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बर्बरता का समाधान क्या हैं ?

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रिक्तत्व की सन्निकट प्रकटता हैं शरुप्ररा अर्थात् मेरी प्रत्येक शब्द प्राकट्यता, सत्य मतलब की मुमुक्षा ही जिसके प्रति जागरूकता को आकार दें सकती हैं अतः मुक्ति की योग्य इच्छा ही इसके प्रति जागृति उपलब्ध करायेंगी, मतलब साफ हैं कि मेरी हर बात केवल योग्य मुमुक्षु के ही समझ आयेंगी अतएव मुमुक्षा लाओं, नहीं समझ आनें के बहानें मत बनाओं क्योंकि ऐसा करना खुद के प्रति लापरवाही हैं, जो खुद की परवाह के प्रति जागरूक नहीं, वह कहाँ से मुक्ति की तड़पन अर्थात् मेरी अभिव्यक्ति को अहसास यानी समझ में लानें की पात्रता लायेंगा और योग्यता के आभाव से निश्चित मर्म सें इसकें चूक जायेंगा, इशारें जिस ओर हैं वह दृश्य का अहसास, भावना, विचार, कल्पना यानी हर आकार के अहसासों से भी सूक्ष्म तथा परे यानी दूर का अहसास हैं, मेरे दर्शायेंप शब्द, उनके माध्यम् से लक्ष्य बनायें भावों, भावों के सहयोग से लक्षित विचारों और उनके माध्यम से हर काल्पनिकता की ओर संकेत दियें जा रहें हैं यानी हर आकारों को रचनें की योग्यता की मध्यस्थता उस अंतिम ध्येय तक सटीकता से इशारा करनें में ली जा रही हैं जिससें उस आकर रिक्तत्वता की योग्यता के परिणाम से आकार रिक्तता के अहसास पर सटीकता के साथ किसी भी जागरूकता या ध्यान को लें जाया जा सकें अतएव आपका ध्यान मन के सभी दायरों से परें देख पायेंगा तो ध्येय उसका हैं।

समय - १२:००, रविवार १४ मई २०२३

बर्बरता का समाधान क्या हैं?

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पुण्य और पाप, लाभ और हानी, सही और गलत, जायज़ और नाजायज़, सात्विक और तामसिक; बताओं तुम्हारें अनुसार इसके सटीक मतलब क्या हों सकते हैं?

मेरे हिसाब में यानी मेरी समझ सें जिसमें तुम सुविधा महसूस करतें हों या करोंगे यदि वही तुम दूसरों के साथ भी करोंगे तो यही पुण्य, लाभ, सही, जायज़ यानी मेरे हिसाब से सात्विक या सही को समझ सकनें के परिणाम स्वरूपित्ता हैं।

और इसके पूर्णतः विपरीत जिसमें तुम असुविधा या परेशानी महसूस करतें हों या करोंगे यदि वही तुम दूसरों के साथ भी करोंगे तो यही पाप, हानि, गलत, नाजायज़, यानी मेरी समझ में तामसिकता या सही न समझ सकनें के परिणाम स्वरूप।

मुझें नहीं पता कि तुम किन बलात्कारों या शोषणों की बात कर रही हों,बाहर से पूरी तरह कटा हूँ न .. कल मृत्यु या मरण तुल्य कष्ट हुआ, अभी मरतें मरतें बचा हूँ मैं? क्या यह मेरे साथ गलत हुआ? नहीं क्योंकि कितने ही जीव-जंतुओं को चलतें फिरते स्वास लेने से छोड़ने तक जानें अंजाने बर्बरता या बेरहमी से मौत के घाट उतारता या उतार रहा हूँ मैं ..!

यह धरती ब्रह्मांड का एक नगणय भाग हैं और ब्रह्मांड एक आकार हैं और जहाँ आकार का दायरा हैं वहाँ गणित हैं क्योंकि आकार खुद गणित का एक दूसरा नाम हैं तो यहाँ जितना सही होंगा उतना ही सही नहीं भी होंगा ही ..! दायरा यदि मन का होता हैं, मन अर्थात् क्या ..? किसी के भी सटीक परिचय के लियें सटीक आधारों में एक होता हैं उसका कर्म, किसी के भी कर्म से एक पर्याप्तता में उसके परिचय की कसौटी या परख की जा सकती हैं; मन के हर कर्म का मूल हैं कल्पितता या कल्पना तो फिर यदि जों जितना सही हैं उतने ही मतलब में गलत भी हैं।

उदाहरण हैं ज़हर..!

यह ब्रह्मांड से बहुत ही अधिक दूर यानी अप्रत्यक्षत: संबंधित पर हैं तो असीम आकार यानी कि मन की अभिव्यक्ति का परिणाम होने से या आकार होने से आकार से संबंधित ही ..

To be continue in the next part bcoz my mind is not at all fit for continue what I start previously.

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