प्रमोद अश्क -चंद गजलें अश्क की राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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प्रमोद अश्क -चंद गजलें अश्क की

प्रमोद अश्क -चंद गजलें अश्क की

कम लेकिन घनीभूत संवेदना की ग़ज़ल -राजनारायण बोहरे दतिया

पुस्तक-चंद गजलें अश्क की
कवि- प्रमोद अश्क
प्रकाशक-हिंदी उर्दू मजलिस

प्रमोद अश्क का नाम उन पुख्ता कवियों में से हैं जो इस आत्मविश्वास से लिखते हैं कि न तो किसी आलोचक की परवाह करते हैं न वे किसी वरिष्ठतम कवि की किसी टिप्पणी पर ध्यान देते हैं । दरअसल उन्हे अपनी कविता और ग़ज़ल की पूर्णता पर विश्वास रहता है-ग़ज़ल उर्दू-फारसी की नहीं हिन्दी की , हिन्दी गजल!
अश्क की हिन्दी गजलों का एक संग्रह ‘ चंद गजले अश्क की ‘ पिछले दिनों पाठकों के समक्ष छप कर आया है, असमें उनकी बीस गजल, आठ मुक्तक सहित लगभग इक्कीस क्षणिकाऐं सम्मिलित हैं । इसमें अश्क की हर मिजाज की गजलें है ।
अश्क को हैरानी होती है कि कमजोर लोग ताकतवर होने का दम भरते है और जंग से भाग आने वाले लोग हक़-हकूक की अथवा कायर लोग तलवार-भालों की बात करते हैं, तो हास्यास्पद स्थिति होती है-
जंग से भागे हुए अधिकार की बातें करें
कायरों की टोलियां तलवार की बातें करें
यही हैरानी कवि को तब ज्यादा बढ़ जाती है जब अक्षम लोगों को वह श्रेष्ठ जगह बैठा पाता है-
फिर महल को राजधानी मिल गई
एक बूढ़े को जवानी मिल गई
बात तक करनी न आती थी जिन्हे
आज उनको हुक्मरानी मिल गई
ग़ज़़लगो को इस देश के बच्चों की भी फिक्र है,जिनहे असमय ही विपरीत हालात में डाल दिया जाता है, मानो फूल को झूलसा दिया गया हो, तो कवि उन आम नागरिकों के सिर पर लदे डाकूनुमा जन प्रतिनिधियों की हरकतें बयान करने में भी हिचकता नहीं-
हर फूल का झुलसा हुआ तन देख रहा हूं
कहने को हर ओर अमन देख रहा हूं
आये हैं जब से जीत के डाकू जी शहर में
मैं ओढ़े हुये शहर को कफन देख रहा हूं
हर कवि की तरह अश्क का मन भी गजल के पुरातन विषय प्रेम की बातें करने में भी लगा है-
तेरे प्यार में मेरा मन कुछ इस तरह जला है
दुष्यन्त के विरह में जैसे शकुन्तला है
या फिर-
मै तुम्हारे प्यार में पागल नहीं हूं
हर कदम पर साथ क्योंदूं मै तुम्हारा
मैं तुम्मारे पांव की पायल नहीं हूं
गजल के अलावा अश्क की प्रिय विधा क्षणिका है, हर मंच पर वे क्षणिकाक जरूर सुनाते हैं । इन क्षणिकाओं में वे राजनीति और समाज के विद्रूपो ंपर व्यग्ंय करते है-
1. वे बोले नेता तुझमें बहुत गुण अवगुण एक दिखात
जो तुम्हारे नजदीक हो बइ्र में मारत लात
2. वे बोले गृहमंत्री के जब भी पड़े गृह मे ंचरण
हो गई लूट हतया अपहरण
3. वे बोले मेरे दो शिष्य थे बड़े पढ़ाकू
एक बना भ्रष्ट मंत्री दूसरा निकला डाकू

अश्क के मुक्तक भी सराहनीय है-
ताज सी तहजीब पर कीचड़ उछाल कर
निकले हैं लोग कैसे दामन संभाल कर

कतिपय लोगों को यह संग्रह छोटा होने की शिकायत हो सकती है, लेकिन बड़ा ओर मोटा होने के नाम पर घटिया रचनाओं से बेहतर है कि एक-दो उम्दा अशहार कह डालना। इस दृष्टि से अश्क का यह संग्रह काबिले तारीफ है । हां हिन्दी गजल को फारसी छंद विधान से मुक्त मानना भी इसके लिए जरूरी है ।
प्रमोद अश्क के मुक्तक बड़े लोकप्रिय रहे। जब वे नया मुक्तक किसी पत्रिका या अखबार में भेजते तो लोग पढ़ते ही वह मुखाग्र हो जाता था।
ऐसे लेखक की ग़ज़ल विचारणीय है।