इज़्ज़त आबरू पर लक्ष्मीनारायण बुनकर राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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इज़्ज़त आबरू पर लक्ष्मीनारायण बुनकर

इति वृतात्मकता की वापसी: इज्जत-आबरू
डा0 लक्ष्मीनारायण बुनकर

कथा संग्रह -इज्जत-आबरू
लेखक-राजनारायण बोहरे
यात्री प्रकाशन दिल्ली
आज की हिन्दी कहानी पर तमाम आरोप एक लम्बे समय से लगभग हरेक संगोष्ठी मेंलगाये जाते है- कि यह रोचकता से बहुत दूर होती जा रही हैं, इसमेंवृतांतत्मकता का कतई अभाव होता जा रहा हैं, इसकी भाषा बडी बोझल हो रही हैं, इसमेंप्रयुक्त भाषा-भारतवर्ष के किस प्रदेश मेंनहीं बोली जाती हैं, यह बिल्कुल अविश्वसनीय हो गई हैं, आदि आदि। लेकिन कुछ ऐसे कथा लेखकों का नाम अभी भी पूरे उत्साह से लिया जा सकता हैं, जिनकी कथाओं मेंकहानी की मोहकता और किस्सा की विश्वसनीय विद्यमान हैं जो कि आप कहानी न पढ़ रहे हो, बल्कि किसी से कोई आपबीती घटना सुन रहे हो। ऐसे लेखकों मेंविभातु दिव्यात महेश कारे, ए. असफल और राजनारायण बोहरें के नाम बिना किसी हिचक के लिए जा सकते हैं। इनकी कथाओं मेंवृतान्त की वापसी मिलती है।
राजनारायण बोहरे उन लेखको मेंसे हैं, जिन्होनें अस्सी के दसक की समाप्ति के साथ लिखना शुरू किया, और ताबड़तोड़ लिखने मेंन जुटकर आहिस्ता-आहिस्ता एक-एक कहानी रचते रहे। यात्री प्रकाशन दिल्ली से पिछले दिनों राजनारायण बोहरे का पहला कथा संग्रह छपकर आया है। इज्जत-आबरू नामक इस सग्रंह मेंशीर्षक कहानी सहित कुल बारह कहानियाँ शामिल है। ये कहानियाँ पूर्व मेंहिन्दी की लघु-पत्रिकाओं मेंप्रकाशित होकर चर्चित हो चुकी है।
बुल्ड़ोजर कहानी का आरंभ भाषा की ताजगी और कथ्य मेंनयेपन का आभास देता हुआ होता है। उत्तम पुरूष मेंलिखी इस कहानी का नायक एक छोटा दुकानदान है, जिसकी दुकान उजड़वा देने के लिए बडें दुकानदारों ने अतिक्रमण हटाओं मुहिम के माध्यम से शासन को चेताया है। एक-एक दिन का घटनाक्रम और मनोविश्लेषण की सूक्ष्मता इस कहानी को रोचक बनाती है। यद्यपि कहानी का अंत सहज है, पर परम्परावादी इसे सैक्सुअल अंत मान सकते है।
साधु यह देश विराना यह कहानी एक ऐसे साधु की है जो महज उत्सुकता एवं अंतिम राह बचने के कारण साधु बनता हैं, पर जल्दी ही उसे उस समाज के अंतविरोध और वासना लोलुपता का पता चल जाता हैं, तो वह अपने हक-हकूक के लिए लड़नें, व पाखण्ड हीन जीवन बिताने का निर्णय लेकर चल पड़ा है।
भय नामक कहानी एक आदर्श प्रोफेसर वरि की कथा हैं, जो प्रायः नकलची छात्रों को पकड़ने मेंजुटा रहता हैं, और अचानक एक दिन उद्दण्ड़ छात्रों से घिर जाता है, तो एक पुराना छात्र ही अकस्मात प्रकट होकर उसे बचाता है। वह गुरूदीक्षा मेंयह मांगता है कि भविष्य मेंवे ऐसे ही निड़र होकर सत्य पर आरूढ़ बने हरें। कहानी का अन्त संवेदनात्मक है यह कथा आदर्श और संयोगों की बहुलता के कारण अविश्सनीयता के कगार पर पहुँचने के बावजूद रोचक व विश्वसनीय बनी रहती है।
गाड़ी भर जांेक का चालन रामचरन बीहड़ों मेंट्रक लेकर दौड़ता एक निरीह व्यक्ति है जो ईमानदार होने के कारण परेशान हैं, और अनायास ही बीहड़ों मेंजाने को मजबूर हो जाता है। इस कथा मेंट्रक ड्रायवरों के साथ बीहड़ क्षेत्र के समाजशास्त्र का गहन विश्लेषण मौजूद है। लौट आओ सुखजिन्दर नामक कथा मेंदंगो मेंघिरे एक सिख नवयुवक का विवरण है जो कि सर्व-धर्म समभाव का समर्थक है, पर सन् चौरासी के दंगे उसे इतना बदल देते है कि चह अपने शरणदाताओं के प्रति भी चौकन्या व संशक हो उठता है। बीमारी नामक कहानी एक दूधवाले के बेईमानी मेंदीक्षित होने की व्यथा कथा है। दूधवालों के अपने सुख, अपने दुख, व्यवस्था का भ्रष्टाचारी रूप, गांव की अमानवीय दुरूह प्रणाली का सुदर चित्रण करती यह कहानी दिलचस्प और उद्देश्य प्रधान कहानी है।
बिसात से शतरंज की बिसात का आभास देती कहानी बिसात गांव के उस नवयुवक का मनोविश्लेषण करती है, जो शहर जा के शोषकों के विरूद्ध रहने के बावजूद समय पाने पर स्वंयं शोषक बन जाना चाहता है। ड़ाकुओं से मुठभेड़ को मुद्दा बनाके लिखी गयी कहानी मुठभेड़ पुलिस तंत्र के भीतर की दास्ताने-बयां कही जा सकती है, जिसमेंएक पुलिसमेन स्वयं ही इस प्रक्रिया व परम्परा के विरूद्ध खड़ा हो जाता है। हवाई जहाज कहानी के ड्राफ्ट मेंकुछ कमियाँ हैं, शायद लेखक की जल्दबाजी ने इसे अधूरा ही छपाने को विवश किया है, जो उचित नहीं है। संग्रह की अन्य कथायें कुछ कमजोर हैं। शीर्षक कहानी भी उनमेंसे एक है। यद्यपि एक संग्रह मेंएक-दो कथायें भी उम्दा हों तो वह ठीक-ठाक कहा जा सकता है, लेकिन मंहगाई के इस जमाने मेंकिमती किताबें क्रय करके पाठक हर रचना को पूरी तसल्ली के साथ पढ़ के आनन्द लेना चाहता हैं, इसलिए भरती की कहानियाँ देना प्रकाशक और लेखक के लिये भले ही उचित हो, पर पाठक के लिये यह गलत परम्परा हैं। संग्रह मेंशामिल कहानियों के शीर्षक छोटे हैं, और ये छोटापन लेखक की इस मानसिकता के परिचायक हैं, कि लेखक मितभाषी या संक्षिप्तीकरण का हाभी है।
इस संग्रह को भाषा के तौर पर दुबारा पढ़ा जाना चाहिये, क्योंकि अस्थान कहानी जिस सधुक्खड़ी भाषा और परिवेश मेंलिखी गई है, वह पढ़कर तो पाठक आश्रम और साधु जमात के बीच मेंस्वयं को जा पहुचता अनुभव करता है। इस कहानी की भाषा और कहन अद्भूत है। हिन्दी मेंसाधुओं की कथायें पुराने समय से लिखी जाती रही हैं, पर आधुनिक युग मेंइतनी प्रमाणित भाषा टर्मिनोलाजी और मनोविश्लेषण के कारण इस कहानी अस्थान का नाम लम्बे समय तक याद किया जायेगा। लौट आओ सुखजिन्दर मेंमुख्य पात्र सुखजिंदर के वाक्य और मनोजगत का विवरण यह सिद्ध करता है कि लेखक सिख न होते हुयंे भी सिखों के मानसिक जगत और बोलचाल को अधिकृत रूप से प्रगट कर सकता है, यह लेखक की अतिरिक्त लेखन कुशलता है। इज्जत-आबरू, बिसात मेंआंचलिकता का आभास होते हुए भी आंचलिक भाषा के बोझ से मुक्त इनकी भाषा प्रेमचंद्र की सशक्त भाषा की याद दिलाती है।
राजनारायण बोहरे की कहानियों के पात्र समाज के हर वर्ग से आते है। पर वे सबके सब ईमानदार और परिश्रमी होते हैं, यह बात उनमेंकामन है। लेकिन दो चीजें ऐसी भी हैं, जिनकी चर्चा की जाना जरूरी है। पूरे संग्रह मेंनारियां या मौजूद नहीं है, या फिर बेहद उदास रूप मेंहै, सिवाय डूबते जलयान की दिवा के। यही नहीं लेखक सैक्स जैसे जरूरी ओैर स्वाभाविक मुद्दे के बच-बच कर चला है। कहानी के अनुरूप जरूरत होते हुए भी इनमेंसे कई कथाओं मेंसेक्स प्रसंग या शारीरिक सम्बन्धों की नामौजूदगी लेखक के लेखन को कमजोर करती है। हां उजला पक्ष यह है कि दलित विमर्श की दृष्टि से इनकी सराहना की जानी चाहिये। सग्रह की प्रायः हर कहानी मेंदलित न केवल मौजूद है, बल्कि वे सहानुभूति के पात्र बनकर नहीं, एक सशक्त और संघर्षरत पात्र के रूप मेंपूरी इयत्ता के साथ जमे हुये दिखते हैं। राहत कार्य, एकीकृत ग्रामीण विकास योजना, आर. टी. ओ. की एंट्री-पर्चियों से लेकर इस युग की हर ताजा क्रिया-प्रतिक्रिया इन कथाओं मेंआती है जो कि इन कथाओं को समकालीन ता से जांेड़ती है, यह रचनाओं की शक्ति है, ताकत है। पूरे संग्रह से गुजर जाने के बाद कुछ बातें निर्विवाद रूप से पाठक के जेहन मेंआती है.......यह कि लेखक हर कहानी को पूरे विश्वास के साथ लिखता है.......यह कि पाठक हर कथा से अपना जुड़ाव अन्य अर्थ मेंकहें तो तादात्मय या सर साधारणीकरण महसूस करता है...... यह कि हर कहानी की भाषा कथा के प्रति दिलचस्पी जगाती है, कथा को रोचक बनाती है और पाठक को कहानी-मात्र के लिये पुनः आस्था जाग्रत होती है....... यह कि इन कथाओं मेंविचार का अनावश्यक बोझ नहीं लादा गया है। इससे ज्यादा एक कहानी संग्रह से और चाहिये भी क्या?