सर्व समर्थ जागरूकता की उपलब्धता का पथिक हूँ मैं ..! Rudra S. Sharma द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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सर्व समर्थ जागरूकता की उपलब्धता का पथिक हूँ मैं ..!

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रिक्तत्व की सन्निकट प्रकटता हैं शरुप्ररा अर्थात् मेरी प्रत्येक शब्द प्राकट्यता, सत्य मतलब की मुमुक्षा ही जिसके प्रति जागरूकता को आकार दें सकती हैं अतः मुक्ति की योग्य इच्छा ही इसके प्रति जागृति उपलब्ध करायेंगी, मतलब साफ हैं कि मेरी हर बात केवल योग्य मुमुक्षु के ही समझ आयेंगी अतएव मुमुक्षा लाओं, नहीं समझ आनें के बहानें मत बनाओं क्योंकि ऐसा करना खुद के प्रति लापरवाही हैं, जो खुद की परवाह के प्रति जागरूक नहीं, वह कहाँ से मुक्ति की तड़पन अर्थात् मेरी अभिव्यक्ति को अहसास यानी समझ में लानें की पात्रता लायेंगा और योग्यता के आभाव से निश्चित मर्म सें इसकें चूक जायेंगा, इशारें जिस ओर हैं वह दृश्य का अहसास, भावना, विचार, कल्पना यानी हर आकार के अहसासों से भी सूक्ष्म तथा परे यानी दूर का अहसास हैं, मेरे दर्शायेंप शब्द, उनके माध्यम् से लक्ष्य बनायें भावों, भावों के सहयोग से लक्षित विचारों और उनके माध्यम से हर काल्पनिकता की ओर संकेत दियें जा रहें हैं यानी हर आकारों को रचनें की योग्यता की मध्यस्थता उस अंतिम ध्येय तक सटीकता से इशारा करनें में ली जा रही हैं जिससें उस आकर रिक्तत्वता की योग्यता के परिणाम से आकार रिक्तता के अहसास पर सटीकता के साथ किसी भी जागरूकता या ध्यान को लें जाया जा सकें अतएव आपका ध्यान मन के सभी दायरों से परें देख पायेंगा तो ध्येय उसका हैं।

समय - १२:००, रविवार १४ मई २०२३

(पत्र)

सर्व समर्थ जागरूकता की उपलब्धता का पथिक हूँ मैं ..!

कल तुम्हारें द्वारा बताये गयें फल आदेश में वैदिक से एक अधिक स्तरीय सटीकता अनुभव हुयी

जिसनें के पी ज्योतिष के प्रति एक सुंदर रोचकता को आकार दिया ..!

मैं ज्योतिष को जरूरी समझता हूँ क्योंकि जहाँ बात आकारों की यानी हर एक ब्रह्मांडों की हैं, सभी में एक जुड़ाव मुझकों महसूस होता हैं यानी कि जो भी होता हैं एक दूसरें के योग का परिणाम हैं; उन योगों का जिनके प्रति हम जागरूक नहीं होने से उन्हें महज़ सहयोग मान बैठते हैं यानी कि हर एक आकारों को एक दूसरें के प्रति पूर्णतः या कम स्तरीय प्रभावी यानी कि स्वतंत्र जानना, जो कि केवल और केवल लापरवाही की ही परिणाम स्वरूपित्ता हैं; वास्तविकता में सब कुछ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निःसंकोच अनुभव कर सकनें के परिणाम से कह सकता हूँ कि पूर्ण रूप से जुड़ा हुआ हैं, ज्योतिष कभी भी गलत नहीं हों सकता, जो गलत हों सकती हैं वह हैं उसकी गणना में आपर्याप्ति की फलितता, ज्योतिष से ब्रह्मांड में होने वाली हर घटना का पूरी सटीकता से अनुमान लगाया जा सकता हैं, भलें ही वह घटना ब्राह्मण से कितनी ही अधिक या कम निकटता वालें संबंध की हों बस जड़ से लेकर उस गणित रूपी वृक्ष तक के हिस्सों तक के हर एक छोटे बड़े समीकरणों में त्रुटि की संभावना बिल्कुल नहीं होनी चाहियें, इस हेतु मैंने बहुत से प्रयोगो के संबंध में ज्ञान जुटाया हैं पर उन्हें या उनकी सत्यापितता को जाँचने हेतु एक निश्चित या अनिश्चित कालीन समय की जरूरत हैं और क्योंकि समय यदि जरूरत हैं तों बाहरी दायरें से कोई परेशानी खड़ी नहीं करें इस लियें उनकी समान्य जरूरतों की पूर्ति हैं पैसें; तों एक बार जब मेरी खोज पूरी हों जायेंगी तब सटीकता की पूरी व्यवस्था को आकार दें पाउँगा मैं जिससें कि बाहरी दुनिया की हम हर जरूरतों को पूरी कर सकतें हैं; मैं research के अतिरिक्त कुछ कर ही नहीं सकता, मेरा कोई बाहरी दायर यानी कि सामाजिक दायरा नहीं हैं तो क्यों न वही किया जायें पर उसके लियें मुझें मेरा पूर्णतः वही देना होंगा; जो भी मेरे इस project में invest करेंगा उन्हें उसकी जायज़ कीमत बाद में फिर दें ही देंगे।

मैं बाहर से चाह कर भी तब तक कुछ नहीं जान सकता, जब तक कि मैंने खुद से उसको या उसकी जरूरत को महसूस न कर लिया हों क्योंकि मुझमें शब्द हों या चिन्ह केवल और केवल वह जिन अहसासों की ओर इशारे कर रहें होते हैं, उन्हें ही स्मरण रखने की अभ्यस्तता हैं, मेरी खुद की अनुभवों पर आधारित शब्दावली हैं जो कि अनुभवों की भाषा में ही बात चीत कर पाती हैं, बाहरी ज्ञान अनुभव और उस अनुभव के प्रति समझ अहसास मेरे लियें उनके संपर्क में आना न आना बिल्कुल एक समान हैं।

मैं ऐसी कौनसी जरूरत हैं विश्व के हर एक संबंधित हिस्सें की, हर एक लोगो की; जिसें पूरी करनें में कुछ ऐसी समर्थता रखु जो कोई दूसरा नहीं रख पायें और उस जरूरत की पूर्ति के बदले दुनिया के हर एक हिस्सें से जो मेरी जरूरतें हैं वो उन्हें पूरी करवा सकूँ?

खोज, मनोविज्ञान, ज्योतिष, सर्वसमर्थता, हर एक ज़रूरियत का जड़ सें समाधान।

ज्योतिष को मैं भौतिक मनोविज्ञान से अलग नहीं मानता, क्योंकि वह मुझें हर संकीर्णताओं सें परे यानी कि हर सिमित्ताओं सें मुक्त अर्थात् यथार्थ या शुद्ध मनोविज्ञान प्रतीत होता हैं पर हाँ! मेरा मतलब पारंपरिक ज्योतिष सें नहीं अपितु १०० प्रतिशत सटीक ज्योतिष सें हैं।

सटीक ज्योतिष यानी कि गणना भौतिक तथाकथित मनोविज्ञान की जड़ हैं, भारत में यानी विश्व में सभी से पहले गणित का जन्म ही ज्योतिष की गणनाओं कों सटीकता के साथ आकार देने के लियें हुआ होंगा अन्यथा भूत, वर्तमान और भविष्य सभी कुछ के ज्ञान के अतिरिक गणित की उपयोगिता की क्या बच जाती हैं।

मेरी प्राथमिकता ज्वलंत जरूरत होने से सटीक भौतिक, भावनात्मक, स्मरणात्मक, काल्पनिक, आत्मिक, विचारात्मक सभी व्यावस्थिततायें मन के जिन दायरों में आकार लेती हैं उनके संबंध में सटीकता की उपलब्धि हैं और वह भी पूरें सौ प्रतिशत क्योंकि थोड़ी सी भी त्रुटि अबर्दास्त हैं, अंततः जरूरत पूर्ति नें थोड़ी सी भी कमि का यह कारण बन सकती हैं अतएव अबर्दास्त क्योंकि सभी जरूरतों में मूल जरूरत हैं संतुष्टि यानी कि सुविधा, इसी के लियें हर कोई हर जरूरत पूर्ति के लियें कुछ भी कर सकनें तो तत्पर हों जाता हैं।

सही मतलब के मनोविज्ञान को जितना अधिक समय दों, उतना कम हैं, वैसें भी २४ घण्टे ही होते हैं हमारें पास और अगलें ही पर हम रहें न रहें, इसका क्या आश्वासन? तो जिस तरह तैरने वालें की प्रमाण पत्र हैं कि अब हो पानी में तैरने वाली जरूरत पूरी कर सकता हैं, तैरनें के लियें अलग से इम्तिहान देना समय की बर्बादी होगी क्योंकि यह समय उसे तैरना आता हैं यह सिद्ध करनें की जगह और गहरे तैरने के अभ्यास को आकार में लाने हेतु देना चाहियें अन्यथा कभी परिस्थितियों की माँग हुई कि जितना हों सकें उतना गहरें तैरो जी, करो या मरों ऐसे में वह परिस्थितियों की मांग को पूरी नहीं कर पायेंगा तो मर जायेंगा, प्रमाण पत्र उसी तरह देने चाहियें जिस तरह हमें परिस्थितियों यानी सच्चे मतलब की गुरु से प्राप्त होते हैं, तुम्हारें चित्त यानी भाव और विचारों यानी हर कल्पनाओं के संग्रह कर्ता के नियंत्रण के स्तर में कम से अधिकता के क्रम में यानी कि क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र और निरूध्द जों जितना होंगा वह उतनें अपनें अस्तित्व को या उसके हिस्सें की जरूरत को महसूस कर पायेंगा और परम् उद्देश्य यानी कि पूर्ण समाधि या पूर्ण अस्तित्व अर्थात् हर आकार और आकार रिक्तता पर भी यानी पूर्ण चित्त पर नियंत्रण की फलितता से भौतिक, भावनात्मक, विचारात्मक, काल्पनिक, स्मरणात्मक हर जरुरतों को खुद की और सभी की पूरी ईच्छा अनुसार कर पायेंगा और सर्वशक्तिमान या सर्वसक्षम सर्व समर्थ जागरूकता के रूप में उभर के आयेंगा।

- रुद्र एस शर्मा (सोमवार, १७/ ०७/२०२३, १६/४७)