वो माया है.... - 6 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 6



(6)

बैठक में पुष्कर परेशान सा तखत पर लेटा था। उसको इस बात का बुरा लग रहा था कि कल ही वह दिशा को विदा कराकर लाया और आज घरवालों ने यह झगड़ा शुरू कर दिया। वह सोच रहा था कि इस माहौल में दिशा बचे हुए दिन यहाँ कैसे बिताएगी।
विशाल बैठक में आया। पुष्कर को तखत में लेटा हुआ देखकर उसके पास जाकर बैठ गया। उसने कहा,
"सुबह सुबह यह क्या तमाशा शुरू हो गया। मौसा मौसी और रविप्रकाश जीजा नाराज़ होकर चले गए। कुछ खाया पिया भी नहीं। बायन और भेंट भी नहीं ले गए।"
पुष्कर ने कहा,
"नहीं ले गए तो कोई बात नहीं। मौसेरी बहन के पति हैं। इस लिहाज़ से सम्मान है उनका। पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि अपनी मर्यादा भूल जाएं। अभी तक मुझे ताने मारते रहते थे। मैं सह लेता था। आज तो हद कर दी। कल दिशा इस घर में बहू बनकर आई है। वह उसके और उसकी मम्मी के बारे में गलत बात करने लगे। मैंने भी सुना दिया।"
जो हुआ उससे विशाल भी परेशान था। कल तक आंगन में गाना बजाना हो रहा था। आज सब बिना नाश्ता किए मुंह लटकाए बैठे थे। उसने कहा,
"पुष्कर कोई बहुत बड़ी बात तो थी नहीं। एक ताबीज़ ही तो बांधना था। बांध लेते।"
पुष्कर उठकर बैठ गया। उसने कहा,
"भइया मुझे इन सारी बातों में यकीन नहीं है। दिशा तो कोई भी ऐसा काम नहीं करती है जिसे करने के लिए उसका मन गवाही ना दे।"
"वो ठीक है। पर घरवालों का मन रख लेते। कम से कम घर में शांति बनी रहती।"
पुष्कर ने विशाल की तरफ देखकर कहा,
"घरवालों का मन रख लेने से क्या सचमुच शांति रहती है ?"
विशाल पुष्कर के इस सवाल का मतलब समझ गया था। वह कुछ देर चुप रहा। उसके बाद बोला,
"सही कह रहे हो। मन जिस बात को करने के लिए तैयार ना हो उसे करने के परिणाम क्या हो सकते हैं, यह हमसे अधिक कौन जान सकता है। अपने मन को मारकर घरवालों की बात सुनी। ना घर में शांति रही और ना ही जीवन में।"
वह उठकर खड़ा हो गया। उसने कहा,
"जाकर मम्मी से कहते हैं कि अब सबको नाश्ता कराएं। तुम भी आ जाओ। दिशा का चाय नाश्ता लेकर ऊपर चले जाना।"
विशाल बाहर आया तो केदारनाथ सोनम और मीनू को लेकर जाने के लिए तैयार खड़े थे। विशाल ने उनसे कहा,
"चाचा जी अचानक चल दिए। नाश्ता तो कर लेते।"
"कर लिया है बेटा। अब अपने मम्मी पापा को समझाओ कि भूखे प्यासे ना बैठें। जिज्जी कुछ खाने को तैयार नहीं हैं। इसलिए दोनों भी ऐसे ही बैठे हैं।"
पुष्कर भी बाहर आ गया था। उसे देखकर केदारनाथ ने कहा,
"अब तुमसे क्या कहूँ ? पढ़े लिखे हो। शहर में रह रहे हो। लेकिन घर में प्रेम बना रहे यही अच्छा होता है। मीनू ने बहू का चाय नाश्ता पहुँचा दिया है। अपना नाश्ता लेकर तुम भी चले जाओ और उससे बात करो।"
उन्होंने बद्रीनाथ और उमा के पैर छुए और दोनों बेटियों के साथ चले गए।

दिशा का सर तेज़ दर्द से फट रहा था। मीनू उसका नाश्ता देकर गई थी। उसने टेबल पर रख दिया था और वापस लेट गई थी। सर दर्द तो था ही साथ में इस बात का भी गुस्सा था कि पुष्कर उसे इस हालत में छोड़कर चला गया। वह सोच रही थी कि इतने सालों से वह उसे जानता है। उसे पता है कि समय पर खाए पिए ना तो उसे तकलीफ हो जाती है। फिर भी उसके पास रहने की जगह चला गया। अब इतनी देर बाद यह नाश्ता आया है। बिस्तर पर लेटी वह अपने हाथ से अपना सर दबा रही थी। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने अनसुना कर दिया। एकबार फिर दस्तक हुई। साथ में पुष्कर की आवाज़ आई,
"दरवाज़ा खोलो दिशा..."
दिशा ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया। वापस बिस्तर पर जाकर लेट गई। पुष्कर ने देखा कि उसका नाश्ता वैसे ही टेबल पर रखा है। उसने कहा,
"तुमने नाश्ता नहीं किया ?"
अपनी प्लेट टेबल पर रखकर वह दिशा के पास गया। उसने कहा,
"सर में बहुत दर्द है।"
यह कहकर उसने दिशा के माथे पर हाथ लगाना चाहा तो उसने झटक दिया। गुस्से से बोली,
"तुम्हें क्या है ? जो भी हो। तुम्हारा हाथ थाम कर इस नए माहौल में आई थी। तुम्हारी ज़िम्मेदारी थी कि मेरा खयाल रखते। पर तुम तो भाग गए।"
"ऐसा मत कहो दिशा। तुम्हारी फिक्र है मुझे। सुबह सुबह अचानक इतना कुछ हो गया। मैं परेशान हो गया। सोचा था कि थोड़ी देर बाहर जाकर मन शांत कर लूँ। वह भी नहीं करने दिया। तुम मुझ पर नाराज़ हो लेना पर पहले नाश्ता कर लो।"
पुष्कर दिशा की प्लेट लेकर आया। पूरी और आलू की सब्ज़ी थी। उसने एक कौर तोड़ कर दिशा को खिलाया। दिशा ने अपनी प्लेट पकड़ते हुए कहा,
"मैं खा लूँगी। तुम भी अपना नाश्ता करो।"
पुष्कर ने दिशा की चाय उठाई तो ठंडी हो गई थी। उसने अपनी चाय देते हुए कहा,
"तुम इसे पी लो। मैं बाद में नीचे जाकर गरम करवा कर पी लूँगा।"
दोनों नाश्ता करने लगे। दिशा ने कहा,
"सर दर्द बहुत तेज़ है पुष्कर। हो सके तो कोई दवा ला दो।"
"ठीक है..... मैं कुछ व्यवस्था करता हूँ।"
दोनों चुपचाप नाश्ता करने लगे। लेकिन मन में बहुत कुछ चल रहा था।

सुनंदा दोपहर के खाने के बाद यह कहकर लौट गई कि कुछ दिनों बाद दोनों लड़कियों के इम्तिहान हैं। केदारनाथ को भी उसके घर पर ना रहने से दिक्कत होती है। इसलिए वह जा रही है। अगर उसका कोई काम पड़े तो खबर भिजवा दें। वह आ जाएगी। घर में जो कुछ हुआ था उसके बाद उमा भी चाहती थीं कि बचे हुए मेहमान चले जाएं। उन्होंने कहा कि सारे काम निपट गए हैं। वह जाकर अपनी गृहस्ती संभाले।
सुबह की घटना के बाद से ही किशोरी पूजाघर में अनशन पर बैठी थीं। गुस्से में उन्होंने पानी की एक बूंद तक गले के नीचे नहीं उतारी थी। बद्रीनाथ सुबह से चार बार उन्हें मनाने जा चुके थे। पर किशोरी सुनने को तैयार ही नहीं थीं। उनका कहना था कि घर में उनका सम्मान खत्म हो गया है। पहले बद्रीनाथ और उमा ने उनकी बात अनसुनी की। अब नई आई बहू ने मुंह पर उनकी बात मानने से इंकार कर दिया। ऐसे में उनकी जीने की इच्छा नहीं है। इसलिए भगवान के चरणों में भूखी प्यासी दम तोड़ देंगी।
किशोरी अनशन पर थीं। इसलिए बद्रीनाथ ने सुबह से कुछ नहीं खाया था। उनके कारण उमा भी उपवास रखे थीं। बद्रीनाथ और विशाल बैठक में थे। बद्रीनाथ ने कहा,
"कहीं से लग रहा है कि कल इस घर में बहू का गृह प्रवेश हुआ है। मनहूसियत सी छाई है। जिज्जी पूजाघर से बाहर ही नहीं निकली हैं। अनशन किए बैठी हैं। अब माँ समान बड़ी बहन भूखी हो तो हम कैसे खा लें। उमा को समझाया पर वह भी उपवास धरे बैठी है। सच है किया हुआ सामने ज़रूर आता है। पहले बड़ी बहू और.... "
"पापा बीती बातें बार बार मत किया करिए।"
विशाल ने उन्हें रोकते हुए कहा। बद्रीनाथ उसके दिल का हाल समझते थे। वह चुप हो गए। विशाल बाहर जाते हुए बोला,
"जाकर बुआ को समझाते हैं। भूखे प्यासे बैठे रहने से क्या होगा।"
बद्रीनाथ ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि किशोरी अपनी ज़िद छोड़ दें।

किशोरी भगवान के मंदिर के पास फर्श पर लेटी थीं। अब भूख प्यास उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वह पछता रही थीं कि क्यों ज़िद पकड़ कर बैठ गईं। वह सोच रही थीं कि कोई फायदा तो हुआ नहीं। बद्रीनाथ मनाने आया था। एक दो बार कहकर वह भी लौट गया। उसके बाद‌‌ तो कोई झांकने भी नहीं आया। उमा से इतना भी नहीं हुआ कि एकबार आकर हालचाल ही जान लेती। वह मन ही मन बड़बड़ा रही थीं। उसे क्यों होगी हमारी फिक्र। वह तो समझती है कि हम उसकी गृहस्ती में अधिकार जमाए बैठे हैं। लेकिन यह भूल जाती है कि हम ना होते तो कुछ संभाले ना बनता। सब खा पीकर बैठे होंगे। बुढ़िया यहाँ भूखी प्यासी मर रही है।
किशोरी को आहट सुनाई पड़ी तो वह कराहने लगीं। कराहते हुए कह रही थीं कि भगवान अब और कितना भोग बाकी है। विशाल उनके पास जाकर बैठ गया। उसने माथे पर हाथ रखकर कहा,
"बुआ क्यों ज़िद में भूखी प्यासी बैठी है। आपने नहीं खाया तो मम्मी पापा भी भूखे बैठे हैं। अब गुस्सा छोड़िए। चलकर खा लीजिए।"
किशोरी तो यही चाहती थीं। लेकिन एकदम से कैसे मान जातीं। उन्होंने कहा,
"उन्हें कहो कि हमारे कारण भूखे ना रहें। अब सब उन दोनों को ही संभालना है। हमारा क्या है ? कल जाते उसकी जगह आज ही चले जाएंगे।"
"बुआ अब ऐसी बातें मत कीजिए। उठिए चलकर आप भी खाइए और मम्मी पापा को भी खिलाइए।"
"सच कहें तो अन्न का एक दाना भी गले से नीचे उतारने की इच्छा नहीं है। पर बद्री और उमा ने भी कुछ नहीं खाया है‌ सुनकर रहा नहीं जा रहा है। चलो मन मारकर दो कौर खा लेंगे।"
विशाल ने उन्हें सहारा देकर उठाया। खड़े होते वक्त किशोरी लड़खड़ा गईं। विशाल ने उन्हें संभाला और सहारा देकर आंगन में ले गया। आंगन में उमा अपनी भाभी नीलम के साथ बात कर रही थीं। किशोरी को देखकर उनके पास जाकर बोलीं,
"जिज्जी आप गुस्सा छोड़कर कुछ खा लीजिए।"
विशाल ने बताया कि किशोरी मान गई हैं। वह खाना लगवाएं।