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मुमुक्षु अवचेतन की चेतन मन को प्रतिक्रिया

मेरे मुमुक्षु अवचेतन मन की, मुक्त यानी पूर्ण मृत निराकार चेतन मन के प्रेम पूर्ण आमंत्रण की प्रतिक्रिया ..!!

मैं ऐसे वाहन चालक सा हूँ, जिसके हिसाब सें वाहन नहीं बल्कि जो असहाय होने से वाहन के द्वारा बहुत बार चलाया जा रहा हैं।

जो जितना अधिक मुझसें, अपनें वाहन को नियंत्रित करने में समर्थ; क्या वों उतना ही मेरा राजा होने के पात्र नहीं?

क्या मैं उनकी प्रजा स्वयं को जानने और समझने से मान सकता हूँ?

बस पढ़ कर मन में जो आया, उसे व्यक्त कर दिया; असहाय महसूस कर रहा हूँ, इससें श्रेष्ठ कुछ करनें का सामर्थ्य नहीं जुटा पा रहा हूँ ..

मुझें तो यह भी मालूम नहीं कि यहाँ अभिव्यक्ति देने से मेरी समस्या कम होंगी या और बड़ जायेंगी?

जो मन में हैं उसे जयों का त्यों व्यक्त करना योग्य के समक्ष इसमें ही ईमानदारी मालूम चल रही हैं, यदि मैं सत्यनिष्ठ या ईमानदार रहने का सामर्थ्य जुटा पा रहा हूँ तो प्रतीत होता हैं कि समाधान होंगा, नहीं तो या तो मैं ईमानदार या सत्य निष्ठा में समर्थ नहीं या फिर जिसके समक्ष मेरी अभिव्यक्ति जा रही हैं वहाँ अयोग्यता यानी कि वाहन के नियंत्रण में चालक का होना यह हैं।

असहाय होना सबसें बड़ा अधर्म हैं और मैं सबसे बड़ा अधर्मी हूँ, निर्दोषों के खूब की बूंदों मेरे मुह में जा रही हैं; मैं क्यों मन की जकड़न सें खुद को पूर्ण मुक्त नहीं कर पा रहा हूँ ?

मैं क्यों जबर्दस्ती डालें जा रहें परमात्मा, निवेशकर्ताओं, माँ, मामा, चाचा, दादी, सरकार आदि के पैसों पर पल रहा हूँ, मैं क्यों सही मायनों यानी मतलब की आत्म निर्भरता को हासिल करनें में असमर्थता महसूस कर रहा हूँ, दूसरों का सहयोग अपने खून के घूट की तरह अंदर लेना अनुभव हों रहा हैं, जिसें जब तक खुद सक्षम न हों जाऊ तब तक और कोई रास्ता नहीं दिखाई देने से लेना भी पड़ रहा हैं, मुझें जल्द सामर्थ्य जुटाना होंगा, नहीं तो मेरे तन का खून एक सीमा के बाद शरीर के चालन के लियें पर्याप्त नहीं होने से खत्म होगा और आत्म निर्भरता में क्योंकि शरीर का भी सहयोग जरूरत रखता हैं इसलिये मैं अपने गंतव्य से और पृथक हों जाऊँगा ..

मुझें सभी के लियें उस सच्चे मतलब के सूर्य यानी परमात्मा के तरह सात्विक प्रेम कर्ता बनना हैं जो केवल और केवल निष्काम देता हैं क्योंकि सामर्थ्य वश दें सकता हैं, पर असमर्थता से जब तक नहीं जीत पाता मैं, मेरी सभी संबंधित श्रेष्ठ यानी समर्थ आत्मा जो कि मन यानी उनके वाहन के पूर्ण नियंत्रण में समर्थ होने से श्रेष्ठ यानी परम् आत्मा परमात्मा, निवेशकर्ताओं, मामा, माँ, चाचा, दादी और सरकार आदि पर्याप्त मन को अधीन नहीं रख सकनें वाली होनें से जीवात्मा सभी से केवल लियें ही लियें जा रहा हूँ यानी कि दुश्मनी यानी तामसिक संबंध जिये जा रहा हूँ; हें समर्थ आत्मा यदि मेरी तड़पन और बेचैनी के पुष्प तुम तक अर्पित हों पा रहें हैं तो मुझें इस असमर्थता की अत्यंत असुविधा पूर्ण ग्लानी सें मुक्ति यानी मोक्ष का मार्ग सुझायें, मेरा धैर्य डगमगा रहा हैं बड़ी असुविधा से इस मन के दासत्व सें मुक्ति के रण में स्वयं को बचा पा रहा हूँ मैं, मन मुझें पूरी तरह अपने वश में करना चाह रहा हैं, इससें बचना और टिके रहना बड़ी दुबलता से झूठ नहीं कहूँ मैं मेरे द्वारा नहीं बल्कि किसी सक्षम आत्म के सहयोग से महसूस कर रहा हूँ मैं, यदि उनके सहयोग हटा लेने के पूर्व पूर्ण समर्थता यानी अखंड आत्म निर्भरता को नहीं जुटाया तो सच्चाई के यानी सच्चे मतलब का प्रेम या संबंध सदैव जो होना चाहियें ही,कैसें इस मोक्ष को यानी अखंड आत्म निर्भरता को प्राप्त हों पाउँगा .. 🔥😔🙏❤️

- मेरे मुमुक्षु अवचेतन मन की, मुक्त यानी पूर्ण मृत निराकार चेतन मन के प्रेम पूर्ण आमंत्रण की प्रतिक्रिया

- रुद्र एस. शर्मा (१२:१८ सोमवार, १९ जून २०२३)

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