दानी की कहानी - 39 Pranava Bharti द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दानी की कहानी - 39

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कैसी घनघोर बारिश थी उस दिन जब बच्चे बिना किसी को बताए जाने कब चुपचाप घर से निकलकर रामबाग पहुँच गए थे | रामबाग बहुत खूबसूरत बड़ा सा बाग है जिसमें जाने कितने भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़-पौधे अपनी छटा बिखराए रहते हैं और अक्सर बच्चे दानी के साथ यहाँ आ पहुंचते हैं | 

वैसे दानी के बंगले में भी इतने रंग-बिरंगे भिन्न-भिन्न प्रकार के पौधे हैं कि हर दिन शाम को उनके बगीचे में पड़ौस के सारे बच्चों की भीड़ लगी रहती है | इस परिवार के बच्चों के साथ खेलने के लिए सारे बच्चे आ धमकते हैं | फिर दानी की कहानी और बातें तो सबके लिए भारी आकर्षण होता ही है | 

उस दिन जब अचानक रिमझिम पानी बरसने लगा तब सब अपने-अपने ऑफिसेज़ में गए हुए थे | महाराज और 'हाऊस-हेल्प' सबको खिला-पिलाकर थोड़ा आराम करने लगे थे | न जाने कौनसा त्योहार था कि बच्चों की छुट्टी थी लेकिन बड़ों का काम पर जाना हर दिन की तरह ही था | 

दानी भी बच्चों के साथ खाना खाकर अपने कमरे में आराम करने गईं और उस दिन दो बच्चे जिनकी छुट्टी थी, वे अपने कमरे में चले गए | दानी आराम करतीं तो बच्चे शोर मचाते थे इसलिए वे खुद ही दानी से कहकर अपने कमरे में चले जाते और फिर लगभग दो घंटे में उनके पास ही आ जाते | 

उस दिन वैसे भी चीनी की महाराज से थोड़ी सी कचर-पचर हो गई थी | अगर उसकी पसंद की कोई चीज़ न होती तो वह हाथ -पैर पटकने लगती और महाराज से गुस्से में बोलने लगती | 

दानी हमेशा बच्चों को अनुशासित रहने के लिए कहतीं | कभी-कभी छोटे बच्चे जब घर के किसी सेवक से बहस करते दानी नाराज़ भी हो जातीं | उनका कहना था कि जो लोग हमें समय पर सब चीज़ें देते हैं, हमारे लिए किसी भी समय काम करने के लिए खड़े रहते हैं, वे हमारे परिवार के सदस्य ही हुए, न कि बाहर के लोग जिन्हें किसी की परवाह क्यों होगी भला ?

चीनी के साथ एक और भी बच्चा था मन्नू ! वह चीनी से भी ज़्यादा शैतान था | कुछ दिन पहले ही हॉस्टल से आया था और पूरी शैतानियाँ सीखकर आया था | चुपके से चीनी को चढ़ा देता और चीनी फैल जाती | 

‘मुझे यह पसंद नहीं’, यह अच्छा नहीं लगता ----' ये सब बातें मन्नू के आने के बाद ही शुरू हुई थीं | दानी समझातीं लेकिन वह चुपके से शैतानी कर जाता और किसी न किसी का नाम लगा देता | छुट्टी के दिन अगर ये दोनों बच्चे होते तो दानी कोशिश करतीं कि उन्हें अपने पास ही रखें जिससे अगर वे कुछ गड़बड़ करें भी तो उन्हें समझा सकें | मन्नू, परिवार के दूर के रिश्तेदार का बच्चा था और हॉस्टल में पढ़ रहा था | छुट्टियाँ होतीं तो दानी के घर आ जाता | सब बच्चों में उसका खूब मन लगता लेकिन उसकी एक ही समस्या थी कि जब वह अपने से छोटे बच्चों को हॉस्टल की शैतानी की बातें बताता, बच्चों का मन भी वही शैतानी करने लगते | 

"शैतान तो बच्चों को होना ही चाहिए लेकिन अनुशासन और तहज़ीब का होना बहुत जरूरी है | " दानी समझातीं | मन्नू यानी मनन, दादी के सामने गर्दन ऐसे हिलाता जैसे वह कभी कुछ गड़बड़ नहीं करेगा लेकिन चीनी को वह मौका मिलते ही चढ़ाता रहता | 

आज तो चीनी ने महाराज के साथ भी अक्खड़ भाषा में बात की थी और फिर मन्नू के साथ बच्चों के कमरे में चली गई थी | दानी ने सोचा, थोड़ी देर में उनके पास ही आएंगे दोनों और उनकी आँखें लग गईं | 

जब बरसात खूब ज़ोर से पड़ने लगी, महाराज उठकर दानी के पास आए, उस समय दानी की चाय का समय हो गया था | दानी ने महाराज से कहा कि दोनों बच्चों को भी बुला लाएं और उनका दूध दानी की चाय के साथ दानी के कमरे में ही ले आएं | 

"जी, ठीक है --"कहकर महाराज जाने लगे | दानी को महसूस हुआ, कुछ तो गड़बड़ थी, उन्होंने महाराज से पूछा | 

"क्या बात है ?लगता है आज चीनी ने फिर आपसे गंदे तरीके से बात की है---?" दानी ने महाराज से पूछा | 

पहले तो वह चुप रहे लेकिन उन्हें यह चिंता थी कि चीनी गलत बातें सीखती जा रही है | 

वैसे भी दानी ने सबसे कह रखा था कि प्यार की बात अलग होती है लेकिन यदि किसी को भी यह महसूस हो कि बच्चे गलत कर रहे हैं तो बता देना चाहिए जिससे उन्हें समय पर समझाया जा सके | 

दानी के दुबारा पूछने पर महाराज ने बता दिया कि क्या बात हुई थी और बच्चों के कमरे में उन्हें बुलाने चले गए | 

"बच्चे तो हैं ही नहीं ---" वे भागते हुए आए | 

"ऐसा कैसे हो सकता है ?बच्चे कहाँ जाएंगे अकेले, भरी बरसात में ?देखो, किसी कमरे में छिप गए होंगे --" दानी ने कहा और महाराज व घर का दूसरा सेवक और खुद दानी भी बच्चों को तलाशने लगीं | बच्चे कहीं नहीं मिले तो महाराज ने कहा कि वो उन्हें रामबाग में देखकर आते हैं, मन्नू चीनी को बता रहा था कि वो तो चुपचाप गेट कूदकर बाहर चले जाते हैं और ऐसे ही कूदकर चुपचाप वापिस आ जाते हैं | लगता है, ऐसा ही कुछ हुआ होगा | 

दानी के लिए यह बहुत चिंता का विषय था | चीनी लगभग सात साल की थी जबकि मन्नू लगभग पंद्रह का रहा होगा | 

"चलो, मैं भी चलती हूँ ---" दानी महाराज के साथ रामबाग चलीं | बच्चे रामबाग के बड़े से गेट के बाहर ही कीचड़ में थप-थप कर रहे थे | दानी को देखते ही घबरा गए | 

दानी ने उनसे कुछ नहीं कहा और दोनों को साथ लेकर घर आ गईं | दोनों बुरी तरह भीग चुके थे, कीचड़ में लथपथ हो रहे थे | दानी ने उन्हे मुँह-हाथ, पैर धोकर, कपड़े बदलकर अपने कमरे में आने को कहा | वे बेचारी भी भीग गईं थीं, उन्हें भी कपड़े बदलने पड़े | 

थोड़ी देर में दोनों बच्चे उनके सामने थे, महाराज दानी की चाय, बच्चों के लिए गर्म दूध और कुछ बिस्किट्स लेकर आ गए थे | 

"किससे पूछकर गए थे ?" दानी ने उनके दूध पी लेने के बाद पूछा | उनका स्वर अब कठोर था | 

अब तक मन्नू जी मस्ती में आ गए थे, उन्हें लगा कि दानी कुछ कहेंगी नहीं लेकिन चीनी को डर था कि कुछ तो होगा ही | 

"किससे पूछकर गए थे आप लोग ?" दानी ने फिर पूछा | 

"मन्नू भैया ने बताया, वो हॉस्टल में सबकी आँखों में धूल झौंककर बाहर चले जाते हैं, किसी को कुछ पता नहीं चलता | आज यहाँ भी वही करते हैं, फ़न करेंगे| "दानी को लगा कि इस उम्र के बच्चों को अकेले छोड़ना ही नहीं चाहिए | वे कुछ भी सीख सकते हैं | 

चीनी डर से रोने लगी और मन्नू बगलें झाँकने लगा | उसने तो अपनी बहादुरी दिखाने के लिए चीनी को पटाया था | अब तो -----वह बिना कुछ कहे ही रोने लगा | 

दानी तो बड़ी थीं, उसका नाटक समझती थीं | 

"आँखों में धूल झौंकने का मतलब पता है चीनी तुम्हें ?" दानी ने पूछा | 

चीनी ने आँखों में आँसु भरकर 'न'में गर्दन हिला दी | 

"तुम्हें पता है ?" दानी ने मन्नू से पूछा | 

"धोखा देना ---ऊँ ऊँ ---" बदमाश बच्चा रो जा रहा था | 

"मैंने तुम्हारी पिटाई की क्या?" दानी ने पूछा | 

पल भर को उसका रोना बंद हो गया और उसने नहीं में गर्दन हिला दी | 

"तो रो क्यों रहे हो?" दानी ने कुछ गुस्से से कहा फिर चीनी से पूछा ;

"पता चला, आँखों में धूल झौंकना क्या होता है ?"

चीनी ने मासूम आँखों से दानी को देखा और आँखें नीची कर लीं | बेचारी की आँखों से आँसु टपकते जा रहे थे | 

"मैं तो आपकी आँखों का तारा हूँ न ?" चीनी ने दानी से पूछा | 

दानी को हँसी आ गई, पिछले दिनों ही तो उन्होंने बच्चों को आँखों का तारा का मतलब समझाया था | लेकिन इन बच्चों का यह कदम मज़ाक में उड़ाने का नहीं था | 

"आँखों का तारा हो तो आँखों में धूल झौंकोगी मतलब धोखा दे सकती हो क्या ?"

"नहीं, दानी सॉरी, अब नहीं करूँगी __" चीनी ने दानी से लिपटकर कहा | 

"तुम्हारे हॉस्टल में यह बात बतानी होगी मनन, नहीं तो तुम किसी दिन किसी और को भी अपने साथ यह सब करना सिखाओगे ---"

"नहीं, दानी ---सॉरी, अब कभी नहीं करूँगा ---" मन्नू ने कान पकड़ते हुए कहा | 

"और आज तुमने महाराज को भी परेशान किया है न ?" दानी ने चीनी से पूछा | 

"सॉरी, महाराज --अब से कभी नहीं करूँगी ---" उसने महाराज से भी माफ़ी माँग ली | 

आज चीनी ने 'आँखों में धूल झौंकना' का अर्थ भी सीख लिया था | 

 

डॉ. प्रणव भारती

पने आपको सीमाओं में जकड़ लेना है, जो प्रगतिशीलता के लिए अवरोध हैं। हमारी कार्य-प्रणाली, इच्छा और पसंद की प्रेरणा पर निर्भर न रहे वरन् कार्य करना हमारा स्वभाव, हमारी आदत में होना चाहिए। पसंद और इच्छा के भरोसे न बैठकर सामने आने वाले कार्य में जुट जाने वाला व्यक्ति जीवन में एक-एक करके अनेकों सफलतायें प्राप्त कर सकता है।

आपका दिन सपरिवार शुभ हो।