चित्तानुभूति आत्मानुभूति की परिणामस्वरूपितता हैं। Rudra S. Sharma द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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चित्तानुभूति आत्मानुभूति की परिणामस्वरूपितता हैं।

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रिक्तत्व की सन्निकट प्रकटता हैं शरुप्ररा अर्थात् मेरी प्रत्येक शब्द प्राकट्यता, सत्य मतलब की मुमुक्षा ही जिसके प्रति जागरूकता को आकार दें सकती हैं अतः मुक्ति की योग्य इच्छा ही इसके प्रति जागृति उपलब्ध करायेंगी, मतलब साफ हैं कि मेरी हर बात केवल योग्य मुमुक्षु के ही समझ आयेंगी अतएव मुमुक्षा लाओं, नहीं समझ आनें के बहानें मत बनाओं क्योंकि ऐसा करना खुद के प्रति लापरवाही हैं, जो खुद की परवाह के प्रति जागरूक नहीं, वह कहाँ से मुक्ति की तड़पन अर्थात् मेरी अभिव्यक्ति को अहसास यानी समझ में लानें की पात्रता लायेंगा और योग्यता के आभाव से निश्चित मर्म सें इसकें चूक जायेंगा, इशारें जिस ओर हैं वह दृश्य का अहसास, भावना, विचार, कल्पना यानी हर आकार के अहसासों से भी सूक्ष्म तथा परे यानी दूर का अहसास हैं, मेरे दर्शायेंप शब्द, उनके माध्यम् से लक्ष्य बनायें भावों, भावों के सहयोग से लक्षित विचारों और उनके माध्यम से हर काल्पनिकता की ओर संकेत दियें जा रहें हैं यानी हर आकारों को रचनें की योग्यता की मध्यस्थता उस अंतिम ध्येय तक सटीकता से इशारा करनें में ली जा रही हैं जिससें उस आकर रिक्तत्वता की योग्यता के परिणाम से आकार रिक्तता के अहसास पर सटीकता के साथ किसी भी जागरूकता या ध्यान को लें जाया जा सकें अतएव आपका ध्यान मन के सभी दायरों से परें देख पायेंगा तो ध्येय उसका हैं।

समय - १२:००, रविवार १४ मई २०२३

चित्तानुभूति आत्मानुभूति की परिणामस्वरूपितता हैं।

हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना हैं अतएव यदि उसे सही मतलब में जानना हैं यानी उससें संबंधित हर अहसासों के प्रति सचेत यानी जागरूक रहना हैं तो धरती को जानना होंगा, धारती को जानना हैं तो अंतरिक्ष और सभी ग्रहों को जानना होंगा, क्योंकि धरती उन सभी के ही फलस्वरूप हैं, मंगल धरती के शरीर का खून हैं, सूर्य पोषण, चंद्र धरती का भौतिक मन, शुक्र भौतिक शुक्राणु या रज, राहु धरती के भौतिक मस्तिष्क का वह हिस्सा हैं, जिससें कि भृम आकार लें सकता हैं, केतु धरती का धड़ हैं, शनि नाखून, बाल, हड्डी आदि जैसे हिस्सें, अंतरिक्ष धरती का चित्त यानी भावों और विचारों का संग्रह हैं, गुरु धरती के भौतिक मस्तिष्क के वह भाग हैं जिससें की धैर्य और संयम को आकार दिया जा सकता हैं, यदि ग्रहों को समझना हैं तो फिर परमात्मा यानी सर्वसक्षम होने से सर्वश्रेष्ठ आत्मा यानी कि जिसके पूर्ण अधीन इन्द्रियाँ और मन हैं, जो पूर्णतः मन के अधीन नहीं हैं उनके मन को समझना होंगा, मन का परिचय हैं धारणा यानी मान लेने की योग्यता; किसी के भी परिचय के दों सटीक आधार हैं, उसकी मौलिकता और उसका कर्म तो मान लेना ही मन हैं..

समय - १४:१६, रविवार ११ जून २०२३

(०२)

मन को यदि समझना हैं तो जागरूकता को समझना होंगा यानी उस अहसास के ज्ञान अनुभव के प्रति जागरूक होना होंगा और जिसनें उस अहसास को उपलब्ध हों गया जिससें हर अहसास हैं तो यह ही जीवात्मा से यानी असमर्थ आत्मा से समर्थ आत्मा यानी श्रेष्ठ यानी परम् आत्मा हों जानें इन्द्रियों और मन को नियंत्रित करनें की योग्यता के आधार पर हों जानें का मार्ग हैं।

समय - १४:१६, रविवार ११ जून २०२३