहे थे। पुष्कर दूसरी कक्षा में था। विशाल बारहवीं की बोर्ड परीक्षा दे रहा था। दोनों भाई आंगन में बैठे पढ़ रहे थे। दरवाज़े की कुंडी खड़की। बाहर से किसी ने आवाज़ लगाई,
"भइया जी......"
उमा ने विशाल से कहा,
"लगता है वो लोग आ गए। दरवाज़ा खोलकर अंदर बैठक में ले जाओ।"
विशाल ने अपनी किताब बंद करके चारपाई पर रख दी। पुष्कर भी कौतुहलवश किताब बंद करके उसके साथ चला गया। विशाल ने दरवाज़ा खोला। सामने खड़े सज्जन ने कहा,
"हमारा नाम सर्वेश कुमार श्रीवास्तव है। बद्रीनाथ जी से मिलना था।"
विशाल ने नमस्ते करके कहा,
"जी अंदर आइए...."
सर्वेश ने पीछे घूमकर कहा,
"आआो......"
सर्वेश के साथ एक औरत और एक लड़की थी। विशाल तीनों को लेकर बैठक में गया। उन्हें बैठाते हुए बोला,
"पापा बुआ को लेकर डॉक्टर के पास गए हैं। बस आते ही होंगे।"
सर्वेश ने कहा,
"जिज्जी को क्या हो गया ?"
जिस तरह से उन्होंने बुआ के लिए जिज्जी शब्द का इस्तेमाल किया था उससे विशाल को लगा कि आगंतुक कोई खास हैं। तभी उमा बैठक में आ गईं। उनके हाथ में ट्रे थी। उसमें तीन गिलास पानी और एक प्लेट में शकरपारे थे। विशाल ने ट्रे उनके हाथ से लेकर मेज़ पर रख दी। सर्वेश ने कहा,
"नमस्ते भाभी....कैसी हैं आप ?"
"अच्छे हैं भइया...."
यह कहकर उमा ने उनके साथ आई दोनों स्त्रियों की तरफ देखा। सर्वेश ने कहा,
"इनसे आपकी मुलाकात नहीं हुई है। हमारी पत्नी मनोरमा और बेटी माया है।"
मनोरमा और माया ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया। सर्वेश ने विशाल की तरफ देखकर कहा,
"यह तो बड़ा वाला है। जब हम मिले थे तब तीन साल का था।"
उमा ने परिचय दिया,
"विशाल नाम है इसका। बारहवीं की परीक्षा दे रहा है इस साल। दूसरा वाला पुष्कर है। दोनों में दस साल का अंतर है।"
उन्होंने विशाल और पुष्कर से कहा,
"चाचा चाची के पैर छुओ। जब पापा पढ़ते थे तो कुछ समय चाचा जी के घर रहे थे।"
विशाल और पुष्कर ने उन दोनों के पैर छुए। उमा ने कहा,
"बिटिया तुम किस क्लास में हो ?"
"ताई जी नवीं का इम्तिहान दिया है। कल ही पेपर खत्म हुए हैं।"
उमा ने उन लोगों को पानी पीने को कहा। विशाल और पुष्कर से कहा कि जाकर पढ़ाई करें।
सर्वेश कुमार बद्रीनाथ के पिता के दोस्त के बेटे थे। बद्रीनाथ अपनी पढ़ाई के दौरान कुछ महीने उनके घर के एक कमरे में किराए पर रहे थे। तबसे बद्रीनाथ और उनके परिवार के बीच अच्छे संबंध थे। सर्वेश बद्रीनाथ से उम्र में छोटे थे। वह उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे। पिछले कुछ सालों से मध्यप्रदेश में थे। मनोरमा और माया परिवार के साथ रहती थीं। सर्वेश का ट्रांसफर भवानीगंज के पास हो गया था। बद्रीनाथ का एक और मकान था। वह उन्होंने किराए पर ले लिया था। माया का दाखिला भवानीगंज के लड़कियों के स्कूल में हो गया था।
वह मकान जो सर्वेश ने किराए पर लिया था बद्रीनाथ के घर के पास ही था। माया अपनी मम्मी के साथ अक्सर उमा से मिलने आती थी। एक बार उसने ज़िक्र किया कि उसे गणित में बहुत दिक्कत होती है। कोई समझाने वाला नहीं है। उमा ने कहा कि विशाल दोपहर तक कॉलेज से वापस आ जाता है। वह आकर विशाल से मदद ले लिया करे। वह उसे पढ़ा देगा।
माया विशाल के कॉलेज से लौटने के बाद कुछ देर उससे गणित पढ़ने आने लगी। विशाल मन लगाकर उसे पढ़ाता था। वह भी ध्यान से पढ़ती थी। जब तक वह रहती थी उमा के कहने पर पुष्कर उसी कमरे में बैठकर पढ़ाई करता था।