में और मेरे अहसास - 81 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 81

सोच रहा हूँ किस और जिन्दगी ले जा रही है
क्या चैन और सुकून की साँस भी पा रहीं हैं

चले जाने वाले मुड़कर कभी भी नहीं लौटाते
उदासी रात और दिनों की नींदे खा रहीं हैं

तन्हाइयों में इस लिए नहीं रहना चाहते कि
सखी साथ अपने यादों के बवंडर ला रहीं हैं

सब को खबर हो गई है वीरानियों की तो
दिल बहलाने हवाएं  मधुर नगमें गा रहीं हैं

आजकल तबियत खास्ता रहने लगी है
महफ़िलों में रातभर जागने की ना रहीं हैं
१६-६-२०२३


खुली फिज़ाओ में क्या हम मिलेगे कभी ?
अपने प्यार के क्या गुल खिलेंगे कभी ?

दिल की कश्ती डूब चुकी है और
उदासी वाले क्या दिन फिरेगे कभी?

आंख बारहा भिग जाती है ये सोच कि
रंगीन नज़ारे क्या फ़िर दिखेंगे कभी?

हर पल बदल देते हैं अपनी ही जुबान वो
वादा निभाने को क्या वह सिखेगे कभी?

खुद का नाम लिखने में आलस करते हैं
परदेश जाकर क्या ख़त लिखेंगे कभी? 
१७-६-२०२३


काटे नहीं कटती ये हिज्र की रात
हृश्न से जाने कब होगी मुलाकात

दो घंटे से नहीं आया है फोन तो
लगता है सदियों से नहीं हुई बात

वादा किया है रूबरू आने का
मिलन को मचल रहे हैं ज़ज्बात

एसे ही मना नहीं करते हैं तुम्हें
कुछ समजा भी करो ना हालात

सब सौप दिया है वक़्त के हाथों में
अब खुदा भी नहीं दे सकता मात
१९-६-२०२३


जिंदगी का खेल कोई समज नहीं सकता
ख़ुदा का खेल कोई समज नहीं सकता

लोग अखबार की तरह हो गये हैं यहाँ
कोई भी ता-उम्र इंतजार नहीं करता

जूठा ही सही लेकिन इस जहान में तो
अब यूही साथ मरने का दम नहीं भरता

प्यार है ये सब कहने की बातेँ है छोड़ो
कोई भी किसी के भी साथ नहीं मरता

मोहब्बत की बाजी खेली है तब से ये हाल
बात दिल की है वर्ना चैन यूँही नहीं हरता
२०-६-२०२३
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

मृग तृष्णा के पीछे भाग रहे है
ख़ुदा से बारहा क्या माग रहे है?

इंतजार में दिये भी थक चुके हैं
किसी की आश में जाग रहे है?

केसरिया रंग देखो सज़ा के
पेड़ों की शाख पर फाग रहे है

हृश्न के आने की खुशियो में
सखी चारो ओर उजाग रहे हैं

कुछ ज़्यादा ही प्यार आया है
क्यूँ मिलने को बुला बाग रहे हैं?
२१-६-२०२३


आँखों से जाम छलकते रहना चाहिए
दिल के अरमान मचलते रहना चाहिए

 


अपने आप पर अत्याचार मत करो
ख़ुद के हाल पर थोड़ा तो रहम करो

दुनिया इतनी खराब नहीं है अभी
हर किसी पर यूहीं ना वहम करो

बिना मतलब के भी जिया करो
हो सके सदा अच्छे करम करो

कुछ साथ नहीं लेके जाने वाले
अभिमान अहंकार को दहन करो

लोग है कुछ ना कुछ कहते रहेगे
जितना हो सके उतना सहन करो
२२-६-२०२३

थोड़ी देर तूझे सोचकर देखूँ
प्यार से गले लगाकर देखूँ

सुना है टोटके वाले घूमते हैं
बूरी नज़रों से बचाकर देखूँ

दूर बहोत रह लिया है जरा
पास और पास आकर देखूँ

मदमस्त जुल्फों में उलझकर
आज जहां को भुलाकर देखूँ

हृश्न के सजदे में आज सखी
प्यार भरे नगमें गाकर देखूँ
२२-६-२०२३


कलम की वानगी को चखकर देखो
सभी शब्दों को छंद में रखकर देखो

लंबी लंबी कहानी लिखना छोड़ दो
एक शेर में हाले दिल कहकर देखो

यार दोस्तों की महकी महफिल में
प्यारी बहकी रात संग बहकर देखो

ज़ाम पर ज़ाम छलकते जा रहे हैं
मोम के साथ तुम भी जलकर देखो

दिल की बाजी लगा दी है तो फ़िर
चरागों पर फ़ना होके मरकर देखो
२३-६-२०२३
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

तकरार खामोशी से भी होती है
दिल दिमाग का सुकून खोती है

जुदाई है पर जुदा तो नहीं है कि
साथ दिल के आँखें भी रोती है

दिन तो जैसे तैसे निकलता है
याद में रातभर नहीं सोती है

साँसों की रफ़्तार चालू रखने
जूठी उम्मीद के बीज बोती है

बरसात कुछ ज्यादा ही बरसी 
न बहाओ मिरे अनमोल मोती है
२४-६-२०२३

करते हैं तकरार भी प्यार भी
खामोशी से रखते दरकार भी

ज़माने भर की खुशियां देनी है
खुश करने करते पतवार भी

चैन ओ सुकूं से जीने के लिए
चाहते हैं ढेर सारी मनुहार भी

चाहें कितने भी रूठे हुए हो
दिल को दे जाते हैं करार भी

प्यारी सौगातें पाने के वास्ते
झूठमूठ का बनाते अनुहार भी
२५-६-२०२३


स्पर्श का जादू अनोखा होता है
चैन के साथ सुधबुध खोता है

पल दो पल की मनचाही छुअन
प्यारी भावनाओं को संजोता है

मदहोशी में हाथों में हाथ पकड़
प्यार करने वालो को पिरोता है

मुहब्बत में बातचीत किए बगैर
खामोशी से दिलों को भिगोता है

ज़ज्बात बहकने लगते हैं सखी
रंग औ रूप में लगता फ़िरोजा है
२६-६-२०२३

भीग ने भिगोने का मौसम आया है
चलो भिगकर भिगो दे
बरसात का मौसम आया है

आओ साथ मिलकर झूम ले
तन मन प्यार से भिगो दे
खुशियों की रिमझिम लाया है

कब से गर्मी में जल रहे थे
बारिसमें भिगकर जलन मिटा दे
बेसुकून दिल ने चैन पाया है
२७-६-२०२३


बरसात

खुशियों की बरसात हो रही है
महकी बहकी सी रात हो रहीं हैं

जिंदा हो गई है ख्वाइशे जिने की
आँखों आंखों में बात हो रहीं हैं

यकायक बौछारें शुरू हुई तो
अब जवान क़ायनात हो रहीं हैं

फिझा में रूमानियत आ गई
खुदा की इल्तिफ़ात हो रहीं हैं

रफ़्ता-रफ़्ता बरस रहीं हैं देख
ज़िंदगी की शुरुआत हो रहीं हैं
इल्तिफ़ात - कृपा


साथ साथ देखे हैं तो तेरे मेरे सपने पूरे होगे
सासों के बंधन एक दूसरे के साथ जूड़े होगे

तेरे मेरे सपनों की कहानी लिखी जाएगीं
मुद्दत बाद चैन ओ सुकून की नीद आएगी

महफ़ूज़ रखा आजकल निगाहों में छुपा के
आखिर में मुसाफिर रूह  पतवार पाएगी

कभी न कभी तो मुकम्मल होगे सपने अपने
देख रात चरागों सी रोशनी साथ लाएगी

सुहाने लम्हों में उन्माद मचा रहीं हैं सम्भल
मिलन की खुशी में फिझाएं भी गीत गाएगी

कोशिश करेगे तेरे ख्वाबों में समा जाने की
सखी मुहब्बत आज कसमें दे देकर मनाएगी
२८-६-२०२३


हसीन ओ रंगीन हैं तेरे मेरे सपने,
थोड़े से गमगीन है तेरे मेरे सपने।

 

चौदहवी का चाँद बादलों में छिप गया है
देख मौसम का मिजाज़ भी बदल गया है

आँखों के सामने मुकम्मल तस्वीर लेकर
आशिक हसीन चहरा देखने तरस गया है

शाम से होकर सुबह हो गईं इंतजार में
हल्की सी झलक देखने दिल तड़प गया है

तबियत में नहीं जाम पीकर मदहोश हो जाए
बहकती महकती रात को मन मचल गया है

कर कुछ इलाज ए हाकिमे मुहब्बत बहाल
रात का ख्वाब सुबह आंखों से बरस गया है

इन्तहा हो गई खूबसूरत लम्हों में इंतजार की
सखी समंदर का दिल आज छलक गया है
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह
अहमदाबाद


रास्ते हो प्यार के जिस राह पर चलो
जहां भी रहे जहां भी जाए तुम मिलों

न वक्त की न क़ायनात की नज़र लगे
चाहते हैं ढ़ेर खुशियों की गोद में पलो

हाथ और साथ जुड़े रखेगे वादा किया
दुआ है ख़ुदा से दिन रात फ़ूलों फलों

बार बार नहीं मिलते प्रफुल्लित पल
खूबसूरत यादों को दामन में सिलो

तलाश में निकले हैं कश्तियाँ लेकर
पाक मुहब्बत की भावना से गलो
३०-६-२०२३  
सखी